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संस्कार-सुरभित प्रेरक-प्रसंग  [Shikshaprad Kahani]
शिक्षदायक कहानी - आध्यात्मिक कहानी (Spiritual Story)

संस्कार-सुरभित प्रेरक-प्रसंग

[1]
प्रसन्नताका नुसख़ा
एक संत किसी टीलेपर बैठे सूर्यास्त देख रहे थे। तभी एक सेठजी उनके पास आये। वे पूछने लगे-स्वामीजी! आपके चेहरेपर अत्यधिक प्रसन्नता है। मैं एक धनी व्यक्ति हूँ। सब कुछ है, पर मनमें खुशी नहीं है। उसीकी खोजमें घरसे निकला हूँ। दो साल हो गये, पर प्रसन्नता हासिल नहीं हुई। आप ही बतायें, उसे कहाँ खोजूँ ? संतने एक कागज लिया और उसपर कुछ लिखनेके बाद उनसे कहा मैंने इसमें प्रसन्नताका नुसखा लिख दिया है, लेकिन इसे आप घर जाकर ही पढ़ना। सेठजी घर पहुँचे और बहुत जिज्ञासाके साथ उन्होंने कागज खोला। उसपर लिखा था- 'जहाँ शान्ति होती है, प्रसन्नता वहाँ खुद चली जाती है। चाहे वह अपना ही मन क्यों न हो?'



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sanskaara-surabhit preraka-prasanga

sanskaara-surabhit preraka-prasanga

[1]
prasannataaka nusakha़aa
ek sant kisee teelepar baithe sooryaast dekh rahe the. tabhee ek sethajee unake paas aaye. ve poochhane lage-svaameejee! aapake cheharepar atyadhik prasannata hai. main ek dhanee vyakti hoon. sab kuchh hai, par manamen khushee naheen hai. useekee khojamen gharase nikala hoon. do saal ho gaye, par prasannata haasil naheen huee. aap hee bataayen, use kahaan khojoon ? santane ek kaagaj liya aur usapar kuchh likhaneke baad unase kaha mainne isamen prasannataaka nusakha likh diya hai, lekin ise aap ghar jaakar hee padha़naa. sethajee ghar pahunche aur bahut jijnaasaake saath unhonne kaagaj kholaa. usapar likha thaa- 'jahaan shaanti hotee hai, prasannata vahaan khud chalee jaatee hai. chaahe vah apana hee man kyon n ho?'

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मैया करादे मेरो ब्याह,
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
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