यो निर्माति विभर्ति संहरति च ब्रह्मादिमूत्त्य जगद् वह्निव्योमवसुन्धराम्बुपवना यस्याऽपरा मूर्त्तयः ।
यो बाह्यान्तरसदिक्षु विहरन्नेकोऽखिलं वीक्षते
यः सर्वाश्रयभूरचिन्त्यमहिमा देवाय तस्मै नमः ॥ यह मानवजीवन प्रतिक्षण परिवर्तित होनेवाली परिस्थितियों, विचारधाराओं, चित्तवृत्तियोंके मध्य कब व्यतीत हो जाता है, पता ही नहीं चलता। अतएव अतिदुर्लभ मानवजीवनकी सार्थकता भगवान्का प्रत्येक पल अनुभव, स्मरण ध्यान आदिके साथ कर्म, भक्ति, योग आदिके द्वारा परमपुरुषार्थकी प्राप्तिमें है। श्रीमद्भागवत महापुराणमें ब्रह्माजी भगवान् श्रीकृष्णकीस्तुति करते हुए कहते हैं
तत्तेऽनुकम्पा समीक्षमाणो भुञ्जान एवात्मकृतं विपाकम्।
हद्वाग्वपुर्भिर्विदधन् नमस्ते जीवेत यो मुक्तिपदे स दायभाक् ।।
अर्थात् उस परमपिता परमात्माकी कृपाको मन कर्म और वचनद्वारा बारम्बार विचार करते हुए उसकी महती अनुकम्पाकी सुसमीक्षा करते रहना चाहिये। साथ ही साथ स्वयंके द्वारा किये हुए जन्म-जन्मान्तरोंके शुभाशुभ कर्मोंको भोगते हुए, हृदयसे, वाणीसे और शरीरसे परमात्माको नमस्कार करते हुए शेष जीवनको व्यतीत करनेवाला व्यक्ति मुक्तिपदका अर्थात् मोक्षका अधिकारी हो जाता है। मनुष्यके जीवनकालमें कृपा तो प्रतिक्षण प्राप्त है, किंतु अनुभवमें यदा-कदा ही आ पाती है। मेरे जीवनमें भी ऐसे क्षण बहुत बार आये हैं, जिन्हें स्मरण करते ही नेत्र सजल हो जाते हैं, शरीर पुलकित हो जाता है। यद्यपि शास्त्रोंमें कहा गया है कि आत्मचरितं न प्रकाशयेत् तथापि कल्याण-परिवारके संकल्प, कृपानुभूति- अंकहेतु अपनी दो अनुभूतियोंको लिख रहा हूँ
(१) 'हरिः शरणम्' मन्त्रका प्रभाव प्राथमिक विद्यालयमें अध्ययनके समय लगभगसात-आठ वर्षको अवस्थामें किसी दिन सहपाठियों के साथ खेलकूदमें भाग लेते हुए मैं एक गम्भीर संकटमें फँस गया था। विद्यालयके समीप ही एक सज्जनका सिंचाई के लिये पम्पिंग सेट था। जिसमें पक्की नालीद्वारा जल खेतोंतक पहुँचाया जाता था। उसी नालीके बीचसे स्कूलका रास्ता जाता था। पथिकोंको कोई असुविधा न हो, अतः ट्यूबवेल मालिकद्वारा रास्तेके मध्य एक पाइप लगभग एक-आध फोट चौड़ी तथा बारह फीट लम्बी डाली गयी थी। ऊपर मिट्टीसे ढककर सुगम रास्ता बना दिया गया था। रास्तेके दोनों छोरोंपर दो कुण्ड थे। एकमें जल भरता हुआ पाइपसे दूसरेमें जाता था। स्कूलसे लौटते हुए कुछ बच्चे कुण्डमें कूदकर प्रायः स्नान करते थे। एक दिन एक छात्र, जो शरीरसे दुबला-पतला था, एक कुण्डमें कूदकर पाइपसे दूसरे कुण्डमें जाकर बाहर निकल आया और यह लगभग एक मिनटमें ही हो गया, ऐसा ही दूसरे छात्र भी कर रहे थे, मुझे चमत्कार-सा लगा, अतः मैंने भी उन्होंकी देखा-देखी साहस करके कुण्डमें कूदकर पाइपमें सिर डाला। मैं बचपनमें और आज भी दोहरे बदनका हूँ। मेरा सिर धड़सहित पाइपमें फँस गया। स्थिति बड़ी भयावह हो गयी, पीछे जा नहीं सकता था; क्योंकि पीछेसे पानीका वेग बहुत था, आगे तो फँसा ही था। अब साक्षात् मृत्यु दीख पड़ी फिर क्या था, अब तो भगवान् बचायेंगे। अतएव पिताजीका प्रातः गाया जानेवाला भजन याद आ गया—'हरिः शरणम् हरिः शरणम् हरिः शरणम् हरिः शरणम्' इसीको जैसे ही व्याकुल मनसे दोहराया, जलका वेग धक्का देता हुआ बढ़ा और शीघ्र ही दूसरे कुण्डमें मुझे पहुँचा दिया। मैं बाहर निकल आया। जान बची तो लाखों पाये। लेकिन वहाँ बचानेवाले केवल भगवान् ही थे, अन्यथा अगले मिनटमें प्राणान्त होनेवाला था।
(२) भगवान् बदरीनाथजीकी कृपा
भगवान् बदरीनाथके दर्शनप्रसंग में एकबार भगवान्को महती अनुकम्पाका बोध हुआ। मेरे दो मित्र जो परिवहनविभागमें उच्चाधिकारी थे, के साथ एक अधिकारीके एक भाई और उनका पुत्र भी था। ड्राइवरके सहित हम कुल छः लोग कारसे यात्रा कर रहे थे।
हमने प्रथम दिन ऋषिकेशके पर्यटन विभागके गेस्ट हाउसमें रात्रि बितायी। वहाँसे प्रातः ५ बजे बदरीनाथजीके दर्शनार्थ प्रस्थान किया। वह दिन निर्जला एकादशी ज्येष्ठ शुक्ल एकादशीका दिन था। मैं एकादशी व्रत करता हूँ। उस दिन प्रातः मनमें संकल्प उठ गया कि जबतक भगवान् बदरीनाथजीके दर्शन नहीं कर लूंगा, जल भी नहीं पीऊँगा। वे दोनों मित्र भी एकादशी व्रत कर रहे थे, किंतु फलाहारवाला व्रत था, अतः यत्र-तत्र रुककर मेवा, फल आदि खाते हुए परिहास भी करते जाते थे, क्या आपने संकल्प ले लिया। कलिकालमें ऐसा व्रत नहीं करना चाहिये आदि-आदि। पर मैं हँसकर कह देता था कि अब तो संकल्प हो ही गया है, एक दिन पानी न पीनेसे कोई मर नहीं जाता है। अच्छा जैसे तैसे हम लोग बदरीनाथ सायं सात बजे पहुँचे। तत्काल एक गेस्ट हाउसमें सामान रखकर जल्दी से तप्तकुण्ड में स्नान करके फूल-माला प्रसाद लेकर दर्शनको गये। दर्शनार्थियोंको लाइन थोड़ी थी, पर लाइनमें लगनेसे समय अधिक लगता और नौ बजेसे कपाट बन्द होनेवाला था। अतः सामान्य रास्तेसे हटकर वी०आई०पी० मार्ग से भगवान् के समक्ष पहुँच गये। दर्शन पूजन विधिवत् हुआ। पुनः स्थानपर लौटकर जलपान किया गया। अब मित्रोंको तो परिहास प्रिय था, कहने लगे कि आज हम लोगोंक कारण वी० आई०पी० मार्गसे जल्दी पहुँचकर आप दर्शन पा गये, अन्यथा रात्रिभर तड़पते पानीके बिना। इसे हम लोगोंका आभार कहिये आदि-आदि।
रात्रिशयन के पश्चात् अगले दिन हमलोगोंको प्रातः पुनः दर्शन करके तीन-चार बजे अपराहृतक वापस लौटना था। अतः प्रातः कृत्यके बाद लगभग नौ बजे दर्शनके लिये पाँचों लोग वहाँ गये, इतनी लम्बी लाइनदर्शनार्थियोंकी थी कि यदि लाइनमें लगते तो दर्शन शायद शामतक हो पाता। अतः बी०आई०पी० मार्ग से जानेके लिये मित्रोंने सुरक्षाकमाँसे कहा उसने कहा आज यह व्यवस्था बन्द है। यदि आप लोग जाना ही चाहते हैं तो आठ हजार रुपये का टिकट ले आइये, तब जा सकते हैं। मित्रगण टिकट लेना नहीं चाहते थे, अतः लौट गये, किंतु मैं थाली में माला फूल प्रसाद आदि लिये खड़ा रहा। एक सुरक्षाकर्मीको मुझपर दवा आ गयी, उसने पूछा, आप कहाँसे हैं? मैंने कहा, तीर्थराज प्रयागसे, उसने कहा, आप केवल पाँच मिनट प्रतीक्षा करिये। दो-तीन मिनटमें ही उसने मुझे वी०आई०पी० मार्गसे जानेका संकेत कर दिया। एक दूसरे सुरक्षाकर्मीने पूछा, कहाँ कैसे ? तब पहलेवालेने कहा, इन्हें जाने दें, ये अपने ही व्यक्ति है। इस तरह भगवान् के दर्शनका मार्ग मेरे लिये प्रशस्त हो गया।
दर्शन करके भगवान्के नाममन्त्रका जप कर हो रहा था, तभी दोपहरके भगवान्के भोजन, विश्रामहेतु कपाट बन्द होनेकी घोषणा हुई। मैं मन्दिरके बगल के बरामदे में जाकर बैठा ही था कि तभी एक बालकने आकर कहा, आइये आप भी भोजन करें। भगवान्का भोजन प्रसाद वितरित हो रहा है। बस फिर क्या था, पारण करना ही था कढ़ी-भात तथा रोटी साग मिला। दिव्य भोजन प्रसादका स्वाद अभीतक भूलता नहीं, उस स्वादका वर्णन वह तो अनिर्वचनीय हो है भोजनके समय अभी भी भगवान्का दिया हुआ वह वचन कभी कभी याद आ जाता है
भोजनाच्छादने चिन्तां वृथा कुर्वन्ति वैष्णवाः योऽयं विश्वम्भरी देवः स कि भक्तानुपेक्षते
इसी बीच दोनों मित्र टिकट लेकर आ गये, कपाट खुलने पर उन दोनों मित्रोंके साथ पुनः दर्शन करके हम लोग नीचे आये और थोड़ा विश्राम करके चार बजे वापस प्रयागराजके लिये प्रस्थान कर दिये।
[प्रो०] गिरिजाशंकरनी शास्त्री)
yo nirmaati vibharti sanharati ch brahmaadimootty jagad vahnivyomavasundharaambupavana yasyaa'para moorttayah .
yo baahyaantarasadikshu viharanneko'khilan veekshate
yah sarvaashrayabhoorachintyamahima devaay tasmai namah .. yah maanavajeevan pratikshan parivartit honevaalee paristhitiyon, vichaaradhaaraaon, chittavrittiyonke madhy kab vyateet ho jaata hai, pata hee naheen chalataa. ataev atidurlabh maanavajeevanakee saarthakata bhagavaanka pratyek pal anubhav, smaran dhyaan aadike saath karm, bhakti, yog aadike dvaara paramapurushaarthakee praaptimen hai. shreemadbhaagavat mahaapuraanamen brahmaajee bhagavaan shreekrishnakeestuti karate hue kahate hain
tatte'nukampa sameekshamaano bhunjaan evaatmakritan vipaakam.
hadvaagvapurbhirvidadhan namaste jeevet yo muktipade s daayabhaak ..
arthaat us paramapita paramaatmaakee kripaako man karm aur vachanadvaara baarambaar vichaar karate hue usakee mahatee anukampaakee susameeksha karate rahana chaahiye. saath hee saath svayanke dvaara kiye hue janma-janmaantaronke shubhaashubh karmonko bhogate hue, hridayase, vaaneese aur shareerase paramaatmaako namaskaar karate hue shesh jeevanako vyateet karanevaala vyakti muktipadaka arthaat mokshaka adhikaaree ho jaata hai. manushyake jeevanakaalamen kripa to pratikshan praapt hai, kintu anubhavamen yadaa-kada hee a paatee hai. mere jeevanamen bhee aise kshan bahut baar aaye hain, jinhen smaran karate hee netr sajal ho jaate hain, shareer pulakit ho jaata hai. yadyapi shaastronmen kaha gaya hai ki aatmacharitan n prakaashayet tathaapi kalyaana-parivaarake sankalp, kripaanubhooti- ankahetu apanee do anubhootiyonko likh raha hoon
(1) 'harih sharanam' mantraka prabhaav praathamik vidyaalayamen adhyayanake samay lagabhagasaata-aath varshako avasthaamen kisee din sahapaathiyon ke saath khelakoodamen bhaag lete hue main ek gambheer sankatamen phans gaya thaa. vidyaalayake sameep hee ek sajjanaka sinchaaee ke liye pamping set thaa. jisamen pakkee naaleedvaara jal khetontak pahunchaaya jaata thaa. usee naaleeke beechase skoolaka raasta jaata thaa. pathikonko koee asuvidha n ho, atah tyoobavel maalikadvaara raasteke madhy ek paaip lagabhag eka-aadh phot chauda़ee tatha baarah pheet lambee daalee gayee thee. oopar mitteese dhakakar sugam raasta bana diya gaya thaa. raasteke donon chhoronpar do kund the. ekamen jal bharata hua paaipase doosaremen jaata thaa. skoolase lautate hue kuchh bachche kundamen koodakar praayah snaan karate the. ek din ek chhaatr, jo shareerase dubalaa-patala tha, ek kundamen koodakar paaipase doosare kundamen jaakar baahar nikal aaya aur yah lagabhag ek minatamen hee ho gaya, aisa hee doosare chhaatr bhee kar rahe the, mujhe chamatkaara-sa laga, atah mainne bhee unhonkee dekhaa-dekhee saahas karake kundamen koodakar paaipamen sir daalaa. main bachapanamen aur aaj bhee dohare badanaka hoon. mera sir dhada़sahit paaipamen phans gayaa. sthiti bada़ee bhayaavah ho gayee, peechhe ja naheen sakata thaa; kyonki peechhese paaneeka veg bahut tha, aage to phansa hee thaa. ab saakshaat mrityu deekh pada़ee phir kya tha, ab to bhagavaan bachaayenge. ataev pitaajeeka praatah gaaya jaanevaala bhajan yaad a gayaa—'harih sharanam harih sharanam harih sharanam harih sharanam' iseeko jaise hee vyaakul manase doharaaya, jalaka veg dhakka deta hua badha़a aur sheeghr hee doosare kundamen mujhe pahuncha diyaa. main baahar nikal aayaa. jaan bachee to laakhon paaye. lekin vahaan bachaanevaale keval bhagavaan hee the, anyatha agale minatamen praanaant honevaala thaa.
(2) bhagavaan badareenaathajeekee kripaa
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bhojanaachchhaadane chintaan vritha kurvanti vaishnavaah yo'yan vishvambharee devah s ki bhaktaanupekshate
isee beech donon mitr tikat lekar a gaye, kapaat khulane par un donon mitronke saath punah darshan karake ham log neeche aaye aur thoda़a vishraam karake chaar baje vaapas prayaagaraajake liye prasthaan kar diye.
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