⮪ All भगवान की कृपा Experiences

एक संत के अनुभव की बातें

समर्थकी असमर्थपर करुणा कृपा है। गुरु, गोविन्द और ग्रन्थकी कृपाके बलपर भक्ति, विरक्ति और भगवत्प्रबोधकी समुपलब्धि सम्भव है। भक्ति, विरक्ति और भगवत्प्रबोध भवतारक योग हैं। अविद्या, काम और कर्मके वशीभूत जीव गुरु, गोविन्द और ग्रन्थकी कृपाके बलपर ही भवबन्धके उच्छेदमें समर्थ होता है। महासर्गके प्रारम्भमें अकृतार्थ जीवोंको कृतार्थतामें हेतुभूत देहेन्द्रियप्राणान्तःकरणसे सम्पन्न जीवन भगवत्कृपासे ही सम्भव है। भगवदर्थ जीवनका उपयोग और विनियोग जीवके जीवनकी सार्थकता है। कर्मायतन, भोगायतन और ज्ञानायतन नरजन्म प्राप्तकर भगवत्परिमार्गण कर्तव्य है। वेदान्तवेद्य सच्चिदानन्दस्वरूप भगवत्तत्त्व आत्मीय ही नहीं; अपितु आत्मस्वरूप भी सिद्ध है। वह जगत्का निमित्त ही नहीं; अपितु उपादानकारण भी मान्य है। अतएव वह सर्व सर्वगत-सर्वात्मा सिद्ध है। वह निरुपाधिक धरातलपर जहाँ निर्गुण-निराकार सिद्ध है; वहाँ सोपाधिक धरातलपर सगुण-निराकार और सगुण-साकार भी सिद्ध है। सगुणसाकार-सच्चिदानन्दस्वरूप- सर्वेश्वर ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शक्ति और गणेश-संज्ञक पंचरूपोंमें अभिव्यक्त हैं। ये पंचदेव उत्पत्ति, स्थिति, संहृति, निग्रह और अनुग्रह नामक पंचकृत्यके निर्वाहक सिद्ध हैं। क्लेश, कर्म, विपाक और आशयके वशीभूत जीव सगुणसाकार सर्वेश्वरकी उपासनाके अमोघ प्रभावसे मोक्षपद प्राप्त करने में समर्थ होता है। सगुणसाकार-सर्वेश्वरकी आराधनाके फलस्वरूप अविद्या, अस्मिता और रागका अतिक्रमण सम्भव है। भगवद्विषयक प्रीतिविशिष्ट अविद्या भवतारक वात्सल्यरस सिद्ध है। भगवद्विषयक अहमितिरूपा अस्मिता उद्धारक सिद्ध है। भगवद्विषयक राग भक्ति सिद्ध है। भगवद्विषयक द्वेष और अभिनिवेशकी भी भवतारकता सिद्ध है। भगवदर्थ कर्म कर्मबन्धनके उच्छेदमें हेतु मान्य है। सुख-दुःखसंज्ञक कर्मफलात्मक विपाकको भोगतेहुए भी भगवत्कृपाका सुसमीक्षण मुक्तिमें अमोघ हेतु है। मृत्यु, जड़ता और दुःखसे अतिक्रान्त ब्रह्मात्मतत्त्वके परिशीलनकी क्षमता भगवत्तत्त्वकी असीम अनुकम्पाका द्योतक है। भगवत्कृपाके रूपमें भगवत्तत्त्वकी अभिव्यक्ति ही सिद्ध है। भगवत्तत्त्वके श्रवण, मनन और निदिध्यासनके फलस्वरूप भगवत्कृपासे प्राप्त ब्रह्मात्मतत्त्वके एकत्वका बोध मोक्षमें साक्षात् हेतु है। भगवत्प्रदत्त भक्ति, विरक्ति और भगवत्प्रबोधके प्रभावसे आशयसंज्ञक वासनाका आत्यन्तिक उच्छेद और कैवल्यमोक्ष सम्भव है।

बाल्यकालमें जब मैं पलनेपर सोया होता, तब प्रति दिन चार-पाँचबार विचित्र घटना घटती। काली साड़ी पहने, हाथमें नंगी तलवार धारण किये चार-पाँच विकराल स्त्रियाँ मुझपर एकसाथ प्रहार करतीं। मैं चिल्ला पड़ता। जब एक दिन इस प्रकारकी घटना घटी; तब भगवत्कृपासे हृदयमें अद्भुत बोध उदित हुआ। वह इस प्रकार था - 'यदि मैं मरने-कटनेवाला होता तो प्रथम दिनके प्रथम प्रहारसे ही मर कट गया होता।' -इस बोधके बाद इस प्रकारकी घटनाकी पुनरावृत्ति नहीं हुई। करुणावरुणालय भगवान्ने भवतारक इस बोधको प्रदान करनेकी भावनासे ही उक्त भयानक दृश्यको उद्भासित किया था।

जब मेरी आयु पाँच वर्षसे अधिक नहीं थी, तब एक दिन अकेले सरोवरके समीप एक अपरिचित क्षेत्रमें पहुँच गया। वहाँ एक मन्दिरमें श्रीराधाकृष्णकी प्रतिष्ठा थी। मैं मन्दिरसे कुछ दूर खड़ा होकर श्रीराधाकृष्णका दर्शन कर रहा था। वहाँ अन्य कोई नहीं था। मुझ नंग-धड़ंगके कन्धेपर मेरी आयुके नंग धड़ंग श्रीकृष्णने दोनों हाथ रखकर कहा-'हमर गहना आभूषण खो हेरा गेलै, कतठ देखलों हैं ?'-मेरा गया है, कहीं देखा है ?'

बस क्या था— जो मिले, उसीसे मैं कहने लगा-
'हमर भगवानक गहना हेरा गेलै, कतर देखलाँ हैं?' हमारे भगवान्‌का आभूषण खो गया है, कहीं देखा है ? रात्रभर इसी रटके कारण माता-पिताको सोने नहीं दिया। रात्रि बीतनेपर बड़ी बहन शशिकलाजीने पता लगाया तो पता चला कि भगवान्‌के आभूषणोंको चोरोंने चुरा लिया था।

बाल्यावस्थामें एक गायकने एक गीत सुनाया 'बस एक बार, बस एक बार, वृन्दावनकी कुंजगलिनमेंवंशी मधुर बजा दो श्याम।" इस संगीतने मेरे मनकोमोह लिया। मनसे मैं श्रीवृन्दावनमें ही निवास करने लगा। एक दिन जन्मभूमिमें गाँवके समीप सायंकाल जीवछ नदीके तटपर मित्र विनोदानन्दजीके साथ बैठा था। अचानक मित्रसे शत्रु बने एक व्यक्तिकी प्रेरणा से पन्द्रह-बीस परिचित युवक मुझे नदीमें डुबो देनेकी भावनासे द्रुतगतिसे मेरी ओर गर्जना करते हुए आ रहे थे। अचानक वे 'जले' कहते हुए गाँवकी ओर भाग गये।

होली के अवसरपर एक दिन सूर्यास्त के बाद अकेले जीवछ नदीके तटसे घरकी ओर लौट रहा था। एक आमके बागमें अचानक मित्रसे शत्रु बने उस व्यक्तिने मुझे पकड़कर छातीमें छूरा बुभानेका प्रयास किया; परंतु वह सफल नहीं हुआ। समीप ही एक खेतमें होलिका-दहनके लिये उसके अन्य साथी और पिता आदि चालीस-पचास व्यक्ति जमा थे। मैं वहीं पहुँचकर एक पुलियापर बैठ गया। उनमें पन्द्रह-बीस निशानेबाज लगभग चालीस मिनटोंतक मुझे मार डालनेकी भावना से ढेले फेंकते रहे; परंतु भगवत्कृपासे मुझतक किसी देलेकी पहुँच नहीं हुई।

जन्मभूमिमें मान्त्रिकोंने कई बार मान्त्रिक सर्पसे डसवाया; फिर भी भगवत्कृपासे जीवन सुरक्षित रहा। वनमें कई बार सर्पने डसा और एक बार विषखोपराने डसा; फिर भी भगवत्कृपासे जीवन सुरक्षित रहा। ठीक ही है-
जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोय । बाल न बाँका कर सके जो जग बैरी होय ॥
बाल्यकालमें श्रीगरुड़जीने त्रिभुवनमें सुदुर्लभ पंचदशाक्षरी श्रीवासुदेवविद्याकी दीक्षा दी तथा मन्त्रके अद्भुत माहात्म्यका बोध प्रदान किया।

बाल्यावस्थामें धनुर्वेदके आचार्य विश्वामित्रजीने स्वप्नमें चालीस दिनोंतक प्रतिदिन एक घण्टे धनुर्वेदका क्रमिक प्रशिक्षण प्रदान किया।

जब मैं सोलह वर्षका था, तब शरीर संग्रहणीकी चपेटमें पड़ गया। मरणासन्न स्थिति हो गयी। रोगनिवारणके सकल उपाय व्यर्थ सिद्ध हुए। सायंकाल चुपकेसे घरसे कुछ दूर अपने आपके बागतक अद्भुत वेदनाकी दशामें उठते-बैठते किसी तरह पहुँचकर पिताजीकी समाधिस्थलीके समीप लेटकर रोते हुए उनकी चिताका कुछ भस्म मुखमें रखकर बोला 'पिताजी! जीवनका अपहरण कीजिये या जीवनी शक्ति प्रदान कीजिये।' तत्काल नभोमण्डलमें ऊर्ध्व सुदूर गोलाकार श्वेतपरिधान में सुसजित दस हजार अपरिचित पितरोंका दर्शन हुआ और उनके अनुग्रहसे तत्क्षण शरीर संग्रहणीसे मुक्त हुआ। कालान्तरमें भगवान् शिवने तीसरा नेत्र प्रदानकर समय आनेपर उसके उद्दीपनका वर भी प्रदान किया।

पूज्यपाद स्वामी करपात्रीजीसे संन्यासदीक्षा प्राप्त करनेकी भावनासे काशीको लक्ष्य बनाकर उन्नीस वर्षको आयुमें मैं दिल्लीसे पदयात्रा करते हुए एक दिन सूर्यास्त के बाद मथुरा और आगराके मध्य पहुँचा। एक नदीके किनारे एक बलिष्ठ यवन युवककी चपेट में पड़ गया। उसने हिन्दू और ब्राह्मण जानकर गला दबाकर मारकर शवको नदीमें फेंक देनेका निर्णय लिया। मैंने केवल दो मिनटका उससे समय माँगा। उसने ठहाका मारकर हँसते हुए कहा- 'इस नदीके तटपर अँधेरी रातमें निर्जन वनमें देखता हूँ, दो मिनटकी सीमामें यहाँ तेरी रक्षा करनेके लिये कौन प्रकट होता है?' ठीक दो मिनटकी सीमामें उसे और मुझे किसी चलते हुए व्यक्तिकी पादुकाकी आवाज सुनायी पड़ी। वह मूच्छित हुआ, मैं चलते बना।नैमिषारण्यमें गोमतीके तटपर श्रीकृष्णभावभावित एक श्यामवर्णके युवकने सहसा दर्शन दिया। उसके श्रीविग्रहसे विनिःसृत कस्तूरीका आमोद मुझे प्रमुदित कर रहा था। उसने बाँसकी शाखाओंमें विविध प्रकारकी वंशियों लटका रखी थीं वह उन सबसे विलक्षण एक वंशी कमरके समीप साधे हुए था। उसने मुझसे कहा- 'फैंटमें कसी हुई वंशी मेरी है। यह मेरे बजानेपर ही बजती है। अन्य वंशियाँ मेरे सखाओंके लिये हैं।'

उसके दर्शनसे उसके प्रति सहसा सख्यभावका उदय हुआ। मैंने उससे वंशी बजाकर सुनानेका आग्रह किया। उसने कहा-'मेरे चाहनेपर भी यह मेरी वंशी यहाँ नहीं बज सकती। यह तो वृन्दावनमें ही बजती है। वहीं आओ और मेरी मुरलीकी तान सुनो।'

गोमती नदीके तटपर अरण्यमें किसी ख्यातिप्राप्त संन्यासीने एक आतंकवादी ढंगके व्यक्तिको मुझे मरवाने के लिये उसे एक रात्रिके लिये किसीकी बन्दूक दिलवा दी। उसने मुझे मारनेका मन बनाकर एकान्तमें ज्यों ही अभ्यास प्रारम्भ किया, त्यों ही उसे एक भयंकर उग्र काले रंगके व्यक्तिका दर्शन हुआ। तत्काल वह मूच्छित हो गया। इस प्रकार करुणावरुणालय भगवान् मेरी रक्षा की। शिवने

उस ख्यातिप्राप्त संन्यासीने पहलवानोंसे कई बार शरीरको कुचलवाया, दो बार उपद्रवी व्यक्तियोंसे विष दिलवाया और कई बार कांच पिसवाकर भोजनमें मिलवाया। फिर भी श्रीकृष्णकी कृपासे जीवन सुरक्षित रहा। ठीक ही है-जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय। बाल न बाँका कर सके जो जग बैरी होय ।

प्रसंगवश रामेश्वरम् और शृंगेरीको लक्ष्य बनाकर नैमिषारण्यसे पदयात्रा करते हुए गोवर्धनमठ पुरी पहुँचा। मैंने पदासीन पूज्य शंकराचार्यको गीता पढ़ानेका अनुरोध किया। उन्होंने तीखे शब्दोंमें मना कर दिया। मुझध्रुवचैतन्यने माँ सुनीति सम्मुख बालक ध्रुक्क मान

रोते हुए मठमें प्रतिष्ठित शंकराचार्यकी प्रतिमा के अपनी वेदना व्यक्त की। प्रतिमासे आवाज आयी 1 "मैंने गीताका रसरहस्य तुम्हें प्रदान किया। तुम प्रदत्त बोधको लिखना प्रारम्भ करो। मैं इस पीठका आचार्यपट तुझे प्रदान करता हूँ।'
बाल्यकालमें भगवती विषहरा मनसादेवी उच्चैठयासिनी, विन्ध्यवासिनी, ग्रामदेवी भगवती सतीका अद्भुत अनुग्रह सुलभ हुआ। भुवनभास्कर सूर्यदेवने अध्यात्मबोध प्रदान किया। धर्मसम्राट् पूज्यपाद श्रीस्वामी करपात्रमहाभागसे संन्यासदीक्षा प्राप्त करनेका जह सुयोग सभा; वहाँ उनसे छह वर्षोंतक चातुर्मास्य के दिनोंमें वेदादिशास्त्रोंके अध्ययनका भी सुयोग सधा। एक दिन एकान्तमें उन्होंने कहा- 'जिन ग्रन्थोंको में नहीं पढ़ा सका, उन्हें भी तुझे पढ़ानेकी भावना थी, किंतु स्वास्थ्यकी दुर्बलताके कारण अब वह सम्भव नहीं।' कुछ देर मौन रहनेके बाद उन्होंने कहा 'अच्छा आशीर्वाद तो दे ही सकता हूँ। जिन ग्रन्थोंको मैं नहीं पढ़ा पाया, वे ग्रन्थ भी तुम्हें लग जायें। यह मेरा आशीर्वाद है।' उनका वरदान सार्थक हुआ।

कुछ वर्षपूर्व पुरीमें सूर्यास्तके बाद सौरमण्डलसे मुझतक विकीर्ण प्रकाशपुंजने मुझे उसी प्रकार अपने में समाहित कर लिया, जिस प्रकार मछुआरा मछलीको जालमें सन्निहित कर लेता है। मैंने मन-ही-मन पूछा 'आप कौन हैं?' मनमें ही उत्तर मिला-'हम गणित के परमाणु है।' मैंने मनमें सन्निहित वाणीसे कहा "आप मुझमें समाहित हो जाइये आपको ग्रन्थका रूप प्रदान करनेकी भावनासे जब-जब स्मरण करूँ, तब-तब प्रकट हो जाइये।' तदनुसार पूज्य श्री भारतीकृष्णमहाभाग विरचित वैदिक गणितके कुल पचीस पृष्ठोंकी व्याख्या मेरे कम्प्यूटर में १५४२ पृष्ठ लिपिबद्ध है।

प्रभु मूरति कृपामई है।



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ek sant ke anubhav kee baaten

samarthakee asamarthapar karuna kripa hai. guru, govind aur granthakee kripaake balapar bhakti, virakti aur bhagavatprabodhakee samupalabdhi sambhav hai. bhakti, virakti aur bhagavatprabodh bhavataarak yog hain. avidya, kaam aur karmake vasheebhoot jeev guru, govind aur granthakee kripaake balapar hee bhavabandhake uchchhedamen samarth hota hai. mahaasargake praarambhamen akritaarth jeevonko kritaarthataamen hetubhoot dehendriyapraanaantahkaranase sampann jeevan bhagavatkripaase hee sambhav hai. bhagavadarth jeevanaka upayog aur viniyog jeevake jeevanakee saarthakata hai. karmaayatan, bhogaayatan aur jnaanaayatan narajanm praaptakar bhagavatparimaargan kartavy hai. vedaantavedy sachchidaanandasvaroop bhagavattattv aatmeey hee naheen; apitu aatmasvaroop bhee siddh hai. vah jagatka nimitt hee naheen; apitu upaadaanakaaran bhee maany hai. ataev vah sarv sarvagata-sarvaatma siddh hai. vah nirupaadhik dharaatalapar jahaan nirguna-niraakaar siddh hai; vahaan sopaadhik dharaatalapar saguna-niraakaar aur saguna-saakaar bhee siddh hai. sagunasaakaara-sachchidaanandasvaroopa- sarveshvar brahma, vishnu, mahesh, shakti aur ganesha-sanjnak pancharooponmen abhivyakt hain. ye panchadev utpatti, sthiti, sanhriti, nigrah aur anugrah naamak panchakrityake nirvaahak siddh hain. klesh, karm, vipaak aur aashayake vasheebhoot jeev sagunasaakaar sarveshvarakee upaasanaake amogh prabhaavase mokshapad praapt karane men samarth hota hai. sagunasaakaara-sarveshvarakee aaraadhanaake phalasvaroop avidya, asmita aur raagaka atikraman sambhav hai. bhagavadvishayak preetivishisht avidya bhavataarak vaatsalyaras siddh hai. bhagavadvishayak ahamitiroopa asmita uddhaarak siddh hai. bhagavadvishayak raag bhakti siddh hai. bhagavadvishayak dvesh aur abhiniveshakee bhee bhavataarakata siddh hai. bhagavadarth karm karmabandhanake uchchhedamen hetu maany hai. sukha-duhkhasanjnak karmaphalaatmak vipaakako bhogatehue bhee bhagavatkripaaka susameekshan muktimen amogh hetu hai. mrityu, jada़ta aur duhkhase atikraant brahmaatmatattvake parisheelanakee kshamata bhagavattattvakee aseem anukampaaka dyotak hai. bhagavatkripaake roopamen bhagavattattvakee abhivyakti hee siddh hai. bhagavattattvake shravan, manan aur nididhyaasanake phalasvaroop bhagavatkripaase praapt brahmaatmatattvake ekatvaka bodh mokshamen saakshaat hetu hai. bhagavatpradatt bhakti, virakti aur bhagavatprabodhake prabhaavase aashayasanjnak vaasanaaka aatyantik uchchhed aur kaivalyamoksh sambhav hai.

baalyakaalamen jab main palanepar soya hota, tab prati din chaara-paanchabaar vichitr ghatana ghatatee. kaalee saada़ee pahane, haathamen nangee talavaar dhaaran kiye chaara-paanch vikaraal striyaan mujhapar ekasaath prahaar karateen. main chilla pada़taa. jab ek din is prakaarakee ghatana ghatee; tab bhagavatkripaase hridayamen adbhut bodh udit huaa. vah is prakaar tha - 'yadi main marane-katanevaala hota to pratham dinake pratham prahaarase hee mar kat gaya hotaa.' -is bodhake baad is prakaarakee ghatanaakee punaraavritti naheen huee. karunaavarunaalay bhagavaanne bhavataarak is bodhako pradaan karanekee bhaavanaase hee ukt bhayaanak drishyako udbhaasit kiya thaa.

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bas kya thaa— jo mile, useese main kahane lagaa-
'hamar bhagavaanak gahana hera gelai, katar dekhalaan hain?' hamaare bhagavaan‌ka aabhooshan kho gaya hai, kaheen dekha hai ? raatrabhar isee ratake kaaran maataa-pitaako sone naheen diyaa. raatri beetanepar bada़ee bahan shashikalaajeene pata lagaaya to pata chala ki bhagavaan‌ke aabhooshanonko choronne chura liya thaa.

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janmabhoomimen maantrikonne kaee baar maantrik sarpase dasavaayaa; phir bhee bhagavatkripaase jeevan surakshit rahaa. vanamen kaee baar sarpane dasa aur ek baar vishakhoparaane dasaa; phir bhee bhagavatkripaase jeevan surakshit rahaa. theek hee hai-
jaako raakhe saaiyaan maar sake na koy . baal n baanka kar sake jo jag bairee hoy ..
baalyakaalamen shreegaruda़jeene tribhuvanamen sudurlabh panchadashaaksharee shreevaasudevavidyaakee deeksha dee tatha mantrake adbhut maahaatmyaka bodh pradaan kiyaa.

baalyaavasthaamen dhanurvedake aachaary vishvaamitrajeene svapnamen chaalees dinontak pratidin ek ghante dhanurvedaka kramik prashikshan pradaan kiyaa.

jab main solah varshaka tha, tab shareer sangrahaneekee chapetamen pada़ gayaa. maranaasann sthiti ho gayee. roganivaaranake sakal upaay vyarth siddh hue. saayankaal chupakese gharase kuchh door apane aapake baagatak adbhut vedanaakee dashaamen uthate-baithate kisee tarah pahunchakar pitaajeekee samaadhisthaleeke sameep letakar rote hue unakee chitaaka kuchh bhasm mukhamen rakhakar bola 'pitaajee! jeevanaka apaharan keejiye ya jeevanee shakti pradaan keejiye.' tatkaal nabhomandalamen oordhv sudoor golaakaar shvetaparidhaan men susajit das hajaar aparichit pitaronka darshan hua aur unake anugrahase tatkshan shareer sangrahaneese mukt huaa. kaalaantaramen bhagavaan shivane teesara netr pradaanakar samay aanepar usake uddeepanaka var bhee pradaan kiyaa.

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us khyaatipraapt sannyaaseene pahalavaanonse kaee baar shareerako kuchalavaaya, do baar upadravee vyaktiyonse vish dilavaaya aur kaee baar kaanch pisavaakar bhojanamen milavaayaa. phir bhee shreekrishnakee kripaase jeevan surakshit rahaa. theek hee hai-jaako raakhe saaiyaan maar sake n koya. baal n baanka kar sake jo jag bairee hoy .

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kuchh varshapoorv pureemen sooryaastake baad sauramandalase mujhatak vikeern prakaashapunjane mujhe usee prakaar apane men samaahit kar liya, jis prakaar machhuaara machhaleeko jaalamen sannihit kar leta hai. mainne mana-hee-man poochha 'aap kaun hain?' manamen hee uttar milaa-'ham ganit ke paramaanu hai.' mainne manamen sannihit vaaneese kaha "aap mujhamen samaahit ho jaaiye aapako granthaka roop pradaan karanekee bhaavanaase jaba-jab smaran karoon, taba-tab prakat ho jaaiye.' tadanusaar poojy shree bhaarateekrishnamahaabhaag virachit vaidik ganitake kul pachees prishthonkee vyaakhya mere kampyootar men 1542 prishth lipibaddh hai.

prabhu moorati kripaamaee hai.

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शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री कैसो चटक
श्याम मेरी चुनरी में पड़ गयो दाग री
आप आए नहीं और सुबह हो मई
मेरी पूजा की थाली धरी रह गई
मीठी मीठी मेरे सांवरे की मुरली बाजे,
होकर श्याम की दीवानी राधा रानी नाचे
प्रीतम बोलो कब आओगे॥
बालम बोलो कब आओगे॥
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
हम प्रेम नगर के बंजारिन है
जप ताप और साधन क्या जाने
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
तेरे दर की भीख से है,
मेरा आज तक गुज़ारा
ये तो बतादो बरसानेवाली,मैं कैसे
तेरी कृपा से है यह जीवन है मेरा,कैसे
जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम
राधा नाम की लगाई फुलवारी, के पत्ता
के पत्ता पत्ता श्याम बोलता, के पत्ता
सब दुख दूर हुए जब तेरा नाम लिया
कौन मिटाए उसे जिसको राखे पिया
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
अरे बदलो ले लूँगी दारी के,
होरी का तोहे बड़ा चाव...
तेरे दर पे आके ज़िन्दगी मेरी
यह तो तेरी नज़र का कमाल है,
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
सब के संकट दूर करेगी, यह बरसाने वाली,
बजाओ राधा नाम की ताली ।
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
वा वा रे रासिया, वा वा रे छैला
मैं मिलन की प्यासी धारा
तुम रस के सागर रसिया हो
लाडली अद्बुत नज़ारा तेरे बरसाने में
लाडली अब मन हमारा तेरे बरसाने में है।
जिनको जिनको सेठ बनाया वो क्या
उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
याद में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही
तमन्ना यही है के उड के बरसाने आयुं मैं
आके बरसाने में तेरे दिल की हसरतो को
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
हर साँस में हो सुमिरन तेरा,
यूँ बीत जाये जीवन मेरा
शिव समा रहे मुझमें
और मैं शून्य हो रहा हूँ
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार

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शंकर सुवन भवानी नंदन,
हे गणपती तेरा करते है वंदन
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रास रचाये बंसी बजाये वो राधा का श्याम
आओ मां आओ मां आओ मां,
भक्तों के घर कभी आओ मां,
बेटी इतना धरियो ध्यान इस जग में नाम
इस जग में नाम कमइयो सासुल की बात सुन
कर लो मोहन से यारी मेरी राधा प्यारी...