⮪ All भगवान की कृपा Experiences

भगवत्प्रेमके साधक और बाधक

जब कभी मुझे नागरजीके यहाँ जानेका मौका मिलता था, तब उनके जीवनके अनेक अद्भुत अनुभव तथा उनके उत्तम और बुद्धिमय उपदेश तथा विचारोंकी परम्परा जाननेका अमूल्य अवसर प्राप्त होता था । ईश्वरकी दृढ़ भक्ति और विश्वास उनके जीवनका मुख्य ध्येय था।

एक समय मैं उनके घर (जलालपुर, सूरत जिलेका एक गाँव) गया था। बातचीतके सिलसिले में उनकी टेवलपर पड़ा हुआ एक लिफाफा मेरे देखनेमें आया। पत्र सुबहकी डाकसे आया था और वह उत्तरप्रदेशके अवकाशप्राप्त सरकारी रसायन अन्वेषक श्रीचटर्जी नामक - एक बंगाली सज्जनका लिखा हुआ था। नागरजीने कहा कि 'पत्र पढ़ो और इससे क्या सूचित होता है, उसका निर्देश करो।' पढ़नेके बाद मैंने कहा, 'दादा! यह आदमी आपको बड़े प्रेम और अनुभूतिके साथ पत्र लिखता है। मालूम पड़ता है कि आपने इसके लिये बड़ा काम किया था और यह आभार प्रदर्शन करना अपना कर्तव्य समझता है और उसके बोझसे अपनेको सदा दबा पाता है। आप इसके लिये सदा स्मरणीय हैं।' नागरजी सस्मित, बोले, 'तुम्हारी कल्पना बिलकुल ठीक है। बंगाली सज्जन चटर्जी साहब बड़े प्रेमी हैं और वे सदा ऐसी ही चिट्ठी लिखते हैं। वे समझते हैं कि मैंने उनको उपकृत किया है और पथ-प्रदर्शकका काम किया है। पर मैंने कुछ नहीं किया। करनेवाले भगवान् हैं। मनुष्य तो निमित्तमात्र है। पर इस मनुष्यका इतिहास, श्रद्धा और प्रेम-ये सदा सत्य और सनातन हैं तथा महान् कार्य करनेकी क्षमता रखते हैं। यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। सुनो

जब मैं केन्द्रीय सरकारकी कृषिशालाके अध्यक्षका मुख्य सलाहकार था, तब वहाँकी रसायनशालाके अधिष्ठाता डॉक्टर लेदरकी अधीनतामें एक बंगाली सज्जन चटजजो काम करते थे। लेदर साहब बड़े विद्वान् और कार्यदक्षथे, पर स्वभावमें दुर्वासाके ही अवतार थे और उनका कोपभाजन बननेका अवसर सदा सभी कार्यकर्ताओंको प्राप्त होता था, पर उनमें मुख्य चटर्जी ही होते थे। अनेक युक्तियाँ और परिश्रम करनेपर भी वे साहबको प्रसन्न नहीं कर सके।

संयोगसे चटर्जी महोदय के इकलौते पुत्रने टाइफॉपडकी कठिन बीमारी लेकर पिताको समस्याको चरम सीमापर पहुँचा दिया। उसकी सेवा-शुश्रूषामें रत रहनेके कारण ऑफिस जानेमें उन्हें बारम्बार देर होती थी। एक दिन पुत्रकी अवस्था अपेक्षाकृत खराब थी। जब वे दफ्तर पहुँचे, एक घण्टा समय बीत गया था। आज जरूर कोई अनिष्ट होनेवाला है, ऐसी आशंका उनके दिलमें होने लगी। दफ्तर पहुँचते ही उन्होंने देखा कि साहब उनकी टेबलके पास ही खड़े थे और उनको देखते ही बोले, 'मि० चटर्जी नियम भंग और शिष्टपालनकी उपेक्षाके कारण मैं आपको थोड़े दिनोंके लिये नौकरीपरसे हटा रहा है।'

अपमानसे काँपते हुए चटर्जी बोले-'साहब! आज पन्द्रह दिनोंसे मेरा लड़का टाइफॉयडकी भयंकर बीमारीसे छटपटा रहा है। डॉक्टर आज कुछ देर करके आये आप ही कहिये, ऐसी विषम परिस्थितिमें मेरे लिये और क्या चारा था ? मेरे अपराधकी ओर नहीं, पर मेरे बच्चेकी और देखिये और ऐसा कठोर दण्ड नहीं दीजिये। मैं आपका तुच्छ सेवक हूँ।' वे आगे बोल न सके और उनका कण्ठ अवरुद्ध हो गया।

'खानगी कामके कारण सरकारी काम रुक नहीं सकता। मेरा निर्णय बदल नहीं सकता। खैर मनाओ कि मैंने तुम्हें नौकरीसे निकाल नहीं दिया। थोड़े महीनोंके लिये हटाये गये हो। भविष्यमें यदि ऐसा हुआ तो फिर नौकरी गयी समझो कहते-कहते साहब वहाँसे चले • गये। अपमान और भर्त्सनाने चटर्जीको बेहाल कर दिया। थोड़े समयके लिये पदच्युत होना यह लांछनाका विषयहै और सभी सरकारी कर्मचारी जानते हैं। यह त जिन्दगीभरके लिये धब्बा हो गया और ऐसी हालत में लागपत्र देना ही ठीक होगा, यह निश्चितकर उन्होंने फौरन त्यागपत्र लिखकर दे दिया। साहब तो यही चाहते। थे और उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया।

जब मैंने अपने दफ्तर में चटके इस दुस्साहसको बात सुनी, तब मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। वे कोई भी काम करनेके पूर्व मेरी सलाह लिया करते थे और मेरी रायके बिना कोई भी काम करना उचित नहीं समझते थे। ऐसा अविचारी काम उतावलीमें करनेके कारण मैंने उनको बुलवा भेजा। वे तो त्यागपत्र देकर स्वयं ही मेरे ऑफिस आ रहे थे। मैंने उनको स्निग्ध स्वरमें उपालम्भ देते हुए कहा, 'यह क्या कर डाला? अब क्या होगा तुम्हारा और परिवारका देवेन बाबू! (चटर्जीका नाम) मेरी सलाहके बिना ऐसा करना उचित नहीं था।' वे लगे क्षमा माँगने और कहने लगे, 'दादा! रोज-रोजके झगड़ेसे मैं ऊब गया था। दादा! आपका स्नेहार्द्र स्वभाव मुझे क्षमा करेगा ही, यह मैं जानता हूँ। अब मैं मथुरा जाऊँगा। वहाँ मेरे एक दूरके सम्बन्धी है। उनके यहाँ रहूँगा और दूसरी नौकरी ढूँढनेकी चेष्टा करूंगा। मुझे वृन्दावनबिहारी श्रीकृष्णभगवान्‌में अपार श्रद्धा है। वे मुझे भूखों मरने नहीं देंगे।'

मैंने कहा, 'तुम्हें मेरा एक कहना मानना होगा।' वे बोले, 'दादा! आपकी सौ बातें में मानने को तैयार हूँ। आपकी स्नेहमयी छत्रछावाके कारण ही मैं यहाँ प्रतिकूल स्थिति में इतने दिनोंतक रह सका, अन्यथा कबका चला गया होता। आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। कहिये।'

'तो आपको रोज मथुरा निवासके समय श्रीद्वारकाधीश मन्दिरमें जाना पड़ेगा। भगवान्‌को मूर्तिका भाव-निरीक्षण करना और जैसा हो वैसा मुझे लिखना आपका कर्तव्य रहेगा। उनकी भाव-भंगिमा ही भविष्यकी सूचना देगी। जाओ; परमात्मा सबका मालिक है। घबरानेकी कोई बात नहीं।' 'मैं तो स्वयं ही प्रतिदिन द्वारकाधीशका दर्शन करनेवाला था। यह आपका आदेशमैं अवश्य पालन करूंगा।' यह कहकर सपरिवार चटर्जी मथुरा चले गये।

वहाँ पहुँचकर वे प्रतिदिन पत्र लिखने लगे। हरेक पत्रमें भगवान्की भाव-भंगिमाओंका वर्णन रहता। 'आज |परमात्माकी मुखाकृति गम्भीर थी' 'आज मूर्ति उदास थी'' आज मूर्ति खिन्न थी' और 'आज वह अन्यमनस्क थी' इत्यादि। मैं उन्हें उत्साहित करता था कि 'जल्दी ही कोई चमत्कार होगा। घबरानेकी जरूरत नहीं। भगवानमें श्रद्धा अविचल रखिये।' एकाएक पन्द्रहवें दिन पत्र आया, 'आज मूर्ति मेरी ओर देखकर मन्द मन्द मुसकरा रही थी। मैं आत्मविभोर हो गया। कुछ क्षण मैं अवाक् खड़ा रहा।'

मैंने प्रत्युत्तर दिया, 'भगवान्ने भक्ति स्वीकार की है। एक हफ्ते में तुम्हें नौकरी जरूर मिलेगी। द्वारकाधीश अब प्रसन्न हैं।' ठीक छठे दिन उनको उत्तरप्रदेशके रसायन अन्वेषकको जगह मिल गयी, जो चार सौ रुपयेसे प्रारम्भ होती थी! चटर्जी विस्मयमुग्ध हो गये। उन्हें सब स्वप्नवत् लगा। डेढ़ सौ रुपयेके पदपर रहकर जो साहबद्वारा बारम्बार अपमानित होता था, उसे एकदम चार सौकी नौकरी मिली। यह चमत्कार नहीं तो और क्या था। करुणावरुणालय परमात्मा तो सदा भक्तवत्सल हैं ही, केवल दृढ़ विश्वास चाहिये। चटर्जीने मुझे लिखा, 'दादा! यह सब आपका ही प्रताप है। भगवान् आपकी वजहसे मुझपर प्रसन्न हैं। मैं तुच्छे प्राणी वृन्दावनविहारीके अनुग्रहका पात्र होनेलायक नहीं हूँ। मेरी परमात्मा के प्रति आस्था दृढ़तर हो गयी है। इस आशातीत सफलताके लिये मैं आपका सदैव अनुगृहीत रहूँगा।'

नागरजी कहने लगे कि इस घटनाके बाद चटर्जीकी मेरे प्रति ममता बढ़ गयी है। महीनेमें उनकी दो चिट्ठियाँ जरूर आती हैं। मैं जवाब दूँ या न दूँ। किया तो परमात्माने परंतु चटर्जी श्रेय मुझे भी देते हैं भगवान्ने निमित्त बनानेके लिये शायद मुझे प्रेरणा दी थी।

[ श्रीअमृतांशुजी देसाई ।



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bhagavatpremake saadhak aur baadhaka

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ek samay main unake ghar (jalaalapur, soorat jileka ek gaanva) gaya thaa. baatacheetake silasile men unakee tevalapar pada़a hua ek liphaapha mere dekhanemen aayaa. patr subahakee daakase aaya tha aur vah uttarapradeshake avakaashapraapt sarakaaree rasaayan anveshak shreechatarjee naamak - ek bangaalee sajjanaka likha hua thaa. naagarajeene kaha ki 'patr padha़o aur isase kya soochit hota hai, usaka nirdesh karo.' padha़neke baad mainne kaha, 'daadaa! yah aadamee aapako bada़e prem aur anubhootike saath patr likhata hai. maaloom pada़ta hai ki aapane isake liye bada़a kaam kiya tha aur yah aabhaar pradarshan karana apana kartavy samajhata hai aur usake bojhase apaneko sada daba paata hai. aap isake liye sada smaraneey hain.' naagarajee sasmit, bole, 'tumhaaree kalpana bilakul theek hai. bangaalee sajjan chatarjee saahab bada़e premee hain aur ve sada aisee hee chitthee likhate hain. ve samajhate hain ki mainne unako upakrit kiya hai aur patha-pradarshakaka kaam kiya hai. par mainne kuchh naheen kiyaa. karanevaale bhagavaan hain. manushy to nimittamaatr hai. par is manushyaka itihaas, shraddha aur prema-ye sada saty aur sanaatan hain tatha mahaan kaary karanekee kshamata rakhate hain. yah usaka pratyaksh udaaharan hai. suno

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naagarajee kahane lage ki is ghatanaake baad chatarjeekee mere prati mamata baढ़ gayee hai. maheenemen unakee do chitthiyaan jaroor aatee hain. main javaab doon ya n doon. kiya to paramaatmaane parantu chatarjee shrey mujhe bhee dete hain bhagavaanne nimitt banaaneke liye shaayad mujhe prerana dee thee.

[ shreeamritaanshujee desaaee .

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दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
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कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
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तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
तुम आके बांह पकड लो तो कोई बात बने‌॥
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मैं तो जाऊँ तुझ पर कुर्बान, सांवरिया
प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि
सादर भारत शीश धरी लीन्ही
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राधे मोरी बंसी कहा खो गयी,
कोई ना बताये और शाम हो गयी,
मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,
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दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
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वो तो दशरथ राज दुलारे हैं
कैसे जिऊ मैं राधा रानी तेरे बिना
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दुखियाँ नू सता के की लैणा
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
मेरी करुणामयी सरकार, मिला दो ठाकुर से
कृपा करो भानु दुलारी, श्री राधे बरसाने
बहुत बड़ा दरबार तेरो बहुत बड़ा दरबार,
चाकर रखलो राधा रानी तेरा बहुत बड़ा
कोई कहे गोविंदा कोई गोपाला,
मैं तो कहूँ सांवरिया बांसुरी वाला ।
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तेरे संग में बांके बिहारी कृष्ण
तेरी मुरली की धुन सुनने मैं बरसाने से
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