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प्रसादका स्वाद  [Shikshaprad Kahani]
प्रेरक कहानी - Short Story (Spiritual Story)

एक महात्मा थे। वे किसीके यहाँ भोजन करने गये। भोजनमें उनको थोड़ी-सी खीर मिली। उसमें उनको अपूर्व स्वाद मिला। उन्होंने थोड़ी-सी और माँगी, भोजन परसनेवालेने लाकर दे दी। किंतु उसमें वैसा स्वाद नहीं आया। उन्होंने इसका कारण पूछा। उन सज्जनने बहुत आग्रह करनेके पश्चात् बताया- 'जब मैंभगवान्से प्रार्थना करता हूँ तब वे कभी-कभी कोई चीज आकर खा लेते हैं। आज छोटी कटोरीकी खीर तनिक-सी उन्होंने खा ली थी। वही खीर मैंने आपको पहली बार दी थी। किंतु दूसरी बार आपके माँगनेपर मैंने दूसरी खीर दी; क्योंकि भोगवाली खीर तनिक भी बची नहीं थी।'



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prasaadaka svaada

ek mahaatma the. ve kiseeke yahaan bhojan karane gaye. bhojanamen unako thoda़ee-see kheer milee. usamen unako apoorv svaad milaa. unhonne thoda़ee-see aur maangee, bhojan parasanevaalene laakar de dee. kintu usamen vaisa svaad naheen aayaa. unhonne isaka kaaran poochhaa. un sajjanane bahut aagrah karaneke pashchaat bataayaa- 'jab mainbhagavaanse praarthana karata hoon tab ve kabhee-kabhee koee cheej aakar kha lete hain. aaj chhotee katoreekee kheer tanika-see unhonne kha lee thee. vahee kheer mainne aapako pahalee baar dee thee. kintu doosaree baar aapake maanganepar mainne doosaree kheer dee; kyonki bhogavaalee kheer tanik bhee bachee naheen thee.'

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