आप विश्वास करें, इस कलियुगमें भी देवगणकृपा करते हैं तथा समय पड़नेपर वे साक्षी भी देते हैं। कच्छके राजाओंमें राव देशलकी श्रद्धा तथा भगवद्भति लोकविश्रुत है।
एक दिन कच्छको राजधानी 'भुज' में एक अद्भुत वाद (फरियाद आया एक साहूकारने एक पटेलपर दावा दायर कर दिया। दस्तावेज लिखकर देनेवाला किसान गरीब था उसने उसमें लिखा था कि-'रावजी (तत्कालीन राजा) के छापकी एक हजार कोरी (स्थानीय) रजतमुद्रा) की रोकड़ी मैंने तुम्हारे पाससे ब्याजपर ली है। समयपर ये कोरियाँ मैं आपको ब्याजके साथ भर दूंगा। दस्तावेजके नीचे साक्षियोंके नाम हैं। सबसे नीचे 'साख श्रीसूरजकी' लिखा है।'
आज उसी दस्तावेजने राजदरबारके सामने एक विकट समस्या खड़ी कर दी है। किसान कहता है
'एक हजार कोरियाँ ब्याजसहित साहूकारको भर दी हैं।' साहूकार कहता है-'बात असत्य है। हमको एक कोरी भी नहीं मिली है। यह झूठ बोलता है। मेरे पास पटेलकी सहीवाला दस्तावेज मौजूद है।'
इधर दस्तावेज कहता है-'किसानको एक हजार कोरियाँ भरने को हैं।' किसानने कोरी चुकती कर दी, इस बातका कोई साक्षी नहीं है-कागजपर ऐसा कोई चिह्न भी नहीं है। अदालतने साक्षी तर्क एवं कानूनके आधारपर पूरी छानबीनकर सभी प्रमाण किसान पटेलके विरुद्ध प्राप्त किये। कोई भी बात किसानके पक्षमें नहीं है। प्रमाणसे सिद्ध होता है-'किसान झूठा है' और T पटेलके विरुद्ध फैसला भी सुना दिया जाता है।
'भुज' की राजगद्दीपर उस समय राव देशलजी बाबा विराजमान थे। प्रखर मध्याह्नका समय था। तभी वाहरसे करुणक्रन्दन सुनायी पड़ा
'महाराज मेरी रक्षा करो-रक्षा करो, मैं गरीब मनुष्य बिना अपराधके मारा जा रहा हूँ।' किसानकी करुण चीख सुनकर रावजी नंगे पाँवयकायक बाहर आये। राजधर्मका यही तकाजा है। 'कौन है भाई?' महारावकी शान्त, मीठी वाणीने वातावरणमें मधुरता भर दी।
'चिरंजीव हों रावजी!' किसानका कण्ठ छलाछल भर गया। वह धैर्य धारणकर बोला- 'मैं एक हजार कोरीके लिये आँसू नहीं बहाता हूँ। मेरे सिरपर झूठ बोलनेका कलंक आता है, वह मुझसे सहा नहीं जाता; धर्मावतार! मुझे सच्चा एवं उचित न्याय चाहिये, गरीबनिवाज !!
पटेलने अपनी सारी राम-कहानी कच्छके अधिपति देशलजी बाबाके चरणोंमें निवेदित की। महारावने सभी कागजात भुजकी अदालतसे अपने पास मँगवाये। उसके एक-एक अक्षरको ध्यानपूर्वक पढ़ा। किसानकी सचाई कागजों में तो कहीं दीख न पड़ी, किंतु उसके नेत्रों में निर्दोषता झाँक रही थी।
कागजोंको देखकर कच्छके अधिपतिने निराशापूर्ण निःश्वास लेते हुए कहा- 'क्या करूँ भाई! तूने कोरियाँ भर दी हैं, पर इसका कुछ भी प्रमाण इन कागजों में उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।'
"प्रमाण तो है, अन्नदाता! मैंने अपने हाथसे ही इस दस्तावेजपर काली स्याहीसे चौकड़ी ( ऐसे निशान) लगाये हैं'– किसानने अपनी प्रामाणिकताका निवेदन करते हुए कहा।
'चौकड़ी!' महाराज देशलजी बाबाने चौंककर कहा। 'हाँ धर्मावतार! चौकड़ी !! काली रोशनाईकी बड़ी-सी चौकड़ी!!! चारों कोनोंपर कागजके चारों ओर मैंने अपने हाथसे लगायी हैं, चार काली चौकड़ियाँ ।' 'अरे, चौकड़ी तो क्या, इसपर तो काला बिन्दु भी कहीं दिखायी नहीं देता' - राजाने कहा।
'यह सब चाहे जैसे हुआ हो, राजन्! आपके चरणोंपर हाथ रखकर मैं सत्य 'कहता हूँ'- किसानने बाबाके दोनों चरणोंपर अपने दोनों हाथ रख दिये। पटेल की वाणीमें सचाई साफ-साफ झलकतीथी। यह समस्या अब और भी कठिन हो गयी। महाराजके सिरपर पसीना आ गया, आँखोंकी त्योरियाँ चढ़ गयीं। तुरंत उस साहूकारको बुलाया गया। वह राजाके सम्मुख उपस्थित हुआ। अब तो कचहरीके सभी लोग भी आकर बैठ गये थे तथा किसानके न्यायको तौलते हुए इस न्यायमूर्ति राजाके न्यायको देख रहे थे। "सेठ! मनमें कुछ भी छल-कपट हो तो निकाल
देना।" राजाने साहूकारको गम्भीरतापूर्वक कहा 'अन्नदाता ! जो कुछ होगा, वह तो यह कागज स्वयं ही कहेगा, देख लीजिये।'
राजाने पुनः दस्तावेज हाथमें लिया। राजाकी दृष्टि कागजके कोने-कोनेपर सीधी चली जा रही थी। परंतु 'चौकड़ी' के प्रश्नका उत्तर किसी प्रकार नहीं मिल रहा था। इतनेमें राजाकी दृष्टि कागजके अन्तिम अक्षरोंपर पड़ी-'साख श्रीसूरजकी'।
अब विचार राजाके मस्तिष्कमें चढ़ गये-सूरज सत्य साक्षी देंगे ? और उन्होंने वह दस्तावेजका कागज सूर्यभगवान के सामने रख दिया।
'हे सूर्यदेव इस दस्तावेजमें आपको साक्षी लिखी है। मैं 'भुज' का राजा यदि आज न्याय न कर सका तो दुनिया मेरी हँसी उड़ायगी।' राजाने मन-ही-मन श्रीसूर्यनारायणसे बुद्धिदानकी प्रार्थना की और कागजको सूर्यके सम्मुख रख दिया। फिर वे टकटकी लगाकर ध्यानपूर्वक कागजको देखने लगे। एक चमत्कार उभरा ! एक हलकी-सी पानीके दाग सरीखी स्पष्ट चौकड़ी दस्तावेजके कागजपर दीखने लगी। फिर तो कच्छाधिपति ऐसे आनन्दसे हर्षित हो गये, मानो उन्होंने किसी महान देशको जीत लिया हो। आकाशमें जगमगाते
हुए सूर्यनारायणके सामने उनके दोनों हाथ जुड़ गये। अब राजाने किसानसे पूछा- 'तुमने कागजपर चौकड़ी लगायी, उसका कोई साथी भी है?"
'काला कौआ भी नहीं गरीबनिवाज! साक्षी तोकोई भी नहीं था' पटेलने निवेदन किया। 'परंतु इसमें तो लिखा है न कि 'साक्षी श्रीसूर्यजी।''है है-अन्नदाता' साहूकारने उत्तर दिया। 'यह तो ऐसा लिखना पूर्वपरम्परासे चला आता है,रिवाजमात्र है। भला, सूर्य कभी साक्षी देते हैं ?' राजानेकिसानसे हँसकर पूछा।
"देवता तो साक्षी दे सकते हैं, राजन्!' परंतु अब तो कलियुग आ गया है। दुनियाके मनुष्योंकी आँखें सूर्यकी साक्षी कैसे समझ सकती हैं? कैसे पढ़ सकती हैं? - पटेलने श्रद्धापूर्वक कहा।
" तनिक इधर तो आइये सेठजी राजाने साहूकारको बुलाया और उसे सचेतकर सूर्यके सामने उस दस्तावेजको घर दिया।
साहूकारकी आँखें देखती ही रह गयीं। दस्तावेजपर फीकी सफेद चौकड़ी साफ-साफ दीख रही थी। साहूकारका मुँह काला- स्याह हो गया।
'बोल, अब सच्चा बोल! स्याहीकी चौकड़ी तूने कैसे मिटायी थी?' राजाने तीक्ष्ण स्वरमें साहूकारसे पूछा। 'गरीबपरवर! क्षमा करें'-थर-थर काँपता: साहूकार अपनी काली करतूतका वर्णन करता हुआ बोला "रोशनाईसे लगायी चौकड़ीका निशान जब गीला ही था, उसी समय मैंने उसपर महीन पीसी हुई चीनी चारों और छिड़क दी और उस दस्तावेजका कागज चींटियोंके बिलके बिलकुल पास रख दिया। चींटियोंने चारों तरफकी चौकड़ीपर पड़ी चीनीमें लगी रोशनाई भी चाट ली चीनी के साथ एकरस बने स्याहीके अणु-अणु चीटियोंने चूस लिये इस प्रकार सम्पूर्ण चौकड़ी उड़ लिये। गयी दीनानाथ!'
यह सुनकर सभी स्तब्ध रह गये। सूर्यदेवकी साक्षीने किसानके प्राणका तथा राजाके न्यायका संरक्षण किया
पटेलको उत्तम न्याय प्राप्त हुआ। इससे महाराव देशलजी (बाबा) की दैवी शक्तिके रूपमें उनकी कीर्तिका डंका सम्पूर्ण कच्छराज्यमें बज गया। फिर तो 'देशरा-परमेशरा' का देव दुर्लभ विरद 'देशलजी बाबा' के नामके साथ सदा-सर्वदा के लिये जुड़ गया। बोलिये भगवान् सूर्यनारायणकी जय!
[ श्रीअवधकिशोरदासजी श्रीवैष्णव 'प्रेमनिधि' ]
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'kaala kaua bhee naheen gareebanivaaja! saakshee tokoee bhee naheen thaa' patelane nivedan kiyaa. 'parantu isamen to likha hai n ki 'saakshee shreesooryajee.''hai hai-annadaataa' saahookaarane uttar diyaa. 'yah to aisa likhana poorvaparamparaase chala aata hai,rivaajamaatr hai. bhala, soory kabhee saakshee dete hain ?' raajaanekisaanase hansakar poochhaa.
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" tanik idhar to aaiye sethajee raajaane saahookaarako bulaaya aur use sachetakar sooryake saamane us dastaavejako ghar diyaa.
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'bol, ab sachcha bola! syaaheekee chaukada़ee toone kaise mitaayee thee?' raajaane teekshn svaramen saahookaarase poochhaa. 'gareebaparavara! kshama karen'-thara-thar kaanpataa: saahookaar apanee kaalee karatootaka varnan karata hua bola "roshanaaeese lagaayee chaukada़eeka nishaan jab geela hee tha, usee samay mainne usapar maheen peesee huee cheenee chaaron aur chhida़k dee aur us dastaavejaka kaagaj cheentiyonke bilake bilakul paas rakh diyaa. cheentiyonne chaaron taraphakee chaukada़eepar pada़ee cheeneemen lagee roshanaaee bhee chaat lee cheenee ke saath ekaras bane syaaheeke anu-anu cheetiyonne choos liye is prakaar sampoorn chaukada़ee uda़ liye. gayee deenaanaatha!'
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[ shreeavadhakishoradaasajee shreevaishnav 'premanidhi' ]