⮪ All भगवान की कृपा Experiences

एक बालकका मार्मिक अनुभव

'क्या यह तुम्हारी कृति है ?'

'जी, हाँ'

'तुमने अभीतक इसे किसीको नहीं दिखलाया है?'

'जी नहीं'

'अच्छा यह लो' मैंने फुलस्केप कागजके कुछ

पन्नोंको पकड़े हुए मुझसे बात करनेवाले उस १५-१६

वर्षके बालकसे कहा। परंतु उसने उन्हें लेनेके लिये हाथ नहीं बढ़ाया, उलटे, पूछने लगा "क्या मैं जान सकता हूँ कि आपको यह चीज

पसन्द आयी या नहीं ?" 'निःसन्देह, यह बात सुन्दर है मैं तुम्हें इसकी

सफलता पर बधाई देता हूँ।' मैंने कहा।

"धन्यवाद, महाशय !'

'क्या सचमुच यह तुम्हारे अनुभवकी बात है ?'

'जी हाँ, यह सर्वथा मेरे अनुभवके आधारपर है। क्या मैं आपसे एक बात और पूछ सकता हूँ?"

'हाँ, हाँ, पूछो।' 'क्या किसी दैनिक अथवा मासिक पत्र-पत्रिकामें इसका प्रकाशन हो सकता है ?'

'तो तुम्हारी यह इच्छा है अच्छी बात है, कुछ दिन इसे मेरे पास रहने दो, देखूँगा, कदाचित् इसका प्रकाशन हो सके।'

एक दिन सबेरे, ज्यों ही मैं अपने पत्रालयको, जहाँ मैं सदा काम किया करता हूँ, जानेकी तैयारी कर ही रहा था कि एक छोटा-सा किशोर कुछ दिखलानेके लिये मेरे पास आया। बालक मेरा अपरिचित था, अतः कुछ आश्चर्य-सा हुआ। पर उसने बिना किसी प्रकारकी देर किये ही, तत्काल अपने प्रसंगकी बात छेड़ दी। अपने दाहिने हाथवाले कागजोंको मेरे सामने रखा और कहने लगा, 'मैंने अंग्रेजीमें यह एक कहानी लिखी है। यह (घटना) मेरे अपने निजी अनुभवकी है। यदि आप समय निकालकर इसे पढ़ने और भाषा सुधारनेका कष्ट करेंगे तो मैं आपका बड़ा कृतज्ञ होऊँगा।'मैं लड़केकी सरलता और सुन्दर व्यवहारपर मुग्ध हो गया। मुझे आश्चर्य हुआ कि इसने कैसे जाना कि मैं एक पत्रकार हूँ। मैंने उससे इस सम्बन्धमें कुछ दिन बाद आनेके लिये कह दिया। उसने नम्रतासे अभिवादन किया और चल पड़ा।

उसी दिन सन्ध्याको कार्यालयसे लौटने के उपरान्त मैंने उसे पढ़ा। कहानी इस प्रकार थी

मैं लखनऊ के अलीगंज मुहल्ले में अपनी माँ साथ रहता हूँ। मेरे कोई भी भाई अथवा बहिन नहीं हैं। मेरे पिताजी एक गरीब व्यक्ति थे। विगत महायुद्धमें वे सेनामें भर्ती हो गये और वहाँ लड़ाई में मारे गये। मेरी माँको थोड़ी-सी पेंशन मिलती है। वह पड़ोसियोंके लिये थोड़ा-बहुत सीने-पिरोनेका भी काम कर दिया करती है। इन सबसे मेरे अन्न-वस्त्र तथा स्कूलको फौसका भी काम चल जाता है।

मैं अपनी माँसे बहुत अधिक प्रेम करता हूँ और केवल स्कूलके वक्त ही उसे छोड़ता हूँ और छुट्टी होते ही सीधे उसके पास आ जाता हूँ। वह इतनी अधिक सरल, दयालु और सहृदय है कि ईश्वरको मैं इसके लिये धन्यवाद देता हूँ कि उसने मुझे इतनी अच्छी माँ दी।

कभी-कभी मेरी माँको बड़े जोरोंका सिर-दर्द होता है कि उसकी तीव्र वेदनाके कारण आत्मीयतावश मुझे भी उसी तरहकी मानसिक व्यथा होने लगती है। एक बार किसीने बतलाया कि सिरदर्द में एस्पिरिन बड़ा लाभ पहुँचाती है। इसलिये दूसरी बार जब माँ बाजार गयी तो दो एस्पिरिनकी टिकिया एक आना प्रति टिकिया के हिसाब से खरीद लायी। अबकी बार जब पुनः सिरदर्द हुआ तो उसने एक गोली पानीसे से लो और आराम हो गया। दूसरी गोली भी शीघ्र ही समाप्त हो गयी।

उसके बाद भी माँको कई बार सिरदर्द हुआ, परंतु वह अर्थाभाव के कारण पुनः टिकिया न खरीद सकी। एक दिन शामको उसके सिरमें बड़े जोरोका दर्द हुआ और यह एक टिकियाके लिये पागल सी हो गयी, परंतुउस समय घरमें कोई न था।

माँने मुझे बुलाया और एक चवन्नी मेरे हाथमें रखते हुए कहा- 'बेटा। मेरे सिरमें इस वक्त भयानक दर्द हो रहा है, अतः तुम सड़कपर चाँदबाग जाओ। वहाँ तुम्हें बस मिलेगी, छ: पैसे देकर टिकिट खरीद लेना और सीधे हजरतगंज पहुँच जाना वहाँसे एक आने में एस्पिरिनकी एक टिकिया खरीद लेना और पुनः बस पकड़कर चाँदबाग आ जाना और वहाँसे घर लौट आना।

मैंने रास्ता समझ लिया। जूता और टोपी पहनी।। जेबमें पैसे रखे और शीघ्रतासे चल दिया। तत्काल मुड़कर मैंने माँसे कहा-'माँ क्या मैं हजरतगंजतक पैदल चला जाऊँ? इससे तीन आने पैसे भी बच जायेंगे।'

पर माँने समझा कि इतनी दूर पैदल चलने से यह अवश्य थक जायगा, अतः उसने कहा 'यदि तुम पैदल जाओगे तो बड़ी देर लगेगी, इसलिये बससे ही जाओ। मैं तुम्हारा इन्तजार कर रही हूँ।' मैं करीब बीस मिनिटतक पैदल चला होऊँगा कि चाँदबाग आ गया। वहाँ एक बड़ी बस खड़ी थी। मैं अन्दर गया और कण्डक्टरको चवन्नी देते हुए कहा, 'मुझे हजरतगंज जानेके लिये टिकिट दे दो।' उसने मुझे अंकशनतककी टिकिट दे दी और दो आने लौटा दिये। परंतु तुम्हें मुझको अभी दो पैसे और देने चाहिये' मैंने कहा।

"हाँ, पर इस समय मेरे पास फुटकर पैसे नहीं हैं, थोड़ी देर बाद दे दूंगा। जाइये, अपनी जगहपर बैठ जाइये।' अतः मैं चला गया और दो सुसभ्य व्यक्तियोंके बीच अपनी जगहपर बैठ गया। थोड़ी देरमें गाड़ी चली और करीब दस मिनट बाद हजरतगंज आ गया जब गाड़ी उहरी, तब मैं उस टिकिट विक्रेताके पास गया और उससे अपने दो पैसे माँगे ।

'कौन-सा, दो पैसा ?' उसने कहा, 'मैं तुम्हारे जैसे भलेमानुसोंको बहुत अच्छी तरह जानता हूँ, उनकापेशा हो यही है। जरा टिकिट तो दिखाना क्या इसके पीछे कुछ लिखा है? नहीं ? तो फिर तुम्हें दो पैसा नहीं मिलेगा। अब चुपचाप भले आदमीकी तरह रास्ता पकड़ लीजिये।'

उसके बाद उसने मुझे बाहरकी ओर जरा धक्का सा दिया। दूसरे लोग अन्दर आ गये और माड़ा चल दो। मैं बाहर चला आया था। चुपचाप अकला बड़ा रह गया। आखिर में एक दूकानपर गया और मैंने एक टिकिया खरीदी। इसमें एक आना खर्च हो गया। जब केवल एक आना बच रहा। पर बसका किराया तो सुन पैसा लगेगा? समझमें नहीं आया कि क्या करूँ?

आखिर सोचा कि सैकड़ों भले आदमी सड़कपर चल रहे हैं। किसीसे भी दो पैसे माँगकर क्यों न शत्र लारीपर चढ़कर माँके पास पहुँच जाऊँ। पर मैं माँग क सका। अतः मैंने पैदल हो जाना निश्चय किया और सोचा कि माँको साफ-साफ सच्ची बात बतला दूंगा। मुझे विश्वास है कि वह पूरी तरह समझकर मुझे लमा कर देगी।

मैं इस प्रकार सोच ही रहा था कि मैंने एक बहुत बड़े जन समूहको मन्दिरकी तरफ पूजा करनेके लिये जाते हुए देखा। उसी समय मुझे याद आया कि आज मंगलवार है माँ भी प्रति मंगलवारको अलीगंजवाले हनुमान्जीके मन्दिरको जाया करती और लौटनेपर प्रसाद दिया करती थी। पर आज वह नहीं जा सकी है।

अतः मैंने एक काम करना निश्चय किया। मेरे पास एक आना बचा था। मैं सीधे मन्दिर गया और यथाशक्ति सच्चाई और सरलतासे थोड़ी देर प्रार्थना को कि 'प्रभो! मेरी माँ स्वस्थ हो जाय।' प्रार्थना करनेके बाद मैंने पुजारीको पैसा दिया और लौटने लगा। पर उसने पुकारा और कहा, 'बच्चा! प्रसाद तो लेते जाओ।' ऐसा कहकर, उसने दो पेड़े उठाये और एक दोनेमें रख दिये। जब वह यह सब कर रहा था, तब मुझे एक चवन्नीका थोड़ा-सा हिस्सा उसमें चिपका हुआ नजरआया, उसने भी इसे देख लिया था। तब उसने मेरे मस्तकपर भगवान्का प्रसादी सिन्दूर लगाया, कुछ बतासे दोनेमें रखे और कुछ सिन्दूर लगाया, कुछ सिन्दूर दोनेके किनारेपर लगाकर, मुझे दे दिया।

'पर, पुजारीजी! दोनेमें तो एक चवन्नी है' मैंने कहा, 'क्या आपने नहीं देखी है ?"

'हाँ, जब मैं तुम्हारे लिये प्रसाद उठा रहा था तो साथमें चवन्नी भी आ गयी। सम्भव है, तुम्हें पैसेकी जरूरत हो। महाराजजीकी यही इच्छा मालूम देती है। यह प्रसाद है, इसे ले लो, इनकार न करो। भगवान् तुम्हारा कल्याण करें' पुजारीजीने कहा।

मेरी प्रसन्नताका कोई पार न रहा, मैंने पुनः श्रद्धासहित वन्दना की और दोना ले लिया। मेरा हृदय आनन्दसे परिपूर्ण था। यदि उस समय कोई मुझसे बोलना चाहता तो मैं बोल भी न सकता।

दोनेको हाथमें लिये मैं बस स्टेशनपर आया। पहले से ही वहाँ कई आदमी खड़े थे इतनेमें ही लारी आ गयी। मैंने देखा कि वही आदमी टिकिट बेच रहा है। मैंने उसे चवन्नी दी और उसने मुझे तीन आने लौटाये जब मैंने भूल बतलायी, तब उसने धीमी सीआवाजमें कहा, 'तुम्हारे दो पैसे मेरे पास रह गये, मुझे पता नही था कि तुम भगवान्‌के दर्शन करनेके लिये जा रहे थे।' उसके बाद उसने उच्च स्वरमें कहा-' चलिये, चलिये, अपनी जगहपर बैठिये।' मैं बढ़ा और अपनी

जगहपर बैठ गया। मेरी आँखोंसे आँसू झर रहे थे। थोड़ी ही देर में मैं अपने घर पहुँचा और माँके सामने दवा, प्रसाद और पैसोंको रख दिया तथा सारी बातें बता दीं। उसने प्यारसे मुझे गले लगा लिया और प्रसन्नतासे उछल पड़ी! उसके बाद उसने दवा ली और थोड़ी ही देर बाद उसने बतलाया कि उसके सिरमें अब बिलकुल भी दर्द नहीं है।

यह एक सच्ची घटना है। इसमें मैंने रंचमात्र भीऐसी कोई बात नहीं लिखी है, जो असत्य हो। इस बातका ईश्वर साक्षी है।

अगली बार जब लड़का मेरे पास आया तो मैंने उसे तीस रुपये दिये और कहा कि तुम्हारी कहानीको एक पत्रिकाने प्रकाशित करना स्वीकार कर लिया है। शीघ्र ही उसका प्रकाशन हो जायगा। वह चुपचाप था। सम्भव है, उसे मालूम न हो कि कहानी लिखना भी एक अर्थ-व्यवसाय है।

[ डॉ० श्री एस० मुरारीजी सिन्हा ]



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Real Life Experience प्रभु दर्शन


ek baalakaka maarmik anubhava

'kya yah tumhaaree kriti hai ?'

'jee, haan'

'tumane abheetak ise kiseeko naheen dikhalaaya hai?'

'jee naheen'

'achchha yah lo' mainne phulaskep kaagajake kuchha

pannonko pakada़e hue mujhase baat karanevaale us 15-16

varshake baalakase kahaa. parantu usane unhen leneke liye haath naheen badha़aaya, ulate, poochhane laga "kya main jaan sakata hoon ki aapako yah cheeja

pasand aayee ya naheen ?" 'nihsandeh, yah baat sundar hai main tumhen isakee

saphalata par badhaaee deta hoon.' mainne kahaa.

"dhanyavaad, mahaashay !'

'kya sachamuch yah tumhaare anubhavakee baat hai ?'

'jee haan, yah sarvatha mere anubhavake aadhaarapar hai. kya main aapase ek baat aur poochh sakata hoon?"

'haan, haan, poochho.' 'kya kisee dainik athava maasik patra-patrikaamen isaka prakaashan ho sakata hai ?'

'to tumhaaree yah ichchha hai achchhee baat hai, kuchh din ise mere paas rahane do, dekhoonga, kadaachit isaka prakaashan ho sake.'

ek din sabere, jyon hee main apane patraalayako, jahaan main sada kaam kiya karata hoon, jaanekee taiyaaree kar hee raha tha ki ek chhotaa-sa kishor kuchh dikhalaaneke liye mere paas aayaa. baalak mera aparichit tha, atah kuchh aashcharya-sa huaa. par usane bina kisee prakaarakee der kiye hee, tatkaal apane prasangakee baat chheda़ dee. apane daahine haathavaale kaagajonko mere saamane rakha aur kahane laga, 'mainne angrejeemen yah ek kahaanee likhee hai. yah (ghatanaa) mere apane nijee anubhavakee hai. yadi aap samay nikaalakar ise padha़ne aur bhaasha sudhaaraneka kasht karenge to main aapaka bada़a kritajn hooongaa.'main lada़kekee saralata aur sundar vyavahaarapar mugdh ho gayaa. mujhe aashchary hua ki isane kaise jaana ki main ek patrakaar hoon. mainne usase is sambandhamen kuchh din baad aaneke liye kah diyaa. usane namrataase abhivaadan kiya aur chal pada़aa.

usee din sandhyaako kaaryaalayase lautane ke uparaant mainne use paढ़aa. kahaanee is prakaar thee

main lakhanaoo ke aleeganj muhalle men apanee maan saath rahata hoon. mere koee bhee bhaaee athava bahin naheen hain. mere pitaajee ek gareeb vyakti the. vigat mahaayuddhamen ve senaamen bhartee ho gaye aur vahaan lada़aaee men maare gaye. meree maanko thoda़ee-see penshan milatee hai. vah pada़osiyonke liye thoda़aa-bahut seene-pironeka bhee kaam kar diya karatee hai. in sabase mere anna-vastr tatha skoolako phausaka bhee kaam chal jaata hai.

main apanee maanse bahut adhik prem karata hoon aur keval skoolake vakt hee use chhoda़ta hoon aur chhuttee hote hee seedhe usake paas a jaata hoon. vah itanee adhik saral, dayaalu aur sahriday hai ki eeshvarako main isake liye dhanyavaad deta hoon ki usane mujhe itanee achchhee maan dee.

kabhee-kabhee meree maanko bada़e joronka sira-dard hota hai ki usakee teevr vedanaake kaaran aatmeeyataavash mujhe bhee usee tarahakee maanasik vyatha hone lagatee hai. ek baar kiseene batalaaya ki siradard men espirin bada़a laabh pahunchaatee hai. isaliye doosaree baar jab maan baajaar gayee to do espirinakee tikiya ek aana prati tikiya ke hisaab se khareed laayee. abakee baar jab punah siradard hua to usane ek golee paaneese se lo aur aaraam ho gayaa. doosaree golee bhee sheeghr hee samaapt ho gayee.

usake baad bhee maanko kaee baar siradard hua, parantu vah arthaabhaav ke kaaran punah tikiya n khareed sakee. ek din shaamako usake siramen bada़e joroka dard hua aur yah ek tikiyaake liye paagal see ho gayee, parantuus samay gharamen koee n thaa.

maanne mujhe bulaaya aur ek chavannee mere haathamen rakhate hue kahaa- 'betaa. mere siramen is vakt bhayaanak dard ho raha hai, atah tum sada़kapar chaandabaag jaao. vahaan tumhen bas milegee, chha: paise dekar tikit khareed lena aur seedhe hajarataganj pahunch jaana vahaanse ek aane men espirinakee ek tikiya khareed lena aur punah bas pakada़kar chaandabaag a jaana aur vahaanse ghar laut aanaa.

mainne raasta samajh liyaa. joota aur topee pahanee.. jebamen paise rakhe aur sheeghrataase chal diyaa. tatkaal muda़kar mainne maanse kahaa-'maan kya main hajarataganjatak paidal chala jaaoon? isase teen aane paise bhee bach jaayenge.'

par maanne samajha ki itanee door paidal chalane se yah avashy thak jaayaga, atah usane kaha 'yadi tum paidal jaaoge to bada़ee der lagegee, isaliye basase hee jaao. main tumhaara intajaar kar rahee hoon.' main kareeb bees minitatak paidal chala hooonga ki chaandabaag a gayaa. vahaan ek bada़ee bas khada़ee thee. main andar gaya aur kandaktarako chavannee dete hue kaha, 'mujhe hajarataganj jaaneke liye tikit de do.' usane mujhe ankashanatakakee tikit de dee aur do aane lauta diye. parantu tumhen mujhako abhee do paise aur dene chaahiye' mainne kahaa.

"haan, par is samay mere paas phutakar paise naheen hain, thoda़ee der baad de doongaa. jaaiye, apanee jagahapar baith jaaiye.' atah main chala gaya aur do susabhy vyaktiyonke beech apanee jagahapar baith gayaa. thoda़ee deramen gaada़ee chalee aur kareeb das minat baad hajarataganj a gaya jab gaada़ee uharee, tab main us tikit vikretaake paas gaya aur usase apane do paise maange .

'kauna-sa, do paisa ?' usane kaha, 'main tumhaare jaise bhalemaanusonko bahut achchhee tarah jaanata hoon, unakaapesha ho yahee hai. jara tikit to dikhaana kya isake peechhe kuchh likha hai? naheen ? to phir tumhen do paisa naheen milegaa. ab chupachaap bhale aadameekee tarah raasta pakada़ leejiye.'

usake baad usane mujhe baaharakee or jara dhakka sa diyaa. doosare log andar a gaye aur maada़a chal do. main baahar chala aaya thaa. chupachaap akala bada़a rah gayaa. aakhir men ek dookaanapar gaya aur mainne ek tikiya khareedee. isamen ek aana kharch ho gayaa. jab keval ek aana bach rahaa. par basaka kiraaya to sun paisa lagegaa? samajhamen naheen aaya ki kya karoon?

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main is prakaar soch hee raha tha ki mainne ek bahut bada़e jan samoohako mandirakee taraph pooja karaneke liye jaate hue dekhaa. usee samay mujhe yaad aaya ki aaj mangalavaar hai maan bhee prati mangalavaarako aleeganjavaale hanumaanjeeke mandirako jaaya karatee aur lautanepar prasaad diya karatee thee. par aaj vah naheen ja sakee hai.

atah mainne ek kaam karana nishchay kiyaa. mere paas ek aana bacha thaa. main seedhe mandir gaya aur yathaashakti sachchaaee aur saralataase thoda़ee der praarthana ko ki 'prabho! meree maan svasth ho jaaya.' praarthana karaneke baad mainne pujaareeko paisa diya aur lautane lagaa. par usane pukaara aur kaha, 'bachchaa! prasaad to lete jaao.' aisa kahakar, usane do peda़e uthaaye aur ek donemen rakh diye. jab vah yah sab kar raha tha, tab mujhe ek chavanneeka thoda़aa-sa hissa usamen chipaka hua najaraaaya, usane bhee ise dekh liya thaa. tab usane mere mastakapar bhagavaanka prasaadee sindoor lagaaya, kuchh bataase donemen rakhe aur kuchh sindoor lagaaya, kuchh sindoor doneke kinaarepar lagaakar, mujhe de diyaa.

'par, pujaareejee! donemen to ek chavannee hai' mainne kaha, 'kya aapane naheen dekhee hai ?"

'haan, jab main tumhaare liye prasaad utha raha tha to saathamen chavannee bhee a gayee. sambhav hai, tumhen paisekee jaroorat ho. mahaaraajajeekee yahee ichchha maaloom detee hai. yah prasaad hai, ise le lo, inakaar n karo. bhagavaan tumhaara kalyaan karen' pujaareejeene kahaa.

meree prasannataaka koee paar n raha, mainne punah shraddhaasahit vandana kee aur dona le liyaa. mera hriday aanandase paripoorn thaa. yadi us samay koee mujhase bolana chaahata to main bol bhee n sakataa.

doneko haathamen liye main bas steshanapar aayaa. pahale se hee vahaan kaee aadamee khaड़e the itanemen hee laaree a gayee. mainne dekha ki vahee aadamee tikit bech raha hai. mainne use chavannee dee aur usane mujhe teen aane lautaaye jab mainne bhool batalaayee, tab usane dheemee seeaavaajamen kaha, 'tumhaare do paise mere paas rah gaye, mujhe pata nahee tha ki tum bhagavaan‌ke darshan karaneke liye ja rahe the.' usake baad usane uchch svaramen kahaa-' chaliye, chaliye, apanee jagahapar baithiye.' main badha़a aur apanee

jagahapar baith gayaa. meree aankhonse aansoo jhar rahe the. thoda़ee hee der men main apane ghar pahuncha aur maanke saamane dava, prasaad aur paisonko rakh diya tatha saaree baaten bata deen. usane pyaarase mujhe gale laga liya aur prasannataase uchhal pada़ee! usake baad usane dava lee aur thoda़ee hee der baad usane batalaaya ki usake siramen ab bilakul bhee dard naheen hai.

yah ek sachchee ghatana hai. isamen mainne ranchamaatr bheeaisee koee baat naheen likhee hai, jo asaty ho. is baataka eeshvar saakshee hai.

agalee baar jab lada़ka mere paas aaya to mainne use tees rupaye diye aur kaha ki tumhaaree kahaaneeko ek patrikaane prakaashit karana sveekaar kar liya hai. sheeghr hee usaka prakaashan ho jaayagaa. vah chupachaap thaa. sambhav hai, use maaloom n ho ki kahaanee likhana bhee ek artha-vyavasaay hai.

[ daॉ0 shree esa0 muraareejee sinha ]

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प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि
सादर भारत शीश धरी लीन्ही
मेरी करुणामयी सरकार पता नहीं क्या दे
क्या दे दे भई, क्या दे दे
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
बरसाने मे दोल, के मुख से राधे राधे बोल,
रंगीलो राधावल्लभ लाल, जै जै जै श्री
विहरत संग लाडली बाल, जै जै जै श्री
मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
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प्रीतम बोलो कब आओगे॥
बालम बोलो कब आओगे॥
सत्यम शिवम सुन्दरम
सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है
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शयाम सुंदर मुख चंदा, भजो रे मन गोविंदा
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तुम रस के सागर रसिया हो
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फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद
ये सारे खेल तुम्हारे है
जग कहता खेल नसीबों का
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ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी।
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
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श्याम ने आना घनश्याम ने आना
जीवन खतम हुआ तो जीने का ढंग आया
जब शमा बुझ गयी तो महफ़िल में रंग आया
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
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एक न एक दिन बदलना पड़ेगा॥
मेरी रसना से राधा राधा नाम निकले,
हर घडी हर पल, हर घडी हर पल।
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