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धर्मकी सूक्ष्म गति  [शिक्षदायक कहानी]
हिन्दी कथा - Story To Read (Story To Read)

लगभग एक हजार वर्ष पहलेकी बात है। महाराज यशस्करदेव काश्मीरमें शासन करते थे। प्रजाका जीवन धर्म, सत्य और न्यायके अनुरूप था। महाराज स्वयं रात-दिन प्रजाका हित चिन्तन किया करते थे। एक दिन वे सायंकालिक संध्या-वन्दन समाप्त करके भोजन करने जा ही रहे थे कि द्वारपालने एक ब्राह्मणके राजद्वारपर आमरण अनशनकी सूचना दी। महाराजने भोजनका कार्यक्रम स्थगित कर दिया, वे तुरंत बाहर आये। उन्होंने ब्राह्मणको दुखी देखा और उनका हृदय करुणासे द्रवित हो गया।

'महाराज ! आप अपने राज्यमें अन्यायका प्रचार कर रहे हैं। प्रजाका मन अधर्ममें सुख मान रहा है। यदि आप ठीक तरह न्याय नहीं करेंगे तो राजद्वार ब्राह्मणकी समाधिके रूपमें परिणत हो जायगा।' ब्राह्मणने यशस्करदेवको सावधान किया।

'मैंने आपके कथनका आशय नहीं समझा, ब्राह्मण देवता! मुझे अपने न्याय-विधानपर भरोसा है। आप जो कुछ कहना चाहते हैं, कह डालिये। कहीं ऐसा तो नहीं है कि द्वारपालके यह कहनेसे कि मुझसे कल भेंट हो । सकेगी, आपने प्राण त्यागका निश्चय कर लिया है ?" महाराजकी भ्रुकुटी तन गयी ।

'नहीं, महाराज! मैंने विदेशसे सौ स्वर्ण मुद्राएँ उपार्जित करके आपके राज्यमें प्रवेश किया। मुझे पता | चला कि आपके शासन-कालमें काश्मीरमें सुराज्य आ गया है। रास्तेमें मैंने इसका प्रत्यक्ष अनुभव किया। पर लवणोत्स ग्रामके निकट आते-आते मैं थक गया रातमें एक रमणीय उद्यानमें पेड़के नीचे मैं शयन करने लगा। दैवयोगसे मेरे शयन-स्थलके निकट घाससे आच्छादित एक कूप था, जिसका पता मुझे नहीं था; उसमें मेरी स्वर्ण-मुद्राओंकी गठरी गिर पड़ी। सबेरा होनेपर मैंने कूपमें कूदकर प्राण त्यागका निश्चय किया ही था कि ग्रामवाले एकत्र हो गये। उनमेंसे एक साहसी व्यक्तिने कहा कि 'यदि मैं गठरी निकाल दूँ तो क्या दोगे ?' मैंने कहा कि 'उस धनपर मेरा अधिकार ही क्या रह गया है; तुमको जो ठीक लगे, वह मुझे दे देना।' उसने गठरी निकाल ली और मुझे केवल दो मुद्राएँ दीं। मैंने इसपर आपत्ति की तो उसने कहा कि महाराज यशस्करदेवके राज्यमें व्यवहार मनुष्यके वचनपर चलते हैं। सरलताके कारण इस औपचारिक वचनके कथनसे मेरा धन उसने हड़प लिया। इसका उत्तरदायित्व आपपर है, अन्याययुक्त व्यवहार राज्यमें आपके नामपर होता है।' ब्राह्मणने | अपनी कथा सुनायी। महाराजने कहा कि निर्णय कल । होगा और ब्राह्मणके साथ ही भोजन करने चले गये।

दूसरे दिन लवणोत्स ग्रामके लोग महाराजके आदेश से सभाभवनमें उपस्थित हुए। ब्राह्मणने पोटली निकालनेवाले व्यक्तिको आकृतिसे पहचाना। महाराज धर्म-आसनपर थे

'ब्राह्मणने जो कुछ भी कहा है, वह अक्षरशः ठीक है। मैंने सत्यका पालन किया है। वचनके अनुरूप आचरण किया है, महाराज।' पोटली निकालनेवालेने यशस्करदेवको सत्यकी स्वीकृतिसे विस्मित कर दिया। वे गम्भीर होकर सोचने लगे।

'अट्ठानबे मुद्राएँ ब्राह्मणको दी जायँ और दो पोटली निकालनेवालेकी हैं।' महाराजने निर्णय दिया, लोग शङ्कित हो उठे।

'उत्कट अधर्मका दमन करनेके लिये दौड़ते हुए महामहिम धर्मकी गति गम्भीर विचारद्वारा निश्चित की जाती है। सूर्य प्रगाढ़ अन्धकारका नाश करता है; धर्म अधर्मका उन्मूलन कर देता है। ब्राह्मणने यह नहीं कहा कि जो देते हो, वह दो; ऐसा कहा कि जो ठीक लगे, वह दो पोटली निकालनेवालेको दो मुद्राएँ रुचिकर नहीं थीं, इसलिये उन्हें ब्राह्मणको दे दिया; जो अच्छी लगीं, उनको रख लिया। यह अन्याय था । ' महाराजने शङ्का-समाधान किया। उनके जयनादसे न्यायालय गूँज उठा ।
- रा0 श्री0 [राजतरङ्गिणी]



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dharmakee sookshm gati

lagabhag ek hajaar varsh pahalekee baat hai. mahaaraaj yashaskaradev kaashmeeramen shaasan karate the. prajaaka jeevan dharm, saty aur nyaayake anuroop thaa. mahaaraaj svayan raata-din prajaaka hit chintan kiya karate the. ek din ve saayankaalik sandhyaa-vandan samaapt karake bhojan karane ja hee rahe the ki dvaarapaalane ek braahmanake raajadvaarapar aamaran anashanakee soochana dee. mahaaraajane bhojanaka kaaryakram sthagit kar diya, ve turant baahar aaye. unhonne braahmanako dukhee dekha aur unaka hriday karunaase dravit ho gayaa.

'mahaaraaj ! aap apane raajyamen anyaayaka prachaar kar rahe hain. prajaaka man adharmamen sukh maan raha hai. yadi aap theek tarah nyaay naheen karenge to raajadvaar braahmanakee samaadhike roopamen parinat ho jaayagaa.' braahmanane yashaskaradevako saavadhaan kiyaa.

'mainne aapake kathanaka aashay naheen samajha, braahman devataa! mujhe apane nyaaya-vidhaanapar bharosa hai. aap jo kuchh kahana chaahate hain, kah daaliye. kaheen aisa to naheen hai ki dvaarapaalake yah kahanese ki mujhase kal bhent ho . sakegee, aapane praan tyaagaka nishchay kar liya hai ?" mahaaraajakee bhrukutee tan gayee .

'naheen, mahaaraaja! mainne videshase sau svarn mudraaen upaarjit karake aapake raajyamen pravesh kiyaa. mujhe pata | chala ki aapake shaasana-kaalamen kaashmeeramen suraajy a gaya hai. raastemen mainne isaka pratyaksh anubhav kiyaa. par lavanots graamake nikat aate-aate main thak gaya raatamen ek ramaneey udyaanamen peda़ke neeche main shayan karane lagaa. daivayogase mere shayana-sthalake nikat ghaasase aachchhaadit ek koop tha, jisaka pata mujhe naheen thaa; usamen meree svarna-mudraaonkee gatharee gir pada़ee. sabera honepar mainne koopamen koodakar praan tyaagaka nishchay kiya hee tha ki graamavaale ekatr ho gaye. unamense ek saahasee vyaktine kaha ki 'yadi main gatharee nikaal doon to kya doge ?' mainne kaha ki 'us dhanapar mera adhikaar hee kya rah gaya hai; tumako jo theek lage, vah mujhe de denaa.' usane gatharee nikaal lee aur mujhe keval do mudraaen deen. mainne isapar aapatti kee to usane kaha ki mahaaraaj yashaskaradevake raajyamen vyavahaar manushyake vachanapar chalate hain. saralataake kaaran is aupachaarik vachanake kathanase mera dhan usane hada़p liyaa. isaka uttaradaayitv aapapar hai, anyaayayukt vyavahaar raajyamen aapake naamapar hota hai.' braahmanane | apanee katha sunaayee. mahaaraajane kaha ki nirnay kal . hoga aur braahmanake saath hee bhojan karane chale gaye.

doosare din lavanots graamake log mahaaraajake aadesh se sabhaabhavanamen upasthit hue. braahmanane potalee nikaalanevaale vyaktiko aakritise pahachaanaa. mahaaraaj dharma-aasanapar the

'braahmanane jo kuchh bhee kaha hai, vah aksharashah theek hai. mainne satyaka paalan kiya hai. vachanake anuroop aacharan kiya hai, mahaaraaja.' potalee nikaalanevaalene yashaskaradevako satyakee sveekritise vismit kar diyaa. ve gambheer hokar sochane lage.

'atthaanabe mudraaen braahmanako dee jaayan aur do potalee nikaalanevaalekee hain.' mahaaraajane nirnay diya, log shankit ho uthe.

'utkat adharmaka daman karaneke liye dauda़te hue mahaamahim dharmakee gati gambheer vichaaradvaara nishchit kee jaatee hai. soory pragaadha़ andhakaaraka naash karata hai; dharm adharmaka unmoolan kar deta hai. braahmanane yah naheen kaha ki jo dete ho, vah do; aisa kaha ki jo theek lage, vah do potalee nikaalanevaaleko do mudraaen ruchikar naheen theen, isaliye unhen braahmanako de diyaa; jo achchhee lageen, unako rakh liyaa. yah anyaay tha . ' mahaaraajane shankaa-samaadhaan kiyaa. unake jayanaadase nyaayaalay goonj utha .
- raa0 shree0 [raajataranginee]

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