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जय माँ वैष्णोदेवी

सन् २०२० ई० में मार्चके महीनेमें लॉकडाउन लगनेसे पहले हम माता वैष्णोदेवीकी यात्रापर गये थे हमारी बुकिंग दिल्लीसे थी। मैंने ८ व्यक्तियोंका टिकट जनवरी २०२० में कराया था, उस समय बच्चोंके पेपर नहीं हुए थे, जो कि अमूमन मार्चके महीनेमें होते हैं। माताका नाम लेकर मैंने टिकट बुक करा दिये। पहला संयोग ये रहा कि टिकट ठीक उस दिनका बुक हुआ, जब बच्चोंके पेपर खत्म हुए, यानी पेपर खत्म होनेके एक दिन बादकी बुकिंग हुई। वैसे मैं रेवाड़ीके गुड़ियानी गाँवसे सम्बन्ध रखता हूँ ।

यह १५-१६ मार्चकी बात है। हम सुबह १०-११ बजेके आसपास कटरा पहुँचे और होटल बुक किया। स्नानादि करके एवं खाना खाकर हमने कटरासे १५ तारीखको ही दोपहर बाद त्रिकुटा पर्वतकी चढ़ाई शुरू की। चलते-चलते थोड़ा थक-से गये थे, पर जोश कायम था। बीचमें अर्द्धकुमारीका पड़ाव आता है। यहाँपर श्रद्धालु विश्राम करते हैं और पवित्र गुफा गर्भजूनके दर्शन करते हैं। उसमें प्रवेशके लिये रजिस्ट्रेशनकराना पड़ता है और एक स्लिप लेनी पड़ती है। एक बारमें २५० श्रद्धालुओंको गर्भजून गुफासे निकलनेके लिये अन्दर प्रवेश मिलता है। ज्यादा भीड़ होनेके कारण उस दिन हमारा नम्बर नहीं आया था और हमें दूसरे या तीसरे दिनके लिये बोला गया था। हम उसी रात पहले मातारानीके दर्शनके लिये आगे चल दिये। यहाँसे मातारानीके भवनतक जानेके लिये दो रास्ते बने हैं। एक तो पुरानावाला ही है, जो साँझी छतसे होकर जाता है और दूसरा नया है हम नयेवाले से होकर गये। माताजीके भवनपर हम रात १२ बजेके आसपास पहुँचे। वहाँ पहुँचकर छोटी-मोटी औपचारिकताएं पूरी की। परंतु उस समय माताकी पिण्डियोंतक पहुँचनेके लिये प्राकृतिक गुफा खुली नहीं थी जब दर्शनार्थियोंकी संख्या दस हजारसे कम हो तो हो प्राकृतिक गुफाका द्वार खोला जाता है। कहते हैं, इसी प्राकृतिक गुफाके द्वारसे लेकर माताजीकी पिण्डियोंतक भैरवनाथका धड़ पड़ा था। इस रास्तेपर घुटनोंतक पवित्र जल अपने आप उपलब्ध रहता है। संख्या अधिक होनेके कारण हमें दूसरी कृत्रिम गुफासे होकर दर्शन करने पड़े। इसके बाद देर रातको ही हम भैरवनाथ बाबाके दर्शन करनेके लिये २-३ किलोमीटर और ऊपर चढ़े। फिर भैरववाबाके दर्शन करके वापसीमें साँझी छतवाले मार्गसे होते हुए रात १-२ बजे ही वापस चल दिये। सुबहके ३-४ बजेका समय था और थक भी गये थे, इसलिये वहाँ ३ घण्टे विश्राम करके वापस अर्द्धकुमारीके लिये निकल पड़े, जो कि रास्ते में ही पड़ता है। वहाँ ८ बजे पहुँचकर बिना नहाये - धोये हो गुफाके लिये लाइनमें लग गये और माताजीकी कृपासे अन्दर भी प्रवेश कर गये, जबकि गत रात्रिको हमें एक या दो दिन बाद आनेके लिये बोला गया था परंतु एक गार्डने बोला कि अभी सुबह-सुबह भीड़ कम है, तुम भी लाइन में लग जाओ। हमने वह स्लिप दिखायी और लाइनमें लग गये। भीड़ ज्यादा थी। मेरे साथ कुल ८ यात्री थे। दो-तीन घण्टे लग जाते हैं। नम्बर आते-आते। मैं विकलांग होनेके कारण लाइनसेथोड़ा हटकर आगे बढ़ा। परंतु कुछ दर्शनार्थी विरोध करने लगे तो मैं लाइन से बाहर आकर वापस अपने सामानके पास आकर बैठ गया। घरवाले लाइनमें लगे रहे। वैसे मैं इस गुफासे छह साल पहले गुजर चुका था। सो ज्यादा टेंशन नहीं ली और बाहर आकर बैठ गया और परिवारवालोंका इन्तजार करने लगा। कोई १५ मिनट बाद ही मैंने सोचा गुफामें नहीं जा सका तो कोई बात नहीं, अर्द्धकुमारी मन्दिरके अन्दर जाकर (जो कि गुफाके ऊपर धरातल स्तरपर बना हुआ है) माताजीके दर्शन कर लूँ। मैं अन्दर मन्दिरमें गया तो एक सुरक्षा गार्डने अपने आप ही मुझे सुरक्षा दरवाजे (मेटल डिटेक्टर) से अन्दर जानेकी अनुमति दे दी। मैं सीधा गुफापर गया, जबकि परिवारवाले अभी लाइनमें लगे हुए थे (जो कि बादमें ३ घण्टे बाद बाहर आये। मैं जैसे ही गुफामें घुसा तो ध्यान आया कि (शायद कहीं पढ़ा था) इसी गुफामें भी कहीं दायें या बायें माताजीकी पिण्डी है और उसके सामने दीपक जलता रहता है, तो उसीको देखनेके लिये मैं दायें-बायें देखने लगा। अभी मैं कुछ दूर ४-५ फीट आगे गया ही था कि मेरी दृष्टि बायीं तरफ चली गयी। कोई ७८ फीटकी दूरीपर गुफाकी दीवारपर एक बहुत ही सुन्दर दिव्य कन्याका चेहरा उभरा जिसके माथेपर माताकी पट्टी-सी बँधी थी या कोई आभूषण था, मुझे दिखायी दी। उस दिव्य कन्याका सिर्फ चेहरा ही गोल-गोल दिखायी दिया। एकदम भूरा चेहरा, तेजसे भरा एक छह-सात सालकी कन्याका मैं बिना डरे, बिना अचम्भित हुए एकटक उसको निहार रहा था और आनन्दमें मग्न था। इतना मग्न कि कन्यारूपी माताको हाथ जोड़कर प्रणाम करनातक भूल गया। आमतौर पर | गुफाके अन्दर समय नहीं लगता, पर उस दिन मेरे पीछे | एक व्यक्ति अपने विकलांग बच्चेको लेकर आ रहा था, जोकि गुफाके मुहानेपर ही फँस गया, जिस कारण मुझे उस कन्याको निहारनेका ज्यादा समय मिल गया। कोई ४०-५० सेकंडतक निहारनेके बाद वह कन्या थोड़ीदायें-बायेंकी तरफ हिली थी। एक बार तो मुझे लगा कि मेरे बायीं तरफ उस गुफामें शायद कोई एक ईंटके बराबर झरोखा है और उसी झरोखेसे बाहरसे कोई कन्या झाँक रही है या उस कन्याके माता या पिता उसको कन्धेपर बिठाकर बाहरसे ही अन्दर गुफाके दर्शन करा रहे हैं। परंतु जब पीछेसे आवाज आयी कि आगे बढ़ो तो मैं आगे बढ़ गया और सम्मोहित-सा हुआ बाहर आकर पहले ये कन्फर्म करने गया कि गुफामें कोई झरोखा तो नहीं है। मैंने पाया कि वहाँ बाहर उस तरफ तो बहुत गहरी खाई है। तो मुझे माताके अस्तित्वपर और विश्वास हो गया। यह सब मात्र १०-१५ मिनटमें ही घटित हुआ। मेरी ४०-४२ सालकी उम्रमें ऐसा एहसास मुझे पहली बार हुआ। आज भी वह दृश्य याद आते ही अजीब-सी शान्ति एवं आनन्द मनमें छा जाता है। आस्तिक मैं शुरूसे हूँ और पाखंडको छोड़ दिया जायतो सनातनधर्ममें मेरी पूरी आस्था है। जैसे कहते हैं कि 'मन चंगा तो कठौतीमें गंगा'। यही बात मुझपर चरितार्थ हुई। माताके बालरूपके दर्शन होना और वह भी उसी गुफामें, यही सिद्ध करता है कि मन शुद्ध होना चाहिये, तनकी शुद्धि कोई मायने नहीं रखती। आस्था तर्कसे परे है। मुझे तो लगता है कि माता अपने हर श्रद्धालुको अवश्य दर्शन देती होंगी, परंतु भोगवादमें फँसा मनुष्य दर्शन करनेमें भी जल्दबाजी करके सिर्फ औपचारिकतामें फँसकर रह जाता है। इसी कारण झूठ, पाखण्ड, दिखावा, अहमभाव, अविश्वास, अश्रद्धा आदिका चश्मा लगाकर उसे माताके दर्शनका लाभ नहीं मिल पाता, अन्यथा, जो शिशुभाव रखकर माँका दर्शन करता है, उसे उन करुणामयी माँकी वात्सल्यराशि कभी दुर्लभ नहीं रहती। जय माताकी !

[ श्रीसुरेन्द्रकुमारजी गर्ग ]



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jay maan vaishnodevee

san 2020 ee0 men maarchake maheenemen laॉkadaaun laganese pahale ham maata vaishnodeveekee yaatraapar gaye the hamaaree buking dilleese thee. mainne 8 vyaktiyonka tikat janavaree 2020 men karaaya tha, us samay bachchonke pepar naheen hue the, jo ki amooman maarchake maheenemen hote hain. maataaka naam lekar mainne tikat buk kara diye. pahala sanyog ye raha ki tikat theek us dinaka buk hua, jab bachchonke pepar khatm hue, yaanee pepar khatm honeke ek din baadakee buking huee. vaise main revaada़eeke guda़iyaanee gaanvase sambandh rakhata hoon .

yah 15-16 maarchakee baat hai. ham subah 10-11 bajeke aasapaas katara pahunche aur hotal buk kiyaa. snaanaadi karake evan khaana khaakar hamane kataraase 15 taareekhako hee dopahar baad trikuta parvatakee chadha़aaee shuroo kee. chalate-chalate thoda़a thaka-se gaye the, par josh kaayam thaa. beechamen arddhakumaareeka pada़aav aata hai. yahaanpar shraddhaalu vishraam karate hain aur pavitr gupha garbhajoonake darshan karate hain. usamen praveshake liye rajistreshanakaraana pada़ta hai aur ek slip lenee pada़tee hai. ek baaramen 250 shraddhaaluonko garbhajoon guphaase nikalaneke liye andar pravesh milata hai. jyaada bheeda़ honeke kaaran us din hamaara nambar naheen aaya tha aur hamen doosare ya teesare dinake liye bola gaya thaa. ham usee raat pahale maataaraaneeke darshanake liye aage chal diye. yahaanse maataaraaneeke bhavanatak jaaneke liye do raaste bane hain. ek to puraanaavaala hee hai, jo saanjhee chhatase hokar jaata hai aur doosara naya hai ham nayevaale se hokar gaye. maataajeeke bhavanapar ham raat 12 bajeke aasapaas pahunche. vahaan pahunchakar chhotee-motee aupachaarikataaen pooree kee. parantu us samay maataakee pindiyontak pahunchaneke liye praakritik gupha khulee naheen thee jab darshanaarthiyonkee sankhya das hajaarase kam ho to ho praakritik guphaaka dvaar khola jaata hai. kahate hain, isee praakritik guphaake dvaarase lekar maataajeekee pindiyontak bhairavanaathaka dhada़ pada़a thaa. is raastepar ghutanontak pavitr jal apane aap upalabdh rahata hai. sankhya adhik honeke kaaran hamen doosaree kritrim guphaase hokar darshan karane pada़e. isake baad der raatako hee ham bhairavanaath baabaake darshan karaneke liye 2-3 kilomeetar aur oopar chadha़e. phir bhairavavaabaake darshan karake vaapaseemen saanjhee chhatavaale maargase hote hue raat 1-2 baje hee vaapas chal diye. subahake 3-4 bajeka samay tha aur thak bhee gaye the, isaliye vahaan 3 ghante vishraam karake vaapas arddhakumaareeke liye nikal pada़e, jo ki raaste men hee pada़ta hai. vahaan 8 baje pahunchakar bina nahaaye - dhoye ho guphaake liye laainamen lag gaye aur maataajeekee kripaase andar bhee pravesh kar gaye, jabaki gat raatriko hamen ek ya do din baad aaneke liye bola gaya tha parantu ek gaardane bola ki abhee subaha-subah bheeda़ kam hai, tum bhee laain men lag jaao. hamane vah slip dikhaayee aur laainamen lag gaye. bheeda़ jyaada thee. mere saath kul 8 yaatree the. do-teen ghante lag jaate hain. nambar aate-aate. main vikalaang honeke kaaran laainasethoda़a hatakar aage badha़aa. parantu kuchh darshanaarthee virodh karane lage to main laain se baahar aakar vaapas apane saamaanake paas aakar baith gayaa. gharavaale laainamen lage rahe. vaise main is guphaase chhah saal pahale gujar chuka thaa. so jyaada tenshan naheen lee aur baahar aakar baith gaya aur parivaaravaalonka intajaar karane lagaa. koee 15 minat baad hee mainne socha guphaamen naheen ja saka to koee baat naheen, arddhakumaaree mandirake andar jaakar (jo ki guphaake oopar dharaatal starapar bana hua hai) maataajeeke darshan kar loon. main andar mandiramen gaya to ek suraksha gaardane apane aap hee mujhe suraksha daravaaje (metal ditektara) se andar jaanekee anumati de dee. main seedha guphaapar gaya, jabaki parivaaravaale abhee laainamen lage hue the (jo ki baadamen 3 ghante baad baahar aaye. main jaise hee guphaamen ghusa to dhyaan aaya ki (shaayad kaheen paढ़a thaa) isee guphaamen bhee kaheen daayen ya baayen maataajeekee pindee hai aur usake saamane deepak jalata rahata hai, to useeko dekhaneke liye main daayen-baayen dekhane lagaa. abhee main kuchh door 4-5 pheet aage gaya hee tha ki meree drishti baayeen taraph chalee gayee. koee 78 pheetakee dooreepar guphaakee deevaarapar ek bahut hee sundar divy kanyaaka chehara ubhara jisake maathepar maataakee pattee-see bandhee thee ya koee aabhooshan tha, mujhe dikhaayee dee. us divy kanyaaka sirph chehara hee gola-gol dikhaayee diyaa. ekadam bhoora chehara, tejase bhara ek chhaha-saat saalakee kanyaaka main bina dare, bina achambhit hue ekatak usako nihaar raha tha aur aanandamen magn thaa. itana magn ki kanyaaroopee maataako haath joda़kar pranaam karanaatak bhool gayaa. aamataur par | guphaake andar samay naheen lagata, par us din mere peechhe | ek vyakti apane vikalaang bachcheko lekar a raha tha, joki guphaake muhaanepar hee phans gaya, jis kaaran mujhe us kanyaako nihaaraneka jyaada samay mil gayaa. koee 40-50 sekandatak nihaaraneke baad vah kanya thoda़eedaayen-baayenkee taraph hilee thee. ek baar to mujhe laga ki mere baayeen taraph us guphaamen shaayad koee ek eentake baraabar jharokha hai aur usee jharokhese baaharase koee kanya jhaank rahee hai ya us kanyaake maata ya pita usako kandhepar bithaakar baaharase hee andar guphaake darshan kara rahe hain. parantu jab peechhese aavaaj aayee ki aage badha़o to main aage badha़ gaya aur sammohita-sa hua baahar aakar pahale ye kanpharm karane gaya ki guphaamen koee jharokha to naheen hai. mainne paaya ki vahaan baahar us taraph to bahut gaharee khaaee hai. to mujhe maataake astitvapar aur vishvaas ho gayaa. yah sab maatr 10-15 minatamen hee ghatit huaa. meree 40-42 saalakee umramen aisa ehasaas mujhe pahalee baar huaa. aaj bhee vah drishy yaad aate hee ajeeba-see shaanti evan aanand manamen chha jaata hai. aastik main shuroose hoon aur paakhandako chhoda़ diya jaayato sanaatanadharmamen meree pooree aastha hai. jaise kahate hain ki 'man changa to kathauteemen gangaa'. yahee baat mujhapar charitaarth huee. maataake baalaroopake darshan hona aur vah bhee usee guphaamen, yahee siddh karata hai ki man shuddh hona chaahiye, tanakee shuddhi koee maayane naheen rakhatee. aastha tarkase pare hai. mujhe to lagata hai ki maata apane har shraddhaaluko avashy darshan detee hongee, parantu bhogavaadamen phansa manushy darshan karanemen bhee jaldabaajee karake sirph aupachaarikataamen phansakar rah jaata hai. isee kaaran jhooth, paakhand, dikhaava, ahamabhaav, avishvaas, ashraddha aadika chashma lagaakar use maataake darshanaka laabh naheen mil paata, anyatha, jo shishubhaav rakhakar maanka darshan karata hai, use un karunaamayee maankee vaatsalyaraashi kabhee durlabh naheen rahatee. jay maataakee !

[ shreesurendrakumaarajee garg ]

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जगत में किसने सुख पाया
जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख
मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना
तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
मुँह फेर जिधर देखु मुझे तू ही नज़र आये
हम छोड़के दर तेरा अब और किधर जाये
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री
दासी की झोली भर दो लाडली श्री राधे॥
मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
फूलों में सज रहे हैं, श्री वृन्दावन
और संग में सज रही है वृषभानु की
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
मुझे रास आ गया है,
तेरे दर पे सर झुकाना
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया ।
राम एक देवता, पुजारी सारी दुनिया ॥
राधिका गोरी से ब्रिज की छोरी से ,
मैया करादे मेरो ब्याह,
मेरा अवगुण भरा शरीर, कहो ना कैसे
कैसे तारोगे प्रभु जी मेरो, प्रभु जी
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
बांके बिहारी की देख छटा,
मेरो मन है गयो लटा पटा।
राधे तु कितनी प्यारी है ॥
तेरे संग में बांके बिहारी कृष्ण
किसी को भांग का नशा है मुझे तेरा नशा है,
भोले ओ शंकर भोले मनवा कभी न डोले,
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
याद में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
राधे तेरे चरणों की अगर धूल जो मिल जाए
सच कहता हू मेरी तकदीर बदल जाए
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
जिनको जिनको सेठ बनाया वो क्या
उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
मैं मिलन की प्यासी धारा
तुम रस के सागर रसिया हो
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
एक दिन वो भोले भंडारी बन कर के ब्रिज की
पारवती भी मना कर ना माने त्रिपुरारी,
राधा ढूंढ रही किसी ने मेरा श्याम देखा
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पीले फूलों की बगिया सुहानी,
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