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शास्त्रज्ञानने रक्षा की  [Spiritual Story]
प्रेरक कथा - आध्यात्मिक कथा (छोटी सी कहानी)

महाराज भोजके नगरमें ही एक विद्वान् ब्राह्मण रहते थे। वे स्वयं याचना करते नहीं थे और बिना माँगे उन्हें दृव्य कहाँसे मिलता। दरिद्रता महादुःखदायिनी है। उससे व्याकुल होकर ब्राह्मणने राजभवनमें चोरी करनेका निश्चय किया, वे रात्रिमें राजभवनमें पहुँचनेमें सफल हो गये।

ब्राह्मण दरिद्र थे, दुःखी थे, धन-प्राप्तिके इच्छुक थे और राजभवनमें पहुँच गये थे। वहाँ सब सेवक सेविकाएँ निश्चिन्त सो रही थीं। स्वर्ण, रत्न आदि बहुमूल्य पात्र इधर-उधर पड़े थे। ब्राह्मण चाहे जो उठा लेते, कोई रोकनेवाला नहीं था ।

परंतु एक रोकनेवाला था और ब्राह्मण जैसे ही कोई वस्तु उठानेका विचार करते थे, वह उन्हें उसी क्षण रोक देता था। वह था ब्राह्मणका शास्त्र ज्ञान। ब्राह्मणने जैसे हो स्वर्णराशि उठानेका संकल्प किया, बुद्धिमें स्थित शास्वने कहा- 'स्वर्णचौर नरकगामी होता है। स्मृतिकार कहते हैं कि स्वर्णकी चोरी पाँच महापापोंमेंसे है।'

वस्त्र, रत्न, पात्र, अन्न आदि जो भी ब्राह्मण लेना चाहता, उसीकी चोरीको पाप बतानेवाले शास्त्रीय वाक्या उसको स्मृतिमें स्पष्ट हो उठते। वह ठिठक जाता। पूरी रात्रि व्यतीत हो गयी. सबेरा होनेको आया, किंतु ब्राह्मण कुछ ले नहीं सका। सेवक जागने लगे। उनके द्वारा कड़े जानेके भयसे ब्राह्मण राजा भोजकी शय्याके नीचे ही छिप गया।

नियमानुसार महाराजके जागरणके समय रानियाँऔर दासियाँ सुसज्जित होकर जलकी झारी तथा दूसरे उपकरण लेकर शय्याके समीप खड़ी हुई। सुहृद्-वर्गके लोग तथा परिवारके सदस्य प्रातः कालीन अभिवादन करने द्वारपर एकत्र हुए। सेवकसमुदाय पंक्तिबद्ध प्रस्तुत हुआ; उठते ही महाराजका स्वागत करनेके लिये सजे हुए हाथी तथा घोड़े भी राजद्वारसे बाहर प्रस्तुत किये गये। राजा भोज जगे और उन्होंने यह सब देखा। आनन्दोल्लासमें उनके मुखसे एक श्लोकके तीन चरण निकले

'चेतोहरा युवतयः सुहृदोऽनुकूलाः

सद्वान्धवाः प्रणयगर्भगिरश्च भृत्याः

वल्गन्ति दन्तिनिवहास्तरलास्तुरङ्गाः '

इतना बोलकर महाराज रुक गये तो उनकी शय्या के नीचे छिपे विद्वान् ब्राह्मणसे रहा नहीं गया, उन्होंने श्लोकका चौथा चरण पूरा कर दिया

'सम्मीलने नयनयोर्न हि किञ्चिदस्ति ।'

अर्थात् नेत्र बंद हो जानेपर यह सब वैभव कुछ नहीं रहता। महाराज यह सुनकर चौंके। उनकी आज्ञासे ब्राह्मणको शय्याके नीचेसे निकलना पड़ा। पूछनेपर उन्होंने राजभवनमें आनेका कारण बतलाया। राजा भोजने पूछा-'आपने चोरी क्यों नहीं की?'

ब्राह्मण बोले- 'राजन्! मेरा शास्त्रज्ञान मुझे रोकता रहा। उसीने मेरी रक्षा की।'

राजा भोजने ब्राह्मणको प्रचुर धन दिया।



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shaastrajnaanane raksha kee

mahaaraaj bhojake nagaramen hee ek vidvaan braahman rahate the. ve svayan yaachana karate naheen the aur bina maange unhen drivy kahaanse milataa. daridrata mahaaduhkhadaayinee hai. usase vyaakul hokar braahmanane raajabhavanamen choree karaneka nishchay kiya, ve raatrimen raajabhavanamen pahunchanemen saphal ho gaye.

braahman daridr the, duhkhee the, dhana-praaptike ichchhuk the aur raajabhavanamen pahunch gaye the. vahaan sab sevak sevikaaen nishchint so rahee theen. svarn, ratn aadi bahumooly paatr idhara-udhar pada़e the. braahman chaahe jo utha lete, koee rokanevaala naheen tha .

parantu ek rokanevaala tha aur braahman jaise hee koee vastu uthaaneka vichaar karate the, vah unhen usee kshan rok deta thaa. vah tha braahmanaka shaastr jnaana. braahmanane jaise ho svarnaraashi uthaaneka sankalp kiya, buddhimen sthit shaasvane kahaa- 'svarnachaur narakagaamee hota hai. smritikaar kahate hain ki svarnakee choree paanch mahaapaaponmense hai.'

vastr, ratn, paatr, ann aadi jo bhee braahman lena chaahata, useekee choreeko paap bataanevaale shaastreey vaakya usako smritimen spasht ho uthate. vah thithak jaataa. pooree raatri vyateet ho gayee. sabera honeko aaya, kintu braahman kuchh le naheen sakaa. sevak jaagane lage. unake dvaara kaड़e jaaneke bhayase braahman raaja bhojakee shayyaake neeche hee chhip gayaa.

niyamaanusaar mahaaraajake jaagaranake samay raaniyaanaur daasiyaan susajjit hokar jalakee jhaaree tatha doosare upakaran lekar shayyaake sameep khada़ee huee. suhrid-vargake log tatha parivaarake sadasy praatah kaaleen abhivaadan karane dvaarapar ekatr hue. sevakasamudaay panktibaddh prastut huaa; uthate hee mahaaraajaka svaagat karaneke liye saje hue haathee tatha ghoda़e bhee raajadvaarase baahar prastut kiye gaye. raaja bhoj jage aur unhonne yah sab dekhaa. aanandollaasamen unake mukhase ek shlokake teen charan nikale

'chetohara yuvatayah suhrido'nukoolaah

sadvaandhavaah pranayagarbhagirashch bhrityaah

valganti dantinivahaastaralaasturangaah '

itana bolakar mahaaraaj ruk gaye to unakee shayya ke neeche chhipe vidvaan braahmanase raha naheen gaya, unhonne shlokaka chautha charan poora kar diyaa

'sammeelane nayanayorn hi kinchidasti .'

arthaat netr band ho jaanepar yah sab vaibhav kuchh naheen rahataa. mahaaraaj yah sunakar chaunke. unakee aajnaase braahmanako shayyaake neechese nikalana pada़aa. poochhanepar unhonne raajabhavanamen aaneka kaaran batalaayaa. raaja bhojane poochhaa-'aapane choree kyon naheen kee?'

braahman bole- 'raajan! mera shaastrajnaan mujhe rokata rahaa. useene meree raksha kee.'

raaja bhojane braahmanako prachur dhan diyaa.

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