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श्रीरामशलाकाकी कृपानुभूति

मुझे बचपनसे ही श्रीरामचरितमानसके प्रति अतिशय आस्था रही है। इसकी पृष्ठभूमिमें मेरे दादाजीका रामायणके प्रति अविचल विश्वास था, जिसके कारण मुझमें भी मानसके प्रति विशेष आकर्षण उत्पन्न हो गया था।

मेरे दादाजीको सम्पूर्ण मानस कण्ठस्थ था, फिर भी वे नित्य-नियमित पारायण करते थे। पूछनेपर कहते कि रामायणकी प्रत्येक चौपाई मन्त्र है। जिस प्रकार मन्त्रका प्रतिदिन जप किया जाता हैं, उसी प्रकार हमें नित्य चौपाइयोंका शुद्ध मनसे पाठ करना चाहिये। जब कोई समस्या अथवा कष्टकारक समय आता, वे तुरंत श्रीरामचरितमानसकी श्रीरामशलाका-प्रश्नावलीका सहारा लिया करते। अपने बचपनमें अनेक अवसरोंपर उन्हें श्रीरामशलाका-प्रश्नावलीसे समस्याका समाधान करते देख मेरे अन्तर्मनमें श्रीरामशलाकाके प्रति अटूट श्रद्धा भावना स्वाभाविक रूपसे उत्पन्न हो गयी थी। इसके फलस्वरूप मैंने भी अपनी परीक्षाके परिणाम एवं अन्य पारिवारिक परेशानियोंके समय श्रीरामशलाकासे प्रश्नोंके उत्तर प्राप्त करना सीख लिया था।

एक दिन मैंने अपने दादाजीको जब यह जानकारी देकर उनका आशीर्वाद माँगा, तो उन्होंने बड़े गम्भीर भावसे कहा 'बेटा! यह चमत्कारप्रदर्शन अथवा महिमामण्डित होनेका साधन नहीं है, अपितु श्रीरामका मूर्तिमान् अनुग्रह है। जब भी किसी आवश्यक विषयपर श्रीरामशलाकाजीसे प्रश्न पूछना हो, तो उस समय तुम्हें एकाग्र चित्तसे श्रीरामका ध्यान श्रद्धा-भक्तिपूर्वक करना होगा, तभी इस दिव्य शक्तिकी अनुपम कृपानुभूति प्राप्तकर सकोगे।'

श्रीरामशलाका-प्रश्नावलीसे विधिवत् प्रश्नोंके उत्तर प्राप्त करनेकी कलामें जब मैं प्रवीण हो गया, तब सामने आ रहे अभीष्ट परिणामोंसे मेरी उत्तरोत्तर इस साधनाके प्रति अभिरुचि बढ़ने लगी और मैं अपने दादाजीके द्वारा बताये गये भक्तिसूत्रका अक्षरशः अनुपालन करता रहा। दशकोंकी इस लम्बी साधनाकी अनुभूतियोंसे मेरा आत्मविश्वास प्रबल होता गया और वह स्मरणीय दिन आया, जब इसकी सत्यतापर प्रश्नचिह्न लगने जा रहा था।

उस कृपानुभूतिका वृत्तांत इस प्रकार है।

१५ जनवरी २०१४ ई० का दिन था। मैं अपने कार्यालय-कक्षमें अपने वरिष्ठ सहायक श्रीशिवकरन तिवारी एवं अन्य अनुभाग-सहायकोंके साथ कार्यालयीय कार्यों में लगा था। कुछ दिन पूर्व मेरे सहायक तिवारीजीके एक अति निकटके रिश्तेदारको गम्भीर बीमारीके उपचारहेतु मेडिकल कॉलेजमें भर्ती कराया गया था। एक दिन पूर्व उनकी तबियत बहुत खराब हो गयी । यहाँतक कि परिजनोंको अन्तिम दर्शनहेतु बुलाया जाने लगा।

तभी तिवारीजीने बहुत अनुरोध किया कि आप बतानेकी कृपा करें कि उनके स्वास्थ्यकी क्या स्थिति होगी; क्योंकि उनकी दशा अति गम्भीर है। मेरे काफी मना करनेपर भी वे नहीं माने, तब विवश होकर मुझे उनके प्रश्नका श्रीरामशलाकासे विचार करना पड़ा। विचारोपरान्त यह चौपाई आयी 'सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे" "इसका कल जानकर तिवारीजी अति प्रसन्न हो गये।

इसके अगले ही दिन, जब हमलोग कार्यालयमेंकार्य कर रहे थे, तभी उनके किसी सम्बन्धीका फोन आया कि उनके रिश्तेदारका देहावसान हो गया। यह सुनकर तिवारीजी व्यथित हो गये और मेरे पास आकर कहने लगे- 'अरे साहब! आपने क्या बताया था और क्या हो गया" अच्छा होता, मैं भी वहाँ होता । हाय! अब क्या करूँ'- यह कहकर वे रुदन करने लगे।

मुझे भी पहली बार श्रीरामशलाकाके सटीक उत्तरपर सन्देह हुआ। तब मैंने पुनः विधिवत् प्रश्नका उत्तर खोलनेका उपक्रम किया और आश्चर्य हुआ कि अभी भी कार्य सफल होनेका ही संकेत आ रहा था।

मैंने अपने अनुचरको तुरंत तिवारीजीको बुलाने भेजा। वे गाड़ी निकालकर जानेवाले थे कि अनुचरने उन्हें रोक लिया। तिवारीजीको दुखी देख मुझे भी दुःख हुआ, फिर भी मेरी अन्तरात्मा कह रही थी कि श्रीरामशलाकाका उत्तर सही ही होगा। तिवारीजीको ढाँढस बँधाते हुए मैंने पुनः विचार किये गये रामशलाकाके उत्तरको दोहराया, जिसे उन्होंने दुखी मनसे सुना ।

अचानक मेरे मनमें विचार उठा कि पुनः फोनकर स्थिति ज्ञात कर ली जाय तिवारीजी उस दशामें तैयार नहीं हुए। तभी उनके भाईका फोन आया कि रोगीकी पुनः साँसें चलने लगी हैं। डॉक्टर उपचारमें लगे हैं।

मरीजकी दशा उत्तरोत्तर ठीक होती गयी और आज भी वह स्वस्थ एवं प्रसन्नचित्त है।

यह मेरी रामशलाकाके प्रति विश्वास और आस्थाकी परीक्षाका अवसर था। श्रीरामजीकी अहैतुकी कृपाका मुझे साक्षात् अनुभव हुआ और इस घटनासे मेरी रामशलाकाके प्रति निष्ठा और भी सुदृढ़ हो गयी।

[ श्रीइन्दलसिंहजी भदौरिया ]



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shreeraamashalaakaakee kripaanubhooti

mujhe bachapanase hee shreeraamacharitamaanasake prati atishay aastha rahee hai. isakee prishthabhoomimen mere daadaajeeka raamaayanake prati avichal vishvaas tha, jisake kaaran mujhamen bhee maanasake prati vishesh aakarshan utpann ho gaya thaa.

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us kripaanubhootika vrittaant is prakaar hai.

15 janavaree 2014 ee0 ka din thaa. main apane kaaryaalaya-kakshamen apane varishth sahaayak shreeshivakaran tivaaree evan any anubhaaga-sahaayakonke saath kaaryaalayeey kaaryon men laga thaa. kuchh din poorv mere sahaayak tivaareejeeke ek ati nikatake rishtedaarako gambheer beemaareeke upachaarahetu medikal kaॉlejamen bhartee karaaya gaya thaa. ek din poorv unakee tabiyat bahut kharaab ho gayee . yahaantak ki parijanonko antim darshanahetu bulaaya jaane lagaa.

tabhee tivaareejeene bahut anurodh kiya ki aap bataanekee kripa karen ki unake svaasthyakee kya sthiti hogee; kyonki unakee dasha ati gambheer hai. mere kaaphee mana karanepar bhee ve naheen maane, tab vivash hokar mujhe unake prashnaka shreeraamashalaakaase vichaar karana pada़aa. vichaaroparaant yah chaupaaee aayee 'suphal manorath hohun tumhaare" "isaka kal jaanakar tivaareejee ati prasann ho gaye.

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achaanak mere manamen vichaar utha ki punah phonakar sthiti jnaat kar lee jaay tivaareejee us dashaamen taiyaar naheen hue. tabhee unake bhaaeeka phon aaya ki rogeekee punah saansen chalane lagee hain. daॉktar upachaaramen lage hain.

mareejakee dasha uttarottar theek hotee gayee aur aaj bhee vah svasth evan prasannachitt hai.

yah meree raamashalaakaake prati vishvaas aur aasthaakee pareekshaaka avasar thaa. shreeraamajeekee ahaitukee kripaaka mujhe saakshaat anubhav hua aur is ghatanaase meree raamashalaakaake prati nishtha aur bhee sudridha़ ho gayee.

[ shreeindalasinhajee bhadauriya ]

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जय राधे राधे, राधे राधे
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