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ईश्वर जो करते हैं, अच्छा ही करते हैं

बेटी सयानी हो चुकी थी। बी०एससी०, बी०एड० करनेके पश्चात् टीचरकी नौकरी तो नहीं मिल पायी, लेकिन दिल्ली सरकारमें नौकरी लग गयी। नौकरी बहुत अच्छी नहीं तो बुरी भी नहीं थी। जब भी ऑफिससे छुट्टी मिलती, मैं कहीं-न-कहीं लड़का देखने निकल जाता। बहुत लड़के देखे, परंतु कहीं बात बनने को तैयार नहीं हुई। किसीको हम रिजेक्ट कर देते और कोई हमें रिजेक्ट कर देता। जब कोई मेरी बेटीको अथवा लेन-देनको पसन्द न करता तो मुझे इस बात से बहुत दुःख होता कि मेरी बेटीको इससे कष्ट पहुँचता होगा। यद्यपि मेरी बेटी बहुत समझदार है, पढ़ी-लिखी है, लेकिन पिताके लिये तो वह आज भी बहुत छोटी सी, कोमल-सी बेटी है, जिसे कभी कोई तकलीफ न हो। आखिर एक दिन मैंने हिम्मतकर उसे अपने पास बुलाया और कहा कि मैं कई लड़के किन्हीं कारणोंसे नापसन्द कर चुका हूँ और यदि तुम्हें भी कोई किसी वजहसे नापसन्द करे तो दुखी मत होना। उसने इस सम्बन्धमें मुझे बड़ी ही शालीनतासे उत्तर दिया- पिताजी! आप जो कर रहे हैं, बिलकुल ठीक कर रहे हैं। आप इस तनावसे मुक्त रहें कि यदि मुझे कोई पसन्द नहीं करता तो इससे मैं दुखी होती होऊँगी मैं बिलकुल दुखी नहीं होती; क्योंकि इसको मैं बिलकुल हलके तौरपर लेती हूँ और सच तो यह है कि जब हममें कोई नकारात्मक कमी है ही नहीं तो किसीकी पसन्द या नापसन्दसे मेरे मनपर कोई फर्क नहीं पड़ता। आप मेरी तरफसे निश्चिन्त रहिये और अपना काम करिये। मैं बेटीका उत्तर पाकर आश्वस्त हो गया।

उन दिनों मेरी ड्यूटी शिक्षा एवं विकास मन्त्रीके निवास कार्यालयपर चल रही थी। एक दिन मन्त्रीजीके अतिथिके रूपमें एक साधु उनके घरपर आये, जिनका वहाँपर तीन-चार दिन रुकनेका कार्यक्रम था। साधु तो बहुत देखे, लेकिन इतने अद्भुत व्यक्तित्वके साधु पहली बार देखे थे। छ: फुटसे ऊँचा कद, हृष्ट-पुष्ट शरीरलम्बी-लम्बी जटाएँ एवं दाढ़ी-मूंछ यद्यपि किसी भी प्रकारको गन्धसे मुझे एलर्जी है, लेकिन साधुजी जिधरसे निकल जाते, उधरका पूरा वातावरण अजीब-सी मनमोहक सुगन्धसे भर जाता मन्त्रीजी के निवास कार्यालय के माध्यमसे मेरा उनसे सीधा सम्पर्क रहता। मैं उनसे अत्यधिक प्रभावित था। वे अपनी कोई भी छोटी-मोटी समस्या बताते तो मैं उसे तुरन्त हल करनेका प्रयास करता।

जब वे साधु मन्त्रीजीके घरसे विदा होने लगे. तो विदाईसे पहले वे अकेले मेरे कमरेमें आये और उन्होंने कहा—'शर्माजी, मैं आपकी सेवासे बहुत प्रसन्न है. आपकी कोई समस्या हो तो मुझे अवश्य बतायें।' मैंने उनको प्रणाम करते हुए उनसे आशीर्वाद चाहा और साथ ही अपनी समस्या भी बता दी कि बेटी शादीके लायक है-उसे वर कैसा और कबतक मिलनेकी आशा है? साधुजीने कुछ पलके लिये आँखें बन्द कर लीं और मेरी बेटीका नाम, जन्मतिथि एवं जन्मका समय पूछा। तीनों जानकारी मिलनेके तुरंत पश्चात् उन्होंने इस प्रकार बोलना आरम्भ किया-पहली बात बेटी बहुत भाग्यवान है राजयोग है, अच्छी पद-प्रतिष्ठावाला वर मिलेगा और दूसरी बात जब एक बार रिश्ता बनते-बनते समाप्त हो जाय तो समझना उसके लिये योग्य वर मिलनेवाला है। साधुजीने आँखें खोलीं और मुझे आशीर्वाद देकर विदा हो गये।

साधुजीकी बात भूल मैं यथावत् अपने कार्यमें लग गया। जब भी मौका मिलता, मैं लड़केकी खोजमें निकल जाता। आखिर एक लड़का पसन्द आया-सी०ए० कर रहा था-दो विषयोंका रिजल्ट आना बाकी था। बेटीको | दिखाया गया-बेटी भी पसन्द कर ली गयी। शुभ मुहूर्त देखकर लड़केको शकुनका नेग आदि दे दिया गया। मैं निश्चिन्त हो बेटीके विवाहकी तैयारी करने लगा।

अकस्मात् एक शाम लड़के के पिताजीका फोन आया कि लड़का शादीको मना कर रहा है। मैं उनके शब्द सुनकर सन्न रह गया। अपने आपको काबूकर मैंनेपूछा कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि लड़का अब मना कर रहा है? इसका कोई सन्तोषजनक उत्तर वे नहीं दे सके। हुआ यह कि लड़केके सी०ए० के जिन दो विषयोंका परिणाम आना था, वह आ गया था और इस प्रकार उसने सी०ए० कम्प्लीट कर ली थी। उसे और उसके परिवारको लगा कि अब लड़का सी०ए० हो गया है, कोई और अच्छी पैसेवाली पार्टी मिल जायगी। इस प्रकार उनकी नीयत बदल गयी और रिश्ता कैंसिल हो गया। इस घटनाकी वजहसे कुछ दिन तनावमें रहनेके पश्चात् मेँ 'यही ईश्वरेच्छा है' - ऐसा सोचकर सामान्य हो गया और मनको समझा लिया कि साधुजीने कहा था कि जब कोई रिश्ता बनते-बनते टूट जाय तो समझना कि अब योग्य वर मिलनेवाला है। इस प्रकार साधुजीकी एक बात तो पूरी हो चुकी थी।

एक दिन सायंकाल मेरे एक पहचान के सज्जन, जो दूरके रिश्तेदार भी हैं, उनका फोन आया और अन्य बातोंके अतिरिक्त उन्होंने यह भी पूछा कि बेटीकी शादी तो तय हो गयी होगी। उन्हें पता नहीं था कि रिश्ता कैंसिल हो चुका है। मैंने विस्तारसे उन्हें सारी बात बतायी तो उन्होंने मुझे चिन्ता न करनेके लिये कहकर कहा कि एक लड़का, नयी दिल्ली में है: जाकर देख लें। मैंने उनसे लड़केके घरका फोन नम्बर लेकर लड़के के पिताजीसे बात की और निवेदन किया कि यदि उनकी अनुमति हो, तो मैं लड़केको उसके ऑफिसमें देख लूँ मास्टरजीसे फोनपर किये गये वार्तालापसे लगा कि मैंने किसी सज्जन व्यक्तिसे बात की है।

एक दिन मैंने लड़केके ऑफिस जानेका कार्यक्रम बनाया। मैंने लड़केको देखा और कुछ मिनटकी मुलाकात केपश्चात् ही मैंने उसे अपनी बेटीके लिये उपयुक्त वरके
रूपमें चयनित कर लिया।

आगे बात बढ़ानेके लिये मैं एक दिन अपनी पत्नीके साथ उसके घर पहुँच गया। वहाँपर उसके माता-पिताजीसे भेंट की सब कुछ ठीक-ठाक था,लेकिन उनके घरको देखकर मेरे मनमें कुछ शंका हुई कि कहीं ऐसा न हो कि दिल्लीकी मोस्ट पॉल्यूटिड एरिया गाँधीनगर में मात्र ३५ वर्ग गजके मकानमें रहनेवाला मैं और नक्शेके हिसाब से लगभग १००० वर्ग गजमें बना हुआ उनका मकान, 'बात न बननेका' कारण न बन जाय। बातों ही बातोंमें जब मैंने अपने छोटे से मकानका जिक्र मास्टरजीसे किया तो उन्होंने मेरा संकोच दूर करते हुए कहा कि 'शर्माजी। यह मकान तो छः साल पहले बना है, इससे पहले तो हम भी गाँवके छोटे से मकानमें ही गुजारा करते थे।' मास्टरजीकी बातने मेरे दिलको छू लिया। इस बातसे उनकी महानता झलकती थी।

बेटी पसन्द कर ली गयी। तत्पश्चात् शादीसे पहले के सभी रस्मो-रिवाज पूरे करते-कराते दिनांक २१ फरवरी, १९९६ ई० को मेरी बेटीकी शादी हो गयी। बेटीको ससुरालमें अनुकूल वातावरण मिला। वह प्रसन्न थी और जब बेटी प्रसन्न हो तो संसारका सबसे सुखी व्यक्ति उस बेटीका पिता होता है और इस प्रकार मैं प्रभुकी कृपासे निश्चिन्त हो गया।

बेटीकी शादीके ठीक एक वर्ष पश्चात् शिवरात्रिके अवसरपर मैं अपने बच्चों एवं बेटी-दामादके साथ नीलकण्ठ महादेवके दर्शन के लिये हरिद्वार होते हुए ऋषीकेश पहुँचा। जब हम ऋषीकेशसे ऊपर पहाड़ोंपर चढ़ाई चढ़ रहे थे, तब दामादजीकी विलक्षण बुद्धिके विषयमें कई बातें पता चलीं। मैंने दामादजीसे कहा कि आप आई०ए०एस० या पी०सी०एस० आदिकी तैयारी क्यों नहीं करते? सन्तोषी प्राणीकी भाँति उन्होंने कह दिया कि जो मिल गया, वही ठीक है। लेकिन मुझे लगा कि कहीं किसी कोनेमें उन्होंने मेरी इस बातका नोटिस ले लिया था। हम नीलकण्ठ महादेवके दर्शनकर दिल्ली वापस आ गये।

एक दिन बेटीका फोन आया पिताजी इन्होंने आई०ए०एस० का फार्म भर दिया है अब तैयारी कर रहे हैं। फिर एक दिन समाचार आया, यू०पी०एस०सी०से आई०ए०एस० का रिटेन पास कर लिया है। फिर पता चला कि इण्टरव्यू भी क्लीयर हो गया है। अब वे उच्च अधिकारी बन चुके थे ।

मुझे साधुजीकी दूसरी बात याद आयी। उन्होंने कहा था- 'बेटी बहुत भाग्यवान् है, अच्छी पद प्रतिष्ठावाला वर मिलेगा।' साधुजीकी दूसरी भविष्यवाणीभी सत्य सिद्ध हो चुकी थी

आज सोचता हूँ-सी०ए० लड़केसे बात नहीं बन पायी, उस समय तो दुःख हुआ था, लेकिन आज अच्छा लग रहा है - ईश्वर जो करते हैं, अच्छा ही करते हैं। 'ईश्वरः यत्करोति शोभनमेव करोति ।'

[ श्री एम० एल० शर्माजी ]



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eeshvar jo karate hain, achchha hee karate hain

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[ shree ema0 ela0 sharmaajee ]

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रसिया को नार बनावो री रसिया को
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