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तत्त्वज्ञानके श्रवणका अधिकारी  [Spiritual Story]
प्रेरक कथा - Short Story (प्रेरक कथा)

महर्षि याज्ञवल्क्य नियमितरूपसे प्रतिदिन उपनिषदोंका उपदेश करते थे। आश्रमके दूसरे विरक्त शिष्य तथा मुनिगण तो श्रोता थे ही, महाराज जनक भी प्रतिदिन वह उपदेश सुनने आते थे। महर्षि तबतक प्रवचन प्रारम्भ नहीं करते थे, जबतक महाराज जनक न आ जायँ । इससे श्रोताओंके मनमें अनेक प्रकारके संदेह उठते थे। वे संकोचके मारे कुछ कहते तो नहीं थे, किंतु मनमेंसोचते रहते थे – 'महर्षि शरीरकी तथा संसारकी अनित्यताका प्रतिपादन करते हैं, मानापमानको हेव बतलाते हैं, किंतु विरक्तों, ब्राह्मणों तथा मुनियोंके रहते भी राजाके आये बिना उपदेश प्रारम्भ नहीं करते।' योगिराज याज्ञवल्क्यजीने अपने श्रोताओंका मनोभाव लक्षित कर लिया। प्रवचन प्रारम्भ होनेके पश्चात् उन्होंने अपनी योगशक्तिसे एक लीला की। आश्रमसे एकब्रह्मचारी दौड़ा आया और उसने समाचार दिया- 'वनमें अग्नि लगी है, आश्रमकी ओर लपटें बढ़ रही हैं।'

समाचार मिलते ही श्रोतागण उठे और अपनी कुटियोंकी ओर दौड़े। अपने कमण्डलु, वल्कल तथा नीवार आदि वे सुरक्षित रखने लगे। सब वस्तुएँ सुरक्षित करके वे फिर प्रवचन - स्थानपर आ बैठे। उसी समय एक राजसेवकने आकर समाचार दिया- 'मिथिला नगरमें अग्नि लगी है।'

महाराज जनकने सेवककी बातपर ध्यान ही नहीं दिया।इतनेमें दूसरा सेवक दौड़ा आया- 'अग्नि राजमहलके | बाहरतक जा पहुँची है।' दो क्षण नहीं बीते कि तीसरा सेवक समाचार लाया—' अग्नि अन्तः पुरतक पहुँच गयी।' महर्षि याज्ञवल्क्यने राजा जनककी ओर देखा। महाराज जनक बोले- 'मिथिलानगर, राजभवन, अन्तःपुर या इस शरीरके ही जल जानेसे मेरा तो कुछ जलता नहीं। आत्मा तो अमर है। अतः आप प्रवचन बंद न करें।' अग्नि सच्ची तो थी नहीं; किंतु तत्त्वज्ञानके श्रवणका सच्चा अधिकारी कौन है, यह श्रोताओंकी समझमें आ गया। – सु0 सिं0



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tattvajnaanake shravanaka adhikaaree

maharshi yaajnavalky niyamitaroopase pratidin upanishadonka upadesh karate the. aashramake doosare virakt shishy tatha munigan to shrota the hee, mahaaraaj janak bhee pratidin vah upadesh sunane aate the. maharshi tabatak pravachan praarambh naheen karate the, jabatak mahaaraaj janak n a jaayan . isase shrotaaonke manamen anek prakaarake sandeh uthate the. ve sankochake maare kuchh kahate to naheen the, kintu manamensochate rahate the – 'maharshi shareerakee tatha sansaarakee anityataaka pratipaadan karate hain, maanaapamaanako hev batalaate hain, kintu virakton, braahmanon tatha muniyonke rahate bhee raajaake aaye bina upadesh praarambh naheen karate.' yogiraaj yaajnavalkyajeene apane shrotaaonka manobhaav lakshit kar liyaa. pravachan praarambh honeke pashchaat unhonne apanee yogashaktise ek leela kee. aashramase ekabrahmachaaree dauda़a aaya aur usane samaachaar diyaa- 'vanamen agni lagee hai, aashramakee or lapaten badha़ rahee hain.'

samaachaar milate hee shrotaagan uthe aur apanee kutiyonkee or dauda़e. apane kamandalu, valkal tatha neevaar aadi ve surakshit rakhane lage. sab vastuen surakshit karake ve phir pravachan - sthaanapar a baithe. usee samay ek raajasevakane aakar samaachaar diyaa- 'mithila nagaramen agni lagee hai.'

mahaaraaj janakane sevakakee baatapar dhyaan hee naheen diyaa.itanemen doosara sevak dauda़a aayaa- 'agni raajamahalake | baaharatak ja pahunchee hai.' do kshan naheen beete ki teesara sevak samaachaar laayaa—' agni antah puratak pahunch gayee.' maharshi yaajnavalkyane raaja janakakee or dekhaa. mahaaraaj janak bole- 'mithilaanagar, raajabhavan, antahpur ya is shareerake hee jal jaanese mera to kuchh jalata naheen. aatma to amar hai. atah aap pravachan band n karen.' agni sachchee to thee naheen; kintu tattvajnaanake shravanaka sachcha adhikaaree kaun hai, yah shrotaaonkee samajhamen a gayaa. – su0 sin0

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