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भक्त लाखाजी और उनका आदर्श परिवार की मार्मिक कथा
भक्त लाखाजी और उनका आदर्श परिवार की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त लाखाजी और उनका आदर्श परिवार (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त लाखाजी और उनका आदर्श परिवार]- भक्तमाल


भक्त लाखाजी जातिके गौड़ ब्राह्मण थे। राजपूतानेके एक छोटे से गाँवमें उनका घर था लाखाजी विशेष पढ़े तो नहीं थे, परंतु विष्णुसहस्रनाम और गीता उनको कण्ठस्थ थे और भगवानमें उनका अटूट विश्वास था। ये खेतीका काम करते थे। इनकी स्त्री खेमाबाई बड़ी साध्यी और पतिव्रता थी घरका सारा काम तो करती ही, खेतीके काममें भी पतिकी पूरी सहायता करतो थी और पतिकी सेवा किये बिना तो उसका नित्यका व्रत ही पूरा नहीं होता था। वह नित्य प्रातःकाल स्नान करकेपतिके दाहिने चरणके अँगूठेको धोकर पीती । लाखाजीको संकोच होता, वे मना भी करते; परंतु खेमाबाईके आग्रहके सामने उनकी कुछ भी न चलती। उनके दो सन्तान थीं - एक पुत्र, दूसरी कन्या । पुत्रका नाम था देवा और कन्याका गंगाबाई । पुत्रके विवाहकी तो जल्दी नहीं थी, परंतु धर्मभीरु ब्राह्मणको कन्याके विवाहकी बड़ी चिन्ता थी । चेष्टा करते-करते समीपके ही एक गाँवमें योग्य वर मिल गया। वरके पिता सन्तोषी ब्राह्मण थे। क सम्बन्ध हो गया और समयपर लाखाजीने बड़े चाव सेअपनी कन्या गंगाबाईका विवाह करके उसे ससुराल भेज दिया। इस समय गंगाबाईकी उम्र बारह वर्षकी थी। देवा उम्र में बड़ा था, परंतु उसका विवाह कन्याके विवाह के दो साल पीछे किया गया। बहू घरमें आयी बहूका नाम थालिछमी। वह स्वभावमें साक्षात् लक्ष्मी ही थी। इस प्रकार लाखाजी सब तरहसे सुखी थे लाखाजीका नियम था- रोज सबेरे गीताजीका एक पूरा पाठ करना और रातको सोनेसे पहले-पहले विष्णुसहस्रनामके पचास पाठ कर लेना। उनके मुखसे पाठ होता रहता और हाथोंसे काम! यह नियम, जब वे दस वर्षके थे, तभी पिताने दिलाया था, जो जीवनभर अखण्डरूप से चला। इसी नियमने उनको भगवद्विश्वासरूपी परम निधि प्रदान की।

सदा दिन एक से नहीं रहते न मालूम प्रारब्धके किस संयोगसे कैसे दिन बदल जाते हैं लाखाजीके जामाताको साँप काट गया और विधि विधान पचीस वर्षकी युवावस्थामें वह अपनी बाईस वर्षकी पत्नी और माता-पिताको छोड़कर चल बसा। जब लाखाजीको यह समाचार मिला, तब उन्होंने महे धीरजके साथ अपनी स्त्री खेमाबाई और पुत्र तया पुत्रवधूको अपने पास बुलाकर कहा-'देखो, संसारकी दृष्टिसे हमलोगोंके लिये यह बड़े ही दुःखकी बात हुई है। दुःख इस बातका इतना नहीं है कि जवाँई मर गये! जीवन-मरण सब प्रारब्धाधीन हैं, इन्हें कोई टाल नहीं सकता। दुःख तो इस बातका है कि गंगाबाईका जीवन दुःखरूप हो गया। यदि हमलोग अपने व्यवहार-बर्तावसे गंगाबाईका दुःख मिटा सकें तो हमारा सारा दुःख दूर हो जाय उसके दुःख दूर होनेका उपाय यह है कि उसको हम यहाँ ले आयें और हमलोग स्वयं विषयभोगोंका त्याग करके उसे श्रीभगवान्‌को सेवामें लगाने का प्रयत्न करें भोगोंकी प्राप्तिसे दुःखोंका नारा नहीं होता, न भोगोंके नाशमें ही वस्तुतः दुःख है। दुःखके कारण तो हमारे मनके मनोरथ हैं। एक भी भोग न रहे, अति आवश्यक चीजोंका भी अभाव हो; परंतु मन यदि अभावका अनुभव न करके सदा सन्तुष्ट रहे, उसमें मनोरथ न उठें तो कोई भी दुःख नहीं रहेगा। इसी प्रकार भोगों की प्रचुर प्राप्ति होनेपर भी जबतक किसी वस्तु के वस्तुकेअभावका अनुभव होता है और उसको प्राप्त करनेकी कामना रहती है, तबतक दुःखं नहीं मिट सकते। यदि हमलोग चेष्टा करके गंगाबाईके मनसे उसके पतिके अभावको भुला दे सकें और उसकी सदा भावरूप परमपति भगवान के चरणोंमें आसक्ति उत्पन्न कर दे सकें तो वह सुखी हो सकती है। यद्यपि यहाँके सारे सम्बन्ध इस शरीरको लेकर ही हैं, तथापि जबतक सम्बन्ध हैं तबतक हमलोगोंको परस्पर ऐसा बर्ताव करना चाहिये, जिससे हमारे मन भोगोंसे हटकर भगवान्में लगें और हमें परम कल्याणरूप श्रीभगवान्की प्राप्ति हो । हित करनेवाले सच्चे माता-पिता, पुत्र- भाई, स्त्री स्वामी वही हैं, जो अपनी सन्तानको, माता-पिताको, भाई-बहिनोंको, स्वामीको और पत्नीको अनन्त क्लेशरूप जगजालसे छुड़ाकर अचिन्त्य आनन्दस्वरूप भगवान्‌के पथपर चढ़ा देते हैं। हमलोगोंको भी यही चाहिये कि हम शोक छोड़कर नित्य शोकरूप संसारसागरसे गंगाबाईको पार लगानेका प्रयत्न करें।'

लाखाजीकी स्त्री, उनके पुत्र देवा तथा पुत्रवधू सभीका लाखाजीके वचनोंपर पूरा विश्वास था। वे सब प्रकारसे उनके अनुगत थे। अतः लाखाजीके इन वचनोंका उनपर बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्होंने कहा- आप गंगाबाईको यहाँ ले आइये, हमलोग आपके आज्ञानुसार भोगोंका त्याग करके उसे भगवान्‌के मार्गपर ही लगायेंगे। इससे हमारा उसका- सभीका परम कल्याण होगा।'

लाखाजी समधीके घर गये और वहाँका दृश्य देखकर चकित रह गये। उन्होंने देखा - गंगाबाई अपने सास ससुरको संसारकी क्षणभङ्गुरता और मिथ्या सम्बन्धका रहस्य समझाकर उन्हें सान्त्वना दे रही है और वे उसकी बात मानकर रोना छोड़कर भगवान्‌के नामका कीर्तन कर रहे हैं। अपनी पुत्रीकी यह स्थिति देखकर लाखाजीको दुःखमें सुख हो गया। उन्हें मानो जहरसे अमृत मिल गया। वे समधी से मिले, उन्हें देखकर शोक-सागर उमड़ा; परंतु गंगाबाईके उपदेशोंकी स्मृति आते ही तुरंत शान्त हो गया। समधीने लाखाजीसे कहा-'लाखाजी! आप धन्य हैं जो आपके घर ऐसी साध्वी कन्या उत्पन्न हुई। आप जानते हैं युवा पुत्रकी मृत्युका शोक कितनाभयानक होता है, स्त्रीके लिये तो पतिका वियोग सर्वथा असह्य है; परंतु धन्य है आपकी पुत्रीको जिसने विवेकके द्वारा स्वयं तो पतिवियोगका दुःख सह ही लिया, हमलोगोंको भी ऐसा उपदेश दिया कि हमारा दारुण पुत्र शोक दूर हो गया। हम समझ गये- जगत्के ये सारे सम्बन्ध आरोपित हैं। जैसे किसी खेलमें अलग अलग स्वाँग धरकर लोग आते हैं और अपना-अपना खेल पूरा करके चले जाते हैं, वैसे ही इस संसाररूपी खेलमें हमलोग आते हैं, सम्बन्ध जोड़ते हैं और खेल पूरा होते ही चले जाते हैं। यहाँ कोई किसीका पुत्र या पिता नहीं है। एकमात्र परमात्मा ही सबके परम पिता हैं। हम सबको उन्होंकी आराधना करनी चाहिये। आप आ गये हैं- अपनी इस साध्वी कन्याको अपने घर ले जाइये। हम दोनों स्त्री-पुरुष पुष्करराज जाकर भगवद्भजनमें ही शेष जीवन बिताना चाहते हैं। आपकी पुत्री हमारे साथ जानेका आग्रह करती है, परंतु हमारे मनमें भगवान् ऐसी ही प्रेरणा करते हैं कि वह आपके ही पास रहे। हाँ, इतना हम जरूर चाहते हैं यह अपनी सद्भावनासे हमारा सदा कल्याण करती रहे। आप जाइये, हमलोग आपके बड़े ही कृतज्ञ है; क्योंकि आपकी पुत्रीने ही हमारी आँखें खोली है और हमें वैराग्य-विवेकका परम धन देकर भगवान्‌की अव्यभिचारिणी भक्ति प्रदान की है।'

लाखाजी समधीके वचन सुनकर अचरजमें डूब गये। उन्हें अपना विवेक वैराग्य इनके सामने फीका जान पड़ने लगा। वे जामाताकी मृत्युके शोकको भूल गये और अपनी पुत्री तथा समधी समधिनको जैसी स्थिति प्राप्त कराना चाहते थे, उससे भी कहीं अधिक उनकी ऊँची स्थिति देखकर उन्हें बड़ा आनन्द हुआ। उन्होंने समधी-समधिनको हर्षके साथ पुष्करराज भेज दिया। उनके निर्वाहके लिये घरमें जो कुछ था, सब बेचकर नकद रुपये उन्हें दे दिये और गंगाबाईको साथ लेकर घरकी ओर प्रस्थान किया।

गंगाबाईको प्रति देखकर लायाजीने पूछा-'बेटी! तेरी ऐसी अनोखी हालत देखकर मैं अचरजमें डूब रहा हूँ। मैं तरह-तरहके विचार करता आया था कि तुझे कैसे समझाकर धीरज धाऊँगा, परंतु तेरी स्थिति देखकर तोमैं चकित हो गया। बता, बेटी! तुझे ऐसा ज्ञान कहाँसे। और कैसे प्राप्त हुआ?' गंगाबाईने कहा-पिताजी! यह सारा आपकी भक्ति तथा भजनका प्रताप है! आप जो रोज पूरी गीता और विष्णुसहस्रनामके पचास पाठ करते है उन्होंके प्रतापसे भगवान्ने मुझको विश्वास प्रदान किया और अपनी कृपाके दर्शन कराये। आपकी कृपासे भैया और मैं- हम दोनोंने विष्णुसहस्रनाम कण्ठस्थ कर लिया था। यहाँ आकर मैं जहाँतक मुझसे बनता, निरन्तर मन-ही-मन विष्णुसहस्रनामके पाठ किया करती। आपके जामाताको मृत्युके तीन दिन पहले भगवान् ने मुझको स्वप्रमें दर्शन देकर कहा- 'बेटी! तेरे पतिकी आयु पूरी हो चुकी है, वह मेरा भक्त है। तेरे साथ कोई पूर्वसम्बन्धका संयोग था, इसीसे उसने जन्म लिया था। अब इसे तीन दिन बाद साँप डँसेगा - उस समय तू इसे मेरा सहस्रनाम और गीता सुनाती रहना। ऐसा करनेसे इसका कल्याण हो जायगा और यह मेरे धामको प्राप्त होगा। मैं तुझे वरदान। देता हूँ तुझे शोक नहीं होगा। तुझे सच्चा वैराग्य और व्रत प्राप्त होगा। तेरे उपदेशसे तेरे सास-ससुर भी कल्याणपथके पथिक होकर अन्तमें मुझको प्राप्त करेंगे। और तू जीवनभर मेरी भक्ति करती हुई अपने पिता-माता तथा भाई भौजाईके सहित मेरे परम धामको प्राप्त होगी।'

"पिताजी! इतना कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गये। मैं जाग पड़ी। मानो उसी समयसे मुझे ज्ञानका परम प्रकाश मिल गया। मैं सारे शोक-मोहसे छूटकर पतिके कल्याण में लग गयी। मैंने व्रत धारण किया और रातों जागकर पतिदेवताको गीता और सहस्रनाम सुनाती रही। तीसरे दिन पतिदेव स्नान करके तुलसीजीको जल दे रहे थे। मैं उनके पास खड़ी सहस्रनामका पाठ कर रही थी, वे भी श्रीभगवान्का नाम ले रहे थे। इसी समय अचानक एक कालसर्पने आकर उनके पैरको डस लिया और देखते ही-देखते ब्रह्माण्ड फटकर उनके प्राणपखेरू उड़ गये। अन्तिम श्वासमें मैंने सुना उनके मुखसे हे भ नाम निकला और उनके कानमें विष्णुसहस्रनामके 'माधशे भक्तवत्सलः' नामोंने प्रवेश किया। उनकी आँखें खुल गयी मैंने देखा श्रीभगवान् चतुर्भुजरूपमें उनकी आँखों सामने विराजित हैं। इतनेमें ही जोरकी ध्वनि हुई औरउनका कपाल फट गया। पिताजी! पतिदेवकी इस मृत्युने मेरे मनमें भगवद्विश्वासका समुद्र लहरा दिया, अब मैं तो उसीमें डूब रही हूँ। आप मेरी सहायता कीजिये, जिससे मैं सदा इसमें डूबी रहूँ । आपलोग मेरा साथ तो देंगे ही।" लाखाजी पुण्यमयी गंगाकी पुण्यपूर्ण वाणी सुनकर
गद्गद हो गये, उनकी आँखोंसे आनन्दके आँसू बह चले। पिता-पुत्री घर आये, माता और भाई भौजाईसे
मिलकर गंगाबाईने उलटी उन्हें सान्त्वना दी। लाखाजी और खेमाबाई तो उसी दिनसे विरक्त से होकर समस्त दिन-रात भगवद्भजनमें बिताने लगे। घरकी सारी सम्हाल गंगाबाई करने लगी। भाई भौजाई प्रत्येक काम उसकी आज्ञा लेकर करते। वह घरकी मालकिन थी और थी भाई-भौजाईको परमार्थपथमें राह दिखाकर - विघ्नोंसे बचाकर ले जानेवाली चतुर पथप्रदर्शिका भाई देवाजी और भाभी लिछमी – दोनों गंगाबाईकी आज्ञाके अनुसार पिता माताकी सेवा करते, गंगाबाईकी सेवा करते और सब समय भगवान्का स्मरण करते हुए भगवत्सेवाके भावसे ही घरका सारा काम करते। उन्होंने भोगोंका त्याग करदिया था और वे पूर्णरूपसे सादा सीधा संयमपूर्ण जीवन बिताते थे। उनका घर संतोंका पावन आश्रम बन गया था। दैवी सम्पदाके गुण सबमें स्वभावसिद्ध हो गये थे। घरमें दोनों समय भगवान् बालकृष्णकी पूजा होती थी और उन्हें भोग लगाकर सब लोग प्रसाद पाते थे। इस प्रकार सबका जीवन पवित्र हो गया। लगभग पचीस वर्ष बाद लाखाजी और खेमाबाईने एक ही दिन श्रीभगवान्का नाम जपते हुए भगवान्की मूर्तिके सामने ही शरीर त्याग दिये। देवाजीने उनका शास्त्रोक्त रीतिसे अन्त्येष्टि-संस्कार तथा श्राद्ध किया। पुत्र, पुत्रवधू और कन्याने उनके लिये तीन हजार विष्णुसहस्रनामके पाठ किये।

माता-पिताकी मृत्युके बाद बहिन, भाई, भौजाई-तीनों भगवान् के भजनमें लग गये। भाई भौजाईके विशेष अनुरोध करनेपर एक दिन गंगाबाईने भगवान्से प्रकट होकर दर्शन देनेकी प्रार्थना की। भगवान्ने प्रार्थना सुनी और प्रत्यक्ष प्रकट होकर तीनों भक्तोंको अपने दिव्य रूपके दर्शन कराये। वे तीनों भगवान्‌के प्रत्यक्ष दर्शन पाकर कृतार्थ हो गये और भगवत्सेवामें ही अपना शेष | जीवन लगाकर अन्तमें भगवान्‌के परमधामको चले गये।



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laakhaajee samadheeke ghar gaye aur vahaanka drishy dekhakar chakit rah gaye. unhonne dekha - gangaabaaee apane saas sasurako sansaarakee kshanabhangurata aur mithya sambandhaka rahasy samajhaakar unhen saantvana de rahee hai aur ve usakee baat maanakar rona chhoda़kar bhagavaan‌ke naamaka keertan kar rahe hain. apanee putreekee yah sthiti dekhakar laakhaajeeko duhkhamen sukh ho gayaa. unhen maano jaharase amrit mil gayaa. ve samadhee se mile, unhen dekhakar shoka-saagar umada़aa; parantu gangaabaaeeke upadeshonkee smriti aate hee turant shaant ho gayaa. samadheene laakhaajeese kahaa-'laakhaajee! aap dhany hain jo aapake ghar aisee saadhvee kanya utpann huee. aap jaanate hain yuva putrakee mrityuka shok kitanaabhayaanak hota hai, streeke liye to patika viyog sarvatha asahy hai; parantu dhany hai aapakee putreeko jisane vivekake dvaara svayan to pativiyogaka duhkh sah hee liya, hamalogonko bhee aisa upadesh diya ki hamaara daarun putr shok door ho gayaa. ham samajh gaye- jagatke ye saare sambandh aaropit hain. jaise kisee khelamen alag alag svaang dharakar log aate hain aur apanaa-apana khel poora karake chale jaate hain, vaise hee is sansaararoopee khelamen hamalog aate hain, sambandh joda़te hain aur khel poora hote hee chale jaate hain. yahaan koee kiseeka putr ya pita naheen hai. ekamaatr paramaatma hee sabake param pita hain. ham sabako unhonkee aaraadhana karanee chaahiye. aap a gaye hain- apanee is saadhvee kanyaako apane ghar le jaaiye. ham donon stree-purush pushkararaaj jaakar bhagavadbhajanamen hee shesh jeevan bitaana chaahate hain. aapakee putree hamaare saath jaaneka aagrah karatee hai, parantu hamaare manamen bhagavaan aisee hee prerana karate hain ki vah aapake hee paas rahe. haan, itana ham jaroor chaahate hain yah apanee sadbhaavanaase hamaara sada kalyaan karatee rahe. aap jaaiye, hamalog aapake bada़e hee kritajn hai; kyonki aapakee putreene hee hamaaree aankhen kholee hai aur hamen vairaagya-vivekaka param dhan dekar bhagavaan‌kee avyabhichaarinee bhakti pradaan kee hai.'

laakhaajee samadheeke vachan sunakar acharajamen doob gaye. unhen apana vivek vairaagy inake saamane pheeka jaan pada़ne lagaa. ve jaamaataakee mrityuke shokako bhool gaye aur apanee putree tatha samadhee samadhinako jaisee sthiti praapt karaana chaahate the, usase bhee kaheen adhik unakee oonchee sthiti dekhakar unhen bada़a aanand huaa. unhonne samadhee-samadhinako harshake saath pushkararaaj bhej diyaa. unake nirvaahake liye gharamen jo kuchh tha, sab bechakar nakad rupaye unhen de diye aur gangaabaaeeko saath lekar gharakee or prasthaan kiyaa.

gangaabaaeeko prati dekhakar laayaajeene poochhaa-'betee! teree aisee anokhee haalat dekhakar main acharajamen doob raha hoon. main taraha-tarahake vichaar karata aaya tha ki tujhe kaise samajhaakar dheeraj dhaaoonga, parantu teree sthiti dekhakar tomain chakit ho gayaa. bata, betee! tujhe aisa jnaan kahaanse. aur kaise praapt huaa?' gangaabaaeene kahaa-pitaajee! yah saara aapakee bhakti tatha bhajanaka prataap hai! aap jo roj pooree geeta aur vishnusahasranaamake pachaas paath karate hai unhonke prataapase bhagavaanne mujhako vishvaas pradaan kiya aur apanee kripaake darshan karaaye. aapakee kripaase bhaiya aur main- ham dononne vishnusahasranaam kanthasth kar liya thaa. yahaan aakar main jahaantak mujhase banata, nirantar mana-hee-man vishnusahasranaamake paath kiya karatee. aapake jaamaataako mrityuke teen din pahale bhagavaan ne mujhako svapramen darshan dekar kahaa- 'betee! tere patikee aayu pooree ho chukee hai, vah mera bhakt hai. tere saath koee poorvasambandhaka sanyog tha, iseese usane janm liya thaa. ab ise teen din baad saanp dansega - us samay too ise mera sahasranaam aur geeta sunaatee rahanaa. aisa karanese isaka kalyaan ho jaayaga aur yah mere dhaamako praapt hogaa. main tujhe varadaana. deta hoon tujhe shok naheen hogaa. tujhe sachcha vairaagy aur vrat praapt hogaa. tere upadeshase tere saasa-sasur bhee kalyaanapathake pathik hokar antamen mujhako praapt karenge. aur too jeevanabhar meree bhakti karatee huee apane pitaa-maata tatha bhaaee bhaujaaeeke sahit mere param dhaamako praapt hogee.'

"pitaajee! itana kahakar bhagavaan antardhaan ho gaye. main jaag pada़ee. maano usee samayase mujhe jnaanaka param prakaash mil gayaa. main saare shoka-mohase chhootakar patike kalyaan men lag gayee. mainne vrat dhaaran kiya aur raaton jaagakar patidevataako geeta aur sahasranaam sunaatee rahee. teesare din patidev snaan karake tulaseejeeko jal de rahe the. main unake paas khada़ee sahasranaamaka paath kar rahee thee, ve bhee shreebhagavaanka naam le rahe the. isee samay achaanak ek kaalasarpane aakar unake pairako das liya aur dekhate hee-dekhate brahmaand phatakar unake praanapakheroo uda़ gaye. antim shvaasamen mainne suna unake mukhase he bh naam nikala aur unake kaanamen vishnusahasranaamake 'maadhashe bhaktavatsalah' naamonne pravesh kiyaa. unakee aankhen khul gayee mainne dekha shreebhagavaan chaturbhujaroopamen unakee aankhon saamane viraajit hain. itanemen hee jorakee dhvani huee auraunaka kapaal phat gayaa. pitaajee! patidevakee is mrityune mere manamen bhagavadvishvaasaka samudr lahara diya, ab main to useemen doob rahee hoon. aap meree sahaayata keejiye, jisase main sada isamen doobee rahoon . aapalog mera saath to denge hee." laakhaajee punyamayee gangaakee punyapoorn vaanee sunakara
gadgad ho gaye, unakee aankhonse aanandake aansoo bah chale. pitaa-putree ghar aaye, maata aur bhaaee bhaujaaeese
milakar gangaabaaeene ulatee unhen saantvana dee. laakhaajee aur khemaabaaee to usee dinase virakt se hokar samast dina-raat bhagavadbhajanamen bitaane lage. gharakee saaree samhaal gangaabaaee karane lagee. bhaaee bhaujaaee pratyek kaam usakee aajna lekar karate. vah gharakee maalakin thee aur thee bhaaee-bhaujaaeeko paramaarthapathamen raah dikhaakar - vighnonse bachaakar le jaanevaalee chatur pathapradarshika bhaaee devaajee aur bhaabhee lichhamee – donon gangaabaaeekee aajnaake anusaar pita maataakee seva karate, gangaabaaeekee seva karate aur sab samay bhagavaanka smaran karate hue bhagavatsevaake bhaavase hee gharaka saara kaam karate. unhonne bhogonka tyaag karadiya tha aur ve poornaroopase saada seedha sanyamapoorn jeevan bitaate the. unaka ghar santonka paavan aashram ban gaya thaa. daivee sampadaake gun sabamen svabhaavasiddh ho gaye the. gharamen donon samay bhagavaan baalakrishnakee pooja hotee thee aur unhen bhog lagaakar sab log prasaad paate the. is prakaar sabaka jeevan pavitr ho gayaa. lagabhag pachees varsh baad laakhaajee aur khemaabaaeene ek hee din shreebhagavaanka naam japate hue bhagavaankee moortike saamane hee shareer tyaag diye. devaajeene unaka shaastrokt reetise antyeshti-sanskaar tatha shraaddh kiyaa. putr, putravadhoo aur kanyaane unake liye teen hajaar vishnusahasranaamake paath kiye.

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सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे ,बलिहार
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
यशोमती मैया से बोले नंदलाला,
राधा क्यूँ गोरी, मैं क्यूँ काला
साँवरिया ऐसी तान सुना,
ऐसी तान सुना मेरे मोहन, मैं नाचू तू गा ।
मेरा यार यशुदा कुंवर हो चूका है
वो दिल हो चूका है जिगर हो चूका है
तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
हरी नाम नहीं तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में,
राधे तेरे चरणों की अगर धूल जो मिल जाए
सच कहता हू मेरी तकदीर बदल जाए
इक तारा वाजदा जी हर दम गोविन्द गोविन्द
जग ताने देंदा ए, तै मैनु कोई फरक नहीं
कोई कहे गोविंदा, कोई गोपाला।
मैं तो कहुँ सांवरिया बाँसुरिया वाला॥
जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया।
हर साँस में हो सुमिरन तेरा,
यूँ बीत जाये जीवन मेरा
तेरे दर पे आके ज़िन्दगी मेरी
यह तो तेरी नज़र का कमाल है,
आँखों को इंतज़ार है सरकार आपका
ना जाने होगा कब हमें दीदार आपका
दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
राधिका गोरी से ब्रिज की छोरी से ,
मैया करादे मेरो ब्याह,
अरे बदलो ले लूँगी दारी के,
होरी का तोहे बड़ा चाव...
Ye Saare Khel Tumhare Hai Jag
Kahta Khel Naseebo Ka
बृज के नन्द लाला राधा के सांवरिया
सभी दुख: दूर हुए जब तेरा नाम लिया
जिनको जिनको सेठ बनाया वो क्या
उनसे तो प्यार है हमसे तकरार है ।
मेरा आपकी कृपा से,
सब काम हो रहा है
राधे राधे बोल, राधे राधे बोल,
बरसाने मे दोल, के मुख से राधे राधे बोल,
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
बहुत बड़ा दरबार तेरो बहुत बड़ा दरबार,
चाकर रखलो राधा रानी तेरा बहुत बड़ा
मेरी रसना से राधा राधा नाम निकले,
हर घडी हर पल, हर घडी हर पल।
आप आए नहीं और सुबह हो मई
मेरी पूजा की थाली धरी रह गई
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
मोहे वृन्दावन पहुंच देओ ।

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