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एक छन्दमें चार पातिव्रत्य - प्रसंग  [प्रेरक कथा]
Wisdom Story - Short Story (प्रेरक कहानी)

एक छन्दमें चार पातिव्रत्य - प्रसंग

बिंदिया चाहे तो निज सत से, रवि को राह भुला सकती है। यम के हाथोंसे निज पी के, बिंदिया प्राण बचा सकती है। बिंदिया निज सत से पावक को, चंदन सरिस बना सकती है। शंकर, विष्णु, विरंचि तक को भी, यह शिशु रूप धरा सकती है।
इस छन्दमें 'बिंदिया' के प्रतीकके माध्यमसे नारीके पातिव्रत्य एवं सतीत्व-सम्बन्धी चार प्रसंगोंकी ओर संकेत किया गया है। साहित्य एवं पुराणोंमें प्राप्त होनेवाले ये प्रसंग संक्षेपमें इस प्रकार हैं
1. 'बिंदिया चाहे तो निज सत से, रविको राह भुला सकती है।' पुराणोंमें ऐसे एकाधिक प्रसंग उपलब्ध हैं, जहाँ किसी पत्नीने अपने पतिके प्राणोंके रक्षाहेतु अपने सतीत्वके तेजसे सूर्योदय होना रोक दिया था और अपने पतिका जीवन बचा लिया था ।
शंखचूड़की पत्नी तुलसीको जब ज्ञात हुआ कि कल सूर्योदय होते ही उसका पति भगवान् शंकरसे युद्ध करेगा तो उसने इस युद्धमें अपने पति शंखचूड़के अवश्यम्भावी अन्तको देखते हुए सूर्योदयको रोक दिया था तथा उसके पूर्व अपने पतिके पास पहुँचकर उसे इस विनाशकारी युद्धसे विमुख करनेका प्रयास किया था ।
वैसे इस छन्दमें शाण्डिली और कौशिककी कथाका संकेत है। कौशिक नामक ब्राह्मण पूर्वकृत पापोंके फलस्वरूप कोढ़ी हो गया था तथा अत्यन्त कष्टमय घृणित जीवन जी रहा था, किंतु उसकी पत्नी शाण्डिली (शैव्या) महान् पतिव्रता थी। वह अपने पतिकी सेवामें ही सदा व्यस्त रहती और उसके कष्टोंको दूर करनेका, उसे प्रसन्न करनेका प्रयास करती रहती ।
एक बार उसके पतिने उससे कहा कि 'नगरमें कोई बहुत सुन्दर वेश्या आयी है तथा वह उससे मिलना चाहता है।' उसके इच्छानुसार शाण्डिली उसे अपने कन्धोंपर बैठाकर वेश्यासे मिलाने ले चली। रात्रिका समय था। अँधेरे मार्गमें एक स्थानपर निरपराध माण्डव्य ऋषिको चोरीके सन्देहमें दण्ड देनेके लिये सूलीपर चढ़ा दिया गया था। अँधेरेमें दिखायी न देनेसे शाण्डिलीके कन्धेपर बैठे उसके पतिके पैर सूलीसे टकरा गये। इससे माण्डव्यको अत्यन्त कष्ट हुआ। पीड़ासे व्याकुल हो उन्होंने तत्काल शाप दिया कि 'जिसने ऐसा किया है, वह सूर्योदय होते ही मृत्युको प्राप्त होगा।' ऋषिके वचनोंसे मर्माहत सती शाण्डिलीने कहा- 'यदि ऐसा है तो कल सूर्योदय ही नहीं होगा।
मार्कण्डेयपुराणमें आगे बताया गया है कि सतीके प्रभावसे सूर्योदय नहीं हुआ और इसी प्रकार दस दिन बीत गये। सर्वत्र हाहाकार मच गया। अन्तमें सभी देवता महासती अनसूयाकी शरणमें गये। अनसूयाने सती शाण्डिलीसे सूर्योदयके अभावमें संसारके घोर कष्टका वर्णन किया। पतिकी जीवनरक्षाका वचन पाकर शाण्डिलीने अपना वचन वापस लिया। सूर्योदय हुआ, साथ ही उसके पतिका शरीर निर्जीव हो गया, किंतु सती अनसूयाने अपने वचनानुसार न केवल उसे पुनर्जीवित किया, अपितु उसे स्वस्थ, नीरोग एवं तरुण बनाकर सौ सालकी आयु प्रदान की।
2. 'यमके हाथोंसे निज पी के, बिंदिया प्राण बचा सकती है।' इस कथासे लगभग सभी परिचित हैं कि किस प्रकार राजकुमारी सावित्रीने राजकुमार सत्यवान्से विवाह किया था और मृत्युहेतु पूर्वनिर्धारित दिनपर जब यमराज आये और सत्यवान्के प्राण लेकर चल पड़े, तो सावित्री उनके पीछे-पीछे चलती रही और जबतक अपने पतिके प्राण वापस नहीं पा लिये, तबतक हार नहीं मानी।
आज भी सभी सुहागिन स्त्रियाँ वटवृक्षकी पूजा करती हैं तथा फेरे लेती हैं; क्योंकि इसीके नीचे सत्यवान् -सावित्रीसे सम्बन्धित यह घटना घटी थी। इसीलिये अपने अचल सुहागके लिये 'वट सावित्री' व्रत किया जाता है, कथा सुनी जाती है। वस्तुत: 'सती' और 'सावित्री' शब्द पर्याय जैसे हो गये हैं ।
3.'बिंदिया निज सतसे पावकको, चंदन सरिस बना सकती है।' इतिहास साक्षी रहा है उन महान् सतियोंका, जो अपने पातिव्रत्य और सतीत्वके रक्षाहेतु अपने पतिकी चितापर या जौहरकी ज्वालाओं में हँसते-हँसते अग्निको चन्दनके समान शीतल अनुभव करते हुए अपने जीवनको सफल कर गयीं।
यहाँ कविने जिस प्रसंगविशेषकी ओर इंगित किया है, वह इस प्रकार बताया जाता है।
एक बार राजा भोज रात्रिके समय एकाकी नगर भ्रमण कर रहे थे। एक घरके सामनेसे निकलते समय उनकी दृष्टि पड़ी कि एक पत्नी अपने पतिका सिर अपनी गोदमें रखे उसे सुला रही थी। पति सो चुका था । उसी समय स्त्रीका छोटा-सा बच्चा खेलते-खेलते चूल्हे में गिर गया, जिसमें अग्नि प्रज्वलित थी स्त्री यह देखकर भी अपने पतिकी निद्रा भंग न हो, इस कारण बच्चेको उठाने नहीं गयी। आश्चर्य यह कि बच्चा आगमें पड़ा हँसता हुआ खेल रहा था !
राजा भोज इस आश्चर्यको देखकर वापस आ गये। अगले दिन जब दरबार लगा तो राजा भोजने उपस्थित कवियोंको समस्यापूर्तिहेतु यह समस्या दी
'हुताशनश्चन्दनपङ्कशीतलः ।
ऐसा कहा जाता है कि ऐसी विचित्र समस्याकी पूर्तिमें जब अन्य कवि असफल रहे, तब महाकवि कालिदासने इसकी पूर्ति इस प्रकार की
सुतं पतन्तं प्रसमीक्ष्य पावके
न बोधयामास पतिं पतिव्रता ॥
पतिव्रताशापभये पीडितो
हुताशनश्चन्दनपङ्कशीतलः ॥
अर्थात् अपने बेटेको आगमें गिरते हुए देखकर भी पतिव्रता स्त्रीने पतिको नहीं जगाया और उसकी सेवामें लगी रही। ऐसी पतिव्रतासे डरकर अग्नि भी उसके बेटेके लिये चन्दनके लेपके समान शीतल हो गयी।
4. 'शंकर, विष्णु, विरंचि तक को भी, यह शिशु रूप धरा सकती है।' यह पौराणिक कथा सती - शिरोमणि अनसूयासे सम्बन्धित है। वनवासके समय जब राम, लक्ष्मण और सीता अत्रि ऋषिके आश्रममें आये थे, तो ऋषि अत्रिकी पत्नी अनसूयाने ही सीताको बहुत सुन्दर ढंगसे पातिव्रत्य धर्मकी शिक्षा दी थी।
छन्दमें इंगित कथा इस प्रकार है। एक बार सरस्वती लक्ष्मी और पार्वती इन देवियोंतक महान् सती अनसूयाकी चर्चा पहुँची। उन्होंने उसपर विश्वास न करते हुए अपने पतियों - ब्रह्मा, विष्णु और महेशको अनसूयाके सतीत्वकी परीक्षा लेनेके लिये कहा। तब तीनों देवताओंने देवियोंको समझानेका प्रयास किया तथा पातिव्रत्य और सतीत्वकी महिमा समझायी, किंतु अन्ततः विवश होकर वे तीनों साधुओंका वेश धरकर अनसूयाके यहाँ चले गये।
उस समय अनसूया घरपर अकेली ही थीं। तीनों साधुओंने घरमें विश्रामकी इच्छा प्रकट की। फिर भोजनकी इच्छा प्रकट की। अनसूयाजीने उन्हें सत्कारपूर्वक बैठाकर भोजन करानेका आयोजन प्रारम्भ किया, किंतु तभी साधुओंने कहा कि भोजन कराते समय गृह स्वामिनी वस्त्र नहीं पहने रहेंगी। अनसूयाजीने यह विचित्र बात सुनकर ध्यान-नेत्रोंसे देखा तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश सामने खड़े दिखायी दिये। उन्होंने मन-ही-मन तीनोंको प्रणाम किया। फिर ध्यान लगा अपने पातिव्रत्यके तेजसे उन तीनोंके शिशुरूपकी कल्पना की, फिर क्या था, पलक झपकते ही तीनों देव गोदीके बच्चोंमें बदल गये। फिर उन्होंने बारी-बारीसे उन शिशुओंको गोदमें ले दुग्धपान कराया। तीनों देवियाँ अपने पतियोंको खोजती वहाँ आयीं और उनकी दशा देख अनसूयाजीसे क्षमा माँगी, अनुसूयाजीने उन्हें पुनः वास्तविक रूप प्रदान कर दिया।
पातिव्रत्य और सतीत्व सदासे सुहागिनोंके सबसे बड़े गुण रहे हैं। आजके समाजमें भी परिवारमें नारीका महत्त्वपूर्ण स्थान है तथा उसके त्याग, तपस्या और संघर्षके बलपर ही पूरे परिवारका कल्याण होता है। आज भी ये प्रसंग नारियोंको कठिन समयमें अपने उचित कर्तव्यका बोध करानेमें प्रासंगिक एवं सक्षम हैं।



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ek chhandamen chaar paativraty - prasanga

ek chhandamen chaar paativraty - prasanga

bindiya chaahe to nij sat se, ravi ko raah bhula sakatee hai. yam ke haathonse nij pee ke, bindiya praan bacha sakatee hai. bindiya nij sat se paavak ko, chandan saris bana sakatee hai. shankar, vishnu, viranchi tak ko bhee, yah shishu roop dhara sakatee hai.
is chhandamen 'bindiyaa' ke prateekake maadhyamase naareeke paativraty evan sateetva-sambandhee chaar prasangonkee or sanket kiya gaya hai. saahity evan puraanonmen praapt honevaale ye prasang sankshepamen is prakaar hain
1. 'bindiya chaahe to nij sat se, raviko raah bhula sakatee hai.' puraanonmen aise ekaadhik prasang upalabdh hain, jahaan kisee patneene apane patike praanonke rakshaahetu apane sateetvake tejase sooryoday hona rok diya tha aur apane patika jeevan bacha liya tha .
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2. 'yamake haathonse nij pee ke, bindiya praan bacha sakatee hai.' is kathaase lagabhag sabhee parichit hain ki kis prakaar raajakumaaree saavitreene raajakumaar satyavaanse vivaah kiya tha aur mrityuhetu poorvanirdhaarit dinapar jab yamaraaj aaye aur satyavaanke praan lekar chal pada़e, to saavitree unake peechhe-peechhe chalatee rahee aur jabatak apane patike praan vaapas naheen pa liye, tabatak haar naheen maanee.
aaj bhee sabhee suhaagin striyaan vatavrikshakee pooja karatee hain tatha phere letee hain; kyonki iseeke neeche satyavaan -saavitreese sambandhit yah ghatana ghatee thee. iseeliye apane achal suhaagake liye 'vat saavitree' vrat kiya jaata hai, katha sunee jaatee hai. vastuta: 'satee' aur 'saavitree' shabd paryaay jaise ho gaye hain .
3.'bindiya nij satase paavakako, chandan saris bana sakatee hai.' itihaas saakshee raha hai un mahaan satiyonka, jo apane paativraty aur sateetvake rakshaahetu apane patikee chitaapar ya jauharakee jvaalaaon men hansate-hansate agniko chandanake samaan sheetal anubhav karate hue apane jeevanako saphal kar gayeen.
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raaja bhoj is aashcharyako dekhakar vaapas a gaye. agale din jab darabaar laga to raaja bhojane upasthit kaviyonko samasyaapoortihetu yah samasya dee
'hutaashanashchandanapankasheetalah .
aisa kaha jaata hai ki aisee vichitr samasyaakee poortimen jab any kavi asaphal rahe, tab mahaakavi kaalidaasane isakee poorti is prakaar kee
sutan patantan prasameekshy paavake
n bodhayaamaas patin pativrata ..
pativrataashaapabhaye peedito
hutaashanashchandanapankasheetalah ..
arthaat apane beteko aagamen girate hue dekhakar bhee pativrata streene patiko naheen jagaaya aur usakee sevaamen lagee rahee. aisee pativrataase darakar agni bhee usake beteke liye chandanake lepake samaan sheetal ho gayee.
4. 'shankar, vishnu, viranchi tak ko bhee, yah shishu roop dhara sakatee hai.' yah pauraanik katha satee - shiromani anasooyaase sambandhit hai. vanavaasake samay jab raam, lakshman aur seeta atri rishike aashramamen aaye the, to rishi atrikee patnee anasooyaane hee seetaako bahut sundar dhangase paativraty dharmakee shiksha dee thee.
chhandamen ingit katha is prakaar hai. ek baar sarasvatee lakshmee aur paarvatee in deviyontak mahaan satee anasooyaakee charcha pahunchee. unhonne usapar vishvaas n karate hue apane patiyon - brahma, vishnu aur maheshako anasooyaake sateetvakee pareeksha leneke liye kahaa. tab teenon devataaonne deviyonko samajhaaneka prayaas kiya tatha paativraty aur sateetvakee mahima samajhaayee, kintu antatah vivash hokar ve teenon saadhuonka vesh dharakar anasooyaake yahaan chale gaye.
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सब काम हो रहा है
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वास देदो किशोरी जी बरसाना,
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तू कितनी अच्ची है, तू कितनी भोली है,
ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ ।
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो
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लै गया नन्द किशोर लै गया,
सब दुख दूर हुए जब तेरा नाम लिया
कौन मिटाए उसे जिसको राखे पिया
मेरा अवगुण भरा शरीर, कहो ना कैसे
कैसे तारोगे प्रभु जी मेरो, प्रभु जी
प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि
सादर भारत शीश धरी लीन्ही
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे द्वार,
यहाँ से गर जो हरा कहाँ जाऊँगा सरकार
तेरे बगैर सांवरिया जिया नही जाये
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हे केवट तुम उतराई लो,
तूने गंगा पार उतारा है,
राम नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊ गली
लूट सको तो लूट लो बिन दाम लुटाऊ गली गली,