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सूर्यार्घ्यदानसे रोगमुक्ति

मेरे पड़ोसमें एक मुसलमान दर्जी ‘अधकपारी' (आधीसीसी) रोगसे अत्यधिक पीड़ित थे। सभी प्रकारकी चिकित्सा एवं झाड़-फूँक आदि विविध उपचारोंमें व्यय की गयी हजारोंकी धनराशि निष्फल हो चुकी थी। एक दिन वे मेरे यहाँ आये और अपनी दुःखद गाथा सुनाकर रोने लगे। मैंने उन्हें सांत्वना दी और रोगमुक्तिका भरोसा भी दिलाया। पूछताछके क्रममें ज्ञात हुआ कि वे नियमितरूपसे दिनमें पूर्वाभिमुख तथा रात्रिमें पश्चिमाभिमुख होकर ही मल-मूत्रका त्याग करते हैं। मैंने सुन रखा था कि रविवारको, विशेषरूपसे जो व्यक्ति प्रातः - सूर्योदयकालमें पूर्व तथा सायंकाल - सूर्यास्तके समय पश्चिम दिशाकी ओर मुँह करके मल-मूत्र त्यागता है, वह ' अधकपारी' जैसे भयंकर सिरदर्द-रोगसे आक्रान्त हो जाता है। उस जनश्रुतिके आधारपर रोग पहचानते देर न लगी। फलतः मैंने उन्हें उस अभ्यासको बदलनेकीसलाह दी और दिनमें उत्तराभिमुख एवं रात्रिमें दक्षिणाभिमुख होकर ही मल-मूत्र त्यागनेका परामर्श दिया। साथ ही उनसे आग्रह किया कि वे प्रतिदिन नियमितरूपसे शौचादिसे निवृत्त होकर स्नान करके पवित्र हो, श्रीसूर्यनारायणको जल (अर्घ्यदान) दिया करें और विनीतभावसे अपनी पिछली भूलोंके लिये उनसे क्षमा याचना करनेका संकल्प लें।

'मरता क्या न करता।' वे तत्काल मेरी सलाहके अनुरूप नियम पालनमें तत्पर हो गये। मात्र एक मासतक ही इस नियमका पालन करते ही भगवान् सूर्यनारायणकी आराधनाके अलौकिक प्रभावका सुपरिणाम स्पष्ट होने लगा और मात्र तीन महीनेके बाद वे उस असाध्य रोगसे पूर्णतः मुक्त हो गये। इसके पश्चात् उस आराधनाके प्रति विशेष आस्थावान् होनेके कारण वे आजीवन उस नियमका पालन बड़ी श्रद्धासे करते रहे।

[ श्रीमदनमोहनजी गुप्त 'मदन']



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sooryaarghyadaanase rogamukti

mere pada़osamen ek musalamaan darjee ‘adhakapaaree' (aadheeseesee) rogase atyadhik peeda़it the. sabhee prakaarakee chikitsa evan jhaada़-phoonk aadi vividh upachaaronmen vyay kee gayee hajaaronkee dhanaraashi nishphal ho chukee thee. ek din ve mere yahaan aaye aur apanee duhkhad gaatha sunaakar rone lage. mainne unhen saantvana dee aur rogamuktika bharosa bhee dilaayaa. poochhataachhake kramamen jnaat hua ki ve niyamitaroopase dinamen poorvaabhimukh tatha raatrimen pashchimaabhimukh hokar hee mala-mootraka tyaag karate hain. mainne sun rakha tha ki ravivaarako, vishesharoopase jo vyakti praatah - sooryodayakaalamen poorv tatha saayankaal - sooryaastake samay pashchim dishaakee or munh karake mala-mootr tyaagata hai, vah ' adhakapaaree' jaise bhayankar siradarda-rogase aakraant ho jaata hai. us janashrutike aadhaarapar rog pahachaanate der n lagee. phalatah mainne unhen us abhyaasako badalanekeesalaah dee aur dinamen uttaraabhimukh evan raatrimen dakshinaabhimukh hokar hee mala-mootr tyaaganeka paraamarsh diyaa. saath hee unase aagrah kiya ki ve pratidin niyamitaroopase shauchaadise nivritt hokar snaan karake pavitr ho, shreesooryanaaraayanako jal (arghyadaana) diya karen aur vineetabhaavase apanee pichhalee bhoolonke liye unase kshama yaachana karaneka sankalp len.

'marata kya n karataa.' ve tatkaal meree salaahake anuroop niyam paalanamen tatpar ho gaye. maatr ek maasatak hee is niyamaka paalan karate hee bhagavaan sooryanaaraayanakee aaraadhanaake alaukik prabhaavaka suparinaam spasht hone laga aur maatr teen maheeneke baad ve us asaadhy rogase poornatah mukt ho gaye. isake pashchaat us aaraadhanaake prati vishesh aasthaavaan honeke kaaran ve aajeevan us niyamaka paalan bada़ee shraddhaase karate rahe.

[ shreemadanamohanajee gupt 'madana']

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