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गरीबोंकी सेवा  [आध्यात्मिक कहानी]
छोटी सी कहानी - बोध कथा (प्रेरक कथा)

[3]

गरीबोंकी सेवा

एक बार महात्मा गौतम बुद्धने उपदेश देते हुए कहा-'देशमें अकाल पड़ा है। लोग अन्न एवं वस्त्रके लिये तरस रहे हैं। उनकी सहायता करना हर मनुष्यका धर्म है। आप लोगंकि शरीरपर जो वस्त्र हैं, उन्हें दानमें दे दें। यह सुनकर कुछ लोग उठकर चले गये। कुछ लोग आपसमें कहने लगे-'यदि वस्त्र इन्हें दे दें तो हम क्या पहनेंगे ?' उपदेश समाप्त हुआ। सभी श्रोता चले गये परंतु निरंजन बैठा रहा। वह सोचने लगा- 'मेरे शरीरपर एक वस्त्र है। अगर मैं अपना वस्त्र दे दूँगा तो नग्न होना पड़ेगा।' फिर सोचा- 'मनुष्य बिना वस्त्रके पैदा होता है और बिना वस्त्रके ही चला जाता है। साधु-संन्यासी भी बिना वस्त्रके रहते हैं।' अतः निरंजनने अपनी धोती दे दी। बुद्धने उसे आशीर्वाद दिया। निरंजन अपने घरकी ओर चल पड़ा। वह खुशीसे चिल्लाकर कह रहा था- 'मैंने अपने आधे मनको जीत लिया।'
तभी निरंजनने देखा कि दूसरी ओरसे महाराज प्रसेनजित् चले आ रहे हैं। निरंजनकी बात सुनकर उन्होंने उसे पास बुलाया और पूछा—'तुमने अपने आधे मनको जीत लिया, इसका क्या अर्थ है ?'
निरंजनने उत्तर दिया- 'महाराज! महात्मा गौतम बुद्ध दुखियोंके लिये दानमें वस्त्र माँग रहे थे। यह यदि सुनकर मेरे एक मनने कहा कि शरीरपर पड़ी । धोती दानमें दे दो, परंतु दूसरे मनने कहा कि दोगे तो पहनोगे क्या? आखिर दान देनेवाले मनको विजय हुई। मैंने धोती दानमें दे दी। अब मुझे गरीबोंकी सेवाके सिवा कुछ नहीं चाहिये।'
यह सुनकर राजा प्रसेनजित्ने अपना राजकीय परिधान उतारकर निरंजनको प्रदान कर दिया। निरंजनने उसे भी महात्मा बुद्धके चरणोंमें डाल दिया। बुद्धने निरंजनको हृदयसे लगाते हुए कहा- 'जो दूसरोंके लिये अपना सब कुछ दे देता है, उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता।'



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gareebonkee sevaa

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gareebonkee sevaa

ek baar mahaatma gautam buddhane upadesh dete hue kahaa-'deshamen akaal pada़a hai. log ann evan vastrake liye taras rahe hain. unakee sahaayata karana har manushyaka dharm hai. aap loganki shareerapar jo vastr hain, unhen daanamen de den. yah sunakar kuchh log uthakar chale gaye. kuchh log aapasamen kahane lage-'yadi vastr inhen de den to ham kya pahanenge ?' upadesh samaapt huaa. sabhee shrota chale gaye parantu niranjan baitha rahaa. vah sochane lagaa- 'mere shareerapar ek vastr hai. agar main apana vastr de doonga to nagn hona pada़egaa.' phir sochaa- 'manushy bina vastrake paida hota hai aur bina vastrake hee chala jaata hai. saadhu-sannyaasee bhee bina vastrake rahate hain.' atah niranjanane apanee dhotee de dee. buddhane use aasheervaad diyaa. niranjan apane gharakee or chal pada़aa. vah khusheese chillaakar kah raha thaa- 'mainne apane aadhe manako jeet liyaa.'
tabhee niranjanane dekha ki doosaree orase mahaaraaj prasenajit chale a rahe hain. niranjanakee baat sunakar unhonne use paas bulaaya aur poochhaa—'tumane apane aadhe manako jeet liya, isaka kya arth hai ?'
niranjanane uttar diyaa- 'mahaaraaja! mahaatma gautam buddh dukhiyonke liye daanamen vastr maang rahe the. yah yadi sunakar mere ek manane kaha ki shareerapar pada़ee . dhotee daanamen de do, parantu doosare manane kaha ki doge to pahanoge kyaa? aakhir daan denevaale manako vijay huee. mainne dhotee daanamen de dee. ab mujhe gareebonkee sevaake siva kuchh naheen chaahiye.'
yah sunakar raaja prasenajitne apana raajakeey paridhaan utaarakar niranjanako pradaan kar diyaa. niranjanane use bhee mahaatma buddhake charanonmen daal diyaa. buddhane niranjanako hridayase lagaate hue kahaa- 'jo doosaronke liye apana sab kuchh de deta hai, usakee baraabaree koee naheen kar sakataa.'

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