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सभीका ईश्वर एक  [Story To Read]
Shikshaprad Kahani - आध्यात्मिक कहानी (Spiritual Story)

'नरहरि ! भगवान् विट्ठलनाथने प्रसन्न हो मुझे पुत्र | दिया। मैं आज उन्हें रत्नजटित कमरपट्टा चढ़ाने आया हूँ। पंढरपुरमें सिवा तुम्हारे कोई उसे गढ़ नहीं सकता। इसलिये उठो, भगवान्‌की कमरका नाप ले आओ और शीघ्र उसे तैयार कर दो।'- एक साहूकारने आकर नरहरि सुनारसे कहा।

नरहरिने पंढरपुरमें रहकर भी कभी भूलकर विट्ठलनाथका दर्शन नहीं किया था। वह परम शैव था। शिवके भजन-पूजनमें सदा अनुरक्त वह भक्त वैष्णवोंके देव विट्ठलनाथसे इतना बचता कि बाहर निकलते समय सिर नीचा कर चलता, ताकि धोखेमें विट्ठल- मन्दिरका शिखर-दर्शन भी न हो जाय।

नरहरिने मन्दिरमें जाना स्पष्टतः अस्वीकार कर दिया। लाचार हो व्यापारी स्वयं ही जाकर नाप ले आया। कमरपट्टा बना और भगवान्‌को पहनाया गया तो छोटा होने लगा। फिर नरहरिके पास उसे लाया गया। नरहरिने बड़ी कुशलतासे उसे बड़ा कर दिया। अबकी बार वह अपेक्षासे अधिक बड़ा हो गया।

साहूकार चिन्तित हो उठा 'क्या सचमुच भगवान् हमपर अप्रसन्न हो गये ? क्योंकर वे इसे स्वीकार नहीं करते ?' उसने आकर नरहरिसे बड़ी अनुनय-विनय की। नरहरि मन्दिर चलने और स्वयं नाप लेनेको तैयार हुआ— इस शर्तपर कि मेरी आँखोंपर पट्टी ।बाँध ले चलो और मैं हाथोंसे टटोलकर नाप ले लूँगा । आँखोंपर पट्टी बाँधे नरहरि सुनार पकड़कर मन्दिरमें लाया गया। उसने मूर्तिको टटोला तो दशभुज, पञ्चवदन, भुजङ्गभूषण, जटाधारी शंकर ईंटपर खड़े मालूम पड़े। अपने आराध्यदेवको पाकर उनके दर्शनसे बचनेकी अपनी बुद्धिपर उसे तरस आयी और उसने अत्यन्त अनुतप्त हो आँखोंसे पट्टी खोली पट्टी खोलते ही पुनः पीताम्बरधारी वनमालीको देख वह सकपकाया और पुनः पट्टी बाँध ली। फिर हाथोंसे टटोला तो वे ही भवानीपति भोलानाथ और पट्टी खोलते ही रुक्मिणीरमण पाण्डुरङ्ग ईंटपर खड़े तथा कटिपर हाथ धरे दिखायी पड़ते ।

नरहरि बड़े असमंजसमें पड़ गया। उसे ईश्वरमें भेद बुद्धि रखनेपर अच्छा पाठ मिल गया। शिवका अनन्य
भक्त होनेके कारण उसे अब ईश्वराद्वैतका रहस्य समझते देर नहीं लगी। उसने दीनवाणीसे प्रभुकी प्रार्थना की। भगवान् प्रसन्न हो उठे। ईश्वरमें भेदबुद्धि नष्ट करना ही उनका लक्ष्य था । उसके सिद्ध हो जानेपर भक्तकी | अनन्यताके वशीभूत हो उन्होंने उसकी प्रसन्नताके लिये अपने सिरपर शिवलिङ्ग धारण कर लिया। तबसे पंढरपुरके विट्ठल भगवान् के सिरपर आज भी शिवलिङ्ग विराजमान है।

-गो0 न0 बै0

(भक्तिविजय, अध्याय 20)



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sabheeka eeshvar eka

'narahari ! bhagavaan vitthalanaathane prasann ho mujhe putr | diyaa. main aaj unhen ratnajatit kamarapatta chadha़aane aaya hoon. pandharapuramen siva tumhaare koee use gadha़ naheen sakataa. isaliye utho, bhagavaan‌kee kamaraka naap le aao aur sheeghr use taiyaar kar do.'- ek saahookaarane aakar narahari sunaarase kahaa.

naraharine pandharapuramen rahakar bhee kabhee bhoolakar vitthalanaathaka darshan naheen kiya thaa. vah param shaiv thaa. shivake bhajana-poojanamen sada anurakt vah bhakt vaishnavonke dev vitthalanaathase itana bachata ki baahar nikalate samay sir neecha kar chalata, taaki dhokhemen vitthala- mandiraka shikhara-darshan bhee n ho jaaya.

naraharine mandiramen jaana spashtatah asveekaar kar diyaa. laachaar ho vyaapaaree svayan hee jaakar naap le aayaa. kamarapatta bana aur bhagavaan‌ko pahanaaya gaya to chhota hone lagaa. phir naraharike paas use laaya gayaa. naraharine bada़ee kushalataase use bada़a kar diyaa. abakee baar vah apekshaase adhik bada़a ho gayaa.

saahookaar chintit ho utha 'kya sachamuch bhagavaan hamapar aprasann ho gaye ? kyonkar ve ise sveekaar naheen karate ?' usane aakar naraharise bada़ee anunaya-vinay kee. narahari mandir chalane aur svayan naap leneko taiyaar huaa— is shartapar ki meree aankhonpar pattee .baandh le chalo aur main haathonse tatolakar naap le loonga . aankhonpar pattee baandhe narahari sunaar pakada़kar mandiramen laaya gayaa. usane moortiko tatola to dashabhuj, panchavadan, bhujangabhooshan, jataadhaaree shankar eentapar khada़e maaloom pada़e. apane aaraadhyadevako paakar unake darshanase bachanekee apanee buddhipar use taras aayee aur usane atyant anutapt ho aankhonse pattee kholee pattee kholate hee punah peetaambaradhaaree vanamaaleeko dekh vah sakapakaaya aur punah pattee baandh lee. phir haathonse tatola to ve hee bhavaaneepati bholaanaath aur pattee kholate hee rukmineeraman paandurang eentapar khada़e tatha katipar haath dhare dikhaayee pada़te .

narahari bada़e asamanjasamen pada़ gayaa. use eeshvaramen bhed buddhi rakhanepar achchha paath mil gayaa. shivaka ananya
bhakt honeke kaaran use ab eeshvaraadvaitaka rahasy samajhate der naheen lagee. usane deenavaaneese prabhukee praarthana kee. bhagavaan prasann ho uthe. eeshvaramen bhedabuddhi nasht karana hee unaka lakshy tha . usake siddh ho jaanepar bhaktakee | ananyataake vasheebhoot ho unhonne usakee prasannataake liye apane sirapar shivaling dhaaran kar liyaa. tabase pandharapurake vitthal bhagavaan ke sirapar aaj bhee shivaling viraajamaan hai.

-go0 na0 bai0

(bhaktivijay, adhyaay 20)

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