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हनुमान्जीके अत्यल्प गर्वका मूलसे संहार  [हिन्दी कहानी]
छोटी सी कहानी - हिन्दी कथा (आध्यात्मिक कहानी)

भगवान् श्रीरामचन्द्र जब समुद्रपर सेतु बाँध रहे थे, तब विघ्ननिवारणार्थ पहले उन्होंने गणेशजीकी स्थापना कर नवग्रहोंकी नौ प्रतिमाएँ नलके हाथों स्थापित करायीं। तत्पश्चात् उनका विचार सागर-संयोगपर एक अपने नामसे शिवलिङ्ग स्थापित करानेका हुआ। इसके लिये हनुमान्जीको बुलाकर कहा- 'मुहूर्तके भीतर काशी जाकर भगवान् शङ्करसे लिङ्ग माँगकर लाओ। पर देखना, मुहूर्त न टलने पाये।' हनुमानजी क्षणभरमें वाराणसी पहुँच गये। भगवान् शङ्करने कहा-'मैं पहलेसे ही दक्षिण जानेके विचारमें था क्योंकि अगस्त्यजी विन्ध्याचलको नीचा करनेके लिये यहाँसे चले तो गये, पर उन्हें मेरे वियोगका बड़ा कष्ट है। वे अभी भी मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। एक तो श्रीरामके तथा दूसरा अपने नामपर स्थापित करनेके लिये इन दो लिङ्गोंको ले 'चलो।' इसपर हनुमानजीको अपनी महत्ता तथा तीव्रगामिताका थोड़ा-सा गर्वाभास हो आया।

इधर कृपासिन्धु भगवान्को अपने भक्तकी इसरोगोत्पत्तिकी बात मालूम हो गयी। उन्होंने सुग्रीवादिको बुलाया और कहा-'अब मुहूर्त बीतना ही चाहता है, अतएव मैं सैकत (वालुकामय) लिङ्गकी ही स्थापना किये देता हूँ।' यों कहकर मुनियोंकी सम्मतिसे उन्हींके बीच बैठकर विधि-विधानसे उस सैकत लिङ्गकी स्थापना कर दी। दक्षिणा दानके लिये प्रभुने कौस्तुभमणिको स्मरण किया। स्मरण करते ही वह मणि आकाशमार्गसे सूर्यवत् आ पहुँची। प्रभुने उसे गलेमें बाँध लिया। उस मणिके प्रभावसे वहाँ धन, वस्त्र, गौएँ, अश्व, आभरण और पायसादि दिव्य अन्नोंका ढेर लग गया। भगवान्से अभिपूजित होकर ऋषिगण अपने घर चले। रास्ते में उन्हें हनुमान्जी मिले। उन्होंने मुनियोंसे पूछा, 'महाराज !' आपलोगों की किसने पूजा की है ? उन्होंने कहा 'श्रीराघवेन्द्रने शिवलिङ्गकी प्रतिष्ठा की है, उन्होंने ही हमारी दक्षिणा - दान - मानादिसे पूजा की है।' अब हनुमानजीको भगवान्‌के मायावश क्रोध आया। वे सोचने लगे-'देखो ! श्रीरामने व्यर्थका श्रम कराकर मेरेसाथ यह कैसा व्यवहार किया है!' दूसरे ही क्षण वे प्रभुके पास पहुँच गये और कहने लगे- 'क्या लङ्का जाकर सीताका पता लगा आनेका यही इनाम है ? यों काशी भेजकर लिङ्ग मँगाकर मेरा उपहास किया जा रहा है ? यदि आपके मनमें यही बात थी तो व्यर्थका मेरे द्वारा श्रम क्यों कराया ?"

दयाधाम भगवान्ने बड़ी शान्तिसे कहा- 'पवन नन्दन ! तुम बिलकुल ठीक ही तो कहते हो। क्या हुआ ? तुम मेरे द्वारा स्थापित इस वालुकामय लिङ्गको उखाड़ डालो। मैं अभी तुम्हारे लाये लिङ्गोंको स्थापित कर दूँ।'

'बहुत ठीक' कहकर अपनी पूँछमें लपेटकर हनुमान्जीने उस लिङ्गको बड़े जोरोंसे खींचा। पर आश्चर्य – लिङ्गका उखड़ना या हिलना-डुलना तो दूरकी बात रही, वह टस से मसतक न हुआ; उलटे हनुमान्जीकी पूँछ ही टूट गयी। वीरशिरोमणि हनुमान्जी मूच्छित होकर पृथ्वीपर गिर पड़े। वानर सब जोरोंसेहँस पड़े। स्वस्थ होनेपर हनुमानजी सर्वथा गर्वविहीन हो गये। उन्होंने प्रभुके चरणोंमें नमस्कार किया और क्षमा माँगी।

प्रभुको क्या था ? क्षमा तो पहलेसे ही दी हुई थी। भक्तका भयंकर रोग उत्पन्न होते-न-होते दूर कर दिया। तत्पश्चात् विधिपूर्वक अपने स्थापित लिङ्गके उत्तरमें विश्वनाथ-लिङ्गके नामसे उन्होंने हनुमान्जीद्वारा लाये गये लिङ्गोंकी स्थापना करायी और वर दिया 'कोई यदि पहले हनुमत्प्रतिष्ठित विश्वनाथ-लिङ्गकी अर्चा न कर मेरे द्वारा स्थापित रामेश्वर-लिङ्गकी पूजा करेगा, तो उसकी पूजा व्यर्थ होगी।' फिर प्रभुने हनुमान्जीसे कहा- 'तुम भी यहाँ छिन्न- पुच्छ, गुप्त पाद-रूपसे गतगर्व होकर निवास करो।' इसपर हनुमान्जीने अपनी भी एक वैसी ही छिन्न-पुच्छ, गुप्तपाद, गतगर्व मुद्रामयी प्रतिमा स्थापित कर दी। वह आज भी वहाँ वर्तमान है।

जा0 श0

(आनन्दरामायण, सारकाण्ड, सर्ग 10)



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hanumaanjeeke atyalp garvaka moolase sanhaara

bhagavaan shreeraamachandr jab samudrapar setu baandh rahe the, tab vighnanivaaranaarth pahale unhonne ganeshajeekee sthaapana kar navagrahonkee nau pratimaaen nalake haathon sthaapit karaayeen. tatpashchaat unaka vichaar saagara-sanyogapar ek apane naamase shivaling sthaapit karaaneka huaa. isake liye hanumaanjeeko bulaakar kahaa- 'muhoortake bheetar kaashee jaakar bhagavaan shankarase ling maangakar laao. par dekhana, muhoort n talane paaye.' hanumaanajee kshanabharamen vaaraanasee pahunch gaye. bhagavaan shankarane kahaa-'main pahalese hee dakshin jaaneke vichaaramen tha kyonki agastyajee vindhyaachalako neecha karaneke liye yahaanse chale to gaye, par unhen mere viyogaka bada़a kasht hai. ve abhee bhee meree prateeksha kar rahe hain. ek to shreeraamake tatha doosara apane naamapar sthaapit karaneke liye in do lingonko le 'chalo.' isapar hanumaanajeeko apanee mahatta tatha teevragaamitaaka thoda़aa-sa garvaabhaas ho aayaa.

idhar kripaasindhu bhagavaanko apane bhaktakee isarogotpattikee baat maaloom ho gayee. unhonne sugreevaadiko bulaaya aur kahaa-'ab muhoort beetana hee chaahata hai, ataev main saikat (vaalukaamaya) lingakee hee sthaapana kiye deta hoon.' yon kahakar muniyonkee sammatise unheenke beech baithakar vidhi-vidhaanase us saikat lingakee sthaapana kar dee. dakshina daanake liye prabhune kaustubhamaniko smaran kiyaa. smaran karate hee vah mani aakaashamaargase sooryavat a pahunchee. prabhune use galemen baandh liyaa. us manike prabhaavase vahaan dhan, vastr, gauen, ashv, aabharan aur paayasaadi divy annonka dher lag gayaa. bhagavaanse abhipoojit hokar rishigan apane ghar chale. raaste men unhen hanumaanjee mile. unhonne muniyonse poochha, 'mahaaraaj !' aapalogon kee kisane pooja kee hai ? unhonne kaha 'shreeraaghavendrane shivalingakee pratishtha kee hai, unhonne hee hamaaree dakshina - daan - maanaadise pooja kee hai.' ab hanumaanajeeko bhagavaan‌ke maayaavash krodh aayaa. ve sochane lage-'dekho ! shreeraamane vyarthaka shram karaakar meresaath yah kaisa vyavahaar kiya hai!' doosare hee kshan ve prabhuke paas pahunch gaye aur kahane lage- 'kya lanka jaakar seetaaka pata laga aaneka yahee inaam hai ? yon kaashee bhejakar ling mangaakar mera upahaas kiya ja raha hai ? yadi aapake manamen yahee baat thee to vyarthaka mere dvaara shram kyon karaaya ?"

dayaadhaam bhagavaanne bada़ee shaantise kahaa- 'pavan nandan ! tum bilakul theek hee to kahate ho. kya hua ? tum mere dvaara sthaapit is vaalukaamay lingako ukhaada़ daalo. main abhee tumhaare laaye lingonko sthaapit kar doon.'

'bahut theeka' kahakar apanee poonchhamen lapetakar hanumaanjeene us lingako bada़e joronse kheenchaa. par aashchary – lingaka ukhada़na ya hilanaa-dulana to doorakee baat rahee, vah tas se masatak n huaa; ulate hanumaanjeekee poonchh hee toot gayee. veerashiromani hanumaanjee moochchhit hokar prithveepar gir pada़e. vaanar sab joronsehans pada़e. svasth honepar hanumaanajee sarvatha garvaviheen ho gaye. unhonne prabhuke charanonmen namaskaar kiya aur kshama maangee.

prabhuko kya tha ? kshama to pahalese hee dee huee thee. bhaktaka bhayankar rog utpann hote-na-hote door kar diyaa. tatpashchaat vidhipoorvak apane sthaapit lingake uttaramen vishvanaatha-lingake naamase unhonne hanumaanjeedvaara laaye gaye lingonkee sthaapana karaayee aur var diya 'koee yadi pahale hanumatpratishthit vishvanaatha-lingakee archa n kar mere dvaara sthaapit raameshvara-lingakee pooja karega, to usakee pooja vyarth hogee.' phir prabhune hanumaanjeese kahaa- 'tum bhee yahaan chhinna- puchchh, gupt paada-roopase gatagarv hokar nivaas karo.' isapar hanumaanjeene apanee bhee ek vaisee hee chhinna-puchchh, guptapaad, gatagarv mudraamayee pratima sthaapit kar dee. vah aaj bhee vahaan vartamaan hai.

jaa0 sha0

(aanandaraamaayan, saarakaand, sarg 10)

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