(१)
कुएँ में प्राण-रक्षा
हमारे गाँवमें घरमें ही भगवान् श्रीकृष्णजीका मन्दिर है। पुष्टिमार्गके नियमके अनुसार वहाँ श्रीठाकुरजीकीसेवा नित्यप्रति होती थी। लगभग पचपन वर्षपूर्व सात वर्षकी आयुमें ही मेरा 'ब्रह्मसम्बन्ध' हो गया था। मेरे बालमस्तिष्कपर मेरी माताजीद्वारा यह प्रभाव डाल दिया गया था कि नित्य अष्टाक्षरमन्त्र 'श्रीकृष्णः शरणंमम' का जप करनेसे हर प्रकारका कष्ट दूर हो जाता है। मैं सात वर्षकी आयुसे ही नित्य प्रातः काल श्रीठाकुरजीके लिये फूल चुनकर लाता था, जिससे उनका श्रृंगार होता था। सन् १९५० ई०की घटना है। भाद्रकृष्णपक्ष था। गाँवमें कालरा फैला हुआ था। मैं नित्यकी तरह अष्टाक्षरमन्त्रका जप करते हुए डोलची लेकर फुलवारीसे फूल चुननेके लिये चला अमावास्याकी काली अँधेरी रात थी, प्रातः के ४ बज रहे थे; गाँवकी गलियोंमें सन्नाटा छाया था। किसी-किसी घरसे बच्चोंके रोनेकी आवाज आ रही थी। फुलवारी गाँवसे आधा किलोमीटर दूर एक तालाबके समीप थी। वहाँ प्राइमरी पाठशाला एवं शंकरजीका मन्दिर आज भी है। वहींपर लाहौरी ईंटसे बना हुआ एक बहुत बड़ा-सा कुआँ भी है उस दिन मुझे फुलवारीसे फूल नहीं मिले। सम्भवतः मन्दिरके पुजारीने पहले ही तोड़ लिये थे। सर्प, बिच्छू आदिके इरसे मैं अनवरत 'श्रीकृष्णः शरणं मम' का जप बोल-बोलकर किये जा रहा था। चारों ओर सन्नाटा था मुझे चिन्ता हुई कि आज फूलके अभाव में श्रीठाकुरजीका श्रृंगार नहीं हो पायेगा। एक कनेरका पुराना पेड़ उस कुऍके किनारे था मुझे ऐसा लगा कि सम्भवतः उसपर कनेरके पुष्प हैं। मैं कन्धेपर डोलची लटकाये कनेरके पेड़ पर चढ़ गया। ऊपरकी डालसे पन्द्रह-बीस फूल ही तोड़ पाया था कि पैरके नीचेकी डाल टूट गयी। मैं जलसे भरे कुएँ में गिर गया। उसके बाद मुझे याद नहीं कि क्या हुआ जब होश आया तो देखा कि मेरी छातीमें रस्सी बँधी थी, मुझे खींचकर बाहर निकाला गया था। सैकड़ों लोग जमा थे, हमारे घरके लोग रो रहे थे। रस्सी खुलते ही मैं तेजीसे गाँवकी ओर भागा, यह कहते हुए कि आज ठाकुरजीकी पूजा नहीं हुई होगी। अब सवेरा हो गया था। सूरजकी रोशनी पेड़ोंकी फुनगीपर पड़ रही थी। कुएँमें गिरनेके करीब एक घंटे बाद मैं जलसे बाहर निकाला गया था।lगाँव के लोग कह रहे थे कि मेरे कुएँ में गिरनेके बाद एक यादवकी लड़की; जिसका मकान समीप था, जल भरनेके लिये उसी कुएँपर आयी। उस समय कुएँका जल हिलोरें ले रहा था। जब मुझे जलने ऊपरकी और फेंका होगा तो उसने अष्टाक्षरमन्त्रका उच्चारण सुना। ऐसा वह स्वयं बतला रही थी। उसने चिल्लाना शुरू किया कि कोई कुएँमें गिर गया है। धीरे-धीरे भीड़ जमा होने लगी। अब सवेरा भी हो रहा था। पुजारी भी वहीं था। कुएँ में कौन उतरे ? उसमें सर्प थे। अचानक एक व्यक्ति अपने किसी परिवारके सदस्यकी मिट्टी गंगा प्रवाहित करके बक्सरसे आ रहे थे। वे कुएँमें कूद गये। वे तैरना जानते थे। उत्प्लावन बलके कारण जब मैं पुनः नीचेसे ऊपर आया तो उन्होंने मुझे पकड़ लिया। मन्त्रका जप अभी भी चल रहा था। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मैं पीले वस्त्र पहनी हुई किसी महिलाको गोद सो रहा हूँ। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। ऊपरका शोर सुनकर मैं सोच रहा था कि ये लोग क्यों चिल्ला रहे हैं! इतनी देरतक जलमें रहनेके बाद भी न तो मैंने एक घूँट पानी पीया और न कहीं मुझे चोट ही आयी थी। लोग कहते हैं कि गाँवमें उस तिथिके बाद कोई भी व्यक्ति कालरासे नहीं भरा महामारी उसी दिनसे समाप्त हो गयी।
साक्षात् श्रीठाकुरजीने मेरी रक्षा की थी। तबसे आजतक मैं अष्टाक्षरमन्त्रका जप अहर्निश करता हूँ। आज भी श्रीठाकुरजीकी सेवा मेरे घरमें होती है।
(२)
कारागृहसे मुक्ति
यह घटना सन् १९६३ ई०के जुलाई माहकी है ।। मैं बी०एच०यू० में बी०एससी० पार्ट-१ में एडमिशन लेकर गाँव लौट रहा था। रात्रिके दस बज रहे थे। मैं मुगलसराय यससे आ गया इन्क्वायरीसे मालूम हुआ कि पैंसेजर ट्रेन डुमराव के लिये साढ़े तीन बजे मिलेगी जब टिकट खिड़की पर गया तो बाबूने कहा कि टिकट रात्रि बारहबजेके बाद मिलेगा। मेरी जेबमें कुल दस रुपये थे। मैंने ९ रुपये टिकटके लिये रख लिया। भूख लगी थी, अतः एक रुपयेके मोतीचूरके लड्डू खरीदे और खाकर पानी पिया। अभी चूँकि टिकट मिलनेमें दो घंटेका समय था, अतः एक नम्बर प्लेटफार्मपर ही एक बेंचपर बैठकर मानसिक जप 'श्रीकृष्णः शरणं मम' करने लगा। मुझे कब नींद आ गयी, याद नहीं में बैठे-बैठे सो गया।
मुझे अचानक किसीने झकझोरकर जगाया-'ऐ उठो, टिकट दिखाओ।' मैं हड़बड़ाकर उठा। मैंने देखा काले कोट पहने तीन-चार टीटी और एक सिपाही मेरे पास खड़े हैं।
'सुनता नहीं क्या, कहाँसे आ रहे हो ?' मैं बी०एच०यू० में बी०एस-सी पार्ट में एडमिशन
लेकर आ रहा हूँ। मुझे डुमराव जाना है। टिकट घरके बाबूने कहा है कि टिकट १२ बजेके बाद मिलेगा। यहाँ तो मैं अभी-अभी बैठा हूँ।
एक टीटीने कहा-सच बोलो, नहीं तो जेल जाना पड़ेगा। मैं सच बोल रहा हूँ सर, मैं ईमरानका रहनेवाला हूँ मुझे अपने गाँव जाना है।
'अच्छी बात है' इतना कहकर टीटीने रसीद काटी और कहा- ४२ रुपये १० पैसे जल्दी निकालो।
मुझे माताजीकी बात याद आ गयी। माताजी हमलोगोंसे यही कहा करती थीं कि जब कभी किसी मुसीबतमें पड़ो तो 'श्रीकृष्णः शरणं मम' इसका जप शुरू कर दो।
इसी मन्त्रके प्रभावसे एक बार कुएँ में गिरनेके बाद भी मैं बच गया था। मुझे याद आ गया। मैं रोता जा रहा था, मन्त्र बोलता जा रहा था मुझे डर हो गया था कि अब मुझे जेल जाना ही पड़ेगा।
उस टीटीने कहा, कॉन्स्टेबल इस लड़के के हाथमें हथकड़ी डालो।
कॉन्स्टेबल- सर, यह एक विद्यार्थी है, भागकरकहीं नहीं जायगा, ऐसे ही ले चलते हैं। हम तो साथ रहेंगे ही। भागकर कहाँतक जायगा।
और भी बिना टिकटवाले व्यक्ति थे। हम मजिस्ट्रेट चेकिंगमें पकड़े गये थे। सभी लोगोंको एक हॉलमें बैठा दिया गया। जो चार्ज जमा कर सके, उन्हें छोड़ दिया गया और जिनके पास उतने रुपये नहीं थे, उन्हें जेल भेजा गया। मैं उस हॉलकी खिड़कीके पास बैठा रो रहा था। मन्त्रका जप बोल-बोलकर कर रहा था। अचानक एक ४०-४५ वर्षके सज्जन उस खिड़कीके पास आये। उन्होंने मुझसे कहा- 'क्यों रो रहे हो, बच्चे ?'
साहब, कल बी०एच०यू० में बी०एससी० में नाम लिखाकर गाँव जा रहा था। इन लोगोंने पकड़ लिया। ४२ रुपये माँग रहे हैं, मेरे पास इतने रुपये नहीं हैं। अब लगता है जेल जाना ही पड़ेगा।
उन सज्जन पुरुषने कहा- सिपाहीजी, दरवाजा खोलिये। मैं भी रेलवेका कर्मचारी हूँ। मुझे चार्ज जमा करना है। वहाँपर वर्तमान सिपाहीने गेटका ताला खोल दिया।
वे सज्जन अन्दर आये और कहा- चलो मेरे साथ, हम अभी बात करते हैं।
मैं उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। वे एक टेबुलके पास आकर खड़े हो गये। उन्होंने कहा- 'साहब! कितना चार्ज देना है। उसने नाम पूछकर रजिस्टर देखा और कहा- 'सर! बयालीस रुपये दस पैसे।'
उन सज्जनने अपनी जेबसे ४२ रुपये १० पैसे जमा इ कर दिये और रसीद लेकर बाहर आ गये। उनकी सज्जनतासे हमारा गला भर आया। उन्होंने बुकिंग आफिसमें जाकर डुमरावका टिकट लेकर मुझे दिया और मुझे तूफान एक्सप्रेसमें बैठा दिया। मैंने झुक करके उनके चरणस्पर्श किये। मेरा मानना है कि उन सज्जनके रूपमें भगवान् श्रीकृष्णने ही मेरी मदद की और जेल जानेसे बचा लिया।
(1)
kuen men praana-rakshaa
hamaare gaanvamen gharamen hee bhagavaan shreekrishnajeeka mandir hai. pushtimaargake niyamake anusaar vahaan shreethaakurajeekeeseva nityaprati hotee thee. lagabhag pachapan varshapoorv saat varshakee aayumen hee mera 'brahmasambandha' ho gaya thaa. mere baalamastishkapar meree maataajeedvaara yah prabhaav daal diya gaya tha ki nity ashtaaksharamantr 'shreekrishnah sharananmama' ka jap karanese har prakaaraka kasht door ho jaata hai. main saat varshakee aayuse hee nity praatah kaal shreethaakurajeeke liye phool chunakar laata tha, jisase unaka shrringaar hota thaa. san 1950 ee0kee ghatana hai. bhaadrakrishnapaksh thaa. gaanvamen kaalara phaila hua thaa. main nityakee tarah ashtaaksharamantraka jap karate hue dolachee lekar phulavaareese phool chunaneke liye chala amaavaasyaakee kaalee andheree raat thee, praatah ke 4 baj rahe the; gaanvakee galiyonmen sannaata chhaaya thaa. kisee-kisee gharase bachchonke ronekee aavaaj a rahee thee. phulavaaree gaanvase aadha kilomeetar door ek taalaabake sameep thee. vahaan praaimaree paathashaala evan shankarajeeka mandir aaj bhee hai. vaheenpar laahauree eentase bana hua ek bahut bada़aa-sa kuaan bhee hai us din mujhe phulavaareese phool naheen mile. sambhavatah mandirake pujaareene pahale hee toda़ liye the. sarp, bichchhoo aadike irase main anavarat 'shreekrishnah sharanan mama' ka jap bola-bolakar kiye ja raha thaa. chaaron or sannaata tha mujhe chinta huee ki aaj phoolake abhaav men shreethaakurajeeka shrringaar naheen ho paayegaa. ek kaneraka puraana peड़ us kuऍke kinaare tha mujhe aisa laga ki sambhavatah usapar kanerake pushp hain. main kandhepar dolachee latakaaye kanerake peda़ par chadha़ gayaa. ooparakee daalase pandraha-bees phool hee toda़ paaya tha ki pairake neechekee daal toot gayee. main jalase bhare kuen men gir gayaa. usake baad mujhe yaad naheen ki kya hua jab hosh aaya to dekha ki meree chhaateemen rassee bandhee thee, mujhe kheenchakar baahar nikaala gaya thaa. saikada़on log jama the, hamaare gharake log ro rahe the. rassee khulate hee main tejeese gaanvakee or bhaaga, yah kahate hue ki aaj thaakurajeekee pooja naheen huee hogee. ab savera ho gaya thaa. soorajakee roshanee peda़onkee phunageepar pada़ rahee thee. kuenmen giraneke kareeb ek ghante baad main jalase baahar nikaala gaya thaa.lgaanv ke log kah rahe the ki mere kuen men giraneke baad ek yaadavakee lada़kee; jisaka makaan sameep tha, jal bharaneke liye usee kuenpar aayee. us samay kuenka jal hiloren le raha thaa. jab mujhe jalane ooparakee aur phenka hoga to usane ashtaaksharamantraka uchchaaran sunaa. aisa vah svayan batala rahee thee. usane chillaana shuroo kiya ki koee kuenmen gir gaya hai. dheere-dheere bheeda़ jama hone lagee. ab savera bhee ho raha thaa. pujaaree bhee vaheen thaa. kuen men kaun utare ? usamen sarp the. achaanak ek vyakti apane kisee parivaarake sadasyakee mittee ganga pravaahit karake baksarase a rahe the. ve kuenmen kood gaye. ve tairana jaanate the. utplaavan balake kaaran jab main punah neechese oopar aaya to unhonne mujhe pakada़ liyaa. mantraka jap abhee bhee chal raha thaa. mujhe aisa mahasoos ho raha tha ki main peele vastr pahanee huee kisee mahilaako god so raha hoon. mujhe bahut achchha lag raha thaa. ooparaka shor sunakar main soch raha tha ki ye log kyon chilla rahe hain! itanee deratak jalamen rahaneke baad bhee n to mainne ek ghoont paanee peeya aur n kaheen mujhe chot hee aayee thee. log kahate hain ki gaanvamen us tithike baad koee bhee vyakti kaalaraase naheen bhara mahaamaaree usee dinase samaapt ho gayee.
saakshaat shreethaakurajeene meree raksha kee thee. tabase aajatak main ashtaaksharamantraka jap aharnish karata hoon. aaj bhee shreethaakurajeekee seva mere gharamen hotee hai.
(2)
kaaraagrihase mukti
yah ghatana san 1963 ee0ke julaaee maahakee hai .. main bee0echa0yoo0 men bee0esasee0 paarta-1 men edamishan lekar gaanv laut raha thaa. raatrike das baj rahe the. main mugalasaraay yasase a gaya inkvaayareese maaloom hua ki painsejar tren dumaraav ke liye saadha़e teen baje milegee jab tikat khida़kee par gaya to baaboone kaha ki tikat raatri baarahabajeke baad milegaa. meree jebamen kul das rupaye the. mainne 9 rupaye tikatake liye rakh liyaa. bhookh lagee thee, atah ek rupayeke moteechoorake laddoo khareede aur khaakar paanee piyaa. abhee choonki tikat milanemen do ghanteka samay tha, atah ek nambar pletaphaarmapar hee ek benchapar baithakar maanasik jap 'shreekrishnah sharanan mama' karane lagaa. mujhe kab neend a gayee, yaad naheen men baithe-baithe so gayaa.
mujhe achaanak kiseene jhakajhorakar jagaayaa-'ai utho, tikat dikhaao.' main hada़bada़aakar uthaa. mainne dekha kaale kot pahane teena-chaar teetee aur ek sipaahee mere paas khada़e hain.
'sunata naheen kya, kahaanse a rahe ho ?' main bee0echa0yoo0 men bee0esa-see paart men edamishana
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mujhe maataajeekee baat yaad a gayee. maataajee hamalogonse yahee kaha karatee theen ki jab kabhee kisee museebatamen pada़o to 'shreekrishnah sharanan mama' isaka jap shuroo kar do.
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kaॉnstebala- sar, yah ek vidyaarthee hai, bhaagakarakaheen naheen jaayaga, aise hee le chalate hain. ham to saath rahenge hee. bhaagakar kahaantak jaayagaa.
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ve sajjan andar aaye aur kahaa- chalo mere saath, ham abhee baat karate hain.
main unake peechhe-peechhe chal pada़aa. ve ek tebulake paas aakar khada़e ho gaye. unhonne kahaa- 'saahaba! kitana chaarj dena hai. usane naam poochhakar rajistar dekha aur kahaa- 'sara! bayaalees rupaye das paise.'
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