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गोपालसहस्रनामके पाठसे कृपानुभूति

मेरे प्रपितामहको आजसे लगभग १५० वर्ष पूर्व अनन्त श्रीविभूषित महाराज श्रीकृष्णदासजीने 'गोपाल सहस्रनाम' के नित्यपाठकी आज्ञा इस आशीर्वादके साथ प्रदान की थी कि जबतक तुम्हारे परिवार में गोपालसहस्रनामका पाठ होता रहेगा, जन-धनका कभी अभाव नहीं होगा और गोपालजीकी कृपा बरसती रहेगी। प्रपितामह और पितामहके अनेक संस्मरण हैं, जिनमें गोपालजीकी कृपा प्रत्यक्ष प्रकट होती है। पूज्य पितामहकी प्रेरणासे मैं भी श्रीगोपालसहस्रनामका नित्य पाठ करता हूँ। श्रीकृष्णजन्माष्टमी एवं अक्षयतृतीयापर ब्राह्मणोंद्वारा १०८ पाठ कराने औरसहस्रनामावलीसे हवन करानेका सदैव प्रयत्न रहता है। गोपालजीकी कृपासे पूरा परिवार प्रसन्न रहता है।

गोपालजीकी कृपाकी अनुभूति समस्याओंसे भरे संसारमें नित्य ही किसी-न-किसी रूपमें होती रहती है, किंतु एक घटनाका हम विशेष उल्लेख करना चाहते हैं।

मेरे मकानके ऊपरसे बिजलीकी हाईटेन्शनलाइन गयी थी। उसे हटवानेके लिये प्रारम्भमें मैंने प्रयास किया, किंतु शीघ्र ही मेरी समझमें आ गया कि यह मेरे वशका नहीं है और कोई भी नेता या अधिकारीइसमें मेरी मदद नहीं कर सकता। भगवान् कितनी सरलतासे सुनते हैं! मैं छतपर जाऊँ तो भगवान्से मन-ही-मन कहूँ कि 'हे भगवन्! मृत्यु मेरे सिरके ऊपर मँडरा रही हैं, पता नहीं कब कोई व्यक्ति इसकी चपेटमें आ जाय, इसे आप ही हटवा सकते हैं।' कोई अनुष्ठान नहीं किया, केवल आर्त होकर भगवान्से पुकार लगायी।

अब चमत्कार देखिये, ग्रामीण विद्युतीकरणके प्रोजेक्ट मैनेजरसे एक कार्यक्रममें मेरे बेटेसे भेंट हुई, वे उससे प्रभावित हुए, मेरे बारेमें पूछा, उससे फोन नम्बर लिया, तब मोबाइल नहीं था। मुझे फोन करके कहा कि मैं आपसे भी मिलना चाहता हूँ। वे दूसरे ही दिन आये, बड़ी देरतक बातचीत होती रही। मैंने उनसे हाइटेन्शन लाइनके बारेमें कुछ नहीं कहा; क्योंकि यह कार्य तो मैंने भगवान्पर ही छोड़ दिया था । मैनेजर साहब जब जाने लगे तो उनको छोड़नेके लिये गाड़ीतक मैं भी आया। सहसा उन्होंने ऊपर देखा और कहा कि आपके घरके ऊपरसे हाईटेन्शन लाइन गयी है। मैंने कहा-'हाँ!'उन्होंने कहा इसे हटवाइये। मैंने कहा, यह मेरे वशका नहीं है। कुछ क्षण वे शान्त रहे, फिर बोले, वैसे मेरा काम तो ग्रामीण क्षेत्रमें विद्युतीकरणका है । ५०० करोड़ आया है। बहुत धन बचा है। इसे मैं हटवाऊँगा। बड़ा पेचीदा काम था। पूरी प्रक्रियामें दो वर्षका समय लगा और ५४ लाख रुपये विभागके खर्च हुए। मैं आज भी सोचता हूँ तो रोमांच हो जाता है। मेरा एक पैसा भी नहीं खर्च हुआ और गोपालजीने कैसी व्यवस्था बना दी! अपनी बुद्धि लगानेकी जरूरत नहीं है, उनपर आश्रित हो जाइये। उनकी नजर पड़ जाय तो कुछ भी असम्भव नहीं ।

हरिद्वारके एक सन्तसे मैंने पूछा कि महाराजजी, गोपालसहस्रनामके पाठका क्या माहात्म्य है? उन्होंने कहा—बहुत ज्यादा मैं क्या वर्णन करूँ, तुम इतना जान लो, जो गोपालसहस्रनामका पाठ करता है, गोपालजी उसके वशीभूत हो जाते हैं। स्वामीजीकी यह बात अक्षरशः सत्य है। मुझ-जैसे संसारी जीवकी, जिसकी तमाम लौकिक इच्छाएँ हैं, गोपालजी सब पूरी करते रहते हैं।

[ श्रीरणविजय सिंहजी ]



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[ shreeranavijay sinhajee ]

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तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
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