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लीलामयकी लीला  [Story To Read]
हिन्दी कहानी - बोध कथा (प्रेरक कहानी)

'मन बड़ा चञ्चल होता है!' श्रीनारायणदासजी बदरिकाश्रमसे मथुरा आये थे। वहाँ प्रभुके दर्शनार्थियोंका ताँता लगा रहता था। दर्शनार्थी अपने-अपने उपानह छोड़कर दर्शन करने जाते थे। उन्हें देखकर वे मन ही मन विचार कर रहे थे, 'भक्त गण भगवान्के दर्शन करने तो जाते हैं, किंतु उनका मन उपानहोंकी चिन्तामें पूर्ण पवित्र नहीं रह पाता होगा।' बस, उन्होंने अपना कर्तव्य निश्चित कर लिया।

वे प्रभुकी देहरीसे थोड़ी दूरपर खड़े रहते। भक्तगण दर्शनके लिये आते। आप अत्यन्त आदर तथा प्रेमसे उनके उपानहोंकी देख-भाल करते। दर्शनार्थी निश्चिन्त होकर प्रभुके दर्शन कर आते। इससे दर्शनार्थियों को बड़ी सुविधा रहने लगी और श्रीनारायणदासजीको इससे बड़ी तृप्तिकर शान्ति प्राप्त होती थी।

'मेरी गठरी सिरपर रख ले और मेरे साथ चल!' भक्तकी अत्यन्त सरलता देखकर एक व्यक्तिने अभिमानके साथ कहा।

'अच्छी बात है!' आपने गठरी सिरपर उठा ली और उस व्यक्तिके साथ हो लिये। भगवदिच्छा समझकर उन्होंने गठरी ढोनेमें भी आपत्ति नहीं की। व्यक्ति उन्हें साधारण मनुष्य समझ रहा था।'महाराज!' गठरी ढोते हुए श्रीनारायणदासजीके युगल चरणोंपर एक परिचित पुरुष गिर पड़ा। 'आप यह क्या कर रहे हैं?' सहसा उसके मुँहसे निकल गया। | वह आश्चर्य-विस्फारित नेत्रोंसे श्रीनारायणदासजीकी और देख रहा था।

"प्रभुकी इच्छा ही अपनी इच्छा है।' वैराग्यके प्रतीक साधुने सीधे शब्दोंमें उत्तर दे दिया।

गठरीवाला व्यक्ति अब उन्हें समझ सका । उसका मस्तक आपके चरणोंपर था। उसके नेत्र अश्रु बरसा रहे थे। वह मन-ही-मन छटपटा रहा था 'तुम्हारा कोई दोष नहीं है, भैया!' बड़े प्यारसे उसे उठाकर सहलाते हुए आपने कहा । 'यह तो उस लीलामयकी लीला है।'

संत-स्पर्शसे उस व्यक्तिके पाप धुल गये उसका मन पवित्र हो गया। पूर्वके शुभ-संस्कार जाग्रत् हो गये। वह मन और कर्म दोनोंसे दुष्ट था। परंतु उस दिन उसने श्रीनारायणदासजीसे दीक्षा ले ली और फिर घर लौटकर नहीं गया। उसका जीवन बदल गया। वह स्वयं तो सिद्ध साधु हुआ ही, उसके सम्पर्क में आनेवालोंको भी प्रभु प्रेमकी प्राप्ति हुई।


भक्त श्रीनारायणदासजीकी संसारमें तनिक भीआसक्ति नहीं थी। प्रभुमें भक्ति और प्रेम आपका अद्वितीय था। आप सदैव भगवन्नामका जप किया करते थे। साधु-संत तथा दीन-दुःखी, स्त्री- सबकी -पुरुष, उन्हें नारायणका स्वरूप समझकर - आप बड़े प्रेमसे सेवा करते थे और इस प्रकार अपूर्व सुखका अनुभवकरते थे। आपके द्वारा बदरिकाश्रमके मनुष्योंका तो उपकार ही हुआ; अन्यत्र भी जहाँ कहीं जो भी आपके सम्पर्क में आया, उसका जीवन पावन हो गया। वह प्रभुके चरणोंकी प्रीति पाकर कृतार्थ हो गया।

- शि0 दु0



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leelaamayakee leelaa

'man bada़a chanchal hota hai!' shreenaaraayanadaasajee badarikaashramase mathura aaye the. vahaan prabhuke darshanaarthiyonka taanta laga rahata thaa. darshanaarthee apane-apane upaanah chhoda़kar darshan karane jaate the. unhen dekhakar ve man hee man vichaar kar rahe the, 'bhakt gan bhagavaanke darshan karane to jaate hain, kintu unaka man upaanahonkee chintaamen poorn pavitr naheen rah paata hogaa.' bas, unhonne apana kartavy nishchit kar liyaa.

ve prabhukee dehareese thoda़ee doorapar khada़e rahate. bhaktagan darshanake liye aate. aap atyant aadar tatha premase unake upaanahonkee dekha-bhaal karate. darshanaarthee nishchint hokar prabhuke darshan kar aate. isase darshanaarthiyon ko bada़ee suvidha rahane lagee aur shreenaaraayanadaasajeeko isase bada़ee triptikar shaanti praapt hotee thee.

'meree gatharee sirapar rakh le aur mere saath chala!' bhaktakee atyant saralata dekhakar ek vyaktine abhimaanake saath kahaa.

'achchhee baat hai!' aapane gatharee sirapar utha lee aur us vyaktike saath ho liye. bhagavadichchha samajhakar unhonne gatharee dhonemen bhee aapatti naheen kee. vyakti unhen saadhaaran manushy samajh raha thaa.'mahaaraaja!' gatharee dhote hue shreenaaraayanadaasajeeke yugal charanonpar ek parichit purush gir pada़aa. 'aap yah kya kar rahe hain?' sahasa usake munhase nikal gayaa. | vah aashcharya-visphaarit netronse shreenaaraayanadaasajeekee aur dekh raha thaa.

"prabhukee ichchha hee apanee ichchha hai.' vairaagyake prateek saadhune seedhe shabdonmen uttar de diyaa.

gathareevaala vyakti ab unhen samajh saka . usaka mastak aapake charanonpar thaa. usake netr ashru barasa rahe the. vah mana-hee-man chhatapata raha tha 'tumhaara koee dosh naheen hai, bhaiyaa!' bada़e pyaarase use uthaakar sahalaate hue aapane kaha . 'yah to us leelaamayakee leela hai.'

santa-sparshase us vyaktike paap dhul gaye usaka man pavitr ho gayaa. poorvake shubha-sanskaar jaagrat ho gaye. vah man aur karm dononse dusht thaa. parantu us din usane shreenaaraayanadaasajeese deeksha le lee aur phir ghar lautakar naheen gayaa. usaka jeevan badal gayaa. vah svayan to siddh saadhu hua hee, usake sampark men aanevaalonko bhee prabhu premakee praapti huee.


bhakt shreenaaraayanadaasajeekee sansaaramen tanik bheeaasakti naheen thee. prabhumen bhakti aur prem aapaka adviteey thaa. aap sadaiv bhagavannaamaka jap kiya karate the. saadhu-sant tatha deena-duhkhee, stree- sabakee -purush, unhen naaraayanaka svaroop samajhakar - aap bada़e premase seva karate the aur is prakaar apoorv sukhaka anubhavakarate the. aapake dvaara badarikaashramake manushyonka to upakaar hee huaa; anyatr bhee jahaan kaheen jo bhee aapake sampark men aaya, usaka jeevan paavan ho gayaa. vah prabhuke charanonkee preeti paakar kritaarth ho gayaa.

- shi0 du0

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