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समय एक दैविक इलाज  [Shikshaprad Kahani]
Moral Story - Shikshaprad Kahani (आध्यात्मिक कहानी)

समय एक दैविक इलाज

एक सनकी राजाकी पत्नीने एक कन्याको जन्म दिया। राजा खुशीसे फूला न समाया। वह बच्चीको देखने प्रसूति गृहकी ओर दौड़ा। राजाके मन-मस्तिष्कपर एक लम्बे बालोंवाली, मोतीसे दाँतोंवाली सुन्दर लड़कीकी छवि थी। राजाने जब गंजे सिर और बिना दाँतोंकी बच्चीको देखा तो भौंचक्का रह गया।
उस बेवकूफ राजाने सोचा कि उसकी बेटी किसी अज्ञात रोगका शिकार होकर विकृत हो गयी। है। उसने राजचिकित्सकको आदेश दिया कि बीमारीका पता लगाकर बच्चीको तीन दिनोंके अन्दर ठीक कर दे। वैद्य डरसे काँप गया कि अब तो उसका सिर गया। वह दौड़ा-दौड़ा अपने गुरुके पास गया और सहायता माँगी। गुरुने उसे चिन्तित न होनेको कहा और उसके साथ महलमें आये। वहाँ बच्चीको देखनेके बाद गुरु समझ गये कि चिकित्साकी आवश्यकता राजाको है, न कि बच्चीको। उन्होंने राजासे कहा 'राजन्! मैं आपकी बच्चीको एक रूपवती कन्यामें बदल सकता हूँ, पर इसके लिये मुझे कुछ सालोंका वक्त चाहिये। मैं एक ही शर्तपर इसका इलाज करूँगा और वह यह है कि इलाज पूरा न होनेतक उसे कोई नहीं देख पायेगा।'
राजाने अपनी स्वीकृति दी और गुरु उस बच्चीको अपने साथ अपने आश्रममें ले गये। सोलह साल बाद एक दिन वे एक रूपवती कन्याके साथ राजमहल में पहुँचे।
राजा आश्चर्यचकित होकर अपनी सुन्दर बेटीको देखता ही रह गया। उसने अचम्भित स्वरमें गुरुसे पूछा - 'हे ज्ञानी पुरुष! आपने ऐसी कौन-सी दैवी औषधि मेरी बच्चीको दी है ?'
गुरुने जवाब दिया- 'राजन्! यह 'समय' की चमत्कारिक औषधि है, जिसने आपकी गंजी, पीपले मुँहकी बच्चीको एक सुन्दर कन्याके रूपमें परिवर्तित कर दिया। 'समय' ही एक ऐसी औषधि है, जो ऐसा जादू कर सकती है।"
'समय' एक बच्चेको जवानमें, जवानको बूढेमें, राजाको रेकमें और रंकको राजामें बदल सकता है। बहुत सी समस्याएँ, जिन्हें मनुष्य हल नहीं कर सकता, 'समय' उन्हें सुलझा देता है।
क्यों नहीं, हम भी ऐसी समस्याओंसे, जिनका कोई आसान हल नहीं दिखायी देता हो, चिन्तित न होकर, उनको ईश्वरीय चिकित्सक 'समय' के हाथोंमें सौंप दें?



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samay ek daivik ilaaja

samay ek daivik ilaaja

ek sanakee raajaakee patneene ek kanyaako janm diyaa. raaja khusheese phoola n samaayaa. vah bachcheeko dekhane prasooti grihakee or dauda़aa. raajaake mana-mastishkapar ek lambe baalonvaalee, moteese daantonvaalee sundar lada़keekee chhavi thee. raajaane jab ganje sir aur bina daantonkee bachcheeko dekha to bhaunchakka rah gayaa.
us bevakooph raajaane socha ki usakee betee kisee ajnaat rogaka shikaar hokar vikrit ho gayee. hai. usane raajachikitsakako aadesh diya ki beemaareeka pata lagaakar bachcheeko teen dinonke andar theek kar de. vaidy darase kaanp gaya ki ab to usaka sir gayaa. vah dauda़aa-dauda़a apane guruke paas gaya aur sahaayata maangee. gurune use chintit n honeko kaha aur usake saath mahalamen aaye. vahaan bachcheeko dekhaneke baad guru samajh gaye ki chikitsaakee aavashyakata raajaako hai, n ki bachcheeko. unhonne raajaase kaha 'raajan! main aapakee bachcheeko ek roopavatee kanyaamen badal sakata hoon, par isake liye mujhe kuchh saalonka vakt chaahiye. main ek hee shartapar isaka ilaaj karoonga aur vah yah hai ki ilaaj poora n honetak use koee naheen dekh paayegaa.'
raajaane apanee sveekriti dee aur guru us bachcheeko apane saath apane aashramamen le gaye. solah saal baad ek din ve ek roopavatee kanyaake saath raajamahal men pahunche.
raaja aashcharyachakit hokar apanee sundar beteeko dekhata hee rah gayaa. usane achambhit svaramen guruse poochha - 'he jnaanee purusha! aapane aisee kauna-see daivee aushadhi meree bachcheeko dee hai ?'
gurune javaab diyaa- 'raajan! yah 'samaya' kee chamatkaarik aushadhi hai, jisane aapakee ganjee, peepale munhakee bachcheeko ek sundar kanyaake roopamen parivartit kar diyaa. 'samaya' hee ek aisee aushadhi hai, jo aisa jaadoo kar sakatee hai."
'samaya' ek bachcheko javaanamen, javaanako boodhemen, raajaako rekamen aur rankako raajaamen badal sakata hai. bahut see samasyaaen, jinhen manushy hal naheen kar sakata, 'samaya' unhen sulajha deta hai.
kyon naheen, ham bhee aisee samasyaaonse, jinaka koee aasaan hal naheen dikhaayee deta ho, chintit n hokar, unako eeshvareey chikitsak 'samaya' ke haathonmen saunp den?

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