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परोपकारका आदर्श  [प्रेरक कहानी]
Hindi Story - Shikshaprad Kahani (प्रेरक कथा)

काशीपुरीकी उत्तर दिशामें उत्तर अर्ककुण्ड है, जहाँ भगवान् सूर्य उत्तरार्ध नामसे निवास करते हैं। वहीं एक प्रियव्रत नामसे ब्राह्मण रहते थे। उनकी पत्नी अत्यन्त सुन्दरी तथा पतिव्रता थी। उन दोनोंसे एक कन्या उत्पन्न हुई जिसका नाम सुलक्षणा था। सुलक्षणाक जन्म मूल नक्षत्रके प्रथम चरणमें हुआ था तथापि उसके केन्द्रमें बृहस्पति थे। वह कन्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी। वह बड़ी रूपवती, विनीत, सदाचारिणी तथा माता पिताकी अति प्रियकारिणी थी। धीरे-धीरे वह विवाहके योग्य हुई। अब उसके पिताको चिन्ता हुई कि इसके योग्य उत्तम वर मुझे कहाँ मिलेगा जो कुल, अवस्था, शील, स्वभाव, शास्त्राध्ययन, रूप और धनसे सम्पन्न हो? इस भयंकर चिन्ताज्वरसे ग्रस्त होकर बेचारे प्रियव्रत अन्तमें मृत्युको प्राप्त हो गये। प्रियव्रतकी पत्नी भी पातिव्रत्यका पालन करती हुई उनके साथ सती हो गयी।

अब माता-पिताके मरनेपर सुलक्षणा दुःखसे व्याकुल हो उठी। उसने किसी प्रकार उनका और्ध्वदैहिक तथा दशाह आदि संस्कार किये। अब वह अनाथा सोचने लगी- 'मैं असहाय अबला इस संसारको कैसे पार करूँगी? स्त्रीभाव सबसे तिरस्कृत ही होता है। मेरे माता-पिताने मुझे किसी वरको अर्पण भी नहीं किया। ऐसी दशामें मैं स्वेच्छासे किस वरको वरण करूँ ? यदि मैंने किसीका वरण किया भी और यदि वह कुलीन, गुणवान्, सुशील और अनुकूल न मिल पाया तो उसका। वरण करनेसे भी क्या लाभ होगा ? यद्यपि उसके पास कई युवक इस इच्छासे आये भी, पर उसने किसीको वरण नहीं किया। वह सोचने लगी- 'अहो! जिन्होंनेमुझे जन्म दिया, बड़े लाड़-प्यारसे पाला, वे मेरे माता पिता कहाँ चले गये ? देहधारी इस जीवकी अनित्यताको धिक्कार है। जैसे मेरे माता-पिताका शरीर चला गया, निश्चय ही उसी प्रकार मेरा यह शरीर भी चला ही जायगा।'

ऐसा विचार कर सुलक्षणाने उत्तरार्कके समीप घोर तपस्या आरम्भ की। उसकी तपस्याके समय प्रतिदिन एक छोटी-सी बकरी उसके आगे आकर अविचल भावसे खड़ी हो जाती। फिर शामको वह कुछ घास तथा पत्ते आदि चरकर और उत्तरार्क कुण्डका जल पीकर अपने स्वामीके घर चली जाती। इस प्रकार छः वर्ष बीत गये। तदनन्तर एक दिन भगवान् शङ्कर पराम्बा भगवती पार्वतीके साथ लीलापूर्वक विचरते हुए वहाँ आये। सुलक्षणा वहाँ ठूंठकी भाँति खड़ी थी। वह तपस्यासे अत्यन्त दुर्बल हो रही थी। दयामयी भगवतीने भगवान् शङ्करसे निवेदन किया, 'भगवन्! यह सुन्दरी कन्या बन्धु बान्धवोंसे हीन है, इसे वर देकर अनुगृहीत कीजिये।' दयासागर भगवान्ने भी इसपर सुलक्षणासे वर माँगनेको कहा।

सुलक्षणाने जब नेत्र खोले तब देखा, सामने भगवान् त्रिलोचन खड़े हैं। उनके वामाङ्गमें उमा विराजमान हैं। सुलक्षणाने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया। इतनेहीमें उसकी दृष्टि अपने आगे खड़ी उस बकरीपर पड़ी। उसने सोचा- 'इस लोकमें अपने स्वार्थके लिये तो सभी जीते हैं, पर जो परोपकारके लिये जीता है, उसीका जीवन सफल है।' वह बोली 'कृपानिधान। यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं, तो पहले इस बकरीपर कृपा करें।'सुलक्षणाकी बात सुनकर भगवान् शङ्कर बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने पार्वतीसे कहा 'देवि! देखो, साधुपुरुषकी बुद्धि ऐसी ही परोपकारमयी होती है। वास्तवमें एकमात्र परोपकार ही संग्रहणीय है; क्योंकि सभी संग्रहोंका क्षय हो जाता है, पर एकमात्र परोपकार ही चिरस्थायी होता है। अब तुम्हीं बतलाओ, इस बकरी एवं सुलक्षणाका मैं कौन-सा उपकार करूँ ?'

तदनन्तर पराम्बा जगज्जननी पार्वतीने कहा-'यह शुभलक्षणा- सुलक्षणा-तो मेरी सखी होकर रहे। यह बालब्रह्मचारिणी है, अतएव मेरी बड़ी प्रिया है, इसलियेयह दिव्य शरीर धारणकर सदैव मेरे पास रहे और यह बकरी काशिराजकी कन्या हो और बादमें उत्तम भोगोंको भोगकर मोक्षको प्राप्त हो। इसने शीत आदिकी चिन्ता न कर पौष मासके रविवारको सूर्योदयके पूर्व स्नान किया है। इसलिये इस कुण्डका नाम आजसे बर्करीकुण्ड हो जाय। यहाँ इसकी प्रतिमाकी सभी लोग पूजा करें।' 'एवमस्तु' कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गये। इस -प्रकार सुलक्षणाने अपने साथ उस बकरीका भी परम कल्याण सिद्ध कर लिया।

(स्कन्दपुराण, काशीखण्ड, 48 वाँ अध्याय)



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paropakaaraka aadarsha

kaasheepureekee uttar dishaamen uttar arkakund hai, jahaan bhagavaan soory uttaraardh naamase nivaas karate hain. vaheen ek priyavrat naamase braahman rahate the. unakee patnee atyant sundaree tatha pativrata thee. un dononse ek kanya utpann huee jisaka naam sulakshana thaa. sulakshanaak janm mool nakshatrake pratham charanamen hua tha tathaapi usake kendramen brihaspati the. vah kanya dheere-dheere badha़ne lagee. vah bada़ee roopavatee, vineet, sadaachaarinee tatha maata pitaakee ati priyakaarinee thee. dheere-dheere vah vivaahake yogy huee. ab usake pitaako chinta huee ki isake yogy uttam var mujhe kahaan milega jo kul, avastha, sheel, svabhaav, shaastraadhyayan, roop aur dhanase sampann ho? is bhayankar chintaajvarase grast hokar bechaare priyavrat antamen mrityuko praapt ho gaye. priyavratakee patnee bhee paativratyaka paalan karatee huee unake saath satee ho gayee.

ab maataa-pitaake maranepar sulakshana duhkhase vyaakul ho uthee. usane kisee prakaar unaka aurdhvadaihik tatha dashaah aadi sanskaar kiye. ab vah anaatha sochane lagee- 'main asahaay abala is sansaarako kaise paar karoongee? streebhaav sabase tiraskrit hee hota hai. mere maataa-pitaane mujhe kisee varako arpan bhee naheen kiyaa. aisee dashaamen main svechchhaase kis varako varan karoon ? yadi mainne kiseeka varan kiya bhee aur yadi vah kuleen, gunavaan, susheel aur anukool n mil paaya to usakaa. varan karanese bhee kya laabh hoga ? yadyapi usake paas kaee yuvak is ichchhaase aaye bhee, par usane kiseeko varan naheen kiyaa. vah sochane lagee- 'aho! jinhonnemujhe janm diya, bada़e laada़-pyaarase paala, ve mere maata pita kahaan chale gaye ? dehadhaaree is jeevakee anityataako dhikkaar hai. jaise mere maataa-pitaaka shareer chala gaya, nishchay hee usee prakaar mera yah shareer bhee chala hee jaayagaa.'

aisa vichaar kar sulakshanaane uttaraarkake sameep ghor tapasya aarambh kee. usakee tapasyaake samay pratidin ek chhotee-see bakaree usake aage aakar avichal bhaavase khada़ee ho jaatee. phir shaamako vah kuchh ghaas tatha patte aadi charakar aur uttaraark kundaka jal peekar apane svaameeke ghar chalee jaatee. is prakaar chhah varsh beet gaye. tadanantar ek din bhagavaan shankar paraamba bhagavatee paarvateeke saath leelaapoorvak vicharate hue vahaan aaye. sulakshana vahaan thoonthakee bhaanti khada़ee thee. vah tapasyaase atyant durbal ho rahee thee. dayaamayee bhagavateene bhagavaan shankarase nivedan kiya, 'bhagavan! yah sundaree kanya bandhu baandhavonse heen hai, ise var dekar anugriheet keejiye.' dayaasaagar bhagavaanne bhee isapar sulakshanaase var maanganeko kahaa.

sulakshanaane jab netr khole tab dekha, saamane bhagavaan trilochan khada़e hain. unake vaamaangamen uma viraajamaan hain. sulakshanaane haath joda़kar unhen pranaam kiyaa. itaneheemen usakee drishti apane aage khada़ee us bakareepar pada़ee. usane sochaa- 'is lokamen apane svaarthake liye to sabhee jeete hain, par jo paropakaarake liye jeeta hai, useeka jeevan saphal hai.' vah bolee 'kripaanidhaana. yadi aap mujhapar prasann hain, to pahale is bakareepar kripa karen.'sulakshanaakee baat sunakar bhagavaan shankar bada़e prasann hue. unhonne paarvateese kaha 'devi! dekho, saadhupurushakee buddhi aisee hee paropakaaramayee hotee hai. vaastavamen ekamaatr paropakaar hee sangrahaneey hai; kyonki sabhee sangrahonka kshay ho jaata hai, par ekamaatr paropakaar hee chirasthaayee hota hai. ab tumheen batalaao, is bakaree evan sulakshanaaka main kauna-sa upakaar karoon ?'

tadanantar paraamba jagajjananee paarvateene kahaa-'yah shubhalakshanaa- sulakshanaa-to meree sakhee hokar rahe. yah baalabrahmachaarinee hai, ataev meree bada़ee priya hai, isaliyeyah divy shareer dhaaranakar sadaiv mere paas rahe aur yah bakaree kaashiraajakee kanya ho aur baadamen uttam bhogonko bhogakar mokshako praapt ho. isane sheet aadikee chinta n kar paush maasake ravivaarako sooryodayake poorv snaan kiya hai. isaliye is kundaka naam aajase barkareekund ho jaaya. yahaan isakee pratimaakee sabhee log pooja karen.' 'evamastu' kahakar bhagavaan antardhaan ho gaye. is -prakaar sulakshanaane apane saath us bakareeka bhee param kalyaan siddh kar liyaa.

(skandapuraan, kaasheekhand, 48 vaan adhyaaya)

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