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विष्णुपदी गंगाजीकी अद्भुत महिमा  [शिक्षदायक कहानी]
बोध कथा - Moral Story (Moral Story)

विष्णुपदी गंगाजीकी अद्भुत महिमा

पूर्वकालकी बात है। चमत्कारपुरमें उत्तम व्रतका पालन करनेवाले चण्डशर्मा नामसे विख्यात एक ब्राह्मण हो गये हैं, जो रूप और उदारता आदि गुणोंसे सम्पन्न थे। वे जब युवावस्थामें पहुँचे, तब किसी वेश्या में। आसक्त हो गये। एक समय आधी रातमें वे प्याससे व्याकुल होकर उठे तो उस वेश्यासे बोले-'प्रिये ! मैं पानी पीना चाहता हूँ।' तब उस वेश्याने पानीके भ्रमसे उन निद्राकुल ब्राह्मणको मदिरासे भरा हुआ पुरवा लाकर दे दिया। मुखमें मदिरा जाते ही ब्राह्मण कुपित हो उठे और उस वेश्याको बार-बार धिक्कारते हुए कड़ी फटकार सुनाने लगे-'अरी पापिनी! तूने यह क्या किया? आज मदिरा पीनेसे मेरी ब्राह्मणता निश्चय ही नष्ट हो गयी; अतः मैं आत्मशुद्धिके लिये प्रायश्चित्त करूँगा।' ऐसा कहकर वे दुःखपूर्वक घरसे बाहर निकले और निर्जन वनमें जाकर करुणस्वरमें विलाप करने लगे।
तत्पश्चात् प्रातः काल होनेपर उन्होंने अपने शरीरके सब बाल बनवाकर वस्त्रसहित स्नान किया। तदनन्तर वे श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको सभामें गये और उन्हें प्रणाम करके बोले- 'ब्राह्मणो! मैंने जलके धोखेसे मदिरा पी ली है, मुझे दण्ड दीजिये।' तब उन ब्राह्मणोंने बार-बार धर्मशास्त्रका विचार करके कहा-'ब्राह्मण यदि ज्ञान अथवा अज्ञानसे भी मदिरा पी ले तो मदिराके बराबर ही खौलता हुआ घी पी लेनेपर उसकी शुद्धि होती है; अतः यदि तुम आत्मशुद्धि चाहते हो तो यही प्रायश्चित्त करो। "बहुत 'अच्छा, ऐसा ही करूंगा।' ऐसी प्रतिज्ञा करके ब्राह्मणने तत्काल घी लेकर उसे पीनेके लिये आगपर तपाया। इतनेमें ही यह समाचार सुनकर उनके माता-पिता भी वहाँ आ पहुँचे और बोले—'यह क्या, यह क्या बेटा! तुम यह क्या करते हो ?'
तब पुत्रने नेत्रोंसे आँसू बहाते हुए रातकी सब घटना कह सुनायी। यह सब सुनकर ब्राह्मण-दम्पतीने उन सब श्रेष्ठ ब्राह्मणोंसे प्रार्थना की, 'मेरे इस पुत्रको धर्मशास्त्रका विचार करके कोई दूसरा प्रायश्चित्त बताइये।' तब उन ब्राह्मणोंने पुनः आदरपूर्वक धर्मशास्त्रका विचार किया और इस प्रकार कहा- 'ब्रह्मन् ! धर्मशास्त्रमें तो कोई दूसरा उपाय नहीं है। तुम्हें जो उचित प्रतीत हो, सो करो।' तब ब्राह्मणने पुत्रसे कहा-'बेटा! तीर्थयात्रा करो, फिर क्रमशः अनेक प्रकारका व्रत करनेसे पवित्रताको प्राप्त होओगे।'
पुत्र बोला- 'महाभाग ! क्या ब्राह्मणोंका बताया हुआ प्रायश्चित्त पवित्रताके लिये पर्याप्त नहीं है, जो आप व्रत आदिका उपदेश करते हैं?'
पुत्रका यह निश्चय जानकर पुत्रवत्सल पिता तथा उनकी सती पत्नीने भी मृत्युका निश्चय करके प्रसन्नतापूर्वक अपना सब कुछ ब्राह्मणोंको दान कर दिया। तब माताने कहा- 'बेटा! जब हम दोनों अग्निमें प्रवेश कर जायँ,
उसके बाद तुम मौंजीहोम ( मरणान्त प्रायश्चित्त) करना।' ऐसा कहकर वे दम्पती प्रसन्नतापूर्वक मृत्युके लिये अग्निके समीप गये। उनके साथ ही उनका पुत्र भी था। इतनेमें ही वेदोंके पारंगत विद्वान् शाण्डिल्यमुनि तीर्थयात्राके प्रसंगसे उस स्थानपर आ पहुँचे और सारी बात सुनकर उन सब ब्राह्मणोंको फटकारते हुए बोले- 'अहो ! तुम सब लोग अत्यन्त मूढ़ हो; क्योंकि तुम्हारे कारण सुगम प्रायश्चित्तके होते हुए भी आज ये तीन ब्राह्मण व्यर्थ ही मृत्युको प्राप्त होने जा रहे हैं। कृच्छ्र और चान्द्रायण आदि प्रायश्चित्त तो वहाँ दिये जाते हैं, जहाँ श्रीगंगाजी उपलब्ध न हों। यहाँ तो साक्षात् विष्णुपदी गंगा विद्यमान हैं, उन्हींमें यह स्नान करे तो पापसे शुद्ध हो जायगा।'
तब सब ब्राह्मणोंने शाण्डिल्यमुनिको साधुवाद देते -'मुने! आपका कथन सत्य है।' इसके बाद हुए कहा- ' वे सब लोग ब्राह्मणको समझा-बुझाकर विष्णुपदी गंगाके तटपर ले गये। वहाँ ब्राह्मणने ज्यों-ही मुखमें गंगाजल डालकर आचमन किया, त्यों ही वह शुद्ध हो गया। फिर जब वह उस शोभायमान जलमें स्नान करने लगा, उस समय स्पष्ट स्वरमें आकाशवाणी हुई 'विष्णुपदीका सम्पर्क होनेसे तथा उनके जलमें स्नान और आचमन करनेसे ब्राह्मणदेवता शुद्ध हो गये हैं; अतः अब वे अपने घर लौट जायँ।' यह सुनकर सब लोग हर्ष प्रकट करते हुए अपने-अपने घर चले गये।



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vishnupadee gangaajeekee adbhut mahimaa

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tab sab braahmanonne shaandilyamuniko saadhuvaad dete -'mune! aapaka kathan saty hai.' isake baad hue kahaa- ' ve sab log braahmanako samajhaa-bujhaakar vishnupadee gangaake tatapar le gaye. vahaan braahmanane jyon-hee mukhamen gangaajal daalakar aachaman kiya, tyon hee vah shuddh ho gayaa. phir jab vah us shobhaayamaan jalamen snaan karane laga, us samay spasht svaramen aakaashavaanee huee 'vishnupadeeka sampark honese tatha unake jalamen snaan aur aachaman karanese braahmanadevata shuddh ho gaye hain; atah ab ve apane ghar laut jaayan.' yah sunakar sab log harsh prakat karate hue apane-apane ghar chale gaye.

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