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सुन्दरकाण्डके प्रभावसे रोगमुक्ति

मेरे दादाजी डॉ० मदनलाल गोयनका चूरू (राजस्थान) के रहनेवाले थे। वे तथा उनके सुपुत्र डॉ० मोतीलाल गोयनका (मेरे पिताजी) तो आस्तिक और धार्मिक आचार-विचारके थे; किंतु तीसरी पीढ़ीमें मैं नास्तिकतावादी हो गया। मुझे भगवान्‌के नामसे चिढ़ थी। मैं हमेशा आधुनिक रंगमें रँगा रहा। मेरा जन्मसन् १९३७ में चूरूमें हुआ। पढ़कर १९५९ में कलकत्ता आया । १९५९ से १९७५ तक 'बिड़ला ब्रदर्स' में काम किया। ६ मार्च १९७५ को अचानक तबीयत खराब हो गयी। मार्च १९७५ से नवम्बर १९७७ तक मेरा मस्तिष्क खराब रहा। कलकत्ताके बड़े-बड़े डाक्टरोंसे तथा दिल्ली, मेरठ, चूरू आदि स्थानोंके सुप्रसिद्ध चिकित्सकोंसेऔषधोपचार कराया। ऐलोपैथिक, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक दवाएँ और उपचार तथा जन्तर-मन्तर, झाड़-फूँक सभी कुछ किया-कराया गया, किंतु कोई लाभ नहीं हुआ। इस बीच दवा तथा उपचारमें लगभग अस्सी हजार रुपये लग गये। काम छूट गया। एक पैसा कहींसे मिला नहीं। परिवारमें हम छः प्राणी थे। पिताजी रिटायर हो गये थे। माताजीको मेरी चिन्तामें हृदयकी बीमारी हो गयी। चारों तरफ अन्धकार-ही-अन्धकार दृष्टिगोचर होता था।

एक दिन दुखी और अत्यन्त निराश होकर मैं आत्महत्याके विचारसे 'दक्षिणेश्वर' गया। माँ कालीके दर्शन किये। वहीं एक साधु कोनेमें बैठा था, बोला 'बेटा! तुम दुखी हो, यह दुःख तुम्हारे अपने ही कारण है। भगवान्पर विश्वास रखो। घर वापस लौट जाओ और नित्यप्रति सुन्दरकाण्डका पाठ किया करो, सब ठीक हो जायगा।'विश्वास तो था नहीं, पर मरता क्या न करता ? पण्डितजीसे पाठ शुरू कराया। ६ नवम्बर ७७ से विधिपूर्वक रामचरितमानसके सुन्दरकाण्डका पाठ आरम्भ हुआ। ७ नवम्बरसे ही मन तथा स्वास्थ्यका ठीक होना शुरू हो गया। पाठकी पूर्णाहुति होते-होते भगवान् श्रीरामकी कृपासे पूर्ण स्वस्थ हो गया। तबसे भगवान् श्रीरामकी कृपासे स्वास्थ्य, पैसा, काम सभी कुछ इतना सुन्दर है कि मनमें विचार होता है- 'मुझ जैसे नास्तिक आदमीपर जब भगवान्‌की इतनी दया है तो भगवद्विश्वासी भगवान्के अनन्य भक्तोंके ऊपर कितनी होती होगी।' मुझे लगता है कि मेरी आत्मशुद्धि तथा मेरे हितके लिये ही भगवान् ने मुझे मानसिक तथा शारीरिक कष्ट दिया, अथवा वह मेरे पूर्वकृत किन्हीं क्रूर कर्मोंका प्रभाव रहा होगा, जो कि सुन्दरकाण्डके अनुष्ठानके प्रभावसे शान्त हो गया और मुझे सब प्रकारका समाधान मिला।

[ श्रीरतनजी गोयनका ]



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[ shreeratanajee goyanaka ]

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शिव कैलाशों के वासी, धौलीधारों के राजा
शंकर संकट हारना, शंकर संकट हारना
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