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श्रीशक्ति-कृपाका प्रत्यक्ष अनुभव

साधारण जनताका यह विश्वास है कि

भगवच्छ किकी कृपा प्राप्त होनेसे मनुष्यको ऐहिक परम ऐश्वर्य प्राप्त होता है। इसीलिये यदि कोई दरिद्र व्यक्ति माताकी कृपा प्राप्त होने का वर्णन करे तो लोग उसको 1 पागल अथवा दाम्भिक समझने लगते हैं। परंतु विचारपूर्वक देखा जाय तो धन ऐश्वर्यकी अधिकता सात्त्विकभावकी घोर विरोधिनी है। धनियोंमें सात्त्विकभावापन्न पुरुष बहुत कम होते हैं। धन ही अहंकारका कारण है, और अहंकारीसे ईश्वर भक्ति कोसों दूर है। परमात्मा जिसपर अनुग्रह करना चाहता है, उसे दरिद्रता तथा विपत्ति देकर ही उसकी दृढ़ताकी परीक्षा करता है।

उपरिलिखित बातोंका प्रत्यक्ष अनुभव करनेके मुझे इस जीवनमें अनेक अवसर प्राप्त हुए हैं। मेरा जन्म काशीके एक प्रख्यात विप्रकुलमें हुआ है। सुना है कि मेरे वृद्धप्रपितामहके समयमें हमलोग बहुत सम्पन्न थे। घरमें कोठीका कारोबार चलता था, अगणित सम्पत्ति थी, साक्षात् महालक्ष्मीके वरदानसे यह सब ऐश्वर्य प्राप्त हुआ था । घरमें कुलदेवताके पूजन-अर्चनकी बड़ी धूम रहती थी। वासन्त तथा शारद नवरात्रोंमें बड़ी धूम धामसे भगवतीकी स्थापना, पूजा तथा विपुल दान-धर्म होता था। मेरे वृद्धप्रपितामहको प्रायः स्वप्नोंमें भगवती दर्शन देकर भावी कार्यों में शुभाशुभकी सूचना देती थीं, तदनुसार उनके अन्त समयमें उन्होंने अपने पुत्र तथा पौत्रको समीप बुलाकर कहा-'बेटा! मेरा समय आ गया, मैं तो चला; परंतु इतना स्मरण रखना कि यह ऐश्वर्य तो भगवतीकी कृपासे प्राप्त हुआ है, यदि उनकी कृपा बनी रही तो ऐश्वर्य भी स्थिर रहेगा, अन्यथा नहीं। भगवतीकी कृपा बनी रहे, इसके लिये तुमलोगोंको विशेष जपानुष्ठानकी आवश्यकता नहीं है, वह सब मैंने पर्याप्तमात्रामें कर रखा है; तुमलोग केवल भगवतीकी नित्य नैमित्तिक सेवा स्वयं करना और सदाचारसे रहना।परंतु मैं देख रहा हूँ, तुमलोगोंसे इतना भी न होगा; यह सब ऐश्वर्य चला जायगा। यदि दुर्भाग्यसे ऐसा समय आ जाय तो कुलदेवताके निकट बैठकर चालीस दिनतक मन्त्रका पुरश्चरण करनेसे भगवतीका आदेश प्राप्त होगा, तदनुसार चलना।'

इसके बाद वे समाधिस्थ हो गये। उनके पुत्रने उनके उपदेशानुसार ही वर्तन किया और वे आजन्म सुखी रहे। उनके बाद मेरे पितामह बड़े ऐय्याश हुए, उन्होंने कुलदेवताकी पूजाका भार कुलपुरोहितको सौंप दिया और स्वयं विलासमें निमग्न हो गये। सम्पत्ति धीरे धीरे क्षीण होने लगी। वृद्ध कुलपुरोहित भी मर गये, उनके पुत्र पुजारी नियत हुए। ये भी युवक थे, चरित्र भी अच्छा नहीं था। कोई देखने-पूछनेवाला न होनेके कारण इन्होंने देवीका अलंकार तथा देवीका सुवर्ण सिंहासन बेच दिया। देवीका रोष होने लगा। मेरी पितामही बड़ी साध्वी थीं, उनको स्वप्नमें देवीने दर्शन देकर कहा-'यहाँपर मेरा बहुत अनादर हो रहा है, अब मैं जाती हूँ।' यह सुनकर पितामहीने भगवतीकी बहुत प्रार्थना की और इस कुलको न छोड़नेके लिये बहुत अनुरोध किया तब माताने कहा कि 'तुमको एक पुत्र होगा। वह अत्यन्त सात्त्विक भावापन्न होगा, वह और उसके पुत्र-पौत्र तीन पुरुष मेरी उपासना करेंगे, तब यह पाप कटेगा और इन तीन पुरुषोंमें उत्तरोत्तर उन्नति होती रहेगी। इसके बाद चतुर्थ पुरुषसे सप्तम पुरुषतक उपासनाप्रकर्षके अनुसार विद्या तथा श्री पूर्णमात्रामें निवास करेगी।' उसके बाद उत्तरोत्तर ह्रास होते हुए यहाँतक नौबत आयी कि मेरी पितामहीकी मृत्युके अनन्तर बारह बरसके पुत्र (मेरे पिता) को साथ लेकर ने मेरे पितामह भाड़ेके मकानमें रहने लगे, हँड़ियामें रसोई पकने लगी। मेरे पितामहको उनके वार्द्धक्यमें अपने कर्मोंका बड़ा पश्चात्ताप हुआ, उन्होंने मेरे पिताको वेसब पुरानी बातें तथा पितामहीके स्वप्नका वृत्तान्त भी सुनाकर भगवतीकी आराधना करनेका उपदेश दिया और कहा कि 'तुम सत्पुत्र हो, पिताके पापका प्रायश्चित्तकर कुलदेवताको फिरसे प्रसन्न करो। पूर्वपुरुषोंके पुण्यका भण्डार अक्षय है, उनके कुलकी फिर उन्नति होगी।' मेरे पिताजीने अपने बाल्यकालहीसे भगवतीकी आराधनामें मन लगाया। निर्वाहके लिये एक कोठीमें पन्द्रह रुपये मासिकपर मुनीमी करना भी आरम्भ किया। समय- समयपर उनको भगवतीकी कृपाके अनुभव होते थे। उनके दस पुत्रोंके काल-कवलित होनेके बाद मेरा जन्म हुआ। मेरे जन्मकी कथाएँ भी बहुत विचित्र हैं। पिताजीका जीवन-काल साधारण ही व्यतीत हुआ; परंतु उनके सात्त्विक, सदाचारी तथा अजातशत्रु होनेके कारण उनको जीवन-कालमें कोई विशेष कष्ट न हुआ। उनके अन्तसमय में मैं आठ वर्षका बालक था, तुरंत ही मेरा उपनयन हुआ था। पिताजीने अपने प्राणोत्क्रमणके एक दिन पूर्व मुझे अपने पास बुलाकर अपने कुलकी सब प्राचीन कथा कह सुनायी और मुझे कुलदेवताके सामने ले जाकर भगवतीकी तरफ अँगुली उठाते हुए कहा कि 'देखो, यह हमलोगोंकी माँ है; इसकी पूजा-अ - अर्चनामें कभी आलस्य न करना। जो कुछ चाहो, इससे ही माँगना, यह बड़ी दयालु है।' ऐसा कहकर उन्होंने क्षणमात्र मेरे सिरपर अपना दक्षिण हस्त रखते हुए आँख मूँदकर भगवतीसे कुछ प्रार्थना की। मुझे आज भी पिताजीकी वे बातें सुनायी पड़ रही हैं और वह प्रसंग मानों नेत्रोंके सामने दिखायी पड़ रहा है। पिताजीके देहान्तके बाद बाल्यकालमें कई बारका मेरा यह प्रत्यक्ष अनुभव है कि जिन छोटी-मोटी बातोंके लिये मैं मातासे प्रार्थना करता था, प्रायः वे बातें पूर्ण हो जाती थीं; वास्तवमें पिताजीके देहान्तके बाद सर्वथा आश्रयहीन हो चुके हमलोगोंका निर्वाह होकर आज इस वर्तमान परिस्थितिको प्राप्त करना केवल भगवतीकी कृपाका ही फल है, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है। मध्यवर्ती अनेक चमत्कारी घटनाओंको छोड़कर मैं कुछ खास-खास घटनाओंका बयान करता हूँ।

(१) उन दिनों मैं मध्यमा परीक्षा पास हो। चुका था मेरा विवाह भी हो गया था, गृहस्थीका निर्वाह बड़े कष्टसे होता था, नौकरी करनेके लिये घरके लोग तथा इतर सम्बन्धी भी आग्रह करने लगे। उन्हीं दिनों स्थानीय स्कूलमें एक सेकेण्ड पण्डितकी १५ रुपये मासिककी जगह खाली थी, मैंने उस स्थानके लिये प्रार्थनापत्र भेजकर घरमें कुलदेवताके निकट अनुष्ठान आरम्भ कर दिया। मुझे पूर्ण विश्वास था कि कुलदेवताको कृपासे मुझे यह पद अवश्य मिलेगा। परंतु वह पद मुझे नहीं मिला, दूसरेकी नियुक्ति हो गयी। यह देखकर मुझे बड़ा क्रोध हुआ और मैंने कुलदेवताका बहुत उपालम्भ किया, उस दिन बिना कुछ खाये पिये सो रहा। स्वप्नमें मैंने प्रत्यक्ष देखा कि एक तेजस्विनी सधवा वृद्धा स्त्री मेरे सिरहाने बैठकर मेरे सिरपर हाथ फेरती हुई कह रही है- 'बेटा! तू क्यों दुःख कर रहा हैं? अरे, यह नौकरी तेरे लायक नहीं है, तुझे तो मैं उच्चपदपर देखना चाहती। हूँ। पबराओ नहीं, १५ रुपये मासिकसे अधिक तुम ब ही पा जाओगे।' प्रातः काल उठनेपर चित्त प्रसन्न था। ज्यों ही पाठशाला पहुँचा, मेरे अध्यापकसे मुझे विदित हुआ कि आजसे कुछ विशेष विषयोंके अध्ययनके लिये मुझे १७ रु० मासिक छात्रवृत्ति दी गयी है। तबसे आजतक मैंने कभी किसी विषयके लिये कोई प्रार्थनापत्र नहीं लिखा। भगवतीकी कृपासे आज शताधिक मासिक पा रहा हूँ।

(२) श्रीमहालक्ष्मी दर्शनकी अत्यन्त लालमासे में दक्षिणकाशी करवीरक्षेत्र (कोल्हापुरमें) गया था, वहाँपर रातके ९ बजे मैं पहुँचा। उस दिन शुक्रवार था, जाते ही तुरंत स्नानकर मन्दिरमें पहुँचा तो वहाँ शयन आरती होकर फाटक बन्द हो रहा था। मुझे बड़ी निराशा हुई, डेरेपर वापस लौटकर बिना खाये-पिये ही सो गया। स्वप्नमें मैंने एक देवी-मूर्ति देखी, उसकी यथाविधि पूज की तथा सप्तशती पाठ भी किया। प्रातः जाग्रत होनेपर स्नानादि से निवृत्त होकर जब मैं महालक्ष्मी मन्दिरम पहुँचा तो देखा स्वप्नमें जो मूर्ति देखी थी, वहीं मूर्ति, वही वेष तथा वही गुलाबकी माला जो मैंने स्वप्नमेंचढ़ायी थी, श्रीमहालक्ष्मीजीके कण्ठमें है। यह देखकर मैं गद्गद हो गया।

(३) विन्ध्यक्षेत्रमें उन दिनों मैं अनुष्ठान कर रहा था, वहाँपर रातमें १२ बजनेके बाद प्रायः कोई भी मन्दिरमें नहीं रहता। एक दिन में रात्रिमें वहाँ बैठकर पाठ कर रहा था, बारह बजनेके करीब मन्दिर बन्दकर पण्डा लोग चले गये और मुझे भी शीघ्र ही जानेके लिये कहते गये। मैं भी करीब एक बजे पाठ समाप्तकर भगवतीकी परिक्रमाकर धर्मशालामें जानेके लिये चला। ज्यों ही मन्दिरकी सीढ़ी उतरने लगा, सम्मुख गलीसे घण्टानाद, धूपकी सुगन्ध और आते हुए किसीकी पदध्वनि सुननेमें आयी। मैं रुक गया। क्षणभर बाद देखा सामनेसे एक काली शकल, जिसके शिरोभागमें केवल एक ज्वाला थी, एक हाथमें घण्टा था, दूसरेमें खप्पर; जिसमेंसे धूपकी सुगन्धि आ रही थी, खड़ाऊँ खटखटाते हुए मेरे सामने सीढ़ी चढ़कर मन्दिरमें घुसी। मैं यह देखकर कुछ देरतक तो जड़वत् हो गया, पीछे शरीरमें रोमांच उत्पन्न हुए, कुछ भय भी होने लगा; शीघ्र ही धर्मशाला में वापस आया। पीछे जाँच करनेपर विदितहुआ कि वह माता विन्ध्यवासिनीकी एक सेविका शक्ति है, कभी-कभी किसी-किसी भाग्यवान् साधकको उसका दर्शन होता है।

और भी कुछ अनुभव हैं; परंतु अपने जीवनकालमें उनको प्रकट करना श्रेयस्कर न होगा- ऐसा आदेश हो रहा है, अतः लाचारी है। मेरे आजतकके अनुभवसे मैं इतना दृढ़तापूर्वक कह सकता हूँ कि मातृभावकी उपासनाका ही यह विशेष प्रभाव है कि प्रमाद होनेपर भी क्षमा मिलती है।

बाल्यकालसे ही मेँ पितृहीन दरिद्र अनाथ था । कुलगौरवके कारण प्रकटरूपसे अन्नक्षेत्र सदावर्तोंकी सहायता नहीं ले सकता था। उन्मार्गमें ले जानेवाले बहुत साथी मिलते थे। दो-तीन बार तो मोहसे अथवा संगदोषसे नरकद्वारके सोपानतक पहुँच भी गया था, किंतु जगन्माताने उसी क्षण चित्तमें ऐसा झटका दिया कि एकदम वहाँसे विमुख हुआ। आज इस परिस्थितिपर पहुँचा हूँ कि यह केवल जगन्माताका अनुग्रह ही है। अब उससे इतनी ही प्रार्थना है कि इसी तरह अन्ततक सुधार दे। बोलो श्रीजगन्माताकी जय! [ श्रीमाताका एक भक्त ]



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Real Life Experience प्रभु दर्शन


shreeshakti-kripaaka pratyaksh anubhava

saadhaaran janataaka yah vishvaas hai ki

bhagavachchh kikee kripa praapt honese manushyako aihik param aishvary praapt hota hai. iseeliye yadi koee daridr vyakti maataakee kripa praapt hone ka varnan kare to log usako 1 paagal athava daambhik samajhane lagate hain. parantu vichaarapoorvak dekha jaay to dhan aishvaryakee adhikata saattvikabhaavakee ghor virodhinee hai. dhaniyonmen saattvikabhaavaapann purush bahut kam hote hain. dhan hee ahankaaraka kaaran hai, aur ahankaareese eeshvar bhakti koson door hai. paramaatma jisapar anugrah karana chaahata hai, use daridrata tatha vipatti dekar hee usakee driढ़taakee pareeksha karata hai.

uparilikhit baatonka pratyaksh anubhav karaneke mujhe is jeevanamen anek avasar praapt hue hain. mera janm kaasheeke ek prakhyaat viprakulamen hua hai. suna hai ki mere vriddhaprapitaamahake samayamen hamalog bahut sampann the. gharamen kotheeka kaarobaar chalata tha, aganit sampatti thee, saakshaat mahaalakshmeeke varadaanase yah sab aishvary praapt hua tha . gharamen kuladevataake poojana-archanakee bada़ee dhoom rahatee thee. vaasant tatha shaarad navaraatronmen bada़ee dhoom dhaamase bhagavateekee sthaapana, pooja tatha vipul daana-dharm hota thaa. mere vriddhaprapitaamahako praayah svapnonmen bhagavatee darshan dekar bhaavee kaaryon men shubhaashubhakee soochana detee theen, tadanusaar unake ant samayamen unhonne apane putr tatha pautrako sameep bulaakar kahaa-'betaa! mera samay a gaya, main to chalaa; parantu itana smaran rakhana ki yah aishvary to bhagavateekee kripaase praapt hua hai, yadi unakee kripa banee rahee to aishvary bhee sthir rahega, anyatha naheen. bhagavateekee kripa banee rahe, isake liye tumalogonko vishesh japaanushthaanakee aavashyakata naheen hai, vah sab mainne paryaaptamaatraamen kar rakha hai; tumalog keval bhagavateekee nity naimittik seva svayan karana aur sadaachaarase rahanaa.parantu main dekh raha hoon, tumalogonse itana bhee n hogaa; yah sab aishvary chala jaayagaa. yadi durbhaagyase aisa samay a jaay to kuladevataake nikat baithakar chaalees dinatak mantraka purashcharan karanese bhagavateeka aadesh praapt hoga, tadanusaar chalanaa.'

isake baad ve samaadhisth ho gaye. unake putrane unake upadeshaanusaar hee vartan kiya aur ve aajanm sukhee rahe. unake baad mere pitaamah bada़e aiyyaash hue, unhonne kuladevataakee poojaaka bhaar kulapurohitako saunp diya aur svayan vilaasamen nimagn ho gaye. sampatti dheere dheere ksheen hone lagee. vriddh kulapurohit bhee mar gaye, unake putr pujaaree niyat hue. ye bhee yuvak the, charitr bhee achchha naheen thaa. koee dekhane-poochhanevaala n honeke kaaran inhonne deveeka alankaar tatha deveeka suvarn sinhaasan bech diyaa. deveeka rosh hone lagaa. meree pitaamahee bada़ee saadhvee theen, unako svapnamen deveene darshan dekar kahaa-'yahaanpar mera bahut anaadar ho raha hai, ab main jaatee hoon.' yah sunakar pitaamaheene bhagavateekee bahut praarthana kee aur is kulako n chhoda़neke liye bahut anurodh kiya tab maataane kaha ki 'tumako ek putr hogaa. vah atyant saattvik bhaavaapann hoga, vah aur usake putra-pautr teen purush meree upaasana karenge, tab yah paap katega aur in teen purushonmen uttarottar unnati hotee rahegee. isake baad chaturth purushase saptam purushatak upaasanaaprakarshake anusaar vidya tatha shree poornamaatraamen nivaas karegee.' usake baad uttarottar hraas hote hue yahaantak naubat aayee ki meree pitaamaheekee mrityuke anantar baarah barasake putr (mere pitaa) ko saath lekar ne mere pitaamah bhaaड़eke makaanamen rahane lage, hanड़iyaamen rasoee pakane lagee. mere pitaamahako unake vaarddhakyamen apane karmonka baड़a pashchaattaap hua, unhonne mere pitaako vesab puraanee baaten tatha pitaamaheeke svapnaka vrittaant bhee sunaakar bhagavateekee aaraadhana karaneka upadesh diya aur kaha ki 'tum satputr ho, pitaake paapaka praayashchittakar kuladevataako phirase prasann karo. poorvapurushonke punyaka bhandaar akshay hai, unake kulakee phir unnati hogee.' mere pitaajeene apane baalyakaalaheese bhagavateekee aaraadhanaamen man lagaayaa. nirvaahake liye ek kotheemen pandrah rupaye maasikapar muneemee karana bhee aarambh kiyaa. samaya- samayapar unako bhagavateekee kripaake anubhav hote the. unake das putronke kaala-kavalit honeke baad mera janm huaa. mere janmakee kathaaen bhee bahut vichitr hain. pitaajeeka jeevana-kaal saadhaaran hee vyateet huaa; parantu unake saattvik, sadaachaaree tatha ajaatashatru honeke kaaran unako jeevana-kaalamen koee vishesh kasht n huaa. unake antasamay men main aath varshaka baalak tha, turant hee mera upanayan hua thaa. pitaajeene apane praanotkramanake ek din poorv mujhe apane paas bulaakar apane kulakee sab praacheen katha kah sunaayee aur mujhe kuladevataake saamane le jaakar bhagavateekee taraph angulee uthaate hue kaha ki 'dekho, yah hamalogonkee maan hai; isakee poojaa- - archanaamen kabhee aalasy n karanaa. jo kuchh chaaho, isase hee maangana, yah bada़ee dayaalu hai.' aisa kahakar unhonne kshanamaatr mere sirapar apana dakshin hast rakhate hue aankh moondakar bhagavateese kuchh praarthana kee. mujhe aaj bhee pitaajeekee ve baaten sunaayee pada़ rahee hain aur vah prasang maanon netronke saamane dikhaayee pada़ raha hai. pitaajeeke dehaantake baad baalyakaalamen kaee baaraka mera yah pratyaksh anubhav hai ki jin chhotee-motee baatonke liye main maataase praarthana karata tha, praayah ve baaten poorn ho jaatee theen; vaastavamen pitaajeeke dehaantake baad sarvatha aashrayaheen ho chuke hamalogonka nirvaah hokar aaj is vartamaan paristhitiko praapt karana keval bhagavateekee kripaaka hee phal hai, aisa mera poorn vishvaas hai. madhyavartee anek chamatkaaree ghatanaaonko chhoda़kar main kuchh khaasa-khaas ghatanaaonka bayaan karata hoon.

(1) un dinon main madhyama pareeksha paas ho. chuka tha mera vivaah bhee ho gaya tha, grihastheeka nirvaah bada़e kashtase hota tha, naukaree karaneke liye gharake log tatha itar sambandhee bhee aagrah karane lage. unheen dinon sthaaneey skoolamen ek sekend panditakee 15 rupaye maasikakee jagah khaalee thee, mainne us sthaanake liye praarthanaapatr bhejakar gharamen kuladevataake nikat anushthaan aarambh kar diyaa. mujhe poorn vishvaas tha ki kuladevataako kripaase mujhe yah pad avashy milegaa. parantu vah pad mujhe naheen mila, doosarekee niyukti ho gayee. yah dekhakar mujhe bada़a krodh hua aur mainne kuladevataaka bahut upaalambh kiya, us din bina kuchh khaaye piye so rahaa. svapnamen mainne pratyaksh dekha ki ek tejasvinee sadhava vriddha stree mere sirahaane baithakar mere sirapar haath pheratee huee kah rahee hai- 'betaa! too kyon duhkh kar raha hain? are, yah naukaree tere laayak naheen hai, tujhe to main uchchapadapar dekhana chaahatee. hoon. pabaraao naheen, 15 rupaye maasikase adhik tum b hee pa jaaoge.' praatah kaal uthanepar chitt prasann thaa. jyon hee paathashaala pahuncha, mere adhyaapakase mujhe vidit hua ki aajase kuchh vishesh vishayonke adhyayanake liye mujhe 17 ru0 maasik chhaatravritti dee gayee hai. tabase aajatak mainne kabhee kisee vishayake liye koee praarthanaapatr naheen likhaa. bhagavateekee kripaase aaj shataadhik maasik pa raha hoon.

(2) shreemahaalakshmee darshanakee atyant laalamaase men dakshinakaashee karaveerakshetr (kolhaapuramen) gaya tha, vahaanpar raatake 9 baje main pahunchaa. us din shukravaar tha, jaate hee turant snaanakar mandiramen pahuncha to vahaan shayan aaratee hokar phaatak band ho raha thaa. mujhe bada़ee niraasha huee, derepar vaapas lautakar bina khaaye-piye hee so gayaa. svapnamen mainne ek devee-moorti dekhee, usakee yathaavidhi pooj kee tatha saptashatee paath bhee kiyaa. praatah jaagrat honepar snaanaadi se nivritt hokar jab main mahaalakshmee mandiram pahuncha to dekha svapnamen jo moorti dekhee thee, vaheen moorti, vahee vesh tatha vahee gulaabakee maala jo mainne svapnamenchadha़aayee thee, shreemahaalakshmeejeeke kanthamen hai. yah dekhakar main gadgad ho gayaa.

(3) vindhyakshetramen un dinon main anushthaan kar raha tha, vahaanpar raatamen 12 bajaneke baad praayah koee bhee mandiramen naheen rahataa. ek din men raatrimen vahaan baithakar paath kar raha tha, baarah bajaneke kareeb mandir bandakar panda log chale gaye aur mujhe bhee sheeghr hee jaaneke liye kahate gaye. main bhee kareeb ek baje paath samaaptakar bhagavateekee parikramaakar dharmashaalaamen jaaneke liye chalaa. jyon hee mandirakee seedha़ee utarane laga, sammukh galeese ghantaanaad, dhoopakee sugandh aur aate hue kiseekee padadhvani sunanemen aayee. main ruk gayaa. kshanabhar baad dekha saamanese ek kaalee shakal, jisake shirobhaagamen keval ek jvaala thee, ek haathamen ghanta tha, doosaremen khappara; jisamense dhoopakee sugandhi a rahee thee, khada़aaoon khatakhataate hue mere saamane seedha़ee chadha़kar mandiramen ghusee. main yah dekhakar kuchh deratak to jada़vat ho gaya, peechhe shareeramen romaanch utpann hue, kuchh bhay bhee hone lagaa; sheeghr hee dharmashaala men vaapas aayaa. peechhe jaanch karanepar viditahua ki vah maata vindhyavaasineekee ek sevika shakti hai, kabhee-kabhee kisee-kisee bhaagyavaan saadhakako usaka darshan hota hai.

aur bhee kuchh anubhav hain; parantu apane jeevanakaalamen unako prakat karana shreyaskar n hogaa- aisa aadesh ho raha hai, atah laachaaree hai. mere aajatakake anubhavase main itana dridha़taapoorvak kah sakata hoon ki maatribhaavakee upaasanaaka hee yah vishesh prabhaav hai ki pramaad honepar bhee kshama milatee hai.

baalyakaalase hee men pitriheen daridr anaath tha . kulagauravake kaaran prakataroopase annakshetr sadaavartonkee sahaayata naheen le sakata thaa. unmaargamen le jaanevaale bahut saathee milate the. do-teen baar to mohase athava sangadoshase narakadvaarake sopaanatak pahunch bhee gaya tha, kintu jaganmaataane usee kshan chittamen aisa jhataka diya ki ekadam vahaanse vimukh huaa. aaj is paristhitipar pahuncha hoon ki yah keval jaganmaataaka anugrah hee hai. ab usase itanee hee praarthana hai ki isee tarah antatak sudhaar de. bolo shreejaganmaataakee jaya! [ shreemaataaka ek bhakt ]

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