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जटिल प्रश्नोत्तर  [आध्यात्मिक कथा]
Short Story - Moral Story (Spiritual Story)

एक बार देवर्षि नारदजी महीसागर संगममें स्नान करने पधारे। उसी समय वहाँ बहुत से ऋषि-मुनि भी आ पहुँचे। नारदजीने उनसे पूछा- "महात्माओ ! आपलोग कहाँसे आते हैं ?" उन्होंने बतलाया-'मुने! हमलोग सौराष्ट्र देशमें रहते हैं जहाँके राजा धर्मवर्मा हैं। एक बार उस राजाने दानके तत्त्वको समझनेके लिये बहुत वर्षोंतक तपस्या की। तब आकाशवाणीने उनसे

द्विहेतु षडधिष्ठानं षडङ्गं च द्विपाकयुक् l

चतुष्प्रकारं त्रिविधं त्रिनाशं दानमुच्यते ॥

-अर्थात् दानके दो हेतु, छ: अधिष्ठान, छः अङ्ग दो फल, चार प्रकार, तीन भेद और तीन विनाश-साधन हैं। यह श्लोक कहा और मौन हो गयी। नारदजी। राजाके पूछनेपर भी आकाशवाणीने इसका अर्थ नहीं बतलाया। तब राजाने ढिंढोरा पिटवाकर यह घोषणा करवायी कि जो इस श्लोककी ठीक-ठीक व्याख्या करेगा, उसे मैं सात लाख गौएँ, उतनी ही स्वर्ण मुद्राएँ। तथा सात गाँव दूंगा।' हमलोग सब वहींसे आ रहे हैं। श्लोकका अर्थ दुर्बोध होनेसे उसकी कोई व्याख्या नहीं कर सका है।'नारदजी यह सुनकर बड़े प्रसन्न हुए । वे एक वृद्ध ब्राह्मणका रूप धारण कर धर्मवर्माके पास पहुँचे और कहा – 'राजन्! मुझसे श्लोककी व्याख्या सुनिये और उसके बदले जो देनेके लिये ढिंढोरा पिटवाया है, उसकी सत्यता प्रमाणित कीजिये।' राजाने कहा 'ब्रह्मन् ! ऐसी बात तो बहुतसे ब्राह्मण कह चुके, पर किसीने वास्तविक अर्थ नहीं बताया। दानके दो हेतु कौन हैं ? छ: अधिष्ठान कौन हैं ? छः अङ्ग कौन हैं ? दो फल कौन हैं? चार प्रकार, तीन भेद और तीन विनाश-साधन कौन हैं? इन सात प्रश्नोंको यदि आप ठीक-ठीक बतला सकें तो मैं आपको सात लाख गौएँ, सात लाख स्वर्ण मुद्राएँ और सात गाँव दूँगा।'

नारदजीने कहा—'श्रद्धा' और 'शक्ति' ये दो दानके हेतु हैं; क्योंकि दानका थोड़ा या बहुत होना पुण्यका कारण नहीं होता। न्यायोपार्जित धनका श्रद्धापूर्वक थोड़ा-सा भी दान भगवान्की प्रसन्नताका हेतु होता है। धर्म, अर्थ, काम, लज्जा, हर्ष और भय – ये दानके छः अधिष्ठान कहे जाते हैं। दाता, प्रतिगृहीता, शुद्धि,धर्मयुक्त देय वस्तु, देश और काल ये दानके छः अङ्ग हैं। इहलोकके और परलोकके ये दो फल हैं। त्रिक, काम्य और नैमित्तिकये चार प्रकार है। (कुआँ-पोखरा खुदवाना, बगीचा लगाना आदि जो सबके काम आये वह 'ध्रुव' है। नित्य दान ही 'त्रिक' है। संतान, विजय, स्त्री आदि विषयक इच्छापूर्ति लिये दिया गया दान, 'काम्य' है। ग्रहण, संक्रान्ति आदि। पुण्य अवसरोंपर दिया गया दान 'नैमित्तिक' है।) उत्तम, मध्यम, कनिष्ठये तीन भेद है। दान देकर पछताना, कुपात्रको देना, बिना श्रद्धाके देना अर्थात् पश्चात्ताप, कुपात्र और अश्रद्धा-ये तीन दानके नाशक हैं। इस प्रकार सात पदोंमें बंधा हुआ जो दानका माहात्म्य है, उसे मैंने तुमको सुना दिया।

इसपर धर्मवर्मा बहुत चकित हुआ, उसने कहा 'मुने! आप कौन हैं? आप कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकते। मैं आपके चरणोंमें मस्तक रखकर आपको प्रसन्न करना चाहता हूँ। आप कृपया अपना परिचय दीजिये।' नारदजीने कहा-'मैं देवर्षि नारद हूँ। अब हम जो मुझे भूमि दे रहे हो, इसे मैं तुम्हारे ही पास धरोहर छोड़ रहा हूँ। आवश्यकता पड़नेपर ले लूँगा।' याँ कहकर वे रैवतक पर्वतपर चले गये और वहाँ विचारने लगे कि मैंने भूमि तो पा ली, पर अब योग्य ब्राह्मण कहाँ मिले जिसे मैं भूमि दान दूँ। यह सोचकर उन्होंने बारह प्रश्न बनाये और उन्हें ही गाते हुए वे ऋषियोंके आश्रमोंपर विचरने लगे। उनके प्रश्न थे (1) मातृका क्या और कितनी हैं ? (2) पच्चीस वस्तुओंसे बना अद्भुत गृह क्या है? (3) अनेक रूपवाली स्त्रीको एक रूपवाली बनानेकी कलाका किसे ज्ञान है ? (4) संसारमें विचित्र कथाकी रचना करना कौन जानता है? (5) समुद्रमें बड़ा ग्राह कौन है? (6) आठ प्रकारके ब्राह्मण कौन हैं? (7) चार पुरकि आरम्भके दिन कौन से हैं? (8) चौदह मन्वन्तरका आरम्भ किस दिन हुआ? (9) सूर्यनारायण पर पहले-पहल किस दिन बैठे? (10) काले साँपकी तरह प्राणियोंका उद्वेजक कौन है? (11) इस और संसार में सबसे बड़ा चतुर कौन है? और (12) दो मार्ग कौन से हैं?

इन प्रश्नोंको पूछते हुए वे सारी पृथ्वीपर घूम आये, पर कहीं उनके प्रश्नोंका समाधान न हुआ। योग्य ब्राह्मण न मिलने के कारण नारदजी बड़े दुखी हुए और हिमालय पर्वतपर एकान्तमें बैठकर विचारने लगे। सोचते-सोचते अकस्मात् उनके ध्यानमें आया कि मैं कलापग्राममें तो गया ही नहीं। वहाँ 84 हजार विद्वान् ब्राह्मण नित्य तपस्या करते हैं। सूर्य-चन्द्र-वंश एवं सब्राह्मणोंके पुनः प्रवर्तक देवापि और मरुत्त वहीं रहते हैं।' यो विचारकर वे आकाशमार्गसे कलापग्राम पहुँचे। वहीं उन्होंने बड़े तेजस्वी विद्वान् एवं कर्मनिष्ठ ब्राह्मणोंको देखा। उन्हें देखकर नारदजी बड़े प्रसन्न हुए। ब्राह्मण जहाँ बैठे शास्त्रचर्चा कर रहे थे, वहाँ जाकर नारदजीने कहा-' आपलोग यह क्या काँव-काँव कर रहे हैं। यदि कुछ समझने की शक्ति है तो मेरे कठिन प्रश्नोंका समाधान कीजिये।'

यह सुनकर ब्राह्मण अचंभे में पड़ गये और बोले, 'वाह, सुनाओ तो जरा अपने प्रश्नोंको।' नारदजीने अपने बारह प्रश्नोंको दुहरा दिया। यह सुनकर वे मुनि कहने लगे, 'मुने! ये आपके प्रश्न तो बालकोंके से हैं। आप यहाँ जिसे सबसे छोटा और मूर्ख समझते हों, उसीसे पूछिये; वही इनका उत्तर दे देगा।' अब नारदजी बड़े विस्मयमें पड़ गये; उन्होंने एक बालकसे, जिसका नाम सुतनु था, इन प्रश्नोंको पूछा।

सुतनुने कहा- " इन बालोचित प्रश्नोंके उत्तरमें मेरा मन नहीं लगता। तथापि आपने मुझे सबसे मूर्ख समझा है, इसलिये कहना पड़ता है- (1) ऊ, अ, आ इत्यादि 52 अक्षर ही मातृका हैं। (2) 25 तत्त्वोंसे बना हुआ गृह यह शरीर ही है। (3) बुद्धि ही अनेक रूपोंवाली स्त्री है। जब इसके साथ धर्मका संयोग होता है, तब यह एकरूपा हो जाती है। (4) विचित्र रचनायुक्त कथनको पण्डित ही कहते हैं। (5) इस संसार समुद्रमें लोभ ही महाग्राह है। (6) मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनूचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि-ये आठ प्रकारके ब्राह्मण हैं। इनमें जो केवल ब्राह्मणकुलमें उत्पन्न है और संस्कार आदिसे हीन है, वह 'मात्र' है। कामनारहित होकर सदाचारी वेदोक्त कर्मकारी ब्राह्मण 'ब्राह्मण' कहा जाता है। अङ्गसहित वेदोंका पूर्ण ज्ञान प्राप्तकर पट्कर्ममें परायण ब्राह्मण 'श्रोत्रिय' है। वेदका पूर्ण तत्त्वज्ञ, शुद्धात्मा, केवल शिष्योंको अध्यापन करनेवाला ब्राह्मण 'अनूचान' है यज्ञावशिष्टभोजी पूर्वोक्क अनूचान ही 'भ्रूण' है लौकिक वैदिक समस्त ज्ञानसेपरिपूर्ण जितेन्द्रिय ब्राह्मण ऋषिकल्प है। ऊध्वरता, निःसंशय, शापानुग्रह-सक्षम, सत्यसन्ध ब्राह्मण 'ऋषि' है सदा ध्यानस्थ, मृत्तिका और सुवर्णमें तुल्यदृष्टिवाला ब्राह्मण 'मुनि' है। 'अब सातवें प्रश्नका उत्तर सुनिये। कार्तिक शुक्ल नवमीको कृतयुगका, वैशाख शुक्ल तृतीयाको त्रेताका, माघ कृष्ण अमावास्याको द्वापरका और भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशीको कलियुगका आरम्भ हुआ। अतः उक्त तिथियाँ युगादि' कही जाती है। अब आठवें प्रश्नका भी उत्तर लीजिये। आश्विन शुक्ल नवमी, कार्तिक शुक्ल द्वादशी चैत्र शुक्ल तृतीया, भाद्रपद शुक्ल तृतीया, फाल्गुन कृष्ण अमावास्या, पौष शुक्ल एकादशी आषाढ़ शुक्ल दशमी, माघ शुक्ल सप्तमी, श्रावण कृष्ण अष्टमी,आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा, कार्तिकी पूर्णिमा, फाल्गुनी पूर्णिमा, चैत्री पूर्णिमा और ज्येष्ठकी पूर्णिमा – ये स्वायम्भुव आदि चौदह मनुओंकी आदि तिथियाँ हैं। (9) माघ शुक्ल सप्तमीको पहले-पहल भगवान् सूर्य रथपर सवार हुए थे। । (10) सदा माँगनेवाला ही उद्वेजक है। (11) पूर्ण चतुर—'दक्ष' वही है, जो मनुष्ययोनिका मूल्य समझकर इससे अपना पूर्ण निःश्रेयसादि सिद्ध कर ले। (12) 'अर्चि' और 'धूम'- ये दो मार्ग हैं। अर्चिमार्गसे जानेवालेको 'मोक्ष' होता है और धूममार्गसे जानेवालोंको पुनः लौटना पड़ता है।"

इन उत्तरोंको सुनकर नारदजी बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें धर्मवर्मासे प्राप्त अपनी भूमि दान कर दी। - जा0 श0 (स्कन्द0, माहेश्वर0, कुमारिका0 अध्याय 3-4)



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jatil prashnottara

ek baar devarshi naaradajee maheesaagar sangamamen snaan karane padhaare. usee samay vahaan bahut se rishi-muni bhee a pahunche. naaradajeene unase poochhaa- "mahaatmaao ! aapalog kahaanse aate hain ?" unhonne batalaayaa-'mune! hamalog sauraashtr deshamen rahate hain jahaanke raaja dharmavarma hain. ek baar us raajaane daanake tattvako samajhaneke liye bahut varshontak tapasya kee. tab aakaashavaaneene unase

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naaradajeene kahaa—'shraddhaa' aur 'shakti' ye do daanake hetu hain; kyonki daanaka thoda़a ya bahut hona punyaka kaaran naheen hotaa. nyaayopaarjit dhanaka shraddhaapoorvak thoda़aa-sa bhee daan bhagavaankee prasannataaka hetu hota hai. dharm, arth, kaam, lajja, harsh aur bhay – ye daanake chhah adhishthaan kahe jaate hain. daata, pratigriheeta, shuddhi,dharmayukt dey vastu, desh aur kaal ye daanake chhah ang hain. ihalokake aur paralokake ye do phal hain. trik, kaamy aur naimittikaye chaar prakaar hai. (kuaan-pokhara khudavaana, bageecha lagaana aadi jo sabake kaam aaye vah 'dhruva' hai. nity daan hee 'trika' hai. santaan, vijay, stree aadi vishayak ichchhaapoorti liye diya gaya daan, 'kaamya' hai. grahan, sankraanti aadi. puny avasaronpar diya gaya daan 'naimittika' hai.) uttam, madhyam, kanishthaye teen bhed hai. daan dekar pachhataana, kupaatrako dena, bina shraddhaake dena arthaat pashchaattaap, kupaatr aur ashraddhaa-ye teen daanake naashak hain. is prakaar saat padonmen bandha hua jo daanaka maahaatmy hai, use mainne tumako suna diyaa.

isapar dharmavarma bahut chakit hua, usane kaha 'mune! aap kaun hain? aap koee saadhaaran manushy naheen ho sakate. main aapake charanonmen mastak rakhakar aapako prasann karana chaahata hoon. aap kripaya apana parichay deejiye.' naaradajeene kahaa-'main devarshi naarad hoon. ab ham jo mujhe bhoomi de rahe ho, ise main tumhaare hee paas dharohar chhoda़ raha hoon. aavashyakata pada़nepar le loongaa.' yaan kahakar ve raivatak parvatapar chale gaye aur vahaan vichaarane lage ki mainne bhoomi to pa lee, par ab yogy braahman kahaan mile jise main bhoomi daan doon. yah sochakar unhonne baarah prashn banaaye aur unhen hee gaate hue ve rishiyonke aashramonpar vicharane lage. unake prashn the (1) maatrika kya aur kitanee hain ? (2) pachchees vastuonse bana adbhut grih kya hai? (3) anek roopavaalee streeko ek roopavaalee banaanekee kalaaka kise jnaan hai ? (4) sansaaramen vichitr kathaakee rachana karana kaun jaanata hai? (5) samudramen bada़a graah kaun hai? (6) aath prakaarake braahman kaun hain? (7) chaar puraki aarambhake din kaun se hain? (8) chaudah manvantaraka aarambh kis din huaa? (9) sooryanaaraayan par pahale-pahal kis din baithe? (10) kaale saanpakee tarah praaniyonka udvejak kaun hai? (11) is aur sansaar men sabase bada़a chatur kaun hai? aur (12) do maarg kaun se hain?

in prashnonko poochhate hue ve saaree prithveepar ghoom aaye, par kaheen unake prashnonka samaadhaan n huaa. yogy braahman n milane ke kaaran naaradajee bada़e dukhee hue aur himaalay parvatapar ekaantamen baithakar vichaarane lage. sochate-sochate akasmaat unake dhyaanamen aaya ki main kalaapagraamamen to gaya hee naheen. vahaan 84 hajaar vidvaan braahman nity tapasya karate hain. soorya-chandra-vansh evan sabraahmanonke punah pravartak devaapi aur marutt vaheen rahate hain.' yo vichaarakar ve aakaashamaargase kalaapagraam pahunche. vaheen unhonne bada़e tejasvee vidvaan evan karmanishth braahmanonko dekhaa. unhen dekhakar naaradajee bada़e prasann hue. braahman jahaan baithe shaastracharcha kar rahe the, vahaan jaakar naaradajeene kahaa-' aapalog yah kya kaanva-kaanv kar rahe hain. yadi kuchh samajhane kee shakti hai to mere kathin prashnonka samaadhaan keejiye.'

yah sunakar braahman achanbhe men pada़ gaye aur bole, 'vaah, sunaao to jara apane prashnonko.' naaradajeene apane baarah prashnonko duhara diyaa. yah sunakar ve muni kahane lage, 'mune! ye aapake prashn to baalakonke se hain. aap yahaan jise sabase chhota aur moorkh samajhate hon, useese poochhiye; vahee inaka uttar de degaa.' ab naaradajee bada़e vismayamen pada़ gaye; unhonne ek baalakase, jisaka naam sutanu tha, in prashnonko poochhaa.

sutanune kahaa- " in baalochit prashnonke uttaramen mera man naheen lagataa. tathaapi aapane mujhe sabase moorkh samajha hai, isaliye kahana pada़ta hai- (1) oo, , a ityaadi 52 akshar hee maatrika hain. (2) 25 tattvonse bana hua grih yah shareer hee hai. (3) buddhi hee anek rooponvaalee stree hai. jab isake saath dharmaka sanyog hota hai, tab yah ekaroopa ho jaatee hai. (4) vichitr rachanaayukt kathanako pandit hee kahate hain. (5) is sansaar samudramen lobh hee mahaagraah hai. (6) maatr, braahman, shrotriy, anoochaan, bhroon, rishikalp, rishi aur muni-ye aath prakaarake braahman hain. inamen jo keval braahmanakulamen utpann hai aur sanskaar aadise heen hai, vah 'maatra' hai. kaamanaarahit hokar sadaachaaree vedokt karmakaaree braahman 'braahmana' kaha jaata hai. angasahit vedonka poorn jnaan praaptakar patkarmamen paraayan braahman 'shrotriya' hai. vedaka poorn tattvajn, shuddhaatma, keval shishyonko adhyaapan karanevaala braahman 'anoochaana' hai yajnaavashishtabhojee poorvokk anoochaan hee 'bhroona' hai laukik vaidik samast jnaanaseparipoorn jitendriy braahman rishikalp hai. oodhvarata, nihsanshay, shaapaanugraha-saksham, satyasandh braahman 'rishi' hai sada dhyaanasth, mrittika aur suvarnamen tulyadrishtivaala braahman 'muni' hai. 'ab saataven prashnaka uttar suniye. kaartik shukl navameeko kritayugaka, vaishaakh shukl triteeyaako tretaaka, maagh krishn amaavaasyaako dvaaparaka aur bhaadrapad krishn trayodasheeko kaliyugaka aarambh huaa. atah ukt tithiyaan yugaadi' kahee jaatee hai. ab aathaven prashnaka bhee uttar leejiye. aashvin shukl navamee, kaartik shukl dvaadashee chaitr shukl triteeya, bhaadrapad shukl triteeya, phaalgun krishn amaavaasya, paush shukl ekaadashee aashaadha़ shukl dashamee, maagh shukl saptamee, shraavan krishn ashtamee,aashaadha़ shukl poornima, kaartikee poornima, phaalgunee poornima, chaitree poornima aur jyeshthakee poornima – ye svaayambhuv aadi chaudah manuonkee aadi tithiyaan hain. (9) maagh shukl saptameeko pahale-pahal bhagavaan soory rathapar savaar hue the. . (10) sada maanganevaala hee udvejak hai. (11) poorn chatura—'daksha' vahee hai, jo manushyayonika mooly samajhakar isase apana poorn nihshreyasaadi siddh kar le. (12) 'archi' aur 'dhooma'- ye do maarg hain. archimaargase jaanevaaleko 'moksha' hota hai aur dhoomamaargase jaanevaalonko punah lautana pada़ta hai."

in uttaronko sunakar naaradajee bada़e prasann hue aur unhen dharmavarmaase praapt apanee bhoomi daan kar dee. - jaa0 sha0 (skanda0, maaheshvara0, kumaarikaa0 adhyaay 3-4)

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