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गोपाल पुत्ररूपमें  [Wisdom Story]
Short Story - प्रेरक कथा (Wisdom Story)

बंगालमें किसी गाँवमें एक सोलह वर्षकी युवती रहती थी। जिस साल उसका विवाह हुआ उसी साल उसके पतिका देहान्त हो गया। वह इस आकस्मिक विपत्तिके कारण अत्यन्त दुखी हो गयी।

एक दिन वह अकेली बैठी रो रही थी। इसी समय उसको ऐसा लगा मानो कोई कह रहा है कि तुम पासमें रहनेवाले महात्माके पास जाओ। इस अन्तः प्रेरणासे वह महात्माके पास जाकर फूट-फूटकर रोने लगी। तब महात्माने पूछा- 'बेटी! तुम रो क्यों रही हो?'

युवतीने उत्तर दिया- 'महाराज! मेरे कोई नहीं है।' महात्मा- 'बेटी! तुम इतनी झूठ क्यों बोल रही हो ? तुम्हारे जैसी झूठी तो मैंने आजतक कभी देखी ही नहीं।'

यह सुनते ही बेचारी युवती सकपका गयी। तब महात्माने कहा- 'बेटी! तुमने यह कैसे कहा कि मेरे कोई नहीं है। क्या भगवान् भी मर गये हैं। वे तो सबके अपने हैं। सबके परम आत्मीय हैं। जिसके कोई नहीं होता वे तो उसके होते ही हैं। तुम उनका चाहे जिस रूपमें भजन कर सकती हो। भजन करोगी तो सदा उनको अपने पास पाओगी। तुम चाहो तो उन्हें अपना बेटा बना लो।'

युवतीने बहुत सोचकर भगवान्‌को अपना पुत्र बना लिया।
अब वह प्रतिदिन भगवान्के लिये भोजन बनातीऔर थालमें परसकर अपने गोपालको बुलाती । उसे अनुभव होता मानो गोपाल रोज आकर मैयाका दिया भोजन बड़े चाव से खाता है। इस प्रकार तीस साल बीत गये। अब वह युवती बूढ़ी हो गयी।

एक बार वह रामकृष्ण परमहंसके दर्शन करने गयी। गोपाल देर होनेसे भूखा न रह जाय, इसलिये उसने अपने गोपालके लिये थोड़ी-सी दाल और चावल साथ ले लिये। सोचा, खिचड़ी बनाकर खिला दूँगी गोपालको ।

जब वह परमहंसजीके यहाँ पहुँची, तब उसने देखा कि बहुत बड़े-बड़े आदमी उनके चारों ओर बैठे हैं। यह देखकर वह वापस जाने लगी। इसी समय स्वयं परमहंसजी अपने आसनसे उछले और उसको बुला लाये तथा कहने लगे कि 'माता! तुम मेरे लिये खिचड़ी बनाओ। मुझे बड़ी भूख लगी है।' बेचारी वृद्धा कृतार्थ हो गयी। परमहंसजी उसे चौकेमें ले गये और कहने लगे-'माता! जल्दी बनाओ।'

खिचड़ी तैयार हो गयी तो उसने एक पत्तलमें उसे परसा; किंतु परमहंसजीको बुलानेमें उसे संकोच होने लगा। परमहंसजी वृद्धाके मनकी बात जान गये और स्वयं ही आकर खिचड़ी खाने लगे। थोड़ी देर बाद वृद्धाने देखा कि परमहंसके स्थानपर उसका गोपाल प्यारा बैठा है। वह ज्यों ही पकड़ने दौड़ी कि वह भाग गया।तबसे वह पागल-सी रहने लगी। कभी कहती 'उसने खाकर हाथ नहीं धोये, कभी कहती कि वह इत्रकी शीशी चुरा लाया।' ऐसी दशा होनेके बादकी एक चमत्कारपूर्ण घटना यह है

लोगोंमें बात फैल गयी थी कि बुढ़ियाको भगवान्‌के दर्शन होते हैं। अतः एक बार कुछ लोगोंने उससे भगवान्‌के दर्शन करानेके लिये प्रार्थना की। उसने भगवान्से कहा। किंतु उन्होंने ऐसा भाव प्रकट किया मानो वे दर्शन देना नहीं चाहते तथापि वृद्धाकी बातकाआदर करनेके लिये वे एक क्षणके लिये वृद्धाके सामनेसे अदृश्य हो गये और कहींसे एक इत्रकी शीशी ले आये। वृद्धा यह देखकर बोली कि 'यह इत्र तू कहाँसे चुरा लाया ?' यह सुनते ही गोपालने शीशी फोड़ दी। लोगोंको दर्शन तो नहीं हुए; किंतु सभीको शीशी फूटनेका शब्द सुनायी पड़ा तथा इत्रकी सुगन्ध चारों ओर फैल गयी।

उस वृद्धाकी दशा- जबतक वह जीवित रही ऐसी ही रही।



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gopaal putraroopamen

bangaalamen kisee gaanvamen ek solah varshakee yuvatee rahatee thee. jis saal usaka vivaah hua usee saal usake patika dehaant ho gayaa. vah is aakasmik vipattike kaaran atyant dukhee ho gayee.

ek din vah akelee baithee ro rahee thee. isee samay usako aisa laga maano koee kah raha hai ki tum paasamen rahanevaale mahaatmaake paas jaao. is antah preranaase vah mahaatmaake paas jaakar phoota-phootakar rone lagee. tab mahaatmaane poochhaa- 'betee! tum ro kyon rahee ho?'

yuvateene uttar diyaa- 'mahaaraaja! mere koee naheen hai.' mahaatmaa- 'betee! tum itanee jhooth kyon bol rahee ho ? tumhaare jaisee jhoothee to mainne aajatak kabhee dekhee hee naheen.'

yah sunate hee bechaaree yuvatee sakapaka gayee. tab mahaatmaane kahaa- 'betee! tumane yah kaise kaha ki mere koee naheen hai. kya bhagavaan bhee mar gaye hain. ve to sabake apane hain. sabake param aatmeey hain. jisake koee naheen hota ve to usake hote hee hain. tum unaka chaahe jis roopamen bhajan kar sakatee ho. bhajan karogee to sada unako apane paas paaogee. tum chaaho to unhen apana beta bana lo.'

yuvateene bahut sochakar bhagavaan‌ko apana putr bana liyaa.
ab vah pratidin bhagavaanke liye bhojan banaateeaur thaalamen parasakar apane gopaalako bulaatee . use anubhav hota maano gopaal roj aakar maiyaaka diya bhojan bada़e chaav se khaata hai. is prakaar tees saal beet gaye. ab vah yuvatee boodha़ee ho gayee.

ek baar vah raamakrishn paramahansake darshan karane gayee. gopaal der honese bhookha n rah jaay, isaliye usane apane gopaalake liye thoda़ee-see daal aur chaaval saath le liye. socha, khichada़ee banaakar khila doongee gopaalako .

jab vah paramahansajeeke yahaan pahunchee, tab usane dekha ki bahut bada़e-bada़e aadamee unake chaaron or baithe hain. yah dekhakar vah vaapas jaane lagee. isee samay svayan paramahansajee apane aasanase uchhale aur usako bula laaye tatha kahane lage ki 'maataa! tum mere liye khichada़ee banaao. mujhe bada़ee bhookh lagee hai.' bechaaree vriddha kritaarth ho gayee. paramahansajee use chaukemen le gaye aur kahane lage-'maataa! jaldee banaao.'

khichada़ee taiyaar ho gayee to usane ek pattalamen use parasaa; kintu paramahansajeeko bulaanemen use sankoch hone lagaa. paramahansajee vriddhaake manakee baat jaan gaye aur svayan hee aakar khichada़ee khaane lage. thoda़ee der baad vriddhaane dekha ki paramahansake sthaanapar usaka gopaal pyaara baitha hai. vah jyon hee pakada़ne dauda़ee ki vah bhaag gayaa.tabase vah paagala-see rahane lagee. kabhee kahatee 'usane khaakar haath naheen dhoye, kabhee kahatee ki vah itrakee sheeshee chura laayaa.' aisee dasha honeke baadakee ek chamatkaarapoorn ghatana yah hai

logonmen baat phail gayee thee ki budha़iyaako bhagavaan‌ke darshan hote hain. atah ek baar kuchh logonne usase bhagavaan‌ke darshan karaaneke liye praarthana kee. usane bhagavaanse kahaa. kintu unhonne aisa bhaav prakat kiya maano ve darshan dena naheen chaahate tathaapi vriddhaakee baatakaaaadar karaneke liye ve ek kshanake liye vriddhaake saamanese adrishy ho gaye aur kaheense ek itrakee sheeshee le aaye. vriddha yah dekhakar bolee ki 'yah itr too kahaanse chura laaya ?' yah sunate hee gopaalane sheeshee phoda़ dee. logonko darshan to naheen hue; kintu sabheeko sheeshee phootaneka shabd sunaayee pada़a tatha itrakee sugandh chaaron or phail gayee.

us vriddhaakee dashaa- jabatak vah jeevit rahee aisee hee rahee.

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