⮪ All भगवान की कृपा Experiences

हम लोग क्यों ये नहीं समझ पाते कि हमें कष्ट क्यों होता है ?

कष्ट क्यों होता है ?- तुम लोग ये नहीं समझ पाते कि वे किसलिये क्या करते हैं? कुछ देरके लिये एक लड़केको लो, जिसकी माँ उसकी खूब अच्छी तरह सफाई करके गोदमें लेना चाहती है; उस वक्त क्या वह एक दिन उसके पैर, दूसरे दिन हाथ, तीसरे दिन सिर धुलायेगी; इस तरह सफाई करनेके बाद कहीं गोद लेगी? माँ एक दिन जबरदस्ती उसकी सफाई कर देती है, उस वक्त लड़का रोता-चिल्लाता हैं, फिर भी वह नहीं छोड़ती। अच्छी तरहसे नहलाने धुलानेके लिये थोड़ा कष्ट देना ही पड़ता है, रुलाकर सफाई की जाती है। तुमलोग ये जानते ही नहीं कि कितने जन्मोंके कितने संस्कार रहते हैं, वह सभी यदि एक ही जन्ममें अधिक कष्ट पाकर साफ हो जायें, तो क्या इसे उनकी कृपा नहीं कहोगे ?

ईश्वरको कैसे पुकारें ? – तुम लोगोंका मन चारों तरफ बिखर गया है, इसलिये ठीकसे पुकार नहीं पाते। जिस पुकारपर उन्हें पाया जा सकता है, वह पुकार कहाँ होती है? उनके बिना मेरा चल नहीं रहा है, इस तरहका अभावबोध होनेपर तब ठीक-ठीक पुकार होती है। जब भूख ही नहीं, तब उन्हें पाओगे कैसे? (उपाय) सत्संग करना चाहिये।... पुकारनेकी तरह अगर पुकारा जाय, तो वे बिनादर्शन दिये नहीं रह सकते।

जप- अनुष्ठानका फल भगवान्‌को क्योंसमर्पित करते हैं ? - देखो! बच्चे अगर कोई अच्छी चीज पाते हैं और उसे अपने पास रखना चाहें तो वह चौपट हो जा सकती है; क्योंकि उस चीजकी वास्तविक कीमत शायद वे नहीं समझ पाते, किंतु उसी वस्तुको माँके निकट रखनेको अगर वे दे दें तो माँ उसकी कीमत समझेगी और यत्नसे रख देगी। इसके बाद फिर वह उस सामानको बच्चोंके हाथ नहीं सौंपती।

बादमें जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और वस्तुकी कीमत समझनेलायक हो जाते हैं, तब माँ उन लोगोंकी चीजें उन्हें सौंप देती है । उस वक्त उन वस्तुओं का उपयोग वे तरह-तरहसे करते हुए लाभान्वित होते हैं।

उसी प्रकार जप करनेका एक शुभ फल होता है। कोई अगर जप करनेके पश्चात् जपका फल भगवान्‌को सौंप देता है, तो वह नष्ट नहीं होता। भगवान् समयानुसार पुनः उसे वापस कर देते हँ अर्थात् जब वह यह अनुभव करता है कि उसकी कामना-वासना क्रमशः पूरी होती जा रही है, तब वह यह समझ जाता है कि भगवान् उसके जपोंका फल वापस करते जा रहे हैं। यही है जप- समर्पणका अर्थ । [ माँ श्री श्रीआनन्दमयी ]



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Real Life Experience प्रभुकृपा


ham log kyon ye naheen samajh paate ki hamen kasht kyon hota hai ?

kasht kyon hota hai ?- tum log ye naheen samajh paate ki ve kisaliye kya karate hain? kuchh derake liye ek lada़keko lo, jisakee maan usakee khoob achchhee tarah saphaaee karake godamen lena chaahatee hai; us vakt kya vah ek din usake pair, doosare din haath, teesare din sir dhulaayegee; is tarah saphaaee karaneke baad kaheen god legee? maan ek din jabaradastee usakee saphaaee kar detee hai, us vakt lada़ka rotaa-chillaata hain, phir bhee vah naheen chhoda़tee. achchhee tarahase nahalaane dhulaaneke liye thoda़a kasht dena hee pada़ta hai, rulaakar saphaaee kee jaatee hai. tumalog ye jaanate hee naheen ki kitane janmonke kitane sanskaar rahate hain, vah sabhee yadi ek hee janmamen adhik kasht paakar saaph ho jaayen, to kya ise unakee kripa naheen kahoge ?

eeshvarako kaise pukaaren ? – tum logonka man chaaron taraph bikhar gaya hai, isaliye theekase pukaar naheen paate. jis pukaarapar unhen paaya ja sakata hai, vah pukaar kahaan hotee hai? unake bina mera chal naheen raha hai, is tarahaka abhaavabodh honepar tab theeka-theek pukaar hotee hai. jab bhookh hee naheen, tab unhen paaoge kaise? (upaaya) satsang karana chaahiye.... pukaaranekee tarah agar pukaara jaay, to ve binaadarshan diye naheen rah sakate.

japa- anushthaanaka phal bhagavaan‌ko kyonsamarpit karate hain ? - dekho! bachche agar koee achchhee cheej paate hain aur use apane paas rakhana chaahen to vah chaupat ho ja sakatee hai; kyonki us cheejakee vaastavik keemat shaayad ve naheen samajh paate, kintu usee vastuko maanke nikat rakhaneko agar ve de den to maan usakee keemat samajhegee aur yatnase rakh degee. isake baad phir vah us saamaanako bachchonke haath naheen saunpatee.

baadamen jab bachche bada़e ho jaate hain aur vastukee keemat samajhanelaayak ho jaate hain, tab maan un logonkee cheejen unhen saunp detee hai . us vakt un vastuon ka upayog ve taraha-tarahase karate hue laabhaanvit hote hain.

usee prakaar jap karaneka ek shubh phal hota hai. koee agar jap karaneke pashchaat japaka phal bhagavaan‌ko saunp deta hai, to vah nasht naheen hotaa. bhagavaan samayaanusaar punah use vaapas kar dete han arthaat jab vah yah anubhav karata hai ki usakee kaamanaa-vaasana kramashah pooree hotee ja rahee hai, tab vah yah samajh jaata hai ki bhagavaan usake japonka phal vaapas karate ja rahe hain. yahee hai japa- samarpanaka arth . [ maan shree shreeaanandamayee ]

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