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पाठका दैवी प्रभाव

आत्म- श्रद्धा वह तत्त्व है, जो मनुष्यकी गुप्त आध्यात्मिक शक्तियोंका द्वार खोलकर आश्चर्यजनक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य-लाभ कराता है और चिन्ताओंको दूर करता है। हम श्रद्धापूर्वक जो कार्य करते हैं, उसमें हमें दैवी सहायता प्राप्त होती है। बिना श्रद्धा पूजा, अर्चना, प्रार्थना, पाठ, भजन इत्यादिका कोई अर्थ नहीं। सब निष्फल ही रह जाते हैं। जिन व्यक्तियोंको इन आध्यात्मिक प्रक्रियाओंमें श्रद्धा नहीं है, उन्हें इनको करनेसे भी कोई लाभ नहीं होता। जिन्होंने अटूट श्रद्धासे इन शक्तियोंसे लाभ उठाया है, उनके अनुभव बड़े प्रेरक हैं। एक ऐसे ही आध्यात्मिक वृत्तिवाले प्रस्तुत कर रहा हूँ । _महानुभावका अनुभव मैं यहाँ

इन महोदयका नाम श्रीसूरजबल शर्मा था। वे नजीबाबाद (जिला बिजनौर, यू०पी० ) - के निवासी थे। आयु ५५ वर्षके लगभग थी। ७ जून १९५५ को वे अपनी बदरीनाथ और केदारनाथकी यात्रासे वापस आकर एक दिनके लिये हमारे अतिथि बने थे। उन्होंने अपने जीवनकी एक आपबीती इस प्रकार सुनायी—

शर्माजी बोले — दो वर्ष पूर्वकी बात है। पिछले दिनों मैं भयंकर मानसिक और शारीरिक आधि-व्याधियोंमेंसे होकर निकला हूँ । सन् १९५१ में चार मास बीमार रहनेके पश्चात् मेरे एक पुत्रकी अकस्मात् मृत्यु हो गयी। मनपर गहरा आघात लगा। उसकी चिकित्सा करानेमें यत्र-तत्र बहुत दिनोंतक मारा-मारा फिरा था। व्यय भी बहुत किया था, किंतु उसे न बचा सका। भागदौड़ और निरन्तर मानसिक तनावके कारण स्वयं बीमार पड़ गया।

पेटकी बीमारी थी। पहले भूख कम होने लगी। घटते घटते एक स्थिति ऐसी आयी कि जो खाता, उलटी हो जाती। कुछ भी हजम होना कठिन हो गया। यहाँतक कि जो जल पीता, वह भी हजम नहीं होता था। शरीरमें जब कुछ न पहुँचा, तो वह कृश होता गया। मैं मात्र अस्थिपंजर रह गया। फिर भी पेटमें दर्द रहा। चिकित्सा बहुत की डॉक्टरोंका मत था कि यह अंतड़ियोंकी टी०बी० (तपेदिक) हो गयी है तथा उसकी चिकित्साके लिये किसी बड़े विशेषज्ञके पास जाना चाहिये ।

एक टी० बी० विशेषज्ञ लैन्सडाउनमें रहते थे। उन्हींके पास जानेकी सलाह दी गयी। मरता क्या न करता। बहुत व्यय हो चुका था, पर जीवनमें बड़ा मोह है! मैं उनके पास गया। जनवरीका महीना था। ठण्डक बहुत पड़ रही थी। इधर मैं बीमार आदमी, तिसपर निर्बल। उनकी चिकित्सा चल ही रही थी कि एक दिन अचानक जगा तो मालूम हुआ, जैसे पाँव नहीं हिल रहा है। मेरे पाँवको क्या हुआ? मैं आश्चर्यमें था। डॉक्टरने बताया, उस टाँगपर लकवेका प्रभाव है। उफ़! तो क्या मैं लकवेसे मर जाऊँगा? एक ओर पेट ही परेशान किये हुए था। उसपर लकवा । अब भला जीनेकी क्या आशा थी?

डॉक्टरोंने कहा- 'मुम्बई जाइये। वहाँ इस रोगके विशेषज्ञ हैं। विलायतमें इसकी चिकित्सा होती है।'

मैं साधारण हैसियतका व्यक्ति, भला मुम्बई या विलायत जानेकी क्या स्वप्नमें भी आशा कर सकता था ? जो कुछ जहाँ मिला खाया, डॉक्टरोंसे बहुत दवाई करायी। अन्ततः निराश, निरुपाय, थका-हारा अपने घर नजीबाबाद लौट आया। मैं कमजोर होते-होते ऐसा हो गया था कि चारपाईपर ही शौचादिसे निवृत्त होता था। एक-एक दिन मृत्युकी प्रतीक्षा कर रहा था। जीवन - दीप टिमटिमा रहा था। एक डॉक्टर साहबने तो यहाँतक भविष्यवाणी की थी कि यह सावन आप न देख सकेंगे। यह आषाढ़ के महीनेकी बात है।

अतः सब कुछ छोड़ अन्तिम दिनकी प्रतीक्षा होने लगी।

एक दिन देवीके मन्दिरमें गया। यहाँ बैठकर जीवन मरणपर विचार कर रहा था। इतनेमें क्या देखता हूँ कि एक साधु-महात्मा मन्दिरमें प्रविष्ट होकर मेरी ही ओर आ रहे हैं।

उन्होंने मुझसे चिन्ताका कारण पूछा। मैंने अपनी बीमारीकी सम्पूर्ण कहानी आदिसे अन्ततक सच-सच कह सुनायी। वे दयार्द्र हो उठे।

वे बोले-'सब कुछ तुम कर बैठे, पर एक डॉक्टरकी दवा शेष रह गयी है। उसका भी इलाज करके देखो बड़ा चमत्कारी डॉक्टर है ऐसे-ऐसे आश्चर्यजनक कार्य करता है कि असाध्य रोगतक ठीक हो जाते हैं। उस डॉक्टरकी प्रसिद्धि सर्वत्र फैल रही है।'

'मैंने पूछा, 'वह कौन डॉक्टर है ?' उन्होंने कहा 'वह डॉक्टर हैं भगवान्। भगवान्‌का इलाज भी कर देखो।' मेरे पास कोई उत्तर न था। मैंने सिर झुका दिया।

उन्होंने चिकित्सा-विधि बतलायी, 'जलके स्थानपर प्रत्येक बार गंगाजलका ही सेवन कीजिये जब प्यास लगे, गंगाजल लीजिये और उसके साथ तीन माशे पिसी हुई सोंठ खाते रहिये २१ दिनतक कोई भोजन न खाइये। आपका भोजन केवल सोंठ और गंगाजल ही है।'

यह कहकर वे चले गये। मैं मन्दिरसे बाहर आ चबूतरेपर बैठ गया। निरन्तर विचार एक-दूसरे से टकरा रहे थे। सोचा कि अवश्य यह दवाई करूँगा, अन्तिम बार इसे भी आजमाकर देखूँगा।

देखता क्या हूँ कि वे ही साधु-महात्मा फिर लौटे चले आ रहे हैं।

वे बोले-'फीस देनी होगी।'

मैं बोला- 'महाराज, मैं गरीब व्यक्ति हूँ। भला,क्या फीस दे सकता हूँ।'

'अच्छा, बताइये क्या प्रस्तुत करूँ ?'

वे बोले, 'भगवान् रुपया-पैसा नहीं चाहते। तुम्हें रुपया नहीं देना है। केवल अपने जीवनको भगवान्मम बना देना है उसका साधन है 'रामायण'का नित्य नियमित श्रद्धापूर्ण पाठ यदि उपर्युक्त इलाजके साथ साथ तुम नियमित श्रद्धापूर्वक रामायणका पाठ भी करते रहो, तो प्रभाव जल्दी होगा, स्थायी होगा और पूर्ण आरोग्य प्राप्त होगा। भगवान् सुन्दर हैं। भगवान् स्वास्थ्य हैं। भगवान् जीवन हैं, प्रेम हैं, सत्य हैं। 'रामायण के निरन्तर पाठसे उपर्युक्त औषधका देवी प्रभाव अपनी पूरी शक्तिसे कार्य करेगा। तुम्हारी चित्तवृत्तियाँ आरोग्य, स्वास्थ्य और सद्भावनामें केन्द्रित रहेंगी ।

वे पूछने लगे-'अच्छा बोलो, तुम कितने पाठ करना चाहते हो ?'

मैंने यह समझकर कि सावनमें मरना तो है ही, आवेशमें आकर कह दिया कि 'महाराज! मैं रामचरितमानसके ५१ पाठ करूँगा ।'

वे मेरे इस वचनको पक्का करनेके लिये बोले 'अच्छा, तो यह लो अंजलिमें जल, संकल्प कर डालो।' हाथमें जल डालकर उन्होंने विधिपूर्वक मुझे पाठ करनेका संकल्प दिया और चलते-चलते बोले- 'अब तुम शीघ्र स्वस्थ हो जाओगे।'

महाराज चले गये कर्तव्यका पालन मैंने दृढ़तापूर्वक पूर्ण श्रद्धासे करना प्रारम्भ कर दिया। गंगाजलका प्रबन्ध किया। सोंठ ही लेता रहा। पाठ नित्य-नियमित रूपसे चलता रहा। मेरे आश्चर्यकी सीमा न रही, जब मैंने उस चिकित्साका चमत्कार देखा। मुझे पहले जल पचना शुरू हुआ, कुछ दिन बाद टमाटरका रस पचने लगा, फिर अन्य फलोंके रस और ७ पाठ समाप्त होते-होते तो टाँगोंकी अकड़ाहट दूर होने लगी। भोजन ग्रहण करनेकी भी इच्छा जाग उठी। थोड़ा-थोड़ा मैं बिना सहारे चलने लगा। जैसे जैसे दशा सुधरती, मेरी श्रद्धा उत्तरोत्तर बढ़ती गयी। मैं पूरी निष्ठासे पाठ करता रहा। 'रामायण' मेरे दैनिक जीवनका एक अंग बन गयी। अब तो मेरी ऐसी आदत बन गयी है। कि प्रतिदिन 'रामायण' का पाठ किये बिना कुछ ग्रहण ही नहीं करता । १० पाठ करते-करते मेरी अवस्था ठीक हो गयी। अब मैं अपने-आपको पूर्ण स्वस्थ पा रहा हूँ।

इस समय उपर्युक्त दैवी चिकित्साके बलसे मैं यह जीवनका प्रकाश देख रहा हूँ। जिन पाँवोंसे मैं कभी चलतक नहीं पाता था, आज उन्हींसे पैदल बदरीनाथ और केदारनाथकी यात्राएँ करके सानन्द लौट रहा हूँ । 'रामायण' को मैं मुक्ति, स्वास्थ्य, आनन्द और सुख सन्तोष देनेवाला दैवी ग्रन्थ मानता हूँ ।

यह अनुभव कलिकालकी भौतिक चिकित्सा पद्धतिको एक चुनौती है। दैवी श्रद्धा वह अनमोल औषध है, जिसे मनमें धारण करनेसे दैवी शक्ति प्रकट होती है।

[ प्रो० श्रीरामचरणजी ]



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paathaka daivee prabhaava

aatma- shraddha vah tattv hai, jo manushyakee gupt aadhyaatmik shaktiyonka dvaar kholakar aashcharyajanak shaareerik, maanasik aur aadhyaatmik svaasthya-laabh karaata hai aur chintaaonko door karata hai. ham shraddhaapoorvak jo kaary karate hain, usamen hamen daivee sahaayata praapt hotee hai. bina shraddha pooja, archana, praarthana, paath, bhajan ityaadika koee arth naheen. sab nishphal hee rah jaate hain. jin vyaktiyonko in aadhyaatmik prakriyaaonmen shraddha naheen hai, unhen inako karanese bhee koee laabh naheen hotaa. jinhonne atoot shraddhaase in shaktiyonse laabh uthaaya hai, unake anubhav bada़e prerak hain. ek aise hee aadhyaatmik vrittivaale prastut kar raha hoon . _mahaanubhaavaka anubhav main yahaan

in mahodayaka naam shreesoorajabal sharma thaa. ve najeebaabaad (jila bijanaur, yoo0pee0 ) - ke nivaasee the. aayu 55 varshake lagabhag thee. 7 joon 1955 ko ve apanee badareenaath aur kedaaranaathakee yaatraase vaapas aakar ek dinake liye hamaare atithi bane the. unhonne apane jeevanakee ek aapabeetee is prakaar sunaayee—

sharmaajee bole — do varsh poorvakee baat hai. pichhale dinon main bhayankar maanasik aur shaareerik aadhi-vyaadhiyonmense hokar nikala hoon . san 1951 men chaar maas beemaar rahaneke pashchaat mere ek putrakee akasmaat mrityu ho gayee. manapar gahara aaghaat lagaa. usakee chikitsa karaanemen yatra-tatr bahut dinontak maaraa-maara phira thaa. vyay bhee bahut kiya tha, kintu use n bacha sakaa. bhaagadauda़ aur nirantar maanasik tanaavake kaaran svayan beemaar pada़ gayaa.

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ek tee0 bee0 visheshajn lainsadaaunamen rahate the. unheenke paas jaanekee salaah dee gayee. marata kya n karataa. bahut vyay ho chuka tha, par jeevanamen bada़a moh hai! main unake paas gayaa. janavareeka maheena thaa. thandak bahut pada़ rahee thee. idhar main beemaar aadamee, tisapar nirbala. unakee chikitsa chal hee rahee thee ki ek din achaanak jaga to maaloom hua, jaise paanv naheen hil raha hai. mere paanvako kya huaa? main aashcharyamen thaa. daॉktarane bataaya, us taangapar lakaveka prabhaav hai. upha़! to kya main lakavese mar jaaoongaa? ek or pet hee pareshaan kiye hue thaa. usapar lakava . ab bhala jeenekee kya aasha thee?

daॉktaronne kahaa- 'mumbaee jaaiye. vahaan is rogake visheshajn hain. vilaayatamen isakee chikitsa hotee hai.'

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atah sab kuchh chhoda़ antim dinakee prateeksha hone lagee.

ek din deveeke mandiramen gayaa. yahaan baithakar jeevan maranapar vichaar kar raha thaa. itanemen kya dekhata hoon ki ek saadhu-mahaatma mandiramen pravisht hokar meree hee or a rahe hain.

unhonne mujhase chintaaka kaaran poochhaa. mainne apanee beemaareekee sampoorn kahaanee aadise antatak sacha-sach kah sunaayee. ve dayaardr ho uthe.

ve bole-'sab kuchh tum kar baithe, par ek daॉktarakee dava shesh rah gayee hai. usaka bhee ilaaj karake dekho bada़a chamatkaaree daॉktar hai aise-aise aashcharyajanak kaary karata hai ki asaadhy rogatak theek ho jaate hain. us daॉktarakee prasiddhi sarvatr phail rahee hai.'

'mainne poochha, 'vah kaun daॉktar hai ?' unhonne kaha 'vah daॉktar hain bhagavaan. bhagavaan‌ka ilaaj bhee kar dekho.' mere paas koee uttar n thaa. mainne sir jhuka diyaa.

unhonne chikitsaa-vidhi batalaayee, 'jalake sthaanapar pratyek baar gangaajalaka hee sevan keejiye jab pyaas lage, gangaajal leejiye aur usake saath teen maashe pisee huee sonth khaate rahiye 21 dinatak koee bhojan n khaaiye. aapaka bhojan keval sonth aur gangaajal hee hai.'

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dekhata kya hoon ki ve hee saadhu-mahaatma phir laute chale a rahe hain.

ve bole-'phees denee hogee.'

main bolaa- 'mahaaraaj, main gareeb vyakti hoon. bhala,kya phees de sakata hoon.'

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ve bole, 'bhagavaan rupayaa-paisa naheen chaahate. tumhen rupaya naheen dena hai. keval apane jeevanako bhagavaanmam bana dena hai usaka saadhan hai 'raamaayana'ka nity niyamit shraddhaapoorn paath yadi uparyukt ilaajake saath saath tum niyamit shraddhaapoorvak raamaayanaka paath bhee karate raho, to prabhaav jaldee hoga, sthaayee hoga aur poorn aarogy praapt hogaa. bhagavaan sundar hain. bhagavaan svaasthy hain. bhagavaan jeevan hain, prem hain, saty hain. 'raamaayan ke nirantar paathase uparyukt aushadhaka devee prabhaav apanee pooree shaktise kaary karegaa. tumhaaree chittavrittiyaan aarogy, svaasthy aur sadbhaavanaamen kendrit rahengee .

ve poochhane lage-'achchha bolo, tum kitane paath karana chaahate ho ?'

mainne yah samajhakar ki saavanamen marana to hai hee, aaveshamen aakar kah diya ki 'mahaaraaja! main raamacharitamaanasake 51 paath karoonga .'

ve mere is vachanako pakka karaneke liye bole 'achchha, to yah lo anjalimen jal, sankalp kar daalo.' haathamen jal daalakar unhonne vidhipoorvak mujhe paath karaneka sankalp diya aur chalate-chalate bole- 'ab tum sheeghr svasth ho jaaoge.'

mahaaraaj chale gaye kartavyaka paalan mainne dridha़taapoorvak poorn shraddhaase karana praarambh kar diyaa. gangaajalaka prabandh kiyaa. sonth hee leta rahaa. paath nitya-niyamit roopase chalata rahaa. mere aashcharyakee seema n rahee, jab mainne us chikitsaaka chamatkaar dekhaa. mujhe pahale jal pachana shuroo hua, kuchh din baad tamaataraka ras pachane laga, phir any phalonke ras aur 7 paath samaapt hote-hote to taangonkee akada़aahat door hone lagee. bhojan grahan karanekee bhee ichchha jaag uthee. thoda़aa-thoda़a main bina sahaare chalane lagaa. jaise jaise dasha sudharatee, meree shraddha uttarottar badha़tee gayee. main pooree nishthaase paath karata rahaa. 'raamaayana' mere dainik jeevanaka ek ang ban gayee. ab to meree aisee aadat ban gayee hai. ki pratidin 'raamaayana' ka paath kiye bina kuchh grahan hee naheen karata . 10 paath karate-karate meree avastha theek ho gayee. ab main apane-aapako poorn svasth pa raha hoon.

is samay uparyukt daivee chikitsaake balase main yah jeevanaka prakaash dekh raha hoon. jin paanvonse main kabhee chalatak naheen paata tha, aaj unheense paidal badareenaath aur kedaaranaathakee yaatraaen karake saanand laut raha hoon . 'raamaayana' ko main mukti, svaasthy, aanand aur sukh santosh denevaala daivee granth maanata hoon .

yah anubhav kalikaalakee bhautik chikitsa paddhatiko ek chunautee hai. daivee shraddha vah anamol aushadh hai, jise manamen dhaaran karanese daivee shakti prakat hotee hai.

[ pro0 shreeraamacharanajee ]

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