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मित्रकी माता धर्मतः माता होती है  [शिक्षदायक कहानी]
हिन्दी कथा - Hindi Story (Shikshaprad Kahani)

मित्रकी माता धर्मतः माता होती है

एक बार अयोध्यानरेश श्रीराम, लक्ष्मण और सुग्रीवके साथ लंकापुरी आये। राजा विभीषणका मन्त्रिमण्डल और लंकाके निवासी श्रीरामचन्द्रजीके दर्शनके लिये उत्सुक हो वहाँ आये और विभीषणसे बोले-'हमें श्रीरामजीका दर्शन करा दीजिये।' विभीषणने महाराज श्रीरामचन्द्रजीसे उनका परिचय कराया और श्रीरामको आज्ञासे भरतने उन राक्षसपतियोंक द्वारा भेंट दिये हुए धन और रत्नराशिको ग्रहण किया। राजभवन में श्रीरघुनाथजीने तीन दिनतक निवास किया। चौथे दिन जब श्रीरामचन्द्रजी राजसभामें विराजमान थे, राजमाता कैफसीने विभीषणसे कहा- 'बेटा! मैं भी अपनी बहुओंके साथ चलकर श्रीरामचन्द्रजीका दर्शन करूंगी, तुम उन्हें सूचना दे दो। तुम्हारा बड़ा भाई उनके स्वरूपको नहीं पहचान पाया था। तुम्हारे पिताने देवताओंके सामने पहले ही कह दिया था कि भगवान् श्रीविष्णु रघुकुलमें राजा दशरथके पुत्ररूपसे अवतार लेंगे। वे ही दशग्रीव रावणका विनाश करेंगे।'
विभीषण बोले- माँ! तुम श्रीरघुनाथजीके समीप अवश्य जाओ। मैं पहले जाकर उन्हें सूचना देता हूँ I
यों कहकर विभीषण जहाँ श्रीरामचन्द्रजी थे,
वहाँ गये और वहाँ महाराज रामका दर्शन करनेके लिये आये हुए सब लोगोंको विदा करके उन्होंने सभाभवनको सर्वथा एकान्त बना दिया। फिर श्रीरामसे कहा- 'महाराज! मेरा निवेदन सुनिये; रावणको कुम्भकर्णको तथा मुझको जन्म देनेवाली मेरी माता कैकसी आपका दर्शन करना चाहती हैं; आप कृपा करके उन्हें दर्शन दें।'
श्रीरामने कहा- 'मित्र! तुम्हारी माता मेरी भी माता ही हैं, अत: उनका यहाँ आना मर्यादाके अनुरूप नहीं है, मैं माताका दर्शन करनेकी इच्छासे स्वयं ही उनके पास चलूँगा। तुम शीघ्र मेरे आगे-आगे चलो।' ऐसा कहकर वे चल पड़े। कैकसीके पास पहुँचकर उन्होंने मस्तकपर अंजलि बाँध उन्हें प्रणाम करते हुए कहा—‘माता! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मित्रकी माता होनेके नाते आप धर्मतः मेरी भी माता हैं। जैसे कौसल्या मेरी माता हैं, उसी प्रकार आप भी हैं।'
कैकसी बोली-वत्स! तुम्हारी जय हो, तुम चिरकालतक जीवित रहो। बेटा! तुम्हें अमर यश प्राप्त हो। इस प्रकार मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामने अपने प्रबल वैरीकी जननीको भी माताके समान आदर देकर लोक-व्यवहारकी आदर्श मर्यादाको स्थापित किया।



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mitrakee maata dharmatah maata hotee hai

mitrakee maata dharmatah maata hotee hai

ek baar ayodhyaanaresh shreeraam, lakshman aur sugreevake saath lankaapuree aaye. raaja vibheeshanaka mantrimandal aur lankaake nivaasee shreeraamachandrajeeke darshanake liye utsuk ho vahaan aaye aur vibheeshanase bole-'hamen shreeraamajeeka darshan kara deejiye.' vibheeshanane mahaaraaj shreeraamachandrajeese unaka parichay karaaya aur shreeraamako aajnaase bharatane un raakshasapatiyonk dvaara bhent diye hue dhan aur ratnaraashiko grahan kiyaa. raajabhavan men shreeraghunaathajeene teen dinatak nivaas kiyaa. chauthe din jab shreeraamachandrajee raajasabhaamen viraajamaan the, raajamaata kaiphaseene vibheeshanase kahaa- 'betaa! main bhee apanee bahuonke saath chalakar shreeraamachandrajeeka darshan karoongee, tum unhen soochana de do. tumhaara bada़a bhaaee unake svaroopako naheen pahachaan paaya thaa. tumhaare pitaane devataaonke saamane pahale hee kah diya tha ki bhagavaan shreevishnu raghukulamen raaja dasharathake putraroopase avataar lenge. ve hee dashagreev raavanaka vinaash karenge.'
vibheeshan bole- maan! tum shreeraghunaathajeeke sameep avashy jaao. main pahale jaakar unhen soochana deta hoon I
yon kahakar vibheeshan jahaan shreeraamachandrajee the,
vahaan gaye aur vahaan mahaaraaj raamaka darshan karaneke liye aaye hue sab logonko vida karake unhonne sabhaabhavanako sarvatha ekaant bana diyaa. phir shreeraamase kahaa- 'mahaaraaja! mera nivedan suniye; raavanako kumbhakarnako tatha mujhako janm denevaalee meree maata kaikasee aapaka darshan karana chaahatee hain; aap kripa karake unhen darshan den.'
shreeraamane kahaa- 'mitra! tumhaaree maata meree bhee maata hee hain, ata: unaka yahaan aana maryaadaake anuroop naheen hai, main maataaka darshan karanekee ichchhaase svayan hee unake paas chaloongaa. tum sheeghr mere aage-aage chalo.' aisa kahakar ve chal pada़e. kaikaseeke paas pahunchakar unhonne mastakapar anjali baandh unhen pranaam karate hue kahaa—‘maataa! main aapako pranaam karata hoon. mitrakee maata honeke naate aap dharmatah meree bhee maata hain. jaise kausalya meree maata hain, usee prakaar aap bhee hain.'
kaikasee bolee-vatsa! tumhaaree jay ho, tum chirakaalatak jeevit raho. betaa! tumhen amar yash praapt ho. is prakaar maryaadaapurushottam shreeraamane apane prabal vaireekee jananeeko bhee maataake samaan aadar dekar loka-vyavahaarakee aadarsh maryaadaako sthaapit kiyaa.

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