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गृध्र और उलूकको न्याय  [शिक्षदायक कहानी]
Moral Story - Shikshaprad Kahani (Wisdom Story)

एक बार जब भगवान् श्रीराघवेन्द्र अपने दरबारमें विराज रहे थे, तब एक उलूक और एक गृध्र उनके चरणोंमें उपस्थित हुए और बार-बार उनके चरणोंको बारी-बारीसे छूने लगे। प्रभुके द्वारा कार्य पूछे जानेपर गीध कहने लगा- 'आप देवताओं तथा असुरोंमें प्रधान हैं बुद्धिमें आप बृहस्पति और शुक्रसे भी बड़ चढ़कर हैं। साथ ही प्राणियोंके बाहर-भीतर, ऊपर नीचे सर्वत्रकी बातें जानते हैं। प्रभो! इस उल्लूने मेरे अपने बाहुवीर्यसे बनाये हुए मकानका अपहरण कर लिया है। मैं, नाथ! आपकी शरण हूँ। आप कृपया मेरी रक्षा करें।'

गोधकी बात समाप्त भी न हो पायी थी कि उल्लू कहने लगा- 'महाबाहु राम! इन्द्र, चन्द्र, यम, कुबेर और सूर्यके अंशसे राजाकी उत्पत्ति होती है उसमें मनुष्यका अंश तो घोड़ा ही होता है फिर आप तो सर्वदेवमय साक्षात् भगवान् नारायण ही हैं। इसलिये आपसे परे तो कुछ है ही नहीं। नाथ! सबके स्वामी होनेके कारण आप हमलोगोंके भी स्वामी तथा न्यायकर्त्ता हैं। देव! घर मेरा है और यह गीध उसमें घुसकर नित्यप्रति मुझे बाधा पहुंचाता है। इसलिये स्वामिन् इसेशासित किया जाय। '

इसपर भगवान्ने गीधसे पूछा- 'अच्छा, तुम यह तो बतलाओ कि तुम उस मकानमें कितने वर्षोंसे रह रहे हो?' गीधने कहा—‘प्रभो! जबसे यह पृथ्वी मनुष्योंसे घिरी हुई प्रकट हुई, तभीसे वह घर मेरा आवास रहा है।'

इसपर प्रभुने अपने सभासदोंसे कहा - 'सभ्यो ! वह सभा नहीं, जहाँ वृद्ध न हों; वे वृद्ध नहीं, जिन्हें धर्मका परिज्ञान न हो। वह धर्म भी नहीं, जहाँ सत्य न हो और वह सत्य सत्य भी नहीं, जो छलसे अनुविद्ध हो। इसके साथ ही यदि सभासद्गण सभी बातोंको ठीक-ठीक जानते हुए भी चुप्पी साधे बैठे रहते हैं और यथावसर बोलनेका कष्ट नहीं करते तो वे सभी मिथ्यावादी ही समझे जाते हैं। या जो काम, क्रोध और भयके कारण जानते हुए भी प्रश्नोंका ठीक-ठीक उत्तर नहीं देते, वे सभासद् अपनेको एक सहस्र वारुणपाशोंसे बाँध लेते हैं। उन पाशोंमेंसे एक पाश एक वर्षपर छूटता है। इसलिये कौन-सा ऐसा सभासद् होगा जो इन रहस्योंको जानते हुए भी सत्यका अपलाप करे, या जान-बूझकर मौन साध ले। * अतएव आपलोग इनके व्यवहारका ठीक-ठीक निर्णय करें।'सभासदोंने कहा - 'महामति, राजसिंह रघुनन्दन ! लक्षणों तथा वाणीके विकारोंसे गीधकी बातें ठीक नहीं जान पड़तीं। उल्लू ही ठीक कह रहा है। पर यह तो हमलोगों का मत है, यथार्थतः महाराज ! इसमें आप ही अब परम प्रमाण हैं।'

मन्त्रियोंकी बात सुनकर प्रभुने कहा- 'पुराणोंमें कहा गया है कि पहले यह सारी पृथ्वी और यह सारा चराचर जगत् जलमय था और वह महाविष्णुके हृदयमें विलीन हो गया था। महातेजस्वी विष्णु इसे हृदयमें लिये हुए अनन्त वर्षोंतक योगनिद्रामें सोते रहे। उनके उठनेपर उनकी नाभिसे पद्म उत्पन्न हुआ, जिससे ब्रह्माजी प्रकट हुए। उनके कानके मलसे मधु और कैटभ- ये दो दैत्य उत्पन्न हुए जो ब्रह्माजीको ही खाने दौड़े, किंतु जिन्हें चक्रके प्रहारसे साक्षात् श्रीहरिने मार डाला। उन्हीं असुरोंके मेदसे प्लावित होकर यह पृथ्वी उत्पन्न हुई। उसे श्रीविष्णुने फिर शुद्धकर वृक्ष, ओषधियों एवं नाना प्रकारके धान्योंसे परिपूर्ण किया। पर यह गीध कह रहा है कि यह उस घरमें तबसे बसता आ रहा है, जबसे मनुष्योंसे आवृत यह पृथ्वी निकली। ऐसी दशामें यह घर उल्लूका ही है, गीधका नहीं। अतएव परगृह- हर्त्ता, परपीड़क होनेके नाते गीधको दण्ड दिया जाना चाहिये।भगवान् यों कह ही रहे थे कि आकाशसे निर्मल ध्वनि सुनायी पड़ी 'रामभद्र आप इस गीधका वध मत कीजिये। यह कालगौतमके तपोबलसे पहले ही दग्ध हो चुका है। पूर्वजन्ममें यह ब्रह्मदत्त नामका राजा था। एक बार कालगौतम नामक महात्मा इसके घर भोजनके लिये पधारे उन महात्मा के आहार में अनजानमें थोड़ा मांस रखा गया। यह देख उन्होंने क्रोधमें इसे शाप दे डाला कि ' जा तू गीध हो जा।' यह 'नहीं-नहीं, क्षमा कीजिये, अनजानमें भूल हो गयी है' आदि बातें कहता ही रह गया, पर उन्होंने एक न सुनी। अन्तमें शापकी अवधि करते हुए उन्होंने कहा कि 'जब इक्ष्वाकुकुलमें महायशा, राजीवलोचन श्रीरामभद्र प्रकट होंगे और वे तुम्हें अपने हस्तारविन्दसे स्पर्श करेंगे, तब पुनः तुम्हें दिव्य शरीरकी प्राप्ति हो जायगी।' अतः देव! यह दयनीय है, बध्य नहीं।"

इस अन्तरिक्षगत अशरीरवाणीको सुनकर भगवान्ने ज्यों ही उसका स्पर्श किया, गीधने घृणित शरीर त्यागकर दिव्यगन्धानुलिप्त दिव्य पुरुषका रूप धारण कर लिया और 'राघव! साधु, साधु धर्मज्ञ रामभद्र साधु!' आज आपने मेरा घोर नरकसे उद्धार कर दिया, मेरे शापका अन्त कर दिया। यों कहता हुआ वह दिव्यलोकको चला गया। -जा0 श0



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gridhr aur ulookako nyaaya

ek baar jab bhagavaan shreeraaghavendr apane darabaaramen viraaj rahe the, tab ek ulook aur ek gridhr unake charanonmen upasthit hue aur baara-baar unake charanonko baaree-baareese chhoone lage. prabhuke dvaara kaary poochhe jaanepar geedh kahane lagaa- 'aap devataaon tatha asuronmen pradhaan hain buddhimen aap brihaspati aur shukrase bhee bada़ chadha़kar hain. saath hee praaniyonke baahara-bheetar, oopar neeche sarvatrakee baaten jaanate hain. prabho! is ulloone mere apane baahuveeryase banaaye hue makaanaka apaharan kar liya hai. main, naatha! aapakee sharan hoon. aap kripaya meree raksha karen.'

godhakee baat samaapt bhee n ho paayee thee ki ulloo kahane lagaa- 'mahaabaahu raama! indr, chandr, yam, kuber aur sooryake anshase raajaakee utpatti hotee hai usamen manushyaka ansh to ghoda़a hee hota hai phir aap to sarvadevamay saakshaat bhagavaan naaraayan hee hain. isaliye aapase pare to kuchh hai hee naheen. naatha! sabake svaamee honeke kaaran aap hamalogonke bhee svaamee tatha nyaayakartta hain. deva! ghar mera hai aur yah geedh usamen ghusakar nityaprati mujhe baadha pahunchaata hai. isaliye svaamin iseshaasit kiya jaaya. '

isapar bhagavaanne geedhase poochhaa- 'achchha, tum yah to batalaao ki tum us makaanamen kitane varshonse rah rahe ho?' geedhane kahaa—‘prabho! jabase yah prithvee manushyonse ghiree huee prakat huee, tabheese vah ghar mera aavaas raha hai.'

isapar prabhune apane sabhaasadonse kaha - 'sabhyo ! vah sabha naheen, jahaan vriddh n hon; ve vriddh naheen, jinhen dharmaka parijnaan n ho. vah dharm bhee naheen, jahaan saty n ho aur vah saty saty bhee naheen, jo chhalase anuviddh ho. isake saath hee yadi sabhaasadgan sabhee baatonko theeka-theek jaanate hue bhee chuppee saadhe baithe rahate hain aur yathaavasar bolaneka kasht naheen karate to ve sabhee mithyaavaadee hee samajhe jaate hain. ya jo kaam, krodh aur bhayake kaaran jaanate hue bhee prashnonka theeka-theek uttar naheen dete, ve sabhaasad apaneko ek sahasr vaarunapaashonse baandh lete hain. un paashonmense ek paash ek varshapar chhootata hai. isaliye kauna-sa aisa sabhaasad hoga jo in rahasyonko jaanate hue bhee satyaka apalaap kare, ya jaana-boojhakar maun saadh le. * ataev aapalog inake vyavahaaraka theeka-theek nirnay karen.'sabhaasadonne kaha - 'mahaamati, raajasinh raghunandan ! lakshanon tatha vaaneeke vikaaronse geedhakee baaten theek naheen jaan pada़teen. ulloo hee theek kah raha hai. par yah to hamalogon ka mat hai, yathaarthatah mahaaraaj ! isamen aap hee ab param pramaan hain.'

mantriyonkee baat sunakar prabhune kahaa- 'puraanonmen kaha gaya hai ki pahale yah saaree prithvee aur yah saara charaachar jagat jalamay tha aur vah mahaavishnuke hridayamen vileen ho gaya thaa. mahaatejasvee vishnu ise hridayamen liye hue anant varshontak yoganidraamen sote rahe. unake uthanepar unakee naabhise padm utpann hua, jisase brahmaajee prakat hue. unake kaanake malase madhu aur kaitabha- ye do daity utpann hue jo brahmaajeeko hee khaane dauda़e, kintu jinhen chakrake prahaarase saakshaat shreeharine maar daalaa. unheen asuronke medase plaavit hokar yah prithvee utpann huee. use shreevishnune phir shuddhakar vriksh, oshadhiyon evan naana prakaarake dhaanyonse paripoorn kiyaa. par yah geedh kah raha hai ki yah us gharamen tabase basata a raha hai, jabase manushyonse aavrit yah prithvee nikalee. aisee dashaamen yah ghar ullooka hee hai, geedhaka naheen. ataev paragriha- hartta, parapeeda़k honeke naate geedhako dand diya jaana chaahiye.bhagavaan yon kah hee rahe the ki aakaashase nirmal dhvani sunaayee pada़ee 'raamabhadr aap is geedhaka vadh mat keejiye. yah kaalagautamake tapobalase pahale hee dagdh ho chuka hai. poorvajanmamen yah brahmadatt naamaka raaja thaa. ek baar kaalagautam naamak mahaatma isake ghar bhojanake liye padhaare un mahaatma ke aahaar men anajaanamen thoda़a maans rakha gayaa. yah dekh unhonne krodhamen ise shaap de daala ki ' ja too geedh ho jaa.' yah 'naheen-naheen, kshama keejiye, anajaanamen bhool ho gayee hai' aadi baaten kahata hee rah gaya, par unhonne ek n sunee. antamen shaapakee avadhi karate hue unhonne kaha ki 'jab ikshvaakukulamen mahaayasha, raajeevalochan shreeraamabhadr prakat honge aur ve tumhen apane hastaaravindase sparsh karenge, tab punah tumhen divy shareerakee praapti ho jaayagee.' atah deva! yah dayaneey hai, badhy naheen."

is antarikshagat ashareeravaaneeko sunakar bhagavaanne jyon hee usaka sparsh kiya, geedhane ghrinit shareer tyaagakar divyagandhaanulipt divy purushaka roop dhaaran kar liya aur 'raaghava! saadhu, saadhu dharmajn raamabhadr saadhu!' aaj aapane mera ghor narakase uddhaar kar diya, mere shaapaka ant kar diyaa. yon kahata hua vah divyalokako chala gayaa. -jaa0 sha0

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