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यौवन, धन, प्रभुत्व और अविवेक अनर्थकारी  [हिन्दी कथा]
प्रेरक कथा - Story To Read (Spiritual Story)

यौवन, धन, प्रभुत्व और अविवेक अनर्थकारी

धनाधीश कुबेरके दो पुत्र थे- नलकूबर और मणिग्रीव। कुबेरके पुत्र, फिर सम्पत्तिका पूछना क्या ! युवावस्था थी, यक्ष होनेके कारण अत्यन्त बली थे, लोकपालके पुत्र होनेके कारण परम स्वतन्त्र थे ।
यौवनं धनसम्पत्तिःप्रभुत्वमविवेकिता
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम् ॥
युवावस्था, धन, प्रभुत्व और विचारहीनता- इनमेंसे प्रत्येक अनर्थका कारण है; फिर जहाँ चारों हों, वहाँ तो पूछना ही क्या ! कुबेरके पुत्रोंमें चारों दोष एक साथ आ गये। धन-मदसे वे उन्मत्त रहने लगे।
एक बार वे स्त्रियोंके साथ जल-क्रीडा कर रहे थे। उसी समय देवर्षि नारद उधरसे निकले। देवर्षिको देखकर स्त्रियाँ तो झटपट जलसे बाहर निकल आय और उन्होंने वस्त्र पहिन लिये; किंतु दोनों कुबेरपुत्र वैसे ही खड़े रहे। देवर्षिका कोई सत्कार या संकोच करना उन्हें अनावश्यक लगा।
देवर्षिको उनकी दशा देखकर क्रोध तो नहीं आया, दया आ गयी। कुबेरजी लोकपाल हैं, उनके गण भी उपदेव माने जाते हैं, भगवान् शंकर उन्हें अपना सखा कहते हैं; उनके पुत्र ऐसे असभ्य और मदान्ध! दया करके देवर्षिने शाप दे दिया- 'तुम दोनों जड़की भाँति खड़े हो, अतः जड़ वृक्ष हो जाओ।'
सन्तके दर्शनसे कोई बन्धनमें नहीं पड़ता। सन्तके शापसे किसीका अमंगल नहीं होता। सन्त तो हैं ही मंगलमय । उनका दर्शन, स्पर्श, सेवन तो मंगलकारी है। ही, उनके रोष और शापसे भी जीवका परिणाममें मंगल ही होता है। देवर्षिने शाप देते हुए कहा- 'तुम दोनों व्रजमें नन्दद्वारपर सटे हुए अर्जुनके वृक्ष बनो। द्वापरमें अवतार लेकर श्रीकृष्णचन्द्र वृक्षयोनिसे तुम्हारा उद्धार करेंगे और तब तुम्हें भगवद्भक्ति प्राप्त होगी।'
यह शाप है या वरदान ? श्रीकृष्णचन्द्रका दर्शन प्राप्त होगा, स्पर्श प्राप्त होगा और भगवद्भक्ति प्राप्त होगी। व्रजमें निवास प्राप्त होगा और वह भी नन्दद्वारपर। सृष्टिकर्ता ब्रह्माजीने जब श्यामसुन्दरकी स्तुति की वत्सहरणके पश्चात्, तब वे भी इतना साहस नहीं कर सके कि नन्दयौरियर वृक्ष होनेकी प्रार्थना कर सकें। डरते-डरते उन्होंने यही प्रार्थना की- 'नाथ! मुझे व्रजमें कुछ भी बना दीजिये।' सृष्टिकर्ता प्रार्थना करके भी व्रजके तृण होनेका वरदान नहीं पा सके और उद्धव कुबेरपुत्रोंको शाप मिल गया नन्दद्वारपर दीर्घकालतक वृक्ष होकर रहनेका-यह सन्तके दर्शनका प्रभाव था।
लीलामय नटनागरने द्वापरमें अवतार लेकर अपने ही घरमें दहीका मटका फोड़ा, माखन चुराया और इस प्रकार मैया यशोदाको रुष्ट करके उनके हाथों अपनेको ऊखलसे बंधवाया। इसके बाद रस्सोमें ऊखलसे बंधा वह दामोदर ऊखल घसीटता अपने द्वारपर अर्जुन वृक्ष बने कुबेरपुत्रोंके पास पहुँचा। वृक्षोंके मध्य ऊखल अटकाकर उसने बलपूर्वक वृक्षोंको गिरा दिया; क्योंकि अपने प्रिय भक्त देवर्षिकी बात उसे सत्य करनी थी। कुबेरके पुत्रोंको वृक्षयोनिसे परित्राण दिया उसने। [ श्रीमद्भागवत)



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yauvan, dhan, prabhutv aur avivek anarthakaaree

yauvan, dhan, prabhutv aur avivek anarthakaaree

dhanaadheesh kuberake do putr the- nalakoobar aur manigreeva. kuberake putr, phir sampattika poochhana kya ! yuvaavastha thee, yaksh honeke kaaran atyant balee the, lokapaalake putr honeke kaaran param svatantr the .
yauvanan dhanasampattihprabhutvamavivekitaa
ekaikamapyanarthaay kimu yatr chatushtayam ..
yuvaavastha, dhan, prabhutv aur vichaaraheenataa- inamense pratyek anarthaka kaaran hai; phir jahaan chaaron hon, vahaan to poochhana hee kya ! kuberake putronmen chaaron dosh ek saath a gaye. dhana-madase ve unmatt rahane lage.
ek baar ve striyonke saath jala-kreeda kar rahe the. usee samay devarshi naarad udharase nikale. devarshiko dekhakar striyaan to jhatapat jalase baahar nikal aay aur unhonne vastr pahin liye; kintu donon kuberaputr vaise hee khada़e rahe. devarshika koee satkaar ya sankoch karana unhen anaavashyak lagaa.
devarshiko unakee dasha dekhakar krodh to naheen aaya, daya a gayee. kuberajee lokapaal hain, unake gan bhee upadev maane jaate hain, bhagavaan shankar unhen apana sakha kahate hain; unake putr aise asabhy aur madaandha! daya karake devarshine shaap de diyaa- 'tum donon jada़kee bhaanti khada़e ho, atah jada़ vriksh ho jaao.'
santake darshanase koee bandhanamen naheen pada़taa. santake shaapase kiseeka amangal naheen hotaa. sant to hain hee mangalamay . unaka darshan, sparsh, sevan to mangalakaaree hai. hee, unake rosh aur shaapase bhee jeevaka parinaamamen mangal hee hota hai. devarshine shaap dete hue kahaa- 'tum donon vrajamen nandadvaarapar sate hue arjunake vriksh bano. dvaaparamen avataar lekar shreekrishnachandr vrikshayonise tumhaara uddhaar karenge aur tab tumhen bhagavadbhakti praapt hogee.'
yah shaap hai ya varadaan ? shreekrishnachandraka darshan praapt hoga, sparsh praapt hoga aur bhagavadbhakti praapt hogee. vrajamen nivaas praapt hoga aur vah bhee nandadvaarapara. srishtikarta brahmaajeene jab shyaamasundarakee stuti kee vatsaharanake pashchaat, tab ve bhee itana saahas naheen kar sake ki nandayauriyar vriksh honekee praarthana kar saken. darate-darate unhonne yahee praarthana kee- 'naatha! mujhe vrajamen kuchh bhee bana deejiye.' srishtikarta praarthana karake bhee vrajake trin honeka varadaan naheen pa sake aur uddhav kuberaputronko shaap mil gaya nandadvaarapar deerghakaalatak vriksh hokar rahanekaa-yah santake darshanaka prabhaav thaa.
leelaamay natanaagarane dvaaparamen avataar lekar apane hee gharamen daheeka mataka phoड़a, maakhan churaaya aur is prakaar maiya yashodaako rusht karake unake haathon apaneko ookhalase bandhavaayaa. isake baad rassomen ookhalase bandha vah daamodar ookhal ghaseetata apane dvaarapar arjun vriksh bane kuberaputronke paas pahunchaa. vrikshonke madhy ookhal atakaakar usane balapoorvak vrikshonko gira diyaa; kyonki apane priy bhakt devarshikee baat use saty karanee thee. kuberake putronko vrikshayonise paritraan diya usane. [ shreemadbhaagavata)

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