ये स्मरन्ति च गोविन्दं सर्वकामफलप्रदम् ।
तापत्रयविनिर्मुक्ता जायन्ते दुःखवर्जिताः ॥
'जो लोग सम्पूर्ण कामनाओंको पूर्ण करनेवाले, समस्त फलोंके दाता श्रीगोविन्दका स्मरण करते हैं, वे तीनों तापोंसे छूटकर सर्वथा दुःखरहित हो जाते हैं।'
चम्पकपुरीके राजा हंसध्वज बड़े ही धर्मात्मा, प्रजापालक, शूरवीर और भगवद्भक्त थे। उनके राज्यकी यह विशेषता थी कि राजकुल तथा प्रजाके सभी पुरुष 'एकपत्नीव्रत' का पालन करते थे। जो भगवान्का भक्त न होता या जो एकपत्नीव्रती न होता, वह चाहे जितना विद्वान् या शूरवीर हो, उसे राज्यमें आश्रय नहीं मिलता था। पूरी प्रजा सदाचारी, भगवान्का भक्त, दानपरायण थी। पाण्डवोंके अश्वमेध यज्ञका घोड़ा जब चम्पकपुरीके पास पहुँचा, तब महाराज हंसध्वजने सोचा- 'मैं वृद्ध होगया, पर अबतक मेरे नेत्र श्रीकृष्णचन्द्रके दर्शनसे सफल नहीं हुए। अब इस घोड़ेको रोकनेके बहाने मैं युद्धभूमिमें जाकर भगवान् पुरुषोत्तमके दर्शन करूँगा। मेरा जन्म उन श्यामसुन्दर भुवनमोहनके श्रीचरणोंके दर्शनसे सफल हो जायगा।'
घोड़ेकी रक्षाके लिये गाण्डीवधारी अर्जुन प्रद्युम्नादि महारथियोंके साथ उसके पीछे चल रहे थे, यह सबको पता था; किंतु राजाको तो पार्थ सारथि श्रीकृष्णचन्द्रके दर्शन करने थे। अश्व पकड़कर बाँध लिया गया। राजगुरु शङ्ख तथा लिखितकी आज्ञासे यह घोषणा कर दी गयी कि 'अमुक समयतक सब योद्धा रणक्षेत्रमें उपस्थित हो जायें। जो ठीक समयपर नहीं पहुँचेगा, उसे उबलते हुए तेलके कड़ाहेमें डाल दिया जायगा।'
राजा हंसध्वजके पाँच पुत्र थे- सुबल, सुरथ, सम,सुदर्शन तथा सुधन्वा छोटे राजकुमार सुधन्वा अपनी माताके पास आज्ञा लेने पहुँचे। वीरमाताने पुत्रको हृदयसे लगाया और आदेश दिया-'बेटा! तू युद्धमें जा और विजयी होकर लौट! परंतु मेरे पास चार पैरवाले पशुको मत ले आना। मैं तो मुक्तिदाता 'हरि' को पाना चाहती हूँ तू वही कर्म कर, जिससे श्रीकृष्ण प्रसन्न हों। वे भक्तवत्सल हैं। यदि तू अर्जुनको युद्धमें छका सके तो वे पार्थको रक्षाके लिये अवश्य आयेंगे। वे अपने भक्तको कभी छोड़ नहीं सकते। देख तू मेरे दूधको लज्जित मत करना। श्रीकृष्णको देखकर डरना मत। श्रीकृष्णके सामने युद्धमें मरनेवाला मरता नहीं, वह तो अपनी इक्कीस पीढ़ियाँ तार देता है। युद्धमें लड़ते हुए पुरुषोत्तमके सम्मुख तू यदि वीरगति प्राप्त करेगा तो मुझे सच्ची प्रसन्नता होगी।' धन्य माता !
सुधन्वाने माताकी आज्ञा स्वीकार की। बहिन कुबलासे आज्ञा तथा प्रोत्साहन प्राप्तकर वे अपने अन्तःपुरमें गये। द्वारपर उनकी सती पत्नी प्रभावती पहलेसे पूजाका थाल सजाये पतिकी आरती उतारनेको खड़ी थी। उसने पतिकी पूजा करके प्रार्थना कीनाथ! आप अर्जुनसे संग्राम करने जा रहे हैं। मैं चाहती हूँ कि आपके चले जानेपर एक अञ्जलि देनेवाला पुत्र रहे।'
सुधन्वाने पत्नीको समझाना चाहा, पर वह पतिव्रता थी। उसने कहा- 'मेरे स्वामी मैं जानती हूँ कि श्रीकृष्णचन्द्रके समीप जाकर कोई इस संसारमें लौटता नहीं। मैं तो आपकी दासी हूँ। आपकी इच्छा और आपके हितमें ही मेरा हित है। मैं आपके इस मङ्गल प्रस्थानमें बाधा नहीं देना चाहती। इस दासीकी तो एक तुच्छ प्रार्थना है। आपको वह प्रार्थना पूर्ण करनी चाहिये। '
अनेक प्रकारसे सुधन्वाने समझाना चाहा; किंतु अन्तमें प्रभावतीकी विजय हुई सती नारीको धर्मसम्मत प्रार्थना के अस्वीकार नहीं कर सके वहाँसे फिर स्नान प्राणायाम करके वे युद्धके लिये रथपर बैठे।
उधर युद्ध भूमिमें महाराज हंसध्वज अपने चारों राजकुमारकि साथ पहुँच गये। सभी शूर एकत्र हो गये; किंतु समय हो जानेपर भी जब सुधन्वा नहीं पहुँचे, तबराजाने उन्हें पकड़ लानेके लिये कुछ सैनिक भेजे। सैनिकोंको सुधन्वा मार्गमें ही मिल गये। पिताके पास पहुँचकर जब उन्होंने विलम्बका कारण बताया, तब क्रोधमें भरकर महाराज कहने लगे- 'तू बड़ा मूर्ख है। यदि पुत्र होनेसे ही सद्रति होती हो तो सभी कूकर शुकर स्वर्ग ही जायें तेरे धर्म तथा विचारको धिकार है। | श्रीकृष्णचन्द्रका नाम सुनकर भी तेरा मन कामके वश हो गया! ऐसे कामी, भगवान् से विमुख कुपुत्रका तो तेलमें उबलकर ही मरना ठीक है।'
राजाने व्यवस्थाके लिये पुरोहितोंके पास दूत भेजा। धर्मके मर्मज्ञ, स्मृतियोंके रचयिता ऋषि शङ्ख और लिखित बड़े क्रोधी थे। उन्होंने दूतसे कहा-'राजाका मन पुत्रके मोहसे धर्मभ्रष्ट हो गया है जब सबके लिये एक ही आज्ञा थी, तब व्यवस्था पूछनेकी क्यों आवश्यकता हुई।' जो मन्दबुद्धि लोभ, मोह या भयसे अपने वचनोंका पालन नहीं करता, उसे नरकके दारुण दुःख मिलते हैं। हंसध्वज पुत्रके कारण अपने वचनोंको आज झूठा करना चाहता है। ऐसे अधर्मी राजाके राज्यमें हम नहीं रहना चाहते।' इतना कहकर वे दोनों ऋषि चल पड़े।
दूतसे समाचार पाकर राजाने मन्त्रीको आदेश दिया धन्याको उबलते तेलके कड़ाहेमें डाल दो।' इतना आदेश देकर वे दोनों पुरोहितोंको मनाने चले गये। मन्त्रीको बड़ा दुःख हुआ; किंतु सुधन्वाने उन्हें कर्तव्यपालनके लिये दृढतापूर्वक समझाया। पिताको आज्ञाका सत्पुत्रको पालन करना ही चाहिये, यह उसने निश्चय किया। उसने तुलसीको माला गलेमें डाली और हाथ जोड़कर भगवान्ले प्रार्थना की- 'प्रभो! गोविन्द, मुकुन्द ! मुझे मरनेका कोई भय नहीं है। मैं तो आपके चरणों में देहत्याग करने हो आया था; परंतु मैं आपका प्रत्यक्ष दर्शन न कर सका, यही मुझे दुःख है। मैंने आपका तिरस्कार करके बीचमें कामकी सेवा की, क्या इसीलिये आप मेरी रक्षाको अपने अभय हाथ नहीं बढ़ाते? पर मेरे स्वामी। जो लोग कष्टमें पड़कर, भयसे व्याकुल होकर आपकी शरण लेते हैं, उन्हें क्या सुखकी प्राप्ति नहीं होती? मैं आपका ध्यान करते हुए शरीर छोड़ रहा है, अतः आपको अवश्य प्राप्त होऊँगा किंतु लोग कहेंगे कि सुधन्वा वीर होकर भीकड़ाहे में जलकर मरा। मैं तो आपके भक्त अर्जुनके वाणोंको अपना शरीर भेंट करना चाहता हूँ। आपने अनेक भक्तोंकी टेक रखी है, अनेकोंकी इच्छा पूर्ण की है, मेरी भी इच्छा पूर्ण कीजिये। अपने इस चरणाश्रितकी टेक भी रखिये। इस अग्निदाहसे बचाकर इस शरीरको अपने चरणोंमें गिरने दीजिये।' इस प्रकार प्रार्थना करके "हरे गोविन्द श्रीकृष्ण' आदि भगवन्नामोंको पुकारते हुए सुधन्वा काहेके खौलते तेलमें कूद पड़े।
एक दिन प्रह्लादके लिये अग्निदेव शीतल हो गये थे, एक दिन व्रजबालकोंके लिये मयूरमुकुटीने दावाग्रिको पी लिया था, आज सुधन्वाके लिये खौलता तेल शीतल हो गया। सुधन्वाको तो शरीरका भान ही नहीं था। वे तो अपने श्रीकृष्णको पुकारने, उनका नाम लेनेमें तल्लीन हो गये थे किंतु देखनेवाले आक्षर्यमूढ़ हो रहे थे। खौलते तेलमें सुधन्वा जैसे तैर रहे हों। उनका एक रोमतक झुलस नहीं रहा था। यह बात सुनकर राजा हंसध्वज भी दोनों पुरोहितोंके साथ वहाँ आये श्रद्धारहित तार्किक पुरोहित शङ्खको सन्देह हुआ- 'अवश्य इसमें कोई चालाकी है। भला, तेल गरम होता तो उसमें सुधन्वा बचा कैसे रहता। कोई मन्त्र या औषधिका प्रयोग तो नहीं किया गया?' तेलकी परीक्षाके लिये उन्होंने एक नारियल कड़ाहेमें डाला। उबलते तेलमें पड़ते ही नारियल ताकसे फूट गया। उसके दो टुकड़े हो गये और उछलकर वे बड़े जोरसे शङ्ख तथा लिखितके सिरमें लगे। अब उनको भगवान् के महत्त्वका ज्ञान हुआ। सेवकोंसे उन्होंने पूछा कि 'सुधन्वाने कोई औषधि शरीरमें लगायी क्या? अथवा उसने किसी मन्त्रका जप किया था?' सेवकोंने बताया कि 'राजकुमारने ऐसा कुछ नहीं किया। वे प्रारम्भसे भगवान्का नाम ले रहे हैं।' अब शङ्खकी अपने अपराधका पता लगा। उन्होंने कहा- 'मुझे धिकार है। मैंने भगवान्के एक सच्चे भक्ऊपर सन्देह किया। प्रायश्चित्त करके प्राण त्यागनेका निक्षय कर शङ्खमुनि उसी उबलते तेलके कड़ाहेमें कूद पड़े। किंतु सुधन्वाके प्रभावसे उनके लिये भी तेल शोतल हो गया। मुनिने सुधन्वाको हृदयसे लगा लिया। उन्होंने कहा 'कुमार) तुम्हें धन्य है। मैं तो ब्राह्मण होकर, शास्त्र पढ़कर भीअसाधु हूँ। मूर्ख हूँ मैं बुद्धिमान् और विद्वान् तो वही है, जो भगवान् श्रीकृष्णका स्मरण करता है। तुम्हारे स्पर्शसे मेरा यह अधम देह भी आज पवित्र हो गया। 2- जैसे भगवान के भक्तोंका तो दर्शन ही मनुष्य तुम जीवनको परम सफलता है राजकुमार अब तुम इस तेलसे निकलो। अपने पिता, भाइयों और सेनाको पावन करके मेरा भी उद्धार करो। त्रिलोकीके स्वामी श्रीकृष्ण जिनके सारथि बनते हैं, उन धनुर्धर अर्जुनको संग्राम में तुम्हीं सन्तुष्ट कर सकते हो।'
मुनिके साथ सुधन्वा कड़ाहेसे बाहर आये। राजा हंसध्वजने अपने भगवद्भक्त पुत्रका समादर किया और उन्हें आशीर्वाद दिया। पिताको आज्ञासे सुधन्वा सेनानायक हुए। अर्जुनकी सेनासे उनका संग्राम होने लगा। सुधन्वाके शौर्यके कारण पाण्डवदलमें खलबली मच गयी। वृषकेतु प्रद्युम्न, कृतवर्मा, सात्यकि आदि वीरोंको उस तेजस्वीने घायल करके पीछे हटनेको विवश कर दिया। अन्तमें अर्जुन सामने आये। अर्जुनको अपनी शूरताका कुछ दर्प भी था किन्तु सुधन्वा तो केवल श्यामसुन्दरके भरोसे युद्ध कर रहे थे। भगवान्को अपने भक्तका प्रभाव दिखलाना था। बालक सुधन्वाको अपने सामने देख पार्थकी बड़ा आश्चर्य हुआ। सुधन्वाने उनसे कहा- 'विजय ! सदा आपके रथपर श्रीकृष्णचन्द्र सारधिके स्थानपर बैठे आपकी रक्षा किया करते थे, इसीसे आप सदा विजयी होते रहे। आज आपने अपने उन समर्थ सारथिको कहाँ छोड़ दिया? मेरे साथ युद्ध करनेमें श्रीकृष्णने तो आपको नहीं छोड़ दिया? आप अब उन मुकुन्दसे रहित हैं, ऐसी दशामें मुझसे संग्राम कर भी सकेंगे या नहीं?' सुधन्वाकी बातोंसे अर्जुन क्रुद्ध हो गये। उन्होंने बाण- वर्षा आरम्भ कर दी। परंतु हँसते हुए सुधन्वाने उनके के टुकड़े-टुकड़े उड़ा दिये। अर्जुनके दिव्यास्त्रोंको भी राजकुमारने व्यर्थ कर दिया। स्वयं पार्थ घायल हो गये। उनका सारथि मरकर गिर पड़ा। सुधन्वाने फिर हँसकर कहा-'धनञ्जय। मैं तो पहले हो कहता था कि अपने सर्वज्ञ सारथिको छोड़कर आपने अच्छा नहीं किया। आपका सारथि मारा गया। आप मेरे बाणोंसे घायल हो गये हैं। अब भी शीघ्रतासे अपने उसश्यामरूप सारथिका स्मरण कीजिये।'
अर्जुनने बायें हाथसे घोड़ोंकी डोरी पकड़ी। एक हाथसे युद्ध करते हुए वे भगवान्को मन-ही-मन पुकारने लगे। उनके स्मरण करते ही श्रीकृष्णचन्द्र प्रकट हो गये। उन्होंने अर्जुनके हाथसे रथकी रश्मि ले ली सुधन्वा और अर्जुन दोनोंने भगवान्को प्रणाम किया। सुधन्वाके नेत्र आनन्दसे खिल उठे। जिसके लिये उसने युद्धमें अर्जुनको छकाया था, वह कार्य तो अब पूरा हुआ। कमललोचन श्रीकृष्णचन्द्र आ गये। उनके दर्शन करके वह कृतार्थ हो गया। अब उसे भला, और क्या चाहिये। उसने अर्जुनको ललकारा-'पार्थ! आपके ये सर्वसमर्थ सारथि तो आ गये। अब तो आप मुझपर विजय पानेके लिये कोई प्रतिज्ञा करें।'
अर्जुनको भी आवेश आ गया। उन्होंने तीन बाण निकालकर प्रतिज्ञा की 'इन तीन बाणोंसे यदि मैं तेरा सुन्दर मस्तक न काट दूं तो मेरे पूर्वज पुण्यहीन होकर नरकमे गिर पड़े।'
अर्जुनकी प्रतिज्ञा सुनकर सुधन्वाने हाथ उठाकर कहा- 'ये श्रीकृष्ण साक्षी हैं। इनके सामने ही मैं तुम्हारे इन तीनों बाणोंको काट न दूँ तो मुझे घोर गति प्राप्त हो।' यह कहकर सुधन्वाने श्रीकृष्ण तथा अर्जुनको बाणोंसे घायल कर दिया। उनके रथको कुछ तोड़ डाला। बाणोंसे मारकर उनके रथको कुम्हारके चाककी भाँति घुमाने लगा। चार सौ हाथ पीछे हटा दिया उस रथको भगवान्ने कहा- 'अर्जुन! सुधन्या बहुत बाँका वीर है। मुझसे पूछे बिना प्रतिज्ञा करके तुमने अच्छा नहीं किया। जयद्रथ वधके समय तुम्हारी प्रतिज्ञाने कितना सङ्कट उपस्थित किया था, यह तुम भूल कैसे गये। सुधन्वा 'एकपत्नीव्रत' के प्रभावसे महान है और इस विषयमें हम दोनों पिछड़े हुए हैं।'
अर्जुनने कहा- 'गोविन्द। आप आ गये हैं, फिर मुझे चिन्ता ही क्या। जबतक आपके हाथमें मेरे रथकी डोरी है, मुझे कौन सङ्कटमें डाल सकता है। मेरी प्रतिज्ञा अवश्य पूरी होगी।' अर्जुनने एक बाण चढ़ाया। भगवान्ने अपने गोवर्धन-धारणका पुण्य उस बाणको अर्पितकिया। बाण छूटा। कालाग्निके समान वह बाण चला। सुधन्वाने गोवर्धनधारी श्रीकृष्णका स्मरण करके बाण मारा और अर्जुनका बाण दो टुकड़े होकर गिर पड़ा। पृथ्वी काँपने लगी। देवता भी आश्चर्यमें पड़ गये। भगवान्को आज्ञासे अर्जुनने दूसरा बाण चढ़ाया। भक्तवत्सल प्रभुने उसे अपने बहुत से पुण्य अर्पण किये। सुधन्वाने श्रीकृष्णचन्द्रको जय' कहकर अपने बाण उसे भी काट दिया। अर्जुन उदास हो गये। रणभूमि में हाहाकार मच गया। देवता सुधन्वाकी प्रशंसा करने लगे।
अब तीसरे बाणको भगवान्ने अपने रामावतारका पूरा पुण्य दिया। बाणके पिछले भागमें ब्रह्माजीको तथा मध्यमें कालको प्रतिष्ठित करके नोकपर वे स्वयं एक रूपये बैठे अर्जुनने यह बाग भगवानके आदेश धनुषपर चढ़ाया। सुधन्वाने कहा-'नाथ! तुम मेरा वध करने स्वयं वाणमें स्थित होकर आ रहे हो, यह मैं जान गया हूँ। मेरे स्वामी! आओ रणभूमिमें मुझे अपने ओचरणोंका आश्रय देकर कृतार्थ करो। अर्जुन तुम्हें धन्य है! साक्षात् नारायण तुम्हारे बाणको अपना पुण्य ही नहीं देते, स्वयं वाणमें स्थित भी होते हैं। विजय तो तुम्हारी हैं हो; किन्तु भूलो मत! मैं इन्हीं श्रीकृष्णकी कृपासे इस बाणको भी अवश्य काट दूंगा!'
बाण छूटा। सुधन्वाने पुकार की- भक्तवत्सल गोविन्दकी जय!' और बाण मार दिया। भक्तके प्रभावको काल देवता रोक लें, यह सम्भव नहीं। अर्जुनका बाण बोचमेसे कटकर दो टुकड़े हो गया। सुधन्वाकी प्रतिज्ञा पूरी हुई। अब अर्जुनका प्रण पूरा होना था। बाण कट गया, पर उसका अगला भाग गिरा नहीं उस आधे बाणने हो ऊपर उठकर सुधन्वाका मस्तक काट दिया। मस्तकहीन सुधन्वाके शरीरने पाण्डवसेनाको तहस-नहस कर दिया और उसका सिर भगवान्के चरणोंपर जाकर गिरा। श्रीकृष्णचन्द्रने- 'गोविन्द, मुकुन्द, हरि' कहते उस मस्तकको अपने हाथोंमें उठा लिया। इसी समय परम भक्त सुधन्वाके मुखसे एक ज्योति निकली और सबके देखते-देखते वह श्रीकृष्णचन्द्र मुखमें प्रवि हो गयी।
ye smaranti ch govindan sarvakaamaphalapradam .
taapatrayavinirmukta jaayante duhkhavarjitaah ..
'jo log sampoorn kaamanaaonko poorn karanevaale, samast phalonke daata shreegovindaka smaran karate hain, ve teenon taaponse chhootakar sarvatha duhkharahit ho jaate hain.'
champakapureeke raaja hansadhvaj bada़e hee dharmaatma, prajaapaalak, shooraveer aur bhagavadbhakt the. unake raajyakee yah visheshata thee ki raajakul tatha prajaake sabhee purush 'ekapatneevrata' ka paalan karate the. jo bhagavaanka bhakt n hota ya jo ekapatneevratee n hota, vah chaahe jitana vidvaan ya shooraveer ho, use raajyamen aashray naheen milata thaa. pooree praja sadaachaaree, bhagavaanka bhakt, daanaparaayan thee. paandavonke ashvamedh yajnaka ghoda़a jab champakapureeke paas pahuncha, tab mahaaraaj hansadhvajane sochaa- 'main vriddh hogaya, par abatak mere netr shreekrishnachandrake darshanase saphal naheen hue. ab is ghoda़eko rokaneke bahaane main yuddhabhoomimen jaakar bhagavaan purushottamake darshan karoongaa. mera janm un shyaamasundar bhuvanamohanake shreecharanonke darshanase saphal ho jaayagaa.'
ghoda़ekee rakshaake liye gaandeevadhaaree arjun pradyumnaadi mahaarathiyonke saath usake peechhe chal rahe the, yah sabako pata thaa; kintu raajaako to paarth saarathi shreekrishnachandrake darshan karane the. ashv pakada़kar baandh liya gayaa. raajaguru shankh tatha likhitakee aajnaase yah ghoshana kar dee gayee ki 'amuk samayatak sab yoddha ranakshetramen upasthit ho jaayen. jo theek samayapar naheen pahunchega, use ubalate hue telake kada़aahemen daal diya jaayagaa.'
raaja hansadhvajake paanch putr the- subal, surath, sam,sudarshan tatha sudhanva chhote raajakumaar sudhanva apanee maataake paas aajna lene pahunche. veeramaataane putrako hridayase lagaaya aur aadesh diyaa-'betaa! too yuddhamen ja aur vijayee hokar lauta! parantu mere paas chaar pairavaale pashuko mat le aanaa. main to muktidaata 'hari' ko paana chaahatee hoon too vahee karm kar, jisase shreekrishn prasann hon. ve bhaktavatsal hain. yadi too arjunako yuddhamen chhaka sake to ve paarthako rakshaake liye avashy aayenge. ve apane bhaktako kabhee chhoda़ naheen sakate. dekh too mere doodhako lajjit mat karanaa. shreekrishnako dekhakar darana mata. shreekrishnake saamane yuddhamen maranevaala marata naheen, vah to apanee ikkees peedha़iyaan taar deta hai. yuddhamen lada़te hue purushottamake sammukh too yadi veeragati praapt karega to mujhe sachchee prasannata hogee.' dhany maata !
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ek din prahlaadake liye agnidev sheetal ho gaye the, ek din vrajabaalakonke liye mayooramukuteene daavaagriko pee liya tha, aaj sudhanvaake liye khaulata tel sheetal ho gayaa. sudhanvaako to shareeraka bhaan hee naheen thaa. ve to apane shreekrishnako pukaarane, unaka naam lenemen talleen ho gaye the kintu dekhanevaale aaksharyamoodha़ ho rahe the. khaulate telamen sudhanva jaise tair rahe hon. unaka ek romatak jhulas naheen raha thaa. yah baat sunakar raaja hansadhvaj bhee donon purohitonke saath vahaan aaye shraddhaarahit taarkik purohit shankhako sandeh huaa- 'avashy isamen koee chaalaakee hai. bhala, tel garam hota to usamen sudhanva bacha kaise rahataa. koee mantr ya aushadhika prayog to naheen kiya gayaa?' telakee pareekshaake liye unhonne ek naariyal kada़aahemen daalaa. ubalate telamen paड़te hee naariyal taakase phoot gayaa. usake do tukaड़e ho gaye aur uchhalakar ve bada़e jorase shankh tatha likhitake siramen lage. ab unako bhagavaan ke mahattvaka jnaan huaa. sevakonse unhonne poochha ki 'sudhanvaane koee aushadhi shareeramen lagaayee kyaa? athava usane kisee mantraka jap kiya thaa?' sevakonne bataaya ki 'raajakumaarane aisa kuchh naheen kiyaa. ve praarambhase bhagavaanka naam le rahe hain.' ab shankhakee apane aparaadhaka pata lagaa. unhonne kahaa- 'mujhe dhikaar hai. mainne bhagavaanke ek sachche bhakoopar sandeh kiyaa. praayashchitt karake praan tyaaganeka nikshay kar shankhamuni usee ubalate telake kada़aahemen kood pada़e. kintu sudhanvaake prabhaavase unake liye bhee tel shotal ho gayaa. munine sudhanvaako hridayase laga liyaa. unhonne kaha 'kumaara) tumhen dhany hai. main to braahman hokar, shaastr padha़kar bheeasaadhu hoon. moorkh hoon main buddhimaan aur vidvaan to vahee hai, jo bhagavaan shreekrishnaka smaran karata hai. tumhaare sparshase mera yah adham deh bhee aaj pavitr ho gayaa. 2- jaise bhagavaan ke bhaktonka to darshan hee manushy tum jeevanako param saphalata hai raajakumaar ab tum is telase nikalo. apane pita, bhaaiyon aur senaako paavan karake mera bhee uddhaar karo. trilokeeke svaamee shreekrishn jinake saarathi banate hain, un dhanurdhar arjunako sangraam men tumheen santusht kar sakate ho.'
munike saath sudhanva kaड़aahese baahar aaye. raaja hansadhvajane apane bhagavadbhakt putraka samaadar kiya aur unhen aasheervaad diyaa. pitaako aajnaase sudhanva senaanaayak hue. arjunakee senaase unaka sangraam hone lagaa. sudhanvaake shauryake kaaran paandavadalamen khalabalee mach gayee. vrishaketu pradyumn, kritavarma, saatyaki aadi veeronko us tejasveene ghaayal karake peechhe hataneko vivash kar diyaa. antamen arjun saamane aaye. arjunako apanee shoorataaka kuchh darp bhee tha kintu sudhanva to keval shyaamasundarake bharose yuddh kar rahe the. bhagavaanko apane bhaktaka prabhaav dikhalaana thaa. baalak sudhanvaako apane saamane dekh paarthakee bada़a aashchary huaa. sudhanvaane unase kahaa- 'vijay ! sada aapake rathapar shreekrishnachandr saaradhike sthaanapar baithe aapakee raksha kiya karate the, iseese aap sada vijayee hote rahe. aaj aapane apane un samarth saarathiko kahaan chhoda़ diyaa? mere saath yuddh karanemen shreekrishnane to aapako naheen chhoda़ diyaa? aap ab un mukundase rahit hain, aisee dashaamen mujhase sangraam kar bhee sakenge ya naheen?' sudhanvaakee baatonse arjun kruddh ho gaye. unhonne baana- varsha aarambh kar dee. parantu hansate hue sudhanvaane unake ke tukada़e-tukada़e uda़a diye. arjunake divyaastronko bhee raajakumaarane vyarth kar diyaa. svayan paarth ghaayal ho gaye. unaka saarathi marakar gir pada़aa. sudhanvaane phir hansakar kahaa-'dhananjaya. main to pahale ho kahata tha ki apane sarvajn saarathiko chhoda़kar aapane achchha naheen kiyaa. aapaka saarathi maara gayaa. aap mere baanonse ghaayal ho gaye hain. ab bhee sheeghrataase apane usashyaamaroop saarathika smaran keejiye.'
arjunane baayen haathase ghoda़onkee doree pakada़ee. ek haathase yuddh karate hue ve bhagavaanko mana-hee-man pukaarane lage. unake smaran karate hee shreekrishnachandr prakat ho gaye. unhonne arjunake haathase rathakee rashmi le lee sudhanva aur arjun dononne bhagavaanko pranaam kiyaa. sudhanvaake netr aanandase khil uthe. jisake liye usane yuddhamen arjunako chhakaaya tha, vah kaary to ab poora huaa. kamalalochan shreekrishnachandr a gaye. unake darshan karake vah kritaarth ho gayaa. ab use bhala, aur kya chaahiye. usane arjunako lalakaaraa-'paartha! aapake ye sarvasamarth saarathi to a gaye. ab to aap mujhapar vijay paaneke liye koee pratijna karen.'
arjunako bhee aavesh a gayaa. unhonne teen baan nikaalakar pratijna kee 'in teen baanonse yadi main tera sundar mastak n kaat doon to mere poorvaj punyaheen hokar narakame gir pada़e.'
arjunakee pratijna sunakar sudhanvaane haath uthaakar kahaa- 'ye shreekrishn saakshee hain. inake saamane hee main tumhaare in teenon baanonko kaat n doon to mujhe ghor gati praapt ho.' yah kahakar sudhanvaane shreekrishn tatha arjunako baanonse ghaayal kar diyaa. unake rathako kuchh toda़ daalaa. baanonse maarakar unake rathako kumhaarake chaakakee bhaanti ghumaane lagaa. chaar sau haath peechhe hata diya us rathako bhagavaanne kahaa- 'arjuna! sudhanya bahut baanka veer hai. mujhase poochhe bina pratijna karake tumane achchha naheen kiyaa. jayadrath vadhake samay tumhaaree pratijnaane kitana sankat upasthit kiya tha, yah tum bhool kaise gaye. sudhanva 'ekapatneevrata' ke prabhaavase mahaan hai aur is vishayamen ham donon pichhada़e hue hain.'
arjunane kahaa- 'govinda. aap a gaye hain, phir mujhe chinta hee kyaa. jabatak aapake haathamen mere rathakee doree hai, mujhe kaun sankatamen daal sakata hai. meree pratijna avashy pooree hogee.' arjunane ek baan chadha़aayaa. bhagavaanne apane govardhana-dhaaranaka puny us baanako arpitakiyaa. baan chhootaa. kaalaagnike samaan vah baan chalaa. sudhanvaane govardhanadhaaree shreekrishnaka smaran karake baan maara aur arjunaka baan do tukaड़e hokar gir pada़aa. prithvee kaanpane lagee. devata bhee aashcharyamen pada़ gaye. bhagavaanko aajnaase arjunane doosara baan chadha़aayaa. bhaktavatsal prabhune use apane bahut se puny arpan kiye. sudhanvaane shreekrishnachandrako jaya' kahakar apane baan use bhee kaat diyaa. arjun udaas ho gaye. ranabhoomi men haahaakaar mach gayaa. devata sudhanvaakee prashansa karane lage.
ab teesare baanako bhagavaanne apane raamaavataaraka poora puny diyaa. baanake pichhale bhaagamen brahmaajeeko tatha madhyamen kaalako pratishthit karake nokapar ve svayan ek roopaye baithe arjunane yah baag bhagavaanake aadesh dhanushapar chadha़aayaa. sudhanvaane kahaa-'naatha! tum mera vadh karane svayan vaanamen sthit hokar a rahe ho, yah main jaan gaya hoon. mere svaamee! aao ranabhoomimen mujhe apane ocharanonka aashray dekar kritaarth karo. arjun tumhen dhany hai! saakshaat naaraayan tumhaare baanako apana puny hee naheen dete, svayan vaanamen sthit bhee hote hain. vijay to tumhaaree hain ho; kintu bhoolo mata! main inheen shreekrishnakee kripaase is baanako bhee avashy kaat doongaa!'
baan chhootaa. sudhanvaane pukaar kee- bhaktavatsal govindakee jaya!' aur baan maar diyaa. bhaktake prabhaavako kaal devata rok len, yah sambhav naheen. arjunaka baan bochamese katakar do tukada़e ho gayaa. sudhanvaakee pratijna pooree huee. ab arjunaka pran poora hona thaa. baan kat gaya, par usaka agala bhaag gira naheen us aadhe baanane ho oopar uthakar sudhanvaaka mastak kaat diyaa. mastakaheen sudhanvaake shareerane paandavasenaako tahasa-nahas kar diya aur usaka sir bhagavaanke charanonpar jaakar giraa. shreekrishnachandrane- 'govind, mukund, hari' kahate us mastakako apane haathonmen utha liyaa. isee samay param bhakt sudhanvaake mukhase ek jyoti nikalee aur sabake dekhate-dekhate vah shreekrishnachandr mukhamen pravi ho gayee.