ठाकुर मेघसिंह जागीरदार थे। रियासत बहुत बड़ी तो नहीं थी, परंतु नितान्त क्षुद्र भी नहीं थी। अच्छी आमदनी थी। ठाकुर साहब अक्षरोंकी दृष्टिसे बहुत विद्वान् नहीं थे, पर वैसे यथार्थ दृष्टिमें वे विद्वान् थे। विद्या वही, मनुष्यको सच्चे मार्गकी ओर ले जाय । जो विद्या मनुष्यको विपथगामिनी बनाकर भीषण नरकानलमें जलनेको बाध्य करती है, जिसके द्वारा जीवन अभिमान, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदिके भयानक तूफानमें पड़कर नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है, वह तो साक्षात् अविद्या है, प्रत्यक्ष तम है। ऐसी विद्यासे तो बचना ही चाहिये। ठाकुर मेघसिंह उस विनाशकारिणी विद्यासे बचे थे। उनकी विद्याने उनके जीवनको सब ओरसे प्रकाशमयबना रखा था, इससे उनका प्रत्येक कार्य मानव-जीवनके परम लक्ष्यको सामने रखकर ही होता था । ठाकुर साहबकी प्रजाप्रियता और न्यायसे सभी लोग प्रसन्न थे। उनका प्रत्येक न्याय प्रजावत्सलता और सर्वहितकी दृष्टिसे दयापूर्ण ही होता था। उन्हें बड़े-से बड़ा त्याग करनेमें भी किसी कठिनाईका सामना नहीं करना पड़ता था। भगवान्के मङ्गलविधानपर अटल विश्वास होनेके कारण उन्हें किसी भी अवस्थामें कोई उद्वेग या विषाद नहीं होता था। जहाँ विषाद या उद्वेग है, वहाँ निश्चय ही भगवान्पर अविश्वास है। ठाकुर साहब नित्य प्रसन्नमुख तथा प्रसन्नमन रहते थे। भगवान्का स्मरण तो उनके जीवनमें श्वासक्रियाकी भाँति अनिवार्य हो गयाथा। वे नित्य प्रातःकाल सूर्योदयसे एक पहर पूर्व उठते ही सबसे पहले भगवान्का ध्यान करते। तदनन्तर शौच स्नानसे निवृत्त होकर सन्ध्या करते, गायत्रीका जप करते, गीता- विष्णुसहस्रनामका पाठ करते और फिर भगवन्नाम जपमें लग जाते थे। जपके समय भी उनका मानस ध्यान तो चलता ही था। मध्याह्नके समय उनकी पूजा समाप्त होती। तब अभ्यागत अतिथियोंको स्वयं अपने सामने भोजन करवाकर भगवत्प्रसादरूपमें स्वयं भोजन करते । इसके बाद अपनी रियासतका काम देखने कचहरीमें जाकर विराजते और बड़ी धीरता तथा बुद्धिमत्तासे सारा कार्य सँभालते तथा झगड़ोंको निपटाते। उस समय भी उनका भगवत् स्मरण अखण्ड चलता ही रहता। वे भगवच्चिन्तन करते हुए भी समस्त कार्य करते ।
संसारमें सब तरहके मनुष्य होते हैं, ठाकुर साहबकी पवित्र जीवनचर्या और उनका साधु-स्वभाव भी किसीके लिये ईर्ष्या और द्वेषका कारण बन गया। तमसाच्छन्न हृदयकी कुटिलतासे दृष्टि बदल जाती है। फिर उसे अच्छेमें बुरे, देवतामें राक्षस, साधुमें असाधु और सत्यमें मिथ्याके दर्शन होते हैं। बुद्धि बिगड़नेपर क्रियाका बिगड़ना स्वाभाविक ही है। इसी स्वभावविपरीतताका शिकार ठाकुर साहबका ही एक सेवक हो गया। वह जातिका चारण था और उसका नाम था भैरूँदान। वह ठाकुरका बड़ा विश्वासी था और पहले उसके व्यवहारमें भी कोई दोष नहीं था; परन्तु किसी दैवदुर्विपाकसे उसका मन बिगड़ गया और मन-ही-मन वैरबद्ध - सा होकर वह ठाकुर साहबको मारनेकी बात सोचने लगा। एक दिन ठाकुर साहबको कचहरीमें देर हो गयी थी। रात्रिका पहला पहर था। कृष्ण पक्ष था। बाहर सब ओर अँधेरा छाया था। उसीमें ठाकुर साहब निकले और कुछ दूरपर स्थित अपने रनिवासकी ओर जाने लगे। भैरूँदान उनके साथ था। पापबुद्धिने जोर दिया, भैरूँदानने कटार निकाली, एक बार हाथ काँपा; परन्तु पापकी प्रेरणासे पुनः सावधान होकर उसने अँधेरेमें अपने साधुस्वभाव स्वामीपर वार कर दिया ! परन्तु भगवान्का विधान कुछ और था, उसी क्षण सामनेसे दौड़ता हुआ एक साँड़ आया। ठाकुर तो आगे बढ़ गये और उसका एक सींगभैरूँदानकी छातीमें लगा। कटार हाथमें लिये भैरूँदान गिर पड़ा, हाथ उलट गया था, इससे कटार जाकर नाकपर लगी, नाकका अगला हिस्सा कट गया। भैरूंदान चिल्लाया। क्षणोंमें यह घटना हो गयी। ठाकुर साहब समीप ही थे। चिल्लाहट सुनकर लौटे। साँड़ तो आगे निकल गया था। इन्होंने जमीनपर पड़े हुए मैदानको उठाया। वह छातीपर लगी सॉंगकी चोटसे तथा नाककी पीड़ासे बेहोश हो गया था। ठाकुर साहबने पुकारकर रनिवाससे नौकरोंको बुलाया। भैरूँदानको उठाकर वे निवासमें ले गये। बाहर चौपालमें चारपाई डलवाकर उसे सुलवा दिया। दीपक आ ही गया था। देखा तो उसकी मुट्ठीमें खूनसे भरी तेजधार कटार है और नाक से खून वह रहा है। मुट्ठी ऐसी जकड़ गयी थी कि कटार उसमेंसे गिरी नहीं ठाकुर यह दृश्य देखकर अचरजमें पड़ गये। उन्हें सौड़के द्वारा गिराये जानेका तो अनुमान था पर मुहीमें कटार रहने तथा नाकके कटने का पूरा रहस्य वे नहीं जानते थे, यद्यपि उन्होंने अंधेरेमें मैदानको अपनेपर वार करते हुए से देखा था लेकिन इस रहस्यको जाननेकी चिन्तामें न पड़कर वे उसे होश में लानेका यत्न करने लगे। मुट्ठी खोलकर कटार निकाली। नाक धोयी, उसपर चूना लगाया। छातीपर कोई दवा लगायी और सिरपर पानी डालकर स्वयं हवा करने लगे। परके नौकरोंके सिवा और कोई वहाँ था नहीं, इसलिये ठकुराइन भी वहाँ आ गयी थीं। वे भी हवा करने लगीं। इस सेवा और उपचारसे भैरुदानको भीतरी होश तो जल्दी हो गया; परंतु छातीकी पीड़ाके मारे उसकी आँखें नहीं खुलीं, वह वैसे ही पड़ा रहा। इधर ठकुराइनने एक प्रसङ्ग छेड़ दिया और उनमें नीचे लिखी बातें हुई ठकुराइनचारणजीकी छातीमें सड़के सींगसे चोट लग गयी यह तो होनीकी बात है, पर इन्होंने अपने हाथमें कटार क्यों ले रखी थी। कहीं आपपर वार
करनेका तो इनका मन नहीं था?
ठाकुर साहबने भैदानको अपने ऊपर वार करते से देखा था; परन्तु उनके साधु मनने उसपर कोई सन्देह नहीं आने दिया। उन्होंने अनुमान किया कि अँधेरेमें मेरी रक्षाके लिये ही इन्होंने कटार हाथमें ले रखी होगी। अबतो इनके मनमें कोई बात थी ही नहीं। ठकुराइनके प्रश्नसे उनकी फिर कुछ जागृति- सी हुई, पर सन्देहशून्य पवित्र मनमें सन्देह क्यों होता। उन्होंने कहा-
"तुम पगली तो नहीं हो गयी? भैदान मेरा अति विश्वासी साथी है। 'यह मेरे ऊपर कटार चलायेगा' इस प्रकारका सन्देह करना भी पाप है। सम्भव है, इसने मेरी रक्षाके लिये कटार हाथमें ले रखी हो।"
ठकुराइन- आपकी रक्षाकी वहाँ क्या आवश्यकता थी! मेरे पापी मनमें तो यही बात जँचती है कि चारणके मनमें बुराई थी, पर भगवान्ने आपकी रक्षा की।
ठाकुर - देखो, मेरी समझसे तो तुमको ऐसा नहीं सोचना चाहिये। किसीपर भी सन्देह करना पाप है। फिर भला, तुम तो यह जानती ही हो कि हमलोगोंको जो कुछ भी भोग प्राप्त होते हैं, सब हमारे श्रीगोपालजीकी देखरेखमें तथा उन्हींके विधानके अनुसार होते हैं। वे परम मङ्गलमय हैं, अतएव उनके विधान भी मङ्गलमय हैं। मुझे कटार लगती, तो भी उनके मङ्गलविधानसे ही लगती। न लगी तो भी मङ्गलविधानसे ही मैं तो समझता हूँ कि भैरूदानको जो चोट लगी है, इससे भी इसका कोई मङ्गल ही हुआ है। मुझे मारनेका प्रयास यह क्यों करता। मुझे तो पूरा विश्वास है कि भगवान् सबका मङ्गल ही करते हैं। मैं अपने भगवान्से कातर प्रार्थना करता हूँ- 'दयामय प्रभु ! भैरूँदान मेरा परम विश्वासी है। मेरे मनमें कभी किसी प्रकार भी किसीकी या इसकी बुराई करनेकी कोई भावना न आयी हो तो इसकी पीड़ा अभी शान्त हो जाय और इसके मनमें यदि कोई दुर्भावना आयी हो तो उसका भी समूल नाश हो जाय। यह यदि इसके किसी पापका फल हो तो नाथ! वह फल मुझको भुगता दिया जाय और इसकी शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा और उसके कारणोंका विनाश हो जाय।'
यो प्रार्थना करते-करते ठाकुर साहबकी आँखोंसे आँसुओंकी धारा बहने लगी। उनकी इस दशाको देखकर तथा उनके पवित्र भावोंसे प्रभावित होकर ठकुराइनका हृदय भी द्रवित हो गया। उसने भी रोते हुए भगवान्से प्रार्थना की- 'नाथ! मैंने जो चारणजीपर सन्देह किया, इस पापके लिये मुझे क्षमा कीजिये और चारणजीकोशीघ्र पीड़ासे मुक्त कर दीजिये।' भैरुदानको भीतरी होश था हो। उसने ये सारी बातें सुन ज्यों-ज्यों सुन रहा था, त्यों-ही-त्यों उसका मन बदलता जा रहा था और उसके मनमें अपनी करनीपर पश्चात्ताप हो रहा था। पश्चात्तापकी आगसे उसका हृदय कुछ शुद्ध हुआ। फिर जब ठाकुर साहबने भगवान्से प्रार्थना की, तब तो उसका हृदय सर्वथा निर्मल हो गया और क्षणोंमें ही उसकी छातीको पीड़ा भी सर्वथा शान्त हो गयी। उसने आँखें खोलों और उठकर वह ठाकुर साहबके चरणोंमें लोट गया। ठाकुर साहब इस बीच भगवान्के ध्यानानन्द-सुधासागर में दूब गये थे उन्हें बाहरकी कोई सुधि नहीं थी। ठकुराइन भी भावावेशमें बेसुध थीं। कुछ देर चारण दोनोंके चरणोंमें लोटता रहा। जब भगवत्प्रेरणासे ठाकुर ठकुराइनको बाह्य चेतना हुई, तब उन्होंने अपने चरणोंपर पड़े मैदानको अ चरण पखारते पाया। ठाकुरने उसको उठाकर हृदयसे लगा लिया।
भैरूदानने अपनेको छुड़ाते हुए रोकर कहा-'मालिक!! मेरे जैसा महापापी मैं ही हूँ। आप मुझ पापीका स्पर्श मत कीजिये। मैं नरकका कोड़ा महापामर व्यर्थ ही आपमें दोष देखकर आपको मारने चला था। भगवान्ने बड़ी दया की जो साँड़के रूपमें आकर मेरे नीच आक्रमणसे आपको बचा लिया। आपको क्या, उन्होंने नाक काटकर उचित शिक्षा दी एवं मुझको बचा लिया और ऐसा बचाया कि मेरे पाप पादपके मूलका हो उच्छेद कर दिया। यह सब आपकी सहज साधुता और भगवत्प्रीतिका चमत्कार है। मेरा मन पश्चात्तापको आगसे जल रहा है। मैं इसका समुचित दण्ड चाहता हूँ। तभी मुझे तृप्ति होगी।"
ठाकुर साहबने हँसते हुए कहा- 'मैदान तुम जरा भी चिन्ता न करो तुम मुझे पहले जैसे प्यारे थे, अब उससे भी बढ़कर प्यारे हो तुम्हारे इस आचरणने मेरे भगवद्विश्वासको और भी बढ़ाया है। इसलिये मैं तो तुम्हारा बड़ा उपकार मानता हूँ और अपनेको तुम्हारा ऋणी पाता हूँ। जिस किसी भी निमित्तसे भगवानमें विश्वास उत्पन्न हो और बढ़े, वह निमित्त देखनेमें यदि असुन्दरभी हो, तो भी वस्तुतः बड़ा ही सुन्दर श्रेष्ठ तथा वन्दनीय है। तुम इसमें निमित्त बने। इसलिये तुम मेरे परम हितकारी बन्धु हो। तुम दण्ड चाहते हो, अच्छी बात है। मैं दण्ड देता हूँ तुम्हारे शरीरको ही नहीं, तन-मन वचन तीनोंको देता हूँ। जब तुम चाहते हो तब उसे सानन्द ग्रहण तो करोगे ही। हाँ, यदि तुम ग्रहण करोगे तो मुझको और भी ऋणी बना लोगे। दण्ड यह है कि शरीरसे किसीका कुछ भी बुरा न करके सदा भगवद्भावसे सबकी सेवा किया करो; वचनसे किसीको कभी कठोर वाणी न कहकर सत्य, हितकर, मधुर और परिमित वाणी तथा भगवन्नाम गुणादिके दिव्य कीर्तन-गायनसे सबको सुख पहुँचाया करो और मनसे द्रोह, दम्भ, काम, क्रोध, लोभ, विषाद और जगच्चिन्तनरूपी विपसमूहको निकालकर प्रेम, सरलता, सचाई, प्रसन्नता, सन्तोष और नित्य भगवच्चिन्तन आदिको अमृतधाराके द्वारा सबका मङ्गल किया करो और यह सब भी किया करो केवल भगवान्की प्रसन्नता के लिये ही यही यथार्थ त्रिदण्ड है। जो इनको धारण करता है, वही त्रिदण्डी है। तुम इन तीनों दण्डोंको धारणकर सदाके लिये त्रिदण्डी बन जाओ। मैं तुम्हारा बड़ा उपकार मानूँगा।'
इन सारी बातोंक होनेमें ठाकुर साहबकी भगवत्स्मृति निरन्तर अक्षुण्ण बनी रही। कहना नहीं होगा कि भैरूँदानका जीवन ही पलट गया और ठाकुर मेघसिंहजीके बर्ताव और सङ्गसे वह परम साधुताको प्राप्तकर नित्य भगवद्विश्वासी बन गया।
ठाकुर मेघसिंहके एक ही कुमार था- सज्जनसिंह । सोलह वर्षकी उम्र थी। शील, सौन्दर्य और गुणोंका भण्डार था वह अभी तीन ही महीने हुए उसका विवाह | हुआ था भगवान्के विधानसे वह एक दिन घोड़ेसे गिर पड़ा और उसके मस्तकमें गहरी चोट आयी। थोड़ी देरके लिये तो वह चेतनाशून्य हो गया, परंतु कुछ ही समय बाद उसको येत हो आया यथासाध्य पूरी चिकित्सा हुई. पर थायमें कोई सुधार नहीं हुआ। होते-होते घाव बढ़ गया और उसका जहर सारे शरीरमें फैल गया। अब सबको निश्चय हो गया कि सज्जनसिंहके प्राण नहीं बचेंगे। सज्जनसिंहसे भी यह बात छिपी नहीं रही। उसकेचेहरेपर कुछ उदासी आ गयी। ठाकुर मेघसिंह पास बैठे
विष्णुसहस्रनामका पाठ कर रहे थे। उसे उदास देखकर उन्होंने हँसते हुए कहा- "बेटा! तुम्हारे चेहरेपर उदासी क्यों है? अभी तुम मेरे पुत्र हो, मेरी जागीरके मालिक हो तुम्हें मेरे कुअरका पद मिला है। यह सब गोपालजीके मङ्गलविधानसे ही हुआ है। अब उन्होंक तुम | मङ्गलविधानसे तुम साक्षात् उनके पुत्र बनने जा रहे हो। अब तुम्हें उनके कुंअरका पद मिलेगा और दिव्यधामकी जागीरीके अधिकारी बनोगे यह तो बेटा हर्षका समय है। तुम प्रसन्नतासे जाओ, मङ्गलमय प्रभु मेरा नमस्कार कहना और यह भी कहना कि 'मेघसिंहके आपके धाममें तबादलेकी भी कोई व्यवस्था हो रही है। क्या? मुझे कोई जल्दी नहीं है; क्योंकि मुझे तो सदा चाकरीमें रहना है, चाहे जहाँ रखें। परंतु इतना अवश्य होना चाहिये कि आपकी चाकरीमें हूँ, मुझे इसका स्मरण सदा बना रहे। '
"बेटा! यहाँके संयोग-वियोग सब उन लीलामयके लीलासंकेतसे होते हैं और होते हैं हमारे मङ्गलके लिये। इस बातका जिसको पता है, वह न तो दुःखके संयोगसे दुःखी होता है न सुखके वियोगसे। उसे तो सभी समय, सभी संयोग-वियोगों, सभी दुःख-सुखोंमें सदा अखण्ड सुख, अखण्ड शान्ति और अखण्ड तृप्तिका अनुभव होता है। तुम भगवान्के मङ्गल संकेतसे ही यहाँ आये और उनके मङ्गल संकेतसे मङ्गलमयकी चरणधूलि प्रत्यक्ष प्राप्त करने जा रहे हो। इसमें जरा भी सन्देह मत करो। संशयवान्का ही पतन होता है। विश्वासी तथा श्रद्धालु हँसते-हँसते प्रभुके धाममें चला जाता है। तुम श्रद्धाको दृढ़ता के साथ पकड़े रहो, विश्वासको जरा भी इधर-इधर मत होने दो। यहाँसे जाकर तुम वहाँ उस अपरिसीम अनन्त आनन्दको प्राप्त करोगे कि फिर यहाँको सभी सुखकी चीजें उसके सामने तुम्हें तुच्छ दिखायी देंगी। रही कुँअरानीको बात सो उसको कोई चिन्ता मत करो। वह पतिव्रता है। यहाँ साधुभावसे जीवन बिताकर वह भी दिव्यधाम तुम्हारे साथ ही श्रीगोपालजीको चरणसेविकाका पद प्राप्त करेगी। बेटा! विषयोंका चिन्तन हो पतनका हेतु होता है, फिर स्त्री-पुरुषके विषयो जीवनमें तो प्रत्यक्षविषय - सेवन होता है। प्रत्यक्ष नरकद्वारोंमें अनुराग हो जाता है। अतएव वह पतनका निश्चित हेतु है। भगवान्ने दया करके उन नरकद्वारोंकी अनुरक्ति और सेवासे कुँअरानीको मुक्त कर दिया है। वह परम भाग्यवती और साध्वी है, इसीसे इसपर यह अनुग्रह हुआ है। वह तपोमय जीवन बितायेगी और समयपर भगवान्के दिव्यधाममें तुमसे आ मिलेगी। तुम्हारी माताको तो भगवान्के मङ्गलविधानपर अखण्ड विश्वास है ही। उसे तो सर्वत्र सर्वथा मङ्गल ही दीखता है। बेटा! तुम सुखसे यात्रा करो। स्वयं हँसते-हँसते और सबको हँसाते-हँसाते हुए जाओ। जब सबको यह विश्वास हो जायगा कि तुम वहाँ जाकर यहाँकी अपेक्षा कहीं अनन्तगुनी विशेष और अधिक सुखकी स्थितिको प्राप्त करोगे, तब तुम्हारे वियोग में दुःखका अनुभव होनेपर भी सच्चे प्रेमके कारण तुम्हारे सुखसे वे सभी परम सुखी हो जायँगे। पर यह विश्वास उन सबको तभी होगा, जब तुम विश्वास करके हँसते हँसते जाओगे।"ठाकुरकी इन सच्ची बातोंका सज्जनसिंहपर बड़ा प्रभाव पड़ा। उसका मुखमण्डल दिव्य आनन्दकी निर्मल ज्योतिसे उद्भासित हो उठा। उसके होठोंपर मधुर हँसी छा गयी, उसका ध्यान भगवान् गोपालजीके मधुर श्रीविग्रहमें लग गया और उसके मुखसे भगवन्नामका उच्चारण होने लगा। फिर देखते-ही-देखते ब्रह्माण्ड फटकर उसके प्राण निकलकर दिव्यधाममें पहुँच गये।
ठाकुर, ठकुराइन, कुँअरानी-सभी वहाँपर उपस्थित थे। परंतु सभी आनन्दमग्न थे। मानो अपने किसी परम प्रिय आत्मीयको शुभ आनन्दमय स्थानकी शुभ यात्रामें सहर्ष सोत्फुल्ल हृदयसे विदा दे रहे हों ।
ठाकुर, ठकुराइन और कुँअरानी- तीनोंने ही अपने जीवनको और भी वैराग्यसे सुसम्पन्न किया, भगवत् रंगमें विशेषरूपसे रँगा और अन्तमें यथासमय इस अनित्य मर्त्यलोकसे सदाके लिये छूटकर भगवद्धाममें प्रयाण किया।
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thakuraaina- aapakee rakshaakee vahaan kya aavashyakata thee! mere paapee manamen to yahee baat janchatee hai ki chaaranake manamen buraaee thee, par bhagavaanne aapakee raksha kee.
thaakur - dekho, meree samajhase to tumako aisa naheen sochana chaahiye. kiseepar bhee sandeh karana paap hai. phir bhala, tum to yah jaanatee hee ho ki hamalogonko jo kuchh bhee bhog praapt hote hain, sab hamaare shreegopaalajeekee dekharekhamen tatha unheenke vidhaanake anusaar hote hain. ve param mangalamay hain, ataev unake vidhaan bhee mangalamay hain. mujhe kataar lagatee, to bhee unake mangalavidhaanase hee lagatee. n lagee to bhee mangalavidhaanase hee main to samajhata hoon ki bhairoodaanako jo chot lagee hai, isase bhee isaka koee mangal hee hua hai. mujhe maaraneka prayaas yah kyon karataa. mujhe to poora vishvaas hai ki bhagavaan sabaka mangal hee karate hain. main apane bhagavaanse kaatar praarthana karata hoon- 'dayaamay prabhu ! bhairoondaan mera param vishvaasee hai. mere manamen kabhee kisee prakaar bhee kiseekee ya isakee buraaee karanekee koee bhaavana n aayee ho to isakee peeda़a abhee shaant ho jaay aur isake manamen yadi koee durbhaavana aayee ho to usaka bhee samool naash ho jaaya. yah yadi isake kisee paapaka phal ho to naatha! vah phal mujhako bhugata diya jaay aur isakee shaareerik tatha maanasik peeda़a aur usake kaaranonka vinaash ho jaaya.'
yo praarthana karate-karate thaakur saahabakee aankhonse aansuonkee dhaara bahane lagee. unakee is dashaako dekhakar tatha unake pavitr bhaavonse prabhaavit hokar thakuraainaka hriday bhee dravit ho gayaa. usane bhee rote hue bhagavaanse praarthana kee- 'naatha! mainne jo chaaranajeepar sandeh kiya, is paapake liye mujhe kshama keejiye aur chaaranajeekosheeghr peeda़aase mukt kar deejiye.' bhairudaanako bheetaree hosh tha ho. usane ye saaree baaten sun jyon-jyon sun raha tha, tyon-hee-tyon usaka man badalata ja raha tha aur usake manamen apanee karaneepar pashchaattaap ho raha thaa. pashchaattaapakee aagase usaka hriday kuchh shuddh huaa. phir jab thaakur saahabane bhagavaanse praarthana kee, tab to usaka hriday sarvatha nirmal ho gaya aur kshanonmen hee usakee chhaateeko peeda़a bhee sarvatha shaant ho gayee. usane aankhen kholon aur uthakar vah thaakur saahabake charanonmen lot gayaa. thaakur saahab is beech bhagavaanke dhyaanaananda-sudhaasaagar men doob gaye the unhen baaharakee koee sudhi naheen thee. thakuraain bhee bhaavaaveshamen besudh theen. kuchh der chaaran dononke charanonmen lotata rahaa. jab bhagavatpreranaase thaakur thakuraainako baahy chetana huee, tab unhonne apane charanonpar pada़e maidaanako charan pakhaarate paayaa. thaakurane usako uthaakar hridayase laga liyaa.
bhairoodaanane apaneko chhuda़aate hue rokar kahaa-'maalika!! mere jaisa mahaapaapee main hee hoon. aap mujh paapeeka sparsh mat keejiye. main narakaka koda़a mahaapaamar vyarth hee aapamen dosh dekhakar aapako maarane chala thaa. bhagavaanne bada़ee daya kee jo saanड़ke roopamen aakar mere neech aakramanase aapako bacha liyaa. aapako kya, unhonne naak kaatakar uchit shiksha dee evan mujhako bacha liya aur aisa bachaaya ki mere paap paadapake moolaka ho uchchhed kar diyaa. yah sab aapakee sahaj saadhuta aur bhagavatpreetika chamatkaar hai. mera man pashchaattaapako aagase jal raha hai. main isaka samuchit dand chaahata hoon. tabhee mujhe tripti hogee."
thaakur saahabane hansate hue kahaa- 'maidaan tum jara bhee chinta n karo tum mujhe pahale jaise pyaare the, ab usase bhee badha़kar pyaare ho tumhaare is aacharanane mere bhagavadvishvaasako aur bhee badha़aaya hai. isaliye main to tumhaara bada़a upakaar maanata hoon aur apaneko tumhaara rinee paata hoon. jis kisee bhee nimittase bhagavaanamen vishvaas utpann ho aur badha़e, vah nimitt dekhanemen yadi asundarabhee ho, to bhee vastutah baड़a hee sundar shreshth tatha vandaneey hai. tum isamen nimitt bane. isaliye tum mere param hitakaaree bandhu ho. tum dand chaahate ho, achchhee baat hai. main dand deta hoon tumhaare shareerako hee naheen, tana-man vachan teenonko deta hoon. jab tum chaahate ho tab use saanand grahan to karoge hee. haan, yadi tum grahan karoge to mujhako aur bhee rinee bana loge. dand yah hai ki shareerase kiseeka kuchh bhee bura n karake sada bhagavadbhaavase sabakee seva kiya karo; vachanase kiseeko kabhee kathor vaanee n kahakar saty, hitakar, madhur aur parimit vaanee tatha bhagavannaam gunaadike divy keertana-gaayanase sabako sukh pahunchaaya karo aur manase droh, dambh, kaam, krodh, lobh, vishaad aur jagachchintanaroopee vipasamoohako nikaalakar prem, saralata, sachaaee, prasannata, santosh aur nity bhagavachchintan aadiko amritadhaaraake dvaara sabaka mangal kiya karo aur yah sab bhee kiya karo keval bhagavaankee prasannata ke liye hee yahee yathaarth tridand hai. jo inako dhaaran karata hai, vahee tridandee hai. tum in teenon dandonko dhaaranakar sadaake liye tridandee ban jaao. main tumhaara bada़a upakaar maanoongaa.'
in saaree baatonk honemen thaakur saahabakee bhagavatsmriti nirantar akshunn banee rahee. kahana naheen hoga ki bhairoondaanaka jeevan hee palat gaya aur thaakur meghasinhajeeke bartaav aur sangase vah param saadhutaako praaptakar nity bhagavadvishvaasee ban gayaa.
thaakur meghasinhake ek hee kumaar thaa- sajjanasinh . solah varshakee umr thee. sheel, saundary aur gunonka bhandaar tha vah abhee teen hee maheene hue usaka vivaah | hua tha bhagavaanke vidhaanase vah ek din ghoda़ese gir pada़a aur usake mastakamen gaharee chot aayee. thoda़ee derake liye to vah chetanaashoony ho gaya, parantu kuchh hee samay baad usako yet ho aaya yathaasaadhy pooree chikitsa huee. par thaayamen koee sudhaar naheen huaa. hote-hote ghaav badha़ gaya aur usaka jahar saare shareeramen phail gayaa. ab sabako nishchay ho gaya ki sajjanasinhake praan naheen bachenge. sajjanasinhase bhee yah baat chhipee naheen rahee. usakecheharepar kuchh udaasee a gayee. thaakur meghasinh paas baithe
vishnusahasranaamaka paath kar rahe the. use udaas dekhakar unhonne hansate hue kahaa- "betaa! tumhaare cheharepar udaasee kyon hai? abhee tum mere putr ho, meree jaageerake maalik ho tumhen mere kuaraka pad mila hai. yah sab gopaalajeeke mangalavidhaanase hee hua hai. ab unhonk tum | mangalavidhaanase tum saakshaat unake putr banane ja rahe ho. ab tumhen unake kunaraka pad milega aur divyadhaamakee jaageereeke adhikaaree banoge yah to beta harshaka samay hai. tum prasannataase jaao, mangalamay prabhu mera namaskaar kahana aur yah bhee kahana ki 'meghasinhake aapake dhaamamen tabaadalekee bhee koee vyavastha ho rahee hai. kyaa? mujhe koee jaldee naheen hai; kyonki mujhe to sada chaakareemen rahana hai, chaahe jahaan rakhen. parantu itana avashy hona chaahiye ki aapakee chaakareemen hoon, mujhe isaka smaran sada bana rahe. '
"betaa! yahaanke sanyoga-viyog sab un leelaamayake leelaasanketase hote hain aur hote hain hamaare mangalake liye. is baataka jisako pata hai, vah n to duhkhake sanyogase duhkhee hota hai n sukhake viyogase. use to sabhee samay, sabhee sanyoga-viyogon, sabhee duhkha-sukhonmen sada akhand sukh, akhand shaanti aur akhand triptika anubhav hota hai. tum bhagavaanke mangal sanketase hee yahaan aaye aur unake mangal sanketase mangalamayakee charanadhooli pratyaksh praapt karane ja rahe ho. isamen jara bhee sandeh mat karo. sanshayavaanka hee patan hota hai. vishvaasee tatha shraddhaalu hansate-hansate prabhuke dhaamamen chala jaata hai. tum shraddhaako dridha़ta ke saath pakada़e raho, vishvaasako jara bhee idhara-idhar mat hone do. yahaanse jaakar tum vahaan us apariseem anant aanandako praapt karoge ki phir yahaanko sabhee sukhakee cheejen usake saamane tumhen tuchchh dikhaayee dengee. rahee kunaraaneeko baat so usako koee chinta mat karo. vah pativrata hai. yahaan saadhubhaavase jeevan bitaakar vah bhee divyadhaam tumhaare saath hee shreegopaalajeeko charanasevikaaka pad praapt karegee. betaa! vishayonka chintan ho patanaka hetu hota hai, phir stree-purushake vishayo jeevanamen to pratyakshavishay - sevan hota hai. pratyaksh narakadvaaronmen anuraag ho jaata hai. ataev vah patanaka nishchit hetu hai. bhagavaanne daya karake un narakadvaaronkee anurakti aur sevaase kunaraaneeko mukt kar diya hai. vah param bhaagyavatee aur saadhvee hai, iseese isapar yah anugrah hua hai. vah tapomay jeevan bitaayegee aur samayapar bhagavaanke divyadhaamamen tumase a milegee. tumhaaree maataako to bhagavaanke mangalavidhaanapar akhand vishvaas hai hee. use to sarvatr sarvatha mangal hee deekhata hai. betaa! tum sukhase yaatra karo. svayan hansate-hansate aur sabako hansaate-hansaate hue jaao. jab sabako yah vishvaas ho jaayaga ki tum vahaan jaakar yahaankee apeksha kaheen anantagunee vishesh aur adhik sukhakee sthitiko praapt karoge, tab tumhaare viyog men duhkhaka anubhav honepar bhee sachche premake kaaran tumhaare sukhase ve sabhee param sukhee ho jaayange. par yah vishvaas un sabako tabhee hoga, jab tum vishvaas karake hansate hansate jaaoge."thaakurakee in sachchee baatonka sajjanasinhapar bada़a prabhaav pada़aa. usaka mukhamandal divy aanandakee nirmal jyotise udbhaasit ho uthaa. usake hothonpar madhur hansee chha gayee, usaka dhyaan bhagavaan gopaalajeeke madhur shreevigrahamen lag gaya aur usake mukhase bhagavannaamaka uchchaaran hone lagaa. phir dekhate-hee-dekhate brahmaand phatakar usake praan nikalakar divyadhaamamen pahunch gaye.
thaakur, thakuraain, kunaraanee-sabhee vahaanpar upasthit the. parantu sabhee aanandamagn the. maano apane kisee param priy aatmeeyako shubh aanandamay sthaanakee shubh yaatraamen saharsh sotphull hridayase vida de rahe hon .
thaakur, thakuraain aur kunaraanee- teenonne hee apane jeevanako aur bhee vairaagyase susampann kiya, bhagavat rangamen vishesharoopase ranga aur antamen yathaasamay is anity martyalokase sadaake liye chhootakar bhagavaddhaamamen prayaan kiyaa.