⮪ All भगवान की कृपा Experiences

माँ दुर्गे ! तेरी जय हो!!

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां सिद्धिः प्रजायते। जगज्जननी महामाया महाशक्तिने अनन्त अनुकम्पाकी

जो अजस्र वर्षा मुझ तुच्छ क्षुद्र जीवपर की है, उसके लिये तो मेरी वाणी मूक ही रहेगी। माँकी कृपासे हृदय ओतप्रोत हो जाय, उसकी अनुकम्पामें प्राण भिन जायँ इससे अधिक क्या चाहिये ? दयामयी सर्वेश्वरी माँने अपनी अगाध अनुकम्पासे, समय-समयपर, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्षरूपमें इस क्षुद्र जीवको अपने वात्सल्यप्रेम एवं अनन्त करुणाका जो परिचय दिया है, उनमेंसे एक घटनाका विवरण 'कल्याण' के सुविज्ञ पाठकोंकी सेवामें अर्पित करती हूँ।

कौन जानता है माँ जगदम्बिका कब, कैसे, किस रूपमें किसपर प्रसन्न हो जाय ? यह तो उसकी अनुकम्पापर ही सर्वथा निर्भर है। कभी-कभी तो वर्षों तपस्या करनेपर भी लोग उसकी कृपाके अधिकारी नहीं हो सकते और कभी वह लीलामयी अपनी अमित अनुकम्पाकी अजस्र स्नेह धारामें निरीह, गत-आश, कंगाल, दरिद्रको थोड़े-से ही विश्वासयुक्त करुण-स्वरसे दीन होकर पुकारनेपर निमेषमात्रमें ही अपना लेती है, उसके नत मस्तकपर अपने सुशीतल वरद करोंको रख देती है। माताकी अनुकम्पासे तुरंत ही सेवकके सारे संकट कट जाते हैं। परंतु यह सब दयामयी जननीकी इच्छापर ही निर्भर है।यह उस समयकी घटना है, जब कि इस तुच्छ जीवको अपनी भगवतीकी आराधना करते हुए ठीक बारह वर्ष पूर्ण होनेको आये थे। मैं सुन चुकी थी कि जगदम्बिका भवानीकी प्रसन्नता प्राप्त करनेके लिये बारह वर्ष अनन्य अविच्छिन्न उपासना होनी चाहिये। परंतु मुझे स्वप्नमें भी यह खयाल नहीं था कि कभी मेरे जैसा तुच्छ जीव भी माता जगदम्बिकाकी प्रसन्नताका पात्र होनेके योग्य बन सकेगा।

एक दिन सन्ध्याकी बात है। मेरे पतिदेव ऑफिससे आते ही कहने लगे—‘आजसे ईस्टरकी छुट्टियाँ हैं। मेरे कई मित्र इसी शामकी गाड़ीसे नाटक देखने नागपुर जा रहे हैं। तुम कहो तो मैं भी उनके साथ एक-दो दिनके लिये घूम आऊँ । चलो, मेरे साथ तुम भी घूम-फिर आओ, मन बहल जायगा ।'

मैं कुछ देर सोचकर बोली- 'आप नागपुर घूम आयें। मैं चन्द्रपुर जाना चाहती हूँ।' यहाँ महाकालीका एक प्रसिद्ध बहुत भारी मन्दिर है। यही मेरी आराध्या देवी हैं (यह स्थान नागपुरमें चाँदा-जिलेके नामसे प्रख्यात है।) और इन्हींकी रम्य मनोहर मूर्तिका चित्रमेरे हृदयपटलपर सदासे धारण रहता आया है। अस्तु । चन्द्रपुर जानेका मेरा निश्चय दृढ़ था। रेलका समय हो चला था। उस समय हमारा निवास काटोल तहसील, जिला नागपुरमें था। काटोलसे एक्सप्रेस-ट्रेनठीक पौने छ बजे छूटती थी और घड़ीमें पाँच बजकर बयालिस मिनट हो चुके थे। रह गये थे केवल तीन मिनट मेरे पतिदेवके मित्रोंने कहा "अब गाड़ी मिलनेको नहीं। स्टेशन सवा मील है और समय रह गया केवल तीन मिनट।' परंतु मेरा तो आज जाना निश्चित था, अतः मैं अपनी धुनमें मस्त थी। मैं बस्तीकी सड़कसे न जाकर रेलकी पटरीसे—जो मेरे घरके पीछेसे गयी थी- स्टेशनकी ओर चल दी। मेरे पतिदेव और उनके अन्यान्य मित्र मुझे लौटानेके आग्रहसे मेरे पीछे-पीछे आ रहे थे और मुझे लौट आनेकी सलाह दे रहे थे। मैं जल्दी जल्दी पैर बढ़ाती हुई सरपट स्टेशनकी ओर बढ़ती जा रही थी। मुझे पीछे आँख फेरनेका भी समय नहीं था। और मेरे साथ ही भागी जा रही थी एक्सप्रेस ट्रेन और मैं एक ही साथ स्टेशन पहुँची। जल्दी-जल्दी टिकट लेकर मैं गाड़ीपर सवार हुई। इतनेमें मेरे पतिदेव और उनके मित्र भी आ पहुँचे। वे सभी मेरे ही डिब्बेमें आ बैठे।

मेरे पतिदेवके एक वकील मित्रने जब यह जाना कि मैं चन्द्रपुर- महाभवानीके दर्शनोंके लिये जा रही हूँ और वहाँ धर्मशाला में ठहरनेका विचार कर रही हूँ तो उन्होंने मेरे आरामके लिये अपने वहींके एक सम्बन्धीको मेरे लिये एक पत्र लिख दिया। मैंने पत्र ले तो लिया, परंतु उसे फाड़कर खिड़कीके बाहर फेंक दिया, यह सोचकर कि बेटी जब पीहर जाती है तो वह अपनी माँके ही घर ठहरती है। वह पुरा-पड़ोसमें किसी अन्यके घर नहीं ठहरती।

रातके तीन बजे थे, जब मैं चन्द्रपुर पहुँची। मेरे साथ एक नौकर था। मेरे पतिदेव नागपुरमें ही उतर गये थे। मैं ताँगा करके महाकालीके मन्दिरमें पहुँची। चैत्रका महीना था और खूब भीड़ थी। चैत्रके महीनेमें वहाँ दूर-दूरके यात्री श्रीमहाकालीके दर्शनोंको आया करते हैं। मैंने पुजारीको कई आवाजें लगायीं, पर किसीने कुछ उत्तर नहीं दिया। चारों ओर यात्रीगण एक-एक चद्दर ओढ़े जमीनपर सो रहे थे। मैं भी मन्दिरके अहातेके ही एकतरफ अपनी गठरी रखकर बैठ गयी और नौकरसे सो जानेको कहा। सोनेके लिये नौकरके बार-बार आग्रह करने पर मैंने अपने निश्चयके अनुसार उससे कह दिया कि 'मैं जबतक देवीजीके दर्शन नहीं खुलेंगे, तबतक नहीं सोऊँगी।' मैं पासकी एक शिलासे टिककर बैठ गयी।

न जाने कब और कैसे मेरी झपकी लग गयी और मैं क्या देखती हूँ कि ठीक मन्दिरकी विपरीत दिशासे भगवती महामाया, महाकाली, नील वर्णा, केश छिटकाये, मुण्डमाला पहने, चतुर्भुजी, हाथमें अग्निसे भरा हुआ लाल-लाल खप्पर लिये-जिसमेंसे विकराल ज्वाला उठ रही थी मेरी ओर आ रही हैं। मैं उठी और ज्यों ही पैर पकड़ने दौड़ी, त्यों ही वे कहने लगीं-'हैं, हैं! यह तो स्वप्न है। तुम जाकर अब जाग्रदवस्थामें ठीक इसी प्रकार मेरे दर्शन करो।'

मेरी नींद उसी क्षण खुली और तेजीसे उठकर जिस ओर मेरे पैर गये मैं 'भवानी भवानी' चिल्लाती हुई दौड़ने लगी। इतनेमें मेरा नौकर भी जागा और 'बाईजी ! बाईजी !! क्या हुआ, क्या हुआ ?' पुकारता हुआ मेरे पीछे भागा। ज्यों-ज्यों मैं आगे सरकती थी, स्वप्नकी वह मूर्ति भी मेरे सामने आगेको बढ़ती जाती थी और मुसकराती जाती थी। मैं उनके पैर पकड़नेको व्याकुल हो रही थी और मूर्ति मुझसे करीब पन्द्रह हाथकी ही दूरीपर आकर रुक जाती थी। मैं पागलकी भाँति कह रही थी- 'देवि ! मुझे तुम्हारा बड़ा भय लग रहा है। मुझपर दया करो और अपने सौम्य स्वरूपके दर्शन कराओ। आपके इस विकट स्वरूपको देखकर मेरा हृदय काँप रहा है।' इस समय मन्दिरमें सोये हुए कुछ यात्री भी जाग गये और 'पागल, पागल' कहकर मेरे पीछे दौड़ने लगे। जिस दिशामें मैं भाग रही थी, थोड़ी दूरपर ही गहरे पानीकी बावली थी। इसलिये उन्हें आशंका हुई कि कहीं जाकर वह बावलीमें न गिर पड़े। इसी समय एक मोटी-सी स्त्रीने आकर मेरा हाथ पकड़ लिया और वह कहने लगी 'बाईजी! तुम कौन हो और कहाँसे आयी हो ? यहाँ भवानी नहीं हैं। वे तो मन्दिरमें सो रही हैं। तुमनेसपना देखा है। तुम होशमें आ जाओ।' मैंने झल्लाकर -'खूब होशमें हूँ। तुम मुझे इसी दम छोड़ दो। कहा-' वह देखो, मेरी भगवती बुला रही हैं।'

वहाँका पुजारी, इतनेमें ही, हल्ला सुनकर हाथमें एक लालटेन लिये आया और उसकी रोशनीमें मेरा मुख देखकर सहानुभूतिके शब्दोंमें कहने लगा-'बस, बस, ठीक यही बाई है। बाईजी! चलो, अभी मन्दिरके पट खोलकर तुम्हें दर्शन कराता हूँ। स्वप्नमें भगवतीने मुझे तुम्हें दर्शन कराने की आज्ञा दी है और मैंने स्वप्नमें तुम्हें ही देखा है।'

मेरे सामनेकी स्वप्नवाली वह मूर्ति अब अदृश्य हो चुकी थी। मैंने आँखें फाड़-फाड़कर चारों ओर देखा, परंतु वहाँ अब अन्धकारके सिवा कुछ नहीं था। बहुत से यात्री भी जो मुझे घेरे खड़े थे, अब पुजारीके कहने से अपने-अपने स्थानोंको लौटने लगे और अपनी-अपनी बुद्धिके अनुसार यह कल्पना करने लगे कि 'यह स्वप्न देखकर डर गयी है।'

उसी क्षण जाकर मैंने बावलीमें स्नान किया और पुजारीके साथ मन्दिरमें जाकर उस दिव्य तेजोमयी पाषाण-प्रतिमाका सानन्द दर्शनकर अपनेको कृतार्थकिया। मेरा हृदय पुलकित हो गया। रोम-रोमसे माँके चरणोंमें साष्टांग प्रणाम करते हुए मैंने आर्त्त-भावसे कहा—'माँ! दयामयी माँ!! तुमने मुझे अपना दिव्य दर्शन देकर सब प्रकार कृतार्थ किया। अब मेरी एक ही लालसा है कि मुझे भवसागरसे पार करके सदाके लिये शरणमें ले लो।'

उसी समय भगवतीकी पाषाण-प्रतिमासे गीताके इस श्लोककी मन्द ध्वनि सुनायी पड़ी

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥

मेरे हृदयमें एक विद्युत्-प्रकाश-सा छिटक गया और ऐसा प्रतीत हुआ कि मानों भगवती महामाया जगज्जननी मुझे अब भगवान् त्रिभुवनमोहन योगेश्वर श्रीकृष्णकी उपासना करनेका आदेश दे रही हैं।

पाठक ! उसी दिनसे यह शरीर भगवान् श्रीकृष्णके चरणोंमें अर्पित हो चुका है, यह मन भी और सर्वस्व भी ! यह सब कल्याणकारिणी महामायाकी कृपाका ही फल है। आदेश उसीका था, उसीके आदेश से ऐसा हुआ और अब इसे निभाना भी उसीके हाथमें है। [ श्री 'अज्ञात' ]



You may also like these:

Real Life Experience प्रभु दर्शन


maan durge ! teree jay ho!!

yaistu bhaktya smrita noonan teshaan siddhih prajaayate. jagajjananee mahaamaaya mahaashaktine anant anukampaakee

jo ajasr varsha mujh tuchchh kshudr jeevapar kee hai, usake liye to meree vaanee mook hee rahegee. maankee kripaase hriday otaprot ho jaay, usakee anukampaamen praan bhin jaayan isase adhik kya chaahiye ? dayaamayee sarveshvaree maanne apanee agaadh anukampaase, samaya-samayapar, pratyaksh athava apratyaksharoopamen is kshudr jeevako apane vaatsalyaprem evan anant karunaaka jo parichay diya hai, unamense ek ghatanaaka vivaran 'kalyaana' ke suvijn paathakonkee sevaamen arpit karatee hoon.

kaun jaanata hai maan jagadambika kab, kaise, kis roopamen kisapar prasann ho jaay ? yah to usakee anukampaapar hee sarvatha nirbhar hai. kabhee-kabhee to varshon tapasya karanepar bhee log usakee kripaake adhikaaree naheen ho sakate aur kabhee vah leelaamayee apanee amit anukampaakee ajasr sneh dhaaraamen nireeh, gata-aash, kangaal, daridrako thoda़e-se hee vishvaasayukt karuna-svarase deen hokar pukaaranepar nimeshamaatramen hee apana letee hai, usake nat mastakapar apane susheetal varad karonko rakh detee hai. maataakee anukampaase turant hee sevakake saare sankat kat jaate hain. parantu yah sab dayaamayee jananeekee ichchhaapar hee nirbhar hai.yah us samayakee ghatana hai, jab ki is tuchchh jeevako apanee bhagavateekee aaraadhana karate hue theek baarah varsh poorn honeko aaye the. main sun chukee thee ki jagadambika bhavaaneekee prasannata praapt karaneke liye baarah varsh anany avichchhinn upaasana honee chaahiye. parantu mujhe svapnamen bhee yah khayaal naheen tha ki kabhee mere jaisa tuchchh jeev bhee maata jagadambikaakee prasannataaka paatr honeke yogy ban sakegaa.

ek din sandhyaakee baat hai. mere patidev ऑphisase aate hee kahane lage—‘aajase eestarakee chhuttiyaan hain. mere kaee mitr isee shaamakee gaada़eese naatak dekhane naagapur ja rahe hain. tum kaho to main bhee unake saath eka-do dinake liye ghoom aaoon . chalo, mere saath tum bhee ghooma-phir aao, man bahal jaayaga .'

main kuchh der sochakar bolee- 'aap naagapur ghoom aayen. main chandrapur jaana chaahatee hoon.' yahaan mahaakaaleeka ek prasiddh bahut bhaaree mandir hai. yahee meree aaraadhya devee hain (yah sthaan naagapuramen chaandaa-jileke naamase prakhyaat hai.) aur inheenkee ramy manohar moortika chitramere hridayapatalapar sadaase dhaaran rahata aaya hai. astu . chandrapur jaaneka mera nishchay dridha़ thaa. relaka samay ho chala thaa. us samay hamaara nivaas kaatol tahaseel, jila naagapuramen thaa. kaatolase eksapresa-trenatheek paune chh baje chhootatee thee aur ghada़eemen paanch bajakar bayaalis minat ho chuke the. rah gaye the keval teen minat mere patidevake mitronne kaha "ab gaada़ee milaneko naheen. steshan sava meel hai aur samay rah gaya keval teen minata.' parantu mera to aaj jaana nishchit tha, atah main apanee dhunamen mast thee. main basteekee sada़kase n jaakar relakee patareese—jo mere gharake peechhese gayee thee- steshanakee or chal dee. mere patidev aur unake anyaany mitr mujhe lautaaneke aagrahase mere peechhe-peechhe a rahe the aur mujhe laut aanekee salaah de rahe the. main jaldee jaldee pair badha़aatee huee sarapat steshanakee or badha़tee ja rahee thee. mujhe peechhe aankh pheraneka bhee samay naheen thaa. aur mere saath hee bhaagee ja rahee thee eksapres tren aur main ek hee saath steshan pahunchee. jaldee-jaldee tikat lekar main gaada़eepar savaar huee. itanemen mere patidev aur unake mitr bhee a pahunche. ve sabhee mere hee dibbemen a baithe.

mere patidevake ek vakeel mitrane jab yah jaana ki main chandrapura- mahaabhavaaneeke darshanonke liye ja rahee hoon aur vahaan dharmashaala men thaharaneka vichaar kar rahee hoon to unhonne mere aaraamake liye apane vaheenke ek sambandheeko mere liye ek patr likh diyaa. mainne patr le to liya, parantu use phaada़kar khida़keeke baahar phenk diya, yah sochakar ki betee jab peehar jaatee hai to vah apanee maanke hee ghar thaharatee hai. vah puraa-pada़osamen kisee anyake ghar naheen thaharatee.

raatake teen baje the, jab main chandrapur pahunchee. mere saath ek naukar thaa. mere patidev naagapuramen hee utar gaye the. main taanga karake mahaakaaleeke mandiramen pahunchee. chaitraka maheena tha aur khoob bheeda़ thee. chaitrake maheenemen vahaan doora-doorake yaatree shreemahaakaaleeke darshanonko aaya karate hain. mainne pujaareeko kaee aavaajen lagaayeen, par kiseene kuchh uttar naheen diyaa. chaaron or yaatreegan eka-ek chaddar odha़e jameenapar so rahe the. main bhee mandirake ahaateke hee ekataraph apanee gatharee rakhakar baith gayee aur naukarase so jaaneko kahaa. soneke liye naukarake baara-baar aagrah karane par mainne apane nishchayake anusaar usase kah diya ki 'main jabatak deveejeeke darshan naheen khulenge, tabatak naheen sooongee.' main paasakee ek shilaase tikakar baith gayee.

n jaane kab aur kaise meree jhapakee lag gayee aur main kya dekhatee hoon ki theek mandirakee vipareet dishaase bhagavatee mahaamaaya, mahaakaalee, neel varna, kesh chhitakaaye, mundamaala pahane, chaturbhujee, haathamen agnise bhara hua laala-laal khappar liye-jisamense vikaraal jvaala uth rahee thee meree or a rahee hain. main uthee aur jyon hee pair pakada़ne dauda़ee, tyon hee ve kahane lageen-'hain, hain! yah to svapn hai. tum jaakar ab jaagradavasthaamen theek isee prakaar mere darshan karo.'

meree neend usee kshan khulee aur tejeese uthakar jis or mere pair gaye main 'bhavaanee bhavaanee' chillaatee huee dauda़ne lagee. itanemen mera naukar bhee jaaga aur 'baaeejee ! baaeejee !! kya hua, kya hua ?' pukaarata hua mere peechhe bhaagaa. jyon-jyon main aage sarakatee thee, svapnakee vah moorti bhee mere saamane aageko baढ़tee jaatee thee aur musakaraatee jaatee thee. main unake pair pakada़neko vyaakul ho rahee thee aur moorti mujhase kareeb pandrah haathakee hee dooreepar aakar ruk jaatee thee. main paagalakee bhaanti kah rahee thee- 'devi ! mujhe tumhaara bada़a bhay lag raha hai. mujhapar daya karo aur apane saumy svaroopake darshan karaao. aapake is vikat svaroopako dekhakar mera hriday kaanp raha hai.' is samay mandiramen soye hue kuchh yaatree bhee jaag gaye aur 'paagal, paagala' kahakar mere peechhe dauda़ne lage. jis dishaamen main bhaag rahee thee, thoda़ee doorapar hee gahare paaneekee baavalee thee. isaliye unhen aashanka huee ki kaheen jaakar vah baavaleemen n gir pada़e. isee samay ek motee-see streene aakar mera haath pakada़ liya aur vah kahane lagee 'baaeejee! tum kaun ho aur kahaanse aayee ho ? yahaan bhavaanee naheen hain. ve to mandiramen so rahee hain. tumanesapana dekha hai. tum hoshamen a jaao.' mainne jhallaakar -'khoob hoshamen hoon. tum mujhe isee dam chhoda़ do. kahaa-' vah dekho, meree bhagavatee bula rahee hain.'

vahaanka pujaaree, itanemen hee, halla sunakar haathamen ek laalaten liye aaya aur usakee roshaneemen mera mukh dekhakar sahaanubhootike shabdonmen kahane lagaa-'bas, bas, theek yahee baaee hai. baaeejee! chalo, abhee mandirake pat kholakar tumhen darshan karaata hoon. svapnamen bhagavateene mujhe tumhen darshan karaane kee aajna dee hai aur mainne svapnamen tumhen hee dekha hai.'

mere saamanekee svapnavaalee vah moorti ab adrishy ho chukee thee. mainne aankhen phaada़-phaada़kar chaaron or dekha, parantu vahaan ab andhakaarake siva kuchh naheen thaa. bahut se yaatree bhee jo mujhe ghere khada़e the, ab pujaareeke kahane se apane-apane sthaanonko lautane lage aur apanee-apanee buddhike anusaar yah kalpana karane lage ki 'yah svapn dekhakar dar gayee hai.'

usee kshan jaakar mainne baavaleemen snaan kiya aur pujaareeke saath mandiramen jaakar us divy tejomayee paashaana-pratimaaka saanand darshanakar apaneko kritaarthakiyaa. mera hriday pulakit ho gayaa. roma-romase maanke charanonmen saashtaang pranaam karate hue mainne aartta-bhaavase kahaa—'maan! dayaamayee maan!! tumane mujhe apana divy darshan dekar sab prakaar kritaarth kiyaa. ab meree ek hee laalasa hai ki mujhe bhavasaagarase paar karake sadaake liye sharanamen le lo.'

usee samay bhagavateekee paashaana-pratimaase geetaake is shlokakee mand dhvani sunaayee pada़ee

yatr yogeshvarah krishno yatr paartho dhanurdharah . tatr shreervijayo bhootirdhruva neetirmatirmam ..

mere hridayamen ek vidyut-prakaasha-sa chhitak gaya aur aisa prateet hua ki maanon bhagavatee mahaamaaya jagajjananee mujhe ab bhagavaan tribhuvanamohan yogeshvar shreekrishnakee upaasana karaneka aadesh de rahee hain.

paathak ! usee dinase yah shareer bhagavaan shreekrishnake charanonmen arpit ho chuka hai, yah man bhee aur sarvasv bhee ! yah sab kalyaanakaarinee mahaamaayaakee kripaaka hee phal hai. aadesh useeka tha, useeke aadesh se aisa hua aur ab ise nibhaana bhee useeke haathamen hai. [ shree 'ajnaata' ]

192 Views





Bhajan Lyrics View All

मेरा आपकी कृपा से,
सब काम हो रहा है
मीठी मीठी मेरे सांवरे की मुरली बाजे,
होकर श्याम की दीवानी राधा रानी नाचे
राधा नाम की लगाई फुलवारी, के पत्ता
के पत्ता पत्ता श्याम बोलता, के पत्ता
तुम रूठे रहो मोहन,
हम तुमको मन लेंगे
तेरे दर की भीख से है,
मेरा आज तक गुज़ारा
इक तारा वाजदा जी हर दम गोविन्द गोविन्द
जग ताने देंदा ए, तै मैनु कोई फरक नहीं
ਮੇਰੇ ਕਰਮਾਂ ਵੱਲ ਨਾ ਵੇਖਿਓ ਜੀ,
ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਸ਼ਾਰਮਾਈ ਹੋਈ ਆਂ
बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
दुनिया का बन कर देख लिया, श्यामा का बन
राधा नाम में कितनी शक्ति है, इस राह पर
कारे से लाल बनाए गयी रे,
गोरी बरसाने वारी
जगत में किसने सुख पाया
जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख
नी मैं दूध काहे नाल रिडका चाटी चो
लै गया नन्द किशोर लै गया,
करदो करदो बेडा पार, राधे अलबेली सरकार।
राधे अलबेली सरकार, राधे अलबेली सरकार॥
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई
सांवरिया है सेठ ,मेरी राधा जी सेठानी
यह तो सारी दुनिया जाने है
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
याद में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही
श्याम बंसी ना बुल्लां उत्ते रख अड़ेया
तेरी बंसी पवाडे पाए लख अड़ेया ।
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार
सब हो गए भव से पार, लेकर नाम तेरा
नाम तेरा हरि नाम तेरा, नाम तेरा हरि नाम
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम
जग में साचे तेरो नाम । हे राम...
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।
सारी दुनियां है दीवानी, राधा रानी आप
कौन है, जिस पर नहीं है, मेहरबानी आप की
ज़री की पगड़ी बाँधे, सुंदर आँखों वाला,
कितना सुंदर लागे बिहारी कितना लागे
Ye Saare Khel Tumhare Hai Jag
Kahta Khel Naseebo Ka
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
हम हाथ उठाकर कह देंगे हम हो गये राधा
राधा राधा राधा राधा
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार

New Bhajan Lyrics View All

सच्चा भरोसा तेरी, बिगड़ी बात बदलेगा,
आ श्याम शरण में, बाबा हर हालात बदलेगा,
भक्तों की भीड़ है अपार भोले जी के
भोले जी के मंदिर में शंकर जी के मंदिर
राम तुम्हारा नाम सुखों का सार हुआ,
राम लहर में जो डूबा बस वो ही पार हुआ...
हो गई रे बदनाम सांवरियां तेरे लिये,
हो गई रे बदनाम सांवरियां तेरे लिये...
अरे नर काहे पे करत गुमान, कोई नहीं अमर
कोई नहीं अमर रहो दुनिया में, कोई नहीं