श्रीकृष्णचन्द्र महापात्र बहुत बड़े जमींदार थे। उनके पास जितना अधिक धन था, उससे भी अधिक उदार हृदय पाया था उन्होंने उनकी पतिव्रता पत्नी कमला भी पतिके समान ही अतिथि-अभ्यागतोंकी सेवामें लगी रहती थी। दम्पतिके एक ही पुत्र था - रघुनाथ। जब रघुनाथ सत्रह वर्षके हुए, तब कलावतीपुरके गङ्गाधर करण नामक धनी-मानी पुरुषकी अन्नपूर्णा नामकी कन्यासे उनका विवाह हो गया।
श्रीकृष्णचन्द्र महापात्र बहुत ही दयालु पुरुष थे। देशमें उस समय लगातार कई वर्षोंतक अकाल पड़ा। प्रजाको जब अपने ही लिये पेटको रोटी न मिलती हो तब उससे लगान कहाँसे मिले। उदारहृदय जमींदारने लगान वसूल करना छोड़ ही दिया। इधर अकाल पड़ने से भूखे- कंगाललोग अन्नकी आशासे जमींदारके द्वारपर आने लगे। लगान मिलता नहीं और अतिथियोंकी संख्या बढ़ गयी। कृष्णचन्द्रका खर्च बेहद बढ़ गया। जमींदारीपर ऋण हो गया। चिन्ता करते-करते वे बीमार हो गये। अपनेको मरणासन्न जानकर रघुनाथको पास बुलाकर उन्होंने कहा- 'बेटा! मैं तो जा रहा हूँ। तुम मेरी एक बात रखना। जहाँतक हो सके, ऋण चुका देना। किसीको धोखा देनेकी भावना कभी मनमें मत लाना। भगवान् तुम्हारा कल्याण करेंगे।' कृष्णचन्द्रने सदाके लिये आँखें बंद कर लीं। उनकी पतिव्रता पत्नी कमला पतिके साथ सती हो गयी।
रघुनाथ माता-पितासे रहित, अनाथ हो गये। उनकी स्त्री अन्नपूर्णा धनी घरकी लड़की थी। वह अपने सात भाइयोंमें सबसे छोटी थी। अतएव माता-पिता और भाइयोंका उसपर बहुत स्नेह था। इस कारण वह पिताके घर ही रहती थी। रघुनाथके श्वशुर बहुत धनी होनेपर भी अत्यन्त कृपण थे। जामाताके संकटपर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। कंजूस ही असलमें सबसे बड़ा दरिद्र होता है। वह एक-एक कौड़ी समेटकर रखता है। माता-पिता, भाई- पुत्र तो क्या, अपने प्राण संकटमें हों तब भी वह धनको खर्च नहीं करता। रघुनाथ भी सहायता माँगनेससुराल नहीं गये। उनके पास जो कुछ बर्तन, कपड़े, पशु तथा और भी सामान था, उसे बेचकर पिताका पूरा ऋण उन्होंने चुका दिया। घरतक बिक गया ऋण चुकानेमें। ससुरालसे जो दहेज मिला था, उससे उन्होंने देव- सेवाका नियमित प्रबन्ध कर दिया।
जो कलतक राजकुमार था, वही घरसे कौपीन लगाकर और फटा कपड़ा लपेटकर निकला। एक रात्रिमें एक वृक्षके नीचे भूमिपर पड़े पड़े रघुनाथ सोचने लगा 'इस प्रकार गाँव-गाँव भटककर केवल कूकर-शूकरकी भाँति पेट भरते हुए जीवन नष्ट करनेमें क्या लाभ है? क्यों न किसी पुण्यक्षेत्रमें चलकर भगवान्का भजन किया जाय।'
रघुनाथ दूसरे ही दिन चल पड़े। वे नीलाचल पहुँच गये। श्रीजगन्नाथजीका दर्शन करके वे हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे- 'प्रभो! मेरे माता-पिता दोनों मर गये। आज रघु 'अरक्षित' हो गया है। मैं अब तुम्हारे श्रीचरणोंका आश्रय लेने आया हूँ। तुम्हारी जो इच्छा हो, करो। रघुनाथ तुम्हारा खरीदा हुआ दास हैं।' सच्चे हृदयकी प्रार्थना प्रभु अवश्य स्वीकार करते हैं। रघुनाथ अब पुरीमें ही रहने लगे। उनका चित्त आनन्दपूर्ण हो गया। उन्हें अपने घरके ऐश्वर्य तथा पत्नीका भी कभी स्मरण नहीं होता था।
कुछ दिनोंमें रघुनाथकी ससुराल भी यह सब समाचार पहुँचा। गङ्गाधरदासने रघुनाथको दस-बीस खोटी-खरी बककर पुत्रोंके सामने प्रस्ताव किया-'समझ लेना चाहिये कि अन्नपूर्णाका विवाह हुआ ही नहीं उसका दूसरा विवाह कर देना चाहिये।' भिखारीको सम्बन्धी मानना पिताके समान पुत्रोंको भी अपने सम्मानमें बट्टा लगानेवाला जान पड़ा। सबने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। ढूँढ़नेपर राजमन्त्रीका पुत्र वसु महापात्र उन्हें वरके रूपमें मिल गया। वसु महापात्र अत्यन्त कामुक तथा अधार्मिक था। अपनी पापवृत्तिके कारण उसने यह विवाह स्वीकार कर लिया। फाल्गुनकी शुक्लपञ्चमी विवाह तिथि निश्चित हो गयी। गङ्गाधरदास और मन्त्रीपुत्र दोनों धनी पुरुष थे। समाजमेंइनका विरोध करनेका साहस कोई नहीं कर सका।
अन्नपूर्णाको अवस्था पंद्रह वर्षकी हो चुकी थी। माता-पिताका विचार जानकर वह व्याकुल हो उठी। और कोई उपाय तो था नहीं, मन-ही-मन वह भगवान्को पुकारने लगी- 'प्रभो! यह क्या हो रहा है? मेरे प्राणनाथ जीवित हैं और मेरे पुनर्विवाहको बात चल रही है? मैं अपना शरीर तो स्वामीके चरणोंमें अर्पित कर चुकी हूँ। इस शरीरपर अब मेरा कोई अधिकार नहीं है। दूसरेका मुख में इस शरीरसे कैसे देखूंगी? दयासागर ! मुझ अवलाकी तुम्हीं शरण हो। तुमने द्रौपदीको लज्जा रखी, गजेन्द्र के प्राण बचाये, आज मुझ दोनाकी पुकार भी सुनो। मेरा उद्धार करो, नाथ!'
अनपूर्णा अब दिन-रात अकेली बैठी भगवान प्रार्थना करती और आँसू बहाया करती। उसे खाना पोना, हँसना-बोलना- कुछ भी अच्छा न लगता घरमें एक पुरानी दासी थी, जिसने अन्नपूर्णाको पाला था। उसे अन्नपूर्णाने अपनी कष्ट कहानी सुनायी और उसके द्वारा पता लगाया कि मुहल्लेके कुछ लोग नीलाचल जानेवाले हैं। उस पतिव्रताने पत्रमें पतिको सब बातें लिखकर शीघ्र चले आनेको लिखा। उसने अन्तमें लिखा- 'मेरे स्वामी! मैं तो आपकी दासी हूँ। आप यहाँ आयें या न आयें, यह आपकी इच्छापर निर्भर है किंतु मैं तो दिन गिन रही हूँ। यदि इस बीचमें आपने आकर मुझे दर्शन न दिया तो मैं अवश्य प्राण त्याग दूंगी।'
अन्नपूर्णाने दासीको पत्र देकर कहा-'धाय मा! पत्र देकर उन लोगोंसे कहना कि मेरा जीवन उनके ही हाथमें हैं। मेरा पत्र मेरे स्वामीके पास पहुँचा देंगे तो मैं उनकी जन्म-जन्मतक ऋणी रहूंगी।' दासीने पत्र यात्रियोंको दिया। एक पतिव्रता नारीके प्रति भला, किस सत्पुरुषके हृदयमें सहानुभूति न होगी? मायके अन्तिम दिनोंमें वे लोग पुरी पहुंचे। बड़ी कठिनाई रघु अरक्षितको ढूँढ़कर उन्होंने पत्र दिया।
रघुने पत्र पढ़ा और वे व्याकुल हो गये। 'कलावतीपुर लगभग एक महीनेका मार्ग है और फाल्गुनको शुक्लपञ्चमीको केवल दस दिन शेष हैं।' वे कुछ भी स्थिर न कर सके। श्रीनाथजी उन्होंने प्रार्थना की-करुणासागर प्रभो।एक सती व्याकुल हो रही है। उसके सन्तापको अब आपके अतिरिक्त कोई दूर नहीं कर सकता। तुम्हारे अतिरिक्त अब कोई उसका रक्षक नहीं।'
रात अधिक हो गयी थी। रघुका कोई घर तो था नहीं, सिंहद्वारके पास टाटका एक फटा चिथड़ा डालकर भगवान् प्रार्थना करते-करते वे सो गये। जो अपनेको निर्बल समझकर श्रीहरिकी शरण लेता है, उसकी पुकार वे दयाधाम तत्काल सुनते हैं। कृपासागर प्रभुने सोते हुए रघुनाथको कलावतीपुरमें पहुंचा दिया। रघुनाथ जब प्रातःकाल जगे तो चौंक पड़े। उन्हें पुरीके भगवान्के मन्दिरका सिंहद्वार तथा दूसरे परिचित भवन आदि कुछ नहीं दीख पड़े लोगों से पूछनेपर उन्हें पता लगा कि वे कलावतीपुरमै गङ्गाधरदासको कोठीके सामने पड़े हैं। भगवान् जगन्नाथकी कृपाका स्मरण करके वे गद्गद हो गये।
प्रातःकाल गङ्गाधरदासके पुत्र घरसे बाहर आये तो रघुनाथको देखकर उनका मुख ही सूख गया। लोकलाजके भयसे गङ्गाधरदासने जामाताको भीतर बुला लिया। अन्नपूर्णा तो समाचार पाकर ही हर्ष-विह्वल हो गयो। ससुर तथा सालोंने भीतरके द्वेषको छिपाकर रघुनाथका पूरा आदर-सत्कार किया। भोजनके पश्चात् रघुनाथ विश्राम करने लगे। सती अन्नपूर्णाने आकर पतिके पदोंको अपने आँसुओंसे भिगो दिया।
गङ्गाधरदासने रघुनाथके स्वागत-सत्कारसे छुट्टी पाकर स्त्री तथा पुत्रोंको एकत्र करके मन्त्रणा की -'आज ही रातको विष देकर इस भिखारीको समाप्त कर देना चाहिये। अन्नपूर्णाकी तो कोई चिन्ता नहीं है। वह मन्त्रीके पुत्रसे विवाह हो जानेपर सुखी हो जायगी।' भला पापियोंको सती नारीके हृदयके सुख-दुःखका अनुमान कैसे हो
पापमूर्ति गङ्गाधरको पत्नीने याके समय जो नाना प्रकारके भोजन रघुनाथके लिये बनाये, उनमें विष मिला दिया। माता-पिता और भाइयोंकी दिनभरको फुसफुसाहटने अन्नपूर्णाकि मनमें सन्देह उत्पन्न कर दिया था। रसोई में सहायता देनेके बहाने वह माताके पास रुक गयी थी। कुछ देरमें जब सब बातें उसको समझमें आ गयीं, तब उसका हृदय काँप गया। पतिको सावधान करने वहदौड़ी गयी, किंतु गङ्गाधरके लड़के सैर करनेके बहाने उन्हें घरसे बाहर ले गये थे। अब वह क्या करे? जरासे ताड़पत्रके टुकड़ेपर उसने लिखा- भोजनमें हलाहल विष है।' उसने देखा था ससुरालमें कि उसके स्वामी बड़े प्रेमसे पहले पिष्टक (एक बँगला मिठाई) खाते हैं। अतः अवसर पाकर एक पिष्ठकमें उसने वह ताड़पत्रका टुकड़ा रख दिया।
सोनेके थालमें भोजन परसकर पापिष्ठा सासने जामाताको भोजनके लिये बुलाया। रघुनाथने भगवान्को भोग लगाया। अन्नपूर्णा छिपकर देख रही थी। उसका हृदय धड़क रहा था। यदि उसके स्वामीने उस पिष्ठक के बदले कोई और पदार्थ उठाया तो वह चिल्लाकर उन्हें सावधान कर देगी। परंतु उसने देखा कि उसके पतिने वहाँ पिष्ठक पहले तोड़ा है और ताड़पत्र पढ़ भी लिया। है। वह निश्चिन्त हो गयी। माताने उसे वहाँसे हट जानेको कहा था। अब वह निश्चिन्त मनसे चली गयी।
रघुनाथने ताड़पत्र देखा और सब समझ लिया। उनके नेत्र भर आये। वे कहने लगे-'प्रभो! मेरे लिये तो आपका यह पवित्र प्रसाद' है। मैं इसे नहीं छोड़ सकता; किंतु मुझ अधमने आपको अनजानमें आज विष मिले भोजनका भोग लगाया, इसके लिये मुझे क्षमा करना। मेरे स्वामी! मेरे प्राण रहें या जायें; किंतु आपके प्रसादका में अपमान नहीं कर सकता।'
रघुनाथने जान-बूझकर वह विष मिश्रित अन्न खा लिया। थाली में एक कण भी नहीं छोड़ा। उग्र विष था, अतः रघुनाथ तत्काल मूर्छित होकर गिरे और छटपटाकर उनका शरीर अकड़ गया, नीला पड़ गया। गङ्गाधरको स्त्रीने दौड़कर पति-पुत्रोंको समाचार दिया। सबने सबेरे लाशको गाड़ देनेका विचार किया। रातको रघुनाथको सपने काट लिया। यह घोषणा कर देंगे, ऐसा सोच लिया। कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।
अपूर्णाका हृदय अशान्त था। स्वामीने सूचना देख लो, इससे वह अलग हट आयी थी पर उसे धैर्य नहीं था। कुछ देरमें उसने माता-पिता तथा भाइयोंको इधर उधर आते-जाते तथा कानाफूसी करते सुना उसके मनमे सन्देह हो गया। सबके चले जानेपर वह उस कमरेकेपास गयी। कमरेका द्वार बाहरसे बंद था। भीतर दीपक जल रहा था। रघुनाथका जीवनरहित नीला देह पृथ्वीपर पड़ा था। वह सती मूच्छित होकर गिर पड़ी। मूर्छा दूर होनेपर वह कातर हृदयसे भगवान्को पुकारने लगी।
आर्त हृदयकी पुकार सुनकर वे दयाधाम श्रीहरि स्वयं आकूल हो उठते हैं। अन्नपूर्णाको कमरेमें कुछ आहट जान पड़ी। उसने देखा कि कमरा स्निग्ध ज्योतिसे भर गया है। उसने सुना, कोई अमृतपूर्ण दिव्य स्वरसे कह रहा है-'बेटा रघुनाथ तू इस प्रकार क्यों अचेत पड़ा है ? उठ ! देख, मैं आ गया। भला तुच्छ विष तेरा क्या बिगाड़ सकता है?' रघुनाथने अंगड़ाई ली और उठ बैठे। अन्नपूर्णा इस आनन्दको सँभाल न सकी। वह पहले शोकसे मूर्छित हुई थी, अब हर्षसे मूर्च्छित हो गयी। मूर्छा दूर होनेपर वह अपने सोनेके कमरे में चली गयी। पिताने उसी समय आकर उसका द्वार बाहरसे बंद कर दिया। रघुनाथ इस प्रकार जगा था, जैसे गाढ़ी नींदसे किसीने उसे जगा दिया हो। एक बार उसने चारों ओर देखा। भगवान् उसे जीवन-दान करके अदृश्य हो गये थे; पर उसके हृदयमें वे साकार हो रहे थे। उसे स्मरण आ गया कि वह तो विष खाकर मर चुका था। सर्वसमर्थ भक्तवत्सल हरिको छोड़ भला और कौन उसे जीवन दान करता? प्रेमको बादमें यह कितना रोया, कितना हँसा, कुछ ठिकाना नहीं। 'राम कृष्ण हरि' कहता वह नृत्य करने लगा ।।
पापीको उसका पाप जितना कष्ट देता है, उतना कष्ट उसे नहीं मिलता, जिसे वह पापी सताता है। रघुनाथदास तो विषके कारण मूर्छित हो गया था। कष्ट तो उसे बहुत कम हुआ था। परंतु गङ्गाधरदास तथा उनकी स्त्री और पुत्रोंको रातभर फाँसीका तख्ता दीखता रहा। उन्हें बराबर यह भय लगा रहा कि कोई अवश्य समाचार देने गया होगा अवश्य राज्यके सिपाही आते होंगे पक्षीकी फड़फड़ाहट और पत्तोंके हिलनेको ध्वनिसे भी वे व्याकुल होकर इधर उधर देखने लगते थे कि उन्हें पकड़ने तो कोई नहीं आया। रात काटना उन्हें कठिन हो गया। थोड़ा प्रकाश होते ही मुर्देको गाड़ देनेके विचारसे वे रसोई घरके पास गये। द्वार खोलते ही गङ्गाधरदास ठिठककरखड़े रह गये। रघुनाथके शरीरसे दिव्य ज्योति निकल रही थी। नेत्रोंसे धारा चल रही थी। होंठ कुछ बोलते से काँप रहे थे। ये अपने-आपमें नहीं थे। सब-के-सब एक-दूसरेकी ओर देखने लगे काटो तो खून नहीं। सहसा रघुनाथ चाँके– 'अरे! प्रभु तो नहीं हैं?' वे अपने प्रभुको पुकारते हुए व्याकुल हो उठे। फिर सास ससुर तथा सालोंको देखकर हड़बड़ाकर उठ खड़े हुए और फिर झूमकर उसी आसनपर बैठ गये। गङ्गाधरदासने उनकी यह दशा देखी तो समझ लिया कि यह कोई साधारण आदमी नहीं। उसने उनके चरण पकड़ लिये। रघुनाथदासने कहा- आपलोगोंका कोई दोष नहीं। सब अपना कर्म-फल भोगते हैं। मैंने पूर्वजन्ममें किसीको विष देकर मार डाला होगा, इसीसे मुझे विष खाना पड़ा। विष खानेपर भी मेरे स्वामी जगन्नाथजीने अपनी अहैतुकी दयासे ही मुझे फिर जीवित किया है आपलोगोंको यदि धर्मका कुछ विचार हो तो मेरी स्त्री मुझे दे दीजिये। मैं उसे अपने साथ ले जाऊँगा। न देना चाहें तो जो इच्छा हो करें पर अब मैं जाऊँगा।'
रघुनाथदासको गङ्गाधरने एक दिन रुकनेको कहा, पर ये उनके घरमें नहीं रुके। उनके परसे बाहर पेड़की छायामें वे बैठ गये। गङ्गाधरदासने अपनी पुत्रीसे उसकी इच्छा पूछी। उस पतिव्रताने दृढ़तासे कहा- 'पिताजी! मेरा अपराध क्षमा करें। मेरे पतिदेव राहके भिखारी सही, पर मेरे तो वे ही देवता हैं। एकमात्र वे ही मेरी गति हैं। मैं उनके साथ जाऊँगी। आपलोग मुझे पर-पुरुषके हाथ देना चाहते हैं। पिता होकर भी आप अपनी कन्याको व्यभिचारिणी बनाना चाहते हैं। धिकार है आपको आप मुझे छोकरी मत समझे प्राण रहते मुझे कोई दूसरा छू नहीं सकता। मेरे साथ जबरदस्ती की गयी तो मैं आत्महत्या कर लूँगी और एक सतीके शापसे आपका यह सारा वैभव भस्म हो जायगा।' रोते-रोते वह फिर पिताके पैरोंपर गिर पड़ी और अपने पतिके साथ भेज देनेकी प्रार्थना करने लगी।
गङ्गाधरदास रघुनाथका प्रभाव तथा पुत्रीकी दृढ़ता देखकर डर गये। उन्होंने बहुत से धन-रत्नके साथ कन्यारघुनाथके पास उपस्थित कर दी। रघुनाथजी अपनी पत्नीके साथ 'जय जगन्नाथ' कहकर पुरीकी ओर चल पड़े। गङ्गाधरदासको भिखारीके हाथ पुत्री सौंपनेका कर अब भी व्याकुल किये था। उन्होंने मन्त्री- पुत्रके पास सन्देश भेजा— 'अन्नपूर्णाको एक कंगाल लिये जा रहा है। तुममें साहस हो तो उसे मारकर अन्नपूर्णाको ले आओ।'
समाचार पाकर मन्त्री- पुत्रने कई हजार घुड़सवार सैनिक रघुनाथकी खोजमें भेज दिये। रघुनाथ तो भगवान्का नामकीर्तन करते चले जा रहे थे। पीछेसे घोड़ोंकी टापोंका शब्द और सैनिकोंकी ललकार सुनकर अन्नपूर्णा डर गयी। रघुनाथदासने कहा-'तुम डरती क्यों हो? मेरे स्वामीका नाम जगन्नाथ है, यह तुम जानती हो न? जो विषसे मरे हुएको जीवित कर देते हैं, उन दयाधामकी लीला देखती चलो।'
उसी समय दो परम तेजस्वी राजपूत घुड़सवार वहाँ आये और पूछने लगे- 'तुमलोग कौन हो? कहाँ जा रहे हो? तुम्हारे पीछे यह सेना क्यों पड़ी है?"
रघुनाथदासने सब बातें बताकर कहा- 'मैं तो श्रीजगन्नाथका तुच्छ दास हूँ, उनकी कृपाकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ।' दूसरा कोई मेरा रक्षक नहीं।
उन तेजस्वी राजपूतोंने कहा - 'हम तुम्हारे साथ चलते हैं। तुम निर्भय चलो। देखते हैं कि कौन तुमपर आक्रमण करता है।'
रघुनाथको समझना नहीं था कि इस प्रकार अकारण असहायकी सहायता करने दौड़ पड़नेवाले कौन हो सकते हैं। मन्त्री- पुत्रने देखा कि दो राजपूत तो क्षणभरमें लाखों हो गये हैं। मन्त्री पुत्र तथा उसके सैनिक जिधर सॉंग समाये, भाग खड़े हुए। राज्यकी सीमा पार हो जानेपर दोनों राजपूत रघुनाथसे निर्भय जानेको कहकर चले गये।
कुछ दिनोंमें दम्पति पुरी पहुँचे। पिताके दिये धनसे अन्नपूर्णाने एक घर ले लिया मन्दिरको दक्षिण ओर। श्रीकृष्ण-कथा कहना-सुनना, नामकीर्तन और श्रीजगन्नाथजीका दर्शन करते हुए उनके दिव्यप्रेममें निमग्न रहना यही उनका जीवन वन गया।
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praatahkaal gangaadharadaasake putr gharase baahar aaye to raghunaathako dekhakar unaka mukh hee sookh gayaa. lokalaajake bhayase gangaadharadaasane jaamaataako bheetar bula liyaa. annapoorna to samaachaar paakar hee harsha-vihval ho gayo. sasur tatha saalonne bheetarake dveshako chhipaakar raghunaathaka poora aadara-satkaar kiyaa. bhojanake pashchaat raghunaath vishraam karane lage. satee annapoornaane aakar patike padonko apane aansuonse bhigo diyaa.
gangaadharadaasane raghunaathake svaagata-satkaarase chhuttee paakar stree tatha putronko ekatr karake mantrana kee -'aaj hee raatako vish dekar is bhikhaareeko samaapt kar dena chaahiye. annapoornaakee to koee chinta naheen hai. vah mantreeke putrase vivaah ho jaanepar sukhee ho jaayagee.' bhala paapiyonko satee naareeke hridayake sukha-duhkhaka anumaan kaise ho
paapamoorti gangaadharako patneene yaake samay jo naana prakaarake bhojan raghunaathake liye banaaye, unamen vish mila diyaa. maataa-pita aur bhaaiyonkee dinabharako phusaphusaahatane annapoornaaki manamen sandeh utpann kar diya thaa. rasoee men sahaayata deneke bahaane vah maataake paas ruk gayee thee. kuchh deramen jab sab baaten usako samajhamen a gayeen, tab usaka hriday kaanp gayaa. patiko saavadhaan karane vahadauड़ee gayee, kintu gangaadharake lada़ke sair karaneke bahaane unhen gharase baahar le gaye the. ab vah kya kare? jaraase taada़patrake tukada़epar usane likhaa- bhojanamen halaahal vish hai.' usane dekha tha sasuraalamen ki usake svaamee bada़e premase pahale pishtak (ek bangala mithaaee) khaate hain. atah avasar paakar ek pishthakamen usane vah taada़patraka tukada़a rakh diyaa.
soneke thaalamen bhojan parasakar paapishtha saasane jaamaataako bhojanake liye bulaayaa. raghunaathane bhagavaanko bhog lagaayaa. annapoorna chhipakar dekh rahee thee. usaka hriday dhada़k raha thaa. yadi usake svaameene us pishthak ke badale koee aur padaarth uthaaya to vah chillaakar unhen saavadhaan kar degee. parantu usane dekha ki usake patine vahaan pishthak pahale toda़a hai aur taada़patr padha़ bhee liyaa. hai. vah nishchint ho gayee. maataane use vahaanse hat jaaneko kaha thaa. ab vah nishchint manase chalee gayee.
raghunaathane taada़patr dekha aur sab samajh liyaa. unake netr bhar aaye. ve kahane lage-'prabho! mere liye to aapaka yah pavitr prasaada' hai. main ise naheen chhoda़ sakataa; kintu mujh adhamane aapako anajaanamen aaj vish mile bhojanaka bhog lagaaya, isake liye mujhe kshama karanaa. mere svaamee! mere praan rahen ya jaayen; kintu aapake prasaadaka men apamaan naheen kar sakataa.'
raghunaathane jaana-boojhakar vah vish mishrit ann kha liyaa. thaalee men ek kan bhee naheen chhoda़aa. ugr vish tha, atah raghunaath tatkaal moorchhit hokar gire aur chhatapataakar unaka shareer akada़ gaya, neela pada़ gayaa. gangaadharako streene dauda़kar pati-putronko samaachaar diyaa. sabane sabere laashako gaaड़ deneka vichaar kiyaa. raatako raghunaathako sapane kaat liyaa. yah ghoshana kar denge, aisa soch liyaa. kamare ka daravaaja band kar diyaa.
apoornaaka hriday ashaant thaa. svaameene soochana dekh lo, isase vah alag hat aayee thee par use dhairy naheen thaa. kuchh deramen usane maataa-pita tatha bhaaiyonko idhar udhar aate-jaate tatha kaanaaphoosee karate suna usake maname sandeh ho gayaa. sabake chale jaanepar vah us kamarekepaas gayee. kamareka dvaar baaharase band thaa. bheetar deepak jal raha thaa. raghunaathaka jeevanarahit neela deh prithveepar pada़a thaa. vah satee moochchhit hokar gir pada़ee. moorchha door honepar vah kaatar hridayase bhagavaanko pukaarane lagee.
aart hridayakee pukaar sunakar ve dayaadhaam shreehari svayan aakool ho uthate hain. annapoornaako kamaremen kuchh aahat jaan pada़ee. usane dekha ki kamara snigdh jyotise bhar gaya hai. usane suna, koee amritapoorn divy svarase kah raha hai-'beta raghunaath too is prakaar kyon achet pada़a hai ? uth ! dekh, main a gayaa. bhala tuchchh vish tera kya bigaada़ sakata hai?' raghunaathane angaड़aaee lee aur uth baithe. annapoorna is aanandako sanbhaal n sakee. vah pahale shokase moorchhit huee thee, ab harshase moorchchhit ho gayee. moorchha door honepar vah apane soneke kamare men chalee gayee. pitaane usee samay aakar usaka dvaar baaharase band kar diyaa. raghunaath is prakaar jaga tha, jaise gaadha़ee neendase kiseene use jaga diya ho. ek baar usane chaaron or dekhaa. bhagavaan use jeevana-daan karake adrishy ho gaye the; par usake hridayamen ve saakaar ho rahe the. use smaran a gaya ki vah to vish khaakar mar chuka thaa. sarvasamarth bhaktavatsal hariko chhoda़ bhala aur kaun use jeevan daan karataa? premako baadamen yah kitana roya, kitana hansa, kuchh thikaana naheen. 'raam krishn hari' kahata vah nrity karane laga ..
paapeeko usaka paap jitana kasht deta hai, utana kasht use naheen milata, jise vah paapee sataata hai. raghunaathadaas to vishake kaaran moorchhit ho gaya thaa. kasht to use bahut kam hua thaa. parantu gangaadharadaas tatha unakee stree aur putronko raatabhar phaanseeka takhta deekhata rahaa. unhen baraabar yah bhay laga raha ki koee avashy samaachaar dene gaya hoga avashy raajyake sipaahee aate honge paksheekee phada़phada़aahat aur pattonke hilaneko dhvanise bhee ve vyaakul hokar idhar udhar dekhane lagate the ki unhen pakada़ne to koee naheen aayaa. raat kaatana unhen kathin ho gayaa. thoda़a prakaash hote hee murdeko gaada़ deneke vichaarase ve rasoee gharake paas gaye. dvaar kholate hee gangaadharadaas thithakakarakhada़e rah gaye. raghunaathake shareerase divy jyoti nikal rahee thee. netronse dhaara chal rahee thee. honth kuchh bolate se kaanp rahe the. ye apane-aapamen naheen the. saba-ke-sab eka-doosarekee or dekhane lage kaato to khoon naheen. sahasa raghunaath chaanke– 'are! prabhu to naheen hain?' ve apane prabhuko pukaarate hue vyaakul ho uthe. phir saas sasur tatha saalonko dekhakar haड़baड़aakar uth khada़e hue aur phir jhoomakar usee aasanapar baith gaye. gangaadharadaasane unakee yah dasha dekhee to samajh liya ki yah koee saadhaaran aadamee naheen. usane unake charan pakada़ liye. raghunaathadaasane kahaa- aapalogonka koee dosh naheen. sab apana karma-phal bhogate hain. mainne poorvajanmamen kiseeko vish dekar maar daala hoga, iseese mujhe vish khaana pada़aa. vish khaanepar bhee mere svaamee jagannaathajeene apanee ahaitukee dayaase hee mujhe phir jeevit kiya hai aapalogonko yadi dharmaka kuchh vichaar ho to meree stree mujhe de deejiye. main use apane saath le jaaoongaa. n dena chaahen to jo ichchha ho karen par ab main jaaoongaa.'
raghunaathadaasako gangaadharane ek din rukaneko kaha, par ye unake gharamen naheen ruke. unake parase baahar peda़kee chhaayaamen ve baith gaye. gangaadharadaasane apanee putreese usakee ichchha poochhee. us pativrataane dridha़taase kahaa- 'pitaajee! mera aparaadh kshama karen. mere patidev raahake bhikhaaree sahee, par mere to ve hee devata hain. ekamaatr ve hee meree gati hain. main unake saath jaaoongee. aapalog mujhe para-purushake haath dena chaahate hain. pita hokar bhee aap apanee kanyaako vyabhichaarinee banaana chaahate hain. dhikaar hai aapako aap mujhe chhokaree mat samajhe praan rahate mujhe koee doosara chhoo naheen sakataa. mere saath jabaradastee kee gayee to main aatmahatya kar loongee aur ek sateeke shaapase aapaka yah saara vaibhav bhasm ho jaayagaa.' rote-rote vah phir pitaake paironpar gir pada़ee aur apane patike saath bhej denekee praarthana karane lagee.
gangaadharadaas raghunaathaka prabhaav tatha putreekee dridha़ta dekhakar dar gaye. unhonne bahut se dhana-ratnake saath kanyaaraghunaathake paas upasthit kar dee. raghunaathajee apanee patneeke saath 'jay jagannaatha' kahakar pureekee or chal pada़e. gangaadharadaasako bhikhaareeke haath putree saunpaneka kar ab bhee vyaakul kiye thaa. unhonne mantree- putrake paas sandesh bhejaa— 'annapoornaako ek kangaal liye ja raha hai. tumamen saahas ho to use maarakar annapoornaako le aao.'
samaachaar paakar mantree- putrane kaee hajaar ghuda़savaar sainik raghunaathakee khojamen bhej diye. raghunaath to bhagavaanka naamakeertan karate chale ja rahe the. peechhese ghoda़onkee taaponka shabd aur sainikonkee lalakaar sunakar annapoorna dar gayee. raghunaathadaasane kahaa-'tum daratee kyon ho? mere svaameeka naam jagannaath hai, yah tum jaanatee ho na? jo vishase mare hueko jeevit kar dete hain, un dayaadhaamakee leela dekhatee chalo.'
usee samay do param tejasvee raajapoot ghuda़savaar vahaan aaye aur poochhane lage- 'tumalog kaun ho? kahaan ja rahe ho? tumhaare peechhe yah sena kyon pada़ee hai?"
raghunaathadaasane sab baaten bataakar kahaa- 'main to shreejagannaathaka tuchchh daas hoon, unakee kripaakee prateeksha kar raha hoon.' doosara koee mera rakshak naheen.
un tejasvee raajapootonne kaha - 'ham tumhaare saath chalate hain. tum nirbhay chalo. dekhate hain ki kaun tumapar aakraman karata hai.'
raghunaathako samajhana naheen tha ki is prakaar akaaran asahaayakee sahaayata karane dauda़ pada़nevaale kaun ho sakate hain. mantree- putrane dekha ki do raajapoot to kshanabharamen laakhon ho gaye hain. mantree putr tatha usake sainik jidhar saॉng samaaye, bhaag khada़e hue. raajyakee seema paar ho jaanepar donon raajapoot raghunaathase nirbhay jaaneko kahakar chale gaye.
kuchh dinonmen dampati puree pahunche. pitaake diye dhanase annapoornaane ek ghar le liya mandirako dakshin ora. shreekrishna-katha kahanaa-sunana, naamakeertan aur shreejagannaathajeeka darshan karate hue unake divyapremamen nimagn rahana yahee unaka jeevan van gayaa.