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सप्तर्षियोंका त्याग  [बोध कथा]
प्रेरक कहानी - Spiritual Story (Short Story)

बहुत पुराने समयकी बात है। एक बार पृथ्वीपर बारह वर्षोंतक वर्षा नहीं हुई संसारमें घोर अकाल पड़ गया। सभी लोग भूखों मरने लगे। सप्तर्षि भी भूखसे व्याकुल होकर इधर-उधर भटकने लगे। घूमते-घूमते ये लोग वृषादर्भि राजाके राज्यमें गये। उनका आगमन सुनकर राजा वहाँ आया और बोला- 'मुनियों! मैं आपलोगोंको अन्न, ग्राम, घृत दुग्धादि रस तथा तरह तरहके रत्न दे रहा हूँ । आपलोग कृपया स्वीकार करें।'

ऋषियोंने कहा- 'राजन्! राजाका दिया हुआ दान ऊपरसे मधुके समान मीठा जान पड़ता है, किंतु परिणाममें वह विषके समान हो जाता है। इस बातको जानते हुए भी हमलोग आपके प्रलोभनमें क्योंकर पड़ सकते हैं। ब्राह्मणोंका शरीर देवताओंका निवासस्थान है। यदि ब्राह्मण तपस्यासे शुद्ध एवं संतुष्ट रहता है तो वह सम्पूर्ण देवताओंको प्रसन्न रखता है। ब्राह्मण दिनभर में जितना तप संग्रह करता है, उसको राजाका प्रतिग्रह क्षणभर में इस प्रकार जला डालता है जैसे सूखे जंगलको प्रचण्ड दावानल। इसलिये आप इस दानके साथ कुशलपूर्वक रहें। जो इसे माँगें अथवा जिन्हें इसकी आवश्यकता हो, उन्हें ही यह दान दे दें।'

यों कहकर वे दूसरे रास्तेसे आहारकी खोजमें वनमें चले गये। तदनन्तर राजाने अपने मन्त्रियोंको गूलरके फलामें सोना भर-भरकर ऋषियोंके मार्ग में रखवा देनेका आदेश दिया। उनके सेवकोंने ऐसा ही किया। महर्षि अत्रिने जब उनमेंसे एकको उठाया, तब फल बड़ा वजनदार मालूम हुआ। उन्होंने कहा- 'हमारी बुद्धि इतनी मन्द नहीं हुई है, हम सो नहीं रहे हैं। हमें मालूम हैं इनके भीतर सुवर्ण है। यदि आज हम इन्हें ले लेते हैं तो परलोकमें हमें इसका कटु परिणाम भोगना पड़ेगा।'

यों कहकर दृढतापूर्वक नियमोंके पालन करने वाले ऋषिगण चमत्कारपुरकी और चले गये। घूमते-घूमते वे मध्यपुष्करमें गये, जहाँ अकस्मात् आये हुए शुनःसख नामक परिब्राजकसे उनकी भेंट हुई। वहाँ उन्हें एक बहुत बड़ा सरोवर दिखायी दिया। उसका जल कमलोंसेढँका हुआ था। वे सब के सब उस सरोवर के किनारे बैठ गये। उसी समय शुनःसखने पूछा- 'महर्षियो आप सब लोग बताइये, भूखकी पीड़ा कैसी होती है ?' ऋषियोंने कहा-' शस्त्रास्त्रोंसे मनुष्यको जो वेदना होती है, वह भी भूखके सामने मात हो जाती है। पेटकी आगसे शरीरकी समस्त नाड़ियाँ सूख जाती है, आँखों आगे अँधेरा छा जाता है, कुछ सूझता नहीं भूखकी आग प्रज्वलित होनेपर प्राणी गूँगा, बहरा, जड़, पशु, भयंकर तथा मर्यादाहीन हो जाता है। इसलिये अन्न ही सर्वोत्तम पदार्थ है।"

'अतः अन्नदान करनेवालेको अक्षय तृति और सनातन स्थिति प्राप्त होती है। चन्दन, अगर, धूप और शीतकालमें ईंधनका दान अन्नदानके सोलहवें भागके बराबर भी नहीं हो सकता। दम, दान और यम-ये तीन मुख्य धर्म हैं। इनमें भी दम विशेषतः ब्राह्मणोंका सनातन धर्म है। दम तेजको बढ़ाता है। जितेन्द्रिय पुरुष जहाँ कहीं भी रहता है, उसके लिये वही स्थान तपोवन बन जाता है। विषयासक्त मनुष्य के मनमें भी दोषोंका उद्भावन होता है; पर जो सदा शुभ कर्मोंमें ही प्रवृत्त है, उसके लिये तो घर भी तपोवन ही है केवल शब्द शास्त्र (व्याकरण) में ही लगे रहनेसे मोक्ष नहीं होता; मोक्ष तो एकान्तसेवी, यम-नियमरत, ध्यानपरायण पुरुषको ही प्राप्त होता है। अङ्गसहित वेद भी अजितेन्द्रियको पवित्र नहीं कर सकते। जो चेष्टा अपनेको बुरी लगे, उसे दूसरेके लिये भी आचरण न करे यही धर्मका सार है। जो परायी स्त्रीको माताके समान, पर-धनको मिट्टी के समान तथा संसारके सभी भूतोंको अपने ही समान देखता है, वही ज्ञानी है। सम्पूर्ण प्राणियों के हितका ध्यान रखनेवाला प्राणी मोक्षको प्राप्त करता है।'

तदनन्तर ऋषियोंकि हृदयमें विचार हुआ कि इस सरोवरमेंसे कुछ मृणाल निकाले जायें। पर उस सरोवरमें प्रवेश करनेके लिये एक ही दरवाजा था और इस दरवाजेपर खड़ी थी राजा वृषादर्भिकी कृत्या, जिसे उसने अपनेको अपमानित समझकर ब्राह्मणोंद्वारा अनुष्ठान कराकर सप्तर्षियोंकी हत्याके लिये भेजा था सप्तर्षियोंनेजब उस विकराल राक्षसीको वहाँ खड़ी देखा, तब उन्होंने उसका नाम तथा वहाँ खड़ी रहनेका प्रयोजन पूछा यातुधानी बोली- 'तपस्वियों मैं जो कोई भी होऊँ तुम्हें मेरा परिचय पूछनेकी आवश्यकता नहीं है। तुम इतना ही जान लो कि मैं इस सरोवरकी रक्षिका हूँ।'

ऋषियोंने कहा-'भद्रे हमलोग भूखसे व्याकुल हैं। अतः तुम यदि आज्ञा दो तो हमलोग इस तालाबसे कुछ मृणाल उखाड़ लें।' यातुधानी बोली-'एक शर्तपर तुम ऐसा कर सकते हो एक-एक आदमी आकर अपना नाम बताये और प्रवेश करे।' उसकी बात सुनकर महर्षि अत्रि यह समझ गये कि यह राक्षसी कृत्या है और हम सबको वध करनेकी इच्छासे आयी है। तथापि भूखसे व्याकुल होनेके कारण उन्होंने उत्तर दिया- 'कल्याणि ! पापसे त्राण करनेवालेको अरात्रि कहते हैं और उनसे बचानेवाला अत्रि कहलाता है। पापरूप मृत्युसे बचानेवाला होनेके कारण ही मैं अत्रि हूँ।' यातुधानी बोली- 'तेजस्वी महर्षे! आपने जिस प्रकार अपने नामका तात्पर्य बतलाया है, वह मेरी समझमें आना बड़ा कठिन है। अच्छा, आप तालाब में उतरिये।'

इसी प्रकार वसिष्ठने कहा- 'मेरा नाम वसिष्ठ है। सबसे श्रेष्ठ होनेके कारण लोग मुझे वरिष्ठ भी कहते हैं।' यातुधानी बोली- मैं इस नामको याद नहीं रख सकती। आप जाइये, तालाबमें प्रवेश कीजिये।' कश्यपने कहा- कश्य नाम है शरीरका जो उसका पालन करता हो, वह कश्यप है। कु अर्थात् पृथ्वीपर वम वर्षा करनेवाला सूर्य भी मेरा ही स्वरूप है- अतः मैं कुवम भी हूँ। काशके फूलकी भाँति उज्ज्वल होनेसे'काश्य' भी समझो।' इसी प्रकार सभी ऋषियोंने अपने नाम बतलाये न किंतु वह किसीको भी ठीकसे न याद कर पायी : व्याख्या ही समझी; अन्तमें शुनःसखकी पारी आयी उन्होंने अपना नाम बतलाते हुए कहा - ' यातुधानी! इन ऋषियोंने जिस प्रकार अपना नाम बतलाया है, उस तरह मैं नहीं बता सकता। मेरा नाम शुनःसखसख (धर्म स्वरूप मुनियोंका मित्र) समझो।'

इसपर यातुधानीने कहा- 'आप कृपया अपना नाम एक बार और बतलायें ।' शुनःसखने कहा- 'मैंने एक बार अपना नाम बतलाया। तुम उसे याद न कर बार बार पूछती हो; इसलिये लो, मेरे त्रिदण्डकी मारसे भस्म हो जाओ।' यों कहकर उस संन्यासीके वेशमें छिपे इन्द्रने अपने त्रिदण्डकी आड़में गुप्त वज्रसे उसका विनाश कर डाला और सप्तर्षियोंकी रक्षा की तथा अन्तमें कहा- 'मैं संन्यासी नहीं, इन्द्र हूँ। आपलोगोंकी रक्षा करनेके उद्देश्यसे ही मैं यहाँ आया था। राजा वृषादर्भिकी भेजी हुई अत्यन्त क्रूर कर्म करनेवाली यातुधानी कृत्या आपलोगोंका वध करनेकी इच्छासे यहाँ आयी हुई थी। अग्निसे इसका आविर्भाव हुआ था। इसीसे मैंने यहाँ उपस्थित होकर इस राक्षसीका वध कर डाला। तपोधनो! लोभका सर्वथा परित्याग करनेके कारण अक्षय लोकोंपर आपका अधिकार हो अब आप यहाँसे उठकर वहीं चलिये।' चुका है। अन्तमें सप्तर्षिगण इन्द्रके साथ चले गये।- जा0 श0

(महाभारत, अनुशासनपर्व अध्याय 93: स्कन्दपुराण,
नागरखण्ड, अध्याय 32; पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड, अध्याय 19)



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saptarshiyonka tyaaga

bahut puraane samayakee baat hai. ek baar prithveepar baarah varshontak varsha naheen huee sansaaramen ghor akaal pada़ gayaa. sabhee log bhookhon marane lage. saptarshi bhee bhookhase vyaakul hokar idhara-udhar bhatakane lage. ghoomate-ghoomate ye log vrishaadarbhi raajaake raajyamen gaye. unaka aagaman sunakar raaja vahaan aaya aur bolaa- 'muniyon! main aapalogonko ann, graam, ghrit dugdhaadi ras tatha tarah tarahake ratn de raha hoon . aapalog kripaya sveekaar karen.'

rishiyonne kahaa- 'raajan! raajaaka diya hua daan ooparase madhuke samaan meetha jaan pada़ta hai, kintu parinaamamen vah vishake samaan ho jaata hai. is baatako jaanate hue bhee hamalog aapake pralobhanamen kyonkar pada़ sakate hain. braahmanonka shareer devataaonka nivaasasthaan hai. yadi braahman tapasyaase shuddh evan santusht rahata hai to vah sampoorn devataaonko prasann rakhata hai. braahman dinabhar men jitana tap sangrah karata hai, usako raajaaka pratigrah kshanabhar men is prakaar jala daalata hai jaise sookhe jangalako prachand daavaanala. isaliye aap is daanake saath kushalapoorvak rahen. jo ise maangen athava jinhen isakee aavashyakata ho, unhen hee yah daan de den.'

yon kahakar ve doosare raastese aahaarakee khojamen vanamen chale gaye. tadanantar raajaane apane mantriyonko goolarake phalaamen sona bhara-bharakar rishiyonke maarg men rakhava deneka aadesh diyaa. unake sevakonne aisa hee kiyaa. maharshi atrine jab unamense ekako uthaaya, tab phal bada़a vajanadaar maaloom huaa. unhonne kahaa- 'hamaaree buddhi itanee mand naheen huee hai, ham so naheen rahe hain. hamen maaloom hain inake bheetar suvarn hai. yadi aaj ham inhen le lete hain to paralokamen hamen isaka katu parinaam bhogana pada़egaa.'

yon kahakar dridhataapoorvak niyamonke paalan karane vaale rishigan chamatkaarapurakee aur chale gaye. ghoomate-ghoomate ve madhyapushkaramen gaye, jahaan akasmaat aaye hue shunahsakh naamak paribraajakase unakee bhent huee. vahaan unhen ek bahut bada़a sarovar dikhaayee diyaa. usaka jal kamalonsedhanka hua thaa. ve sab ke sab us sarovar ke kinaare baith gaye. usee samay shunahsakhane poochhaa- 'maharshiyo aap sab log bataaiye, bhookhakee peeda़a kaisee hotee hai ?' rishiyonne kahaa-' shastraastronse manushyako jo vedana hotee hai, vah bhee bhookhake saamane maat ho jaatee hai. petakee aagase shareerakee samast naaड़iyaan sookh jaatee hai, aankhon aage andhera chha jaata hai, kuchh soojhata naheen bhookhakee aag prajvalit honepar praanee goonga, bahara, jada़, pashu, bhayankar tatha maryaadaaheen ho jaata hai. isaliye ann hee sarvottam padaarth hai."

'atah annadaan karanevaaleko akshay triti aur sanaatan sthiti praapt hotee hai. chandan, agar, dhoop aur sheetakaalamen eendhanaka daan annadaanake solahaven bhaagake baraabar bhee naheen ho sakataa. dam, daan aur yama-ye teen mukhy dharm hain. inamen bhee dam visheshatah braahmanonka sanaatan dharm hai. dam tejako badha़aata hai. jitendriy purush jahaan kaheen bhee rahata hai, usake liye vahee sthaan tapovan ban jaata hai. vishayaasakt manushy ke manamen bhee doshonka udbhaavan hota hai; par jo sada shubh karmonmen hee pravritt hai, usake liye to ghar bhee tapovan hee hai keval shabd shaastr (vyaakarana) men hee lage rahanese moksh naheen hotaa; moksh to ekaantasevee, yama-niyamarat, dhyaanaparaayan purushako hee praapt hota hai. angasahit ved bhee ajitendriyako pavitr naheen kar sakate. jo cheshta apaneko buree lage, use doosareke liye bhee aacharan n kare yahee dharmaka saar hai. jo paraayee streeko maataake samaan, para-dhanako mittee ke samaan tatha sansaarake sabhee bhootonko apane hee samaan dekhata hai, vahee jnaanee hai. sampoorn praaniyon ke hitaka dhyaan rakhanevaala praanee mokshako praapt karata hai.'

tadanantar rishiyonki hridayamen vichaar hua ki is sarovaramense kuchh mrinaal nikaale jaayen. par us sarovaramen pravesh karaneke liye ek hee daravaaja tha aur is daravaajepar khada़ee thee raaja vrishaadarbhikee kritya, jise usane apaneko apamaanit samajhakar braahmanondvaara anushthaan karaakar saptarshiyonkee hatyaake liye bheja tha saptarshiyonnejab us vikaraal raakshaseeko vahaan khada़ee dekha, tab unhonne usaka naam tatha vahaan khada़ee rahaneka prayojan poochha yaatudhaanee bolee- 'tapasviyon main jo koee bhee hooon tumhen mera parichay poochhanekee aavashyakata naheen hai. tum itana hee jaan lo ki main is sarovarakee rakshika hoon.'

rishiyonne kahaa-'bhadre hamalog bhookhase vyaakul hain. atah tum yadi aajna do to hamalog is taalaabase kuchh mrinaal ukhaada़ len.' yaatudhaanee bolee-'ek shartapar tum aisa kar sakate ho eka-ek aadamee aakar apana naam bataaye aur pravesh kare.' usakee baat sunakar maharshi atri yah samajh gaye ki yah raakshasee kritya hai aur ham sabako vadh karanekee ichchhaase aayee hai. tathaapi bhookhase vyaakul honeke kaaran unhonne uttar diyaa- 'kalyaani ! paapase traan karanevaaleko araatri kahate hain aur unase bachaanevaala atri kahalaata hai. paaparoop mrityuse bachaanevaala honeke kaaran hee main atri hoon.' yaatudhaanee bolee- 'tejasvee maharshe! aapane jis prakaar apane naamaka taatpary batalaaya hai, vah meree samajhamen aana bada़a kathin hai. achchha, aap taalaab men utariye.'

isee prakaar vasishthane kahaa- 'mera naam vasishth hai. sabase shreshth honeke kaaran log mujhe varishth bhee kahate hain.' yaatudhaanee bolee- main is naamako yaad naheen rakh sakatee. aap jaaiye, taalaabamen pravesh keejiye.' kashyapane kahaa- kashy naam hai shareeraka jo usaka paalan karata ho, vah kashyap hai. ku arthaat prithveepar vam varsha karanevaala soory bhee mera hee svaroop hai- atah main kuvam bhee hoon. kaashake phoolakee bhaanti ujjval honese'kaashya' bhee samajho.' isee prakaar sabhee rishiyonne apane naam batalaaye n kintu vah kiseeko bhee theekase n yaad kar paayee : vyaakhya hee samajhee; antamen shunahsakhakee paaree aayee unhonne apana naam batalaate hue kaha - ' yaatudhaanee! in rishiyonne jis prakaar apana naam batalaaya hai, us tarah main naheen bata sakataa. mera naam shunahsakhasakh (dharm svaroop muniyonka mitra) samajho.'

isapar yaatudhaaneene kahaa- 'aap kripaya apana naam ek baar aur batalaayen .' shunahsakhane kahaa- 'mainne ek baar apana naam batalaayaa. tum use yaad n kar baar baar poochhatee ho; isaliye lo, mere tridandakee maarase bhasm ho jaao.' yon kahakar us sannyaaseeke veshamen chhipe indrane apane tridandakee aada़men gupt vajrase usaka vinaash kar daala aur saptarshiyonkee raksha kee tatha antamen kahaa- 'main sannyaasee naheen, indr hoon. aapalogonkee raksha karaneke uddeshyase hee main yahaan aaya thaa. raaja vrishaadarbhikee bhejee huee atyant kroor karm karanevaalee yaatudhaanee kritya aapalogonka vadh karanekee ichchhaase yahaan aayee huee thee. agnise isaka aavirbhaav hua thaa. iseese mainne yahaan upasthit hokar is raakshaseeka vadh kar daalaa. tapodhano! lobhaka sarvatha parityaag karaneke kaaran akshay lokonpar aapaka adhikaar ho ab aap yahaanse uthakar vaheen chaliye.' chuka hai. antamen saptarshigan indrake saath chale gaye.- jaa0 sha0

(mahaabhaarat, anushaasanaparv adhyaay 93: skandapuraan,
naagarakhand, adhyaay 32; padmapuraan, srishtikhand, adhyaay 19)

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किसी को भांग का नशा है मुझे तेरा नशा है,
भोले ओ शंकर भोले मनवा कभी न डोले,
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श्री राधा नाम का रंग रंग, श्री राधा नाम
राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
बरसाने मे दोल, के मुख से राधे राधे बोल,
जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया।
सांवरिया है सेठ ,मेरी राधा जी सेठानी
यह तो सारी दुनिया जाने है
वृन्दावन के बांके बिहारी,
हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से
ना मैं मीरा ना मैं राधा,
फिर भी श्याम को पाना है ।
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उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
कहना कहना आन पड़ी मैं तेरे द्वार ।
मुझे चाकर समझ निहार ॥
सांवरियो है सेठ, म्हारी राधा जी सेठानी
यह तो जाने दुनिया सारी है
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई
रसिया को नार बनावो री रसिया को
रसिया को नार बनावो री रसिया को
सब के संकट दूर करेगी, यह बरसाने वाली,
बजाओ राधा नाम की ताली ।
जिंदगी एक किराये का घर है,
एक न एक दिन बदलना पड़ेगा॥
कारे से लाल बनाए गयी रे,
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एक कोर कृपा की करदो स्वामिनी श्री
दासी की झोली भर दो लाडली श्री राधे॥
दुनिया का बन कर देख लिया, श्यामा का बन
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तीनो लोकन से न्यारी राधा रानी हमारी।
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