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विक्रमकी जीव दया  [प्रेरक कथा]
हिन्दी कथा - Hindi Story (प्रेरक कहानी)

महाराज विक्रमादित्य प्रजाके कोंका पता लगानेके लिये प्रायः अकेले घूमा करते थे। एक बार वे घोड़ेपर चढ़कर एक वनमेंसे जा रहे थे। संध्या हो चुकी थी। भयंकर पशुओंसे पूर्ण वनसे उन्हें शीघ्र बाहर चले जानाथा; किंतु उन्हें एक गायकी डकराहट सुनायी पड़ी। महाराजने उस शब्दकी दिशा पकड़ी। वर्षा ऋतुमें नदीकी बाढ़ उतर रही थी। नालोंमें चढ़ आया नदीका जल नीचे जा चुका था; किंतु उनमें एकत्र पंकदल-दल बन गया था। ऐसे ही एक नालेकी दल-दलमें एक गाय फँस गयी थी। गायके चारों पैर पेटतक दलदलमें डूब चुके थे। वह हिलनेमें भी असमर्थ होकर डकरा रही थी।

महाराज विक्रमादित्यने अपने वस्त्र उतार दिये और वे गायको निकालनेका प्रयत्न करने लगे। उन्होंने बहुत परिश्रम किया। स्वयं कीचड़से लथपथ हो गये, अन्धकार फैल गया; किंतु गायको निकालनेमें वे सफल नहीं हुए। उधर गायकी डकराहट सुनकर एक सिंह वहाँ आ पहुँचा। महाराज अब अन्धकारके कारण कुछ कर तो सकते नहीं थे, तलवार लेकर गायकी रक्षा करने लगे, जिससे सिंह उसपर आक्रमण न कर दे। सिंह बार-बार आक्रमण कर रहा था और बार-बार महाराज उसे रोक रहे थे।

नालेके समीप एक भारी वटवृक्ष था। उसपरसे एक शुक बोला-'राजन्! गाय तो मरेगी ही। वह अभीन भी मरे तो दलदलमें डूबकर कलतक मर जायगी। | उसके लिये तुम क्यों प्राण दे रहे हो। यहाँसे शीघ्र चले जाओ या इस वृक्षपर चढ़ जाओ। सिंहनी तथा दूसरे वन-पशु आ जायँगे तो तुम्हारे प्राण संकटमें पड़ जायँगे।'

महाराज बोले-'पक्षिश्रेष्ठ! मुझे अधर्मका मार्ग मत दिखलाओ। अपनी रक्षा तो सभी जीव करते हैं; किंतु दूसरोंकी रक्षामें जो प्राण दे देते हैं, वही धन्य हैं, जैसे स्वामीके बिना सेना व्यर्थ है, वैसे ही दयाके बिना अन्य सब पुण्य कर्म व्यर्थ हैं। अपने प्राण देकर भी मैं इस गायको बचानेका प्रयत्न करूँगा।'

पूरी रातभर महाराज गायकी रक्षा करते रहे; किंतु प्रातःकाल उन्होंने देखा कि वहाँ न गाय है, न सिंह है और न शुक पक्षी ही है। उनके बदले वहाँ देवराज इन्द्र, धर्म और भू देवी खड़ी हैं। देवराज इन्द्रने प्रसन्न होकर महाराजको कामधेनु गौ प्रदान की।



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vikramakee jeev dayaa

mahaaraaj vikramaadity prajaake konka pata lagaaneke liye praayah akele ghooma karate the. ek baar ve ghoda़epar chaढ़kar ek vanamense ja rahe the. sandhya ho chukee thee. bhayankar pashuonse poorn vanase unhen sheeghr baahar chale jaanaathaa; kintu unhen ek gaayakee dakaraahat sunaayee pada़ee. mahaaraajane us shabdakee disha pakada़ee. varsha ritumen nadeekee baadha़ utar rahee thee. naalonmen chadha़ aaya nadeeka jal neeche ja chuka thaa; kintu unamen ekatr pankadala-dal ban gaya thaa. aise hee ek naalekee dala-dalamen ek gaay phans gayee thee. gaayake chaaron pair petatak daladalamen doob chuke the. vah hilanemen bhee asamarth hokar dakara rahee thee.

mahaaraaj vikramaadityane apane vastr utaar diye aur ve gaayako nikaalaneka prayatn karane lage. unhonne bahut parishram kiyaa. svayan keechada़se lathapath ho gaye, andhakaar phail gayaa; kintu gaayako nikaalanemen ve saphal naheen hue. udhar gaayakee dakaraahat sunakar ek sinh vahaan a pahunchaa. mahaaraaj ab andhakaarake kaaran kuchh kar to sakate naheen the, talavaar lekar gaayakee raksha karane lage, jisase sinh usapar aakraman n kar de. sinh baara-baar aakraman kar raha tha aur baara-baar mahaaraaj use rok rahe the.

naaleke sameep ek bhaaree vatavriksh thaa. usaparase ek shuk bolaa-'raajan! gaay to maregee hee. vah abheen bhee mare to daladalamen doobakar kalatak mar jaayagee. | usake liye tum kyon praan de rahe ho. yahaanse sheeghr chale jaao ya is vrikshapar chadha़ jaao. sinhanee tatha doosare vana-pashu a jaayange to tumhaare praan sankatamen pada़ jaayange.'

mahaaraaj bole-'pakshishreshtha! mujhe adharmaka maarg mat dikhalaao. apanee raksha to sabhee jeev karate hain; kintu doosaronkee rakshaamen jo praan de dete hain, vahee dhany hain, jaise svaameeke bina sena vyarth hai, vaise hee dayaake bina any sab puny karm vyarth hain. apane praan dekar bhee main is gaayako bachaaneka prayatn karoongaa.'

pooree raatabhar mahaaraaj gaayakee raksha karate rahe; kintu praatahkaal unhonne dekha ki vahaan n gaay hai, n sinh hai aur n shuk pakshee hee hai. unake badale vahaan devaraaj indr, dharm aur bhoo devee khada़ee hain. devaraaj indrane prasann hokar mahaaraajako kaamadhenu gau pradaan kee.

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