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सचिव सुमन्त्र की मार्मिक कथा
सचिव सुमन्त्र की अधबुत कहानी - Full Story of सचिव सुमन्त्र (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [सचिव सुमन्त्र]- भक्तमाल


सोइ जीवन सोई जनम, सोइ तन सफल सनाथ।
अपनो कहि जानत जिनहिं, सतकारत रघुनाथ ॥

सुमन्त्रजीका जन्म सूतकुलमें हुआ था। अयोध्यासम्राट् महाराज दशरथके ये बालमित्र थे, सखा थे और महाराजके निजी सारथि भी थे। उत्तर कोसल-साम्राज्यके यही महामन्त्री थे। इनकी सम्मतिसे ही महाराज राज्यके सब कार्य करते थे और सभी राज्यसेवकोंके ये अध्यक्ष भी थे। यात्रा, विवाह, राज्याभिषेक आदि जितने भी बृहत् कर्म अयोध्यामें होते थे, उनकी पूरी व्यवस्था सुमन्त्रजी ही करते थे। श्रीराम अपने पिताके इन सखा एवं मन्त्रीको पिताके समान ही आदर देते थे। महारानियाँ

भी सुमन्त्रका सम्मान करती थीं। गुरु वसिष्ठजीसे आज्ञा लेकर महाराज दशरथनेसुमन्त्र से सम्मति ली और श्रीरामको दूसरे ही दिन युवराजपद देना निश्चित हो गया। सुमन्त्र उस महोत्सवका प्रबन्ध करनेमें लग गये; किन्तु दूसरे दिन प्रात:काल महाराज बहुत देरतक राजभवनसे निकले ही नहीं। सुमन्त्र ही अन्तःपुरमें जाकर महाराजको जगा सकते थे। सुमन्त्र भीतर गये। उन्होंने कोपभवनमें भूमिपर मूच्छित पड़े हुए महाराजको और पास बैठी रोषकी मूर्ति कैकेयीको देखा। यहींसे उनकी व्यथाके अपार समुद्रका प्रारम्भ हो गया। कैकेयीके कहनेसे वे श्रीरामको वहाँ बुला लाये। कैकेयीके मुखसे उन्होंने श्रीरामको वनवास | देनेकी बात सुनी और एक शब्दतक व्यथाके मारे उनके मुखसे नहीं निकल सका। श्रीराम भाई लक्ष्मण और जानकीजीके साथ वनकोचले। महाराजकी आज्ञासे सुमन्त्रने उन्हें रथपर बैठाया। शृङ्गवेरपुरतक रथ आया। शृङ्गवेरपुरमें गङ्गातटपर श्रीरामने अपनी घुँघराली काली अलकोंको वटके दूधसे चिपकाकर जटा बना लिया। सुमन्त्रका हृदय फटा जाता था। उन्होंने महाराज दशरथका सन्देश सुनाकर श्रीरामको लौटने के लिये कहा; श्रीजनकराजकुमारीको वनके क्लेश बताकर अयोध्या चलनेकी प्रार्थना की; किन्तु कोई फल न हुआ। श्रीराम और वैदेही तो सदासे उनको पिताकी भाँति मानते आये हैं। आज भी वही सम्मान, वही आदर, वही संकोचपूर्ण विनय; किन्तु कोई भी लौटकर साथ नहीं चलना चाहता। सुमन्त्रने बहुत प्रयत्न किया कि 'उसे ही वनमें साथ चलने की अनुमति मिल जाय, पर ऐसा कब सम्भव था। सुमन्त्रकी दशा क्या हो गयी?'

नयन सूझ नहिं सुनइ न काना। कहिन सकइ कछु अति अकुलाना ।।

बहुत प्रकार समझा-बुझाकर श्रीरघुनाथजीने उन्हें लौटाया। पर सुमन्त्र लौट न सके। वे बार-बार लौट आते थे। केवटने नाव चला दी। अयोध्याके जीवन-धन वन चले गये। जब निषादराज कुछ दूर श्रीराघवको पहुँचाकर लौटे, तब उन्होंने जलसे बाहर पड़ी मछलीकी भाँति तड़पते सुमन्त्रको देखा । साथमें चार सेवक देकर किसी प्रकारउन्हें अयोध्या लौटाया। सुमन्त्रकी अन्तर्वेदनाका पार नहीं है। वे क्या मुख लेकर अयोध्या जायें। पुरवासियोंको, सेवकोंको, महारानी कौसल्याको और महाराजको कौन सा संवाद सुनायें। किसी प्रकार अन्धकार होनेपर वे नगरमें | गये। रथ राजद्वारपर छोड़कर भवनमें प्रवेश किया। किसी | प्रकार महाराजके पास पहुँचे। सुमन्त्रका सन्देश - उन्होंने | बहुत प्रयत्न किया महाराजको धैर्य देनेका; किन्तु उन्हींका हृदय हाहाकार कर रहा था। उन्होंने सन्देशके अन्तमें कहा-

मैं आपन किमि कहाँ कलेसू। जिअत फिरेउँ लेइ राम सँदेसू ॥

महाराज दशरथने शरीर त्याग दिया। अयोध्या अनाथ हो गयी। सुमन्त्र धैर्य धारण न करें तो उनके हृदयधन श्रीरामका साम्राज्य व्यवस्थित कैसे रहे? ननिहाल से भरतजी लौटे और पिताकी अन्त्येष्टि करके वे निष्पाप चित्रकूट पहुँचे बड़े भाईको मनाने। वहाँसे वे श्रीरामकी चरण पादुका ले आये। सिंहासनपर वे पादुकाएँ प्रतिष्ठित हुईं। सुमन्त्रने धैर्यपूर्वक व्यवस्था सँभाल ली और वे चौदह वर्ष उसे सँभाले रहे। अन्तमें अयोध्याके स्वामी अयोध्या लौटे। श्रीरामने सुमन्त्रको सदा पिताकी भाँति ही आदर दिया और सुमन्त्र भी उस साम्राज्यके महामन्त्रीपदपर प्रतिष्ठित रहे।



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soi jeevan soee janam, soi tan saphal sanaatha.
apano kahi jaanat jinahin, satakaarat raghunaath ..

sumantrajeeka janm sootakulamen hua thaa. ayodhyaasamraat mahaaraaj dasharathake ye baalamitr the, sakha the aur mahaaraajake nijee saarathi bhee the. uttar kosala-saamraajyake yahee mahaamantree the. inakee sammatise hee mahaaraaj raajyake sab kaary karate the aur sabhee raajyasevakonke ye adhyaksh bhee the. yaatra, vivaah, raajyaabhishek aadi jitane bhee brihat karm ayodhyaamen hote the, unakee pooree vyavastha sumantrajee hee karate the. shreeraam apane pitaake in sakha evan mantreeko pitaake samaan hee aadar dete the. mahaaraaniyaan

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nayan soojh nahin sunai n kaanaa. kahin sakai kachhu ati akulaana ..

bahut prakaar samajhaa-bujhaakar shreeraghunaathajeene unhen lautaayaa. par sumantr laut n sake. ve baara-baar laut aate the. kevatane naav chala dee. ayodhyaake jeevana-dhan van chale gaye. jab nishaadaraaj kuchh door shreeraaghavako pahunchaakar laute, tab unhonne jalase baahar pada़ee machhaleekee bhaanti tada़pate sumantrako dekha . saathamen chaar sevak dekar kisee prakaaraunhen ayodhya lautaayaa. sumantrakee antarvedanaaka paar naheen hai. ve kya mukh lekar ayodhya jaayen. puravaasiyonko, sevakonko, mahaaraanee kausalyaako aur mahaaraajako kaun sa sanvaad sunaayen. kisee prakaar andhakaar honepar ve nagaramen | gaye. rath raajadvaarapar chhoda़kar bhavanamen pravesh kiyaa. kisee | prakaar mahaaraajake paas pahunche. sumantraka sandesh - unhonne | bahut prayatn kiya mahaaraajako dhairy denekaa; kintu unheenka hriday haahaakaar kar raha thaa. unhonne sandeshake antamen kahaa-

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mahaaraaj dasharathane shareer tyaag diyaa. ayodhya anaath ho gayee. sumantr dhairy dhaaran n karen to unake hridayadhan shreeraamaka saamraajy vyavasthit kaise rahe? nanihaal se bharatajee laute aur pitaakee antyeshti karake ve nishpaap chitrakoot pahunche bada़e bhaaeeko manaane. vahaanse ve shreeraamakee charan paaduka le aaye. sinhaasanapar ve paadukaaen pratishthit hueen. sumantrane dhairyapoorvak vyavastha sanbhaal lee aur ve chaudah varsh use sanbhaale rahe. antamen ayodhyaake svaamee ayodhya laute. shreeraamane sumantrako sada pitaakee bhaanti hee aadar diya aur sumantr bhee us saamraajyake mahaamantreepadapar pratishthit rahe.

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