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भक्त निषादराज तथा केवट भक्त की मार्मिक कथा
भक्त निषादराज तथा केवट भक्त की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त निषादराज तथा केवट भक्त (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त निषादराज तथा केवट भक्त]- भक्तमाल


स्वपच सबर खस जमन जड़ पावर कोल किरात ।

रामु कहत पावन परम होत भुवन बिख्यात ॥

गङ्गातटपर शृंगवेरपुरमें निषादोंके राजा गुहका निवास था। ये बचपनसे ही श्रीरामके सखा थे। जब श्रीराम आखेट करने वनमें जाते थे, तब ये भी उनके साथ रहते और राजकुमारकी सुविधाका पूरा प्रबन्ध करते थे। जब पिताकी आज्ञा स्वीकार करके श्रीराम लक्ष्मणजी तथा जानकीजीके साथ रथमें बैठकर श्रृंगवेरपुर पहुँचे, तब निषादराज समाचार पाते ही फल-मूल- कन्द आदि उपहार लेकर मिलने आये। उन्होंने प्रार्थना की -

देव धरनि धनु धामु तुम्हारा। मैं जनु नीचु सहित परिवारा ॥
कृपा करिअ पुर धारिअ पाऊ । थापिय जनु सबु लोगु सिहाऊ ॥ महाराज दशरथने श्रीरामको वनवास दिया है, यहसुनकर आजके स्वार्थी मित्रोंके समान संकटमें पड़े मित्रसे मुख फेर लेनेकी बात सोचना ही गुहके लिये सम्भव नहीं था । श्रीराम तो उनके प्राण थे। एक क्षणमें उन्होंने अपनेको, अपने परिवारको, राज्यको श्रीरामके चरणोंमें समर्पित कर दिया। उनकी प्रार्थना थी- 'मैं तो नीच हूँ। मेरा राज्य भी तुच्छ है; किन्तु कृपा करके आप इसे स्वीकार कर लें। मैं पूरे परिवारके साथ तुच्छ दास बनकर आपकी प्रत्येक आज्ञाका पालन करूँगा।'

मर्यादापुरुषोत्तमने सखाको समझाया। पिताकी आज्ञा बतायी। रात्रिमें विदेहराजकुमारीके साथ श्रीरामको वृक्षके नीचे कुशकी साथरीपर सोते देख निषादराज अत्यन्त व्याकुल हो गये। उस समय लक्ष्मणजीने उन्हें तत्त्वज्ञानका उपदेश किया। दूसरे दिन राघवको गङ्गा पार करनी थी।उन्होंने घाटपर आकर नौका माँगी। घाटके भक्त मल्लाहने | = सरलता से कहा-'दयामय मैंने सुना है कि आपकी चरणरज लगनेसे एक पत्थर ऋषि पत्नी बन गया। मेरी नौका तो लकड़ीकी है और बराबर जलमें रहनेसे वह लकड़ी भी सड़कर दुर्बल हो गयी है। कहीं यह नौका भी स्त्री बन गयी तो मेरे बाल-बच्चे भूखों मर जायेंगे। पेट पालने का दूसरा कोई उपाय मेरे पास नहीं। अतः यदि आपको मेरी नौकासे ही पार जाना हो तो आज्ञा दीजिये, मैं आपके चरण धो लूँ और तब आपको नौकापर चढ़ा लूँ।'

निषादराज चाहे जितनी नौकाओंका प्रबन्ध कर सकते थे, परन्तु वे केवटके प्रेमको पहिचानकर चुप ही रहे। श्रीरामने भी अपने इस भोले भक्तसे अनेक प्रकारसे अनुरोध किया किन्तु वह तो अपनी हठपर अड़ा ही रहा। वह कह रहा था इस घाटसे थोड़ी ही दूरपर गङ्गाजी एक स्थानपर उथल हैं। वहाँ कुल कटितक जल है। आप चलें तो मैं वह स्थान दिखा दूँगा। मुझे अपनी नौका नहीं खोनी है। मैं आपकी और महाराज दशरथकी शपथ खाकर कहता हूँ कि भले मुझे ये छोटे कुमार लखनलाल अपने बाणसे मार डालें, पर मैं बिना चरण धोये आपको अपनी नौकापर नहीं चढ़ाऊँगा।'

भक्तका हठ रखना उन दयामयको ही आता है। उन्होंने आज्ञा की - 'अच्छा भाई! तू झटपट जल लाकर मेरे पैर धो ले। मुझे देर हो रही है, पार तो उतार किसी प्रकार।' प्रेमी केवटको तो जैसे परम निधि मिल गयी। पूरे कठौतेभर जल लेकर वह आ बैठा श्रीरामके सम्मुख । उन सुरमुनि दुर्लभ चरणोंको अपने हाथसे भलीभाँति उसने धीरे-धीरे धोया। उस चरणोदकको स्वयं उसने पान किया, घरवालोंको पिलाया, परिवारवालोंको पिलाया, दूसरोंको दिया जो वहाँ एकत्र थे और तब श्रीरामको भाई लक्ष्मण तथा जानकीजीके साथ नौकामें बैठाकर उस पार ले गया। रघुनाथजी उसे जानकीजीके हाथकी मुद्रिका लेकर उतराई देने लगे, तब व्याकुल होकर वह चरणोंपर गिर पड़ा। उसने प्रार्थना की- 'मेरे स्वामी! आज मुझे क्या नहीं मिला? जीवनभर में श्रम करता रहा, पर मुझे पारिश्रमिक तो आज ही मिला है। आप लौटते समयइसी घाटसे आयें। उस समय आप जो प्रसाद देंगे, मैं मस्तकपर धारण करूँगा।" उसे

केवटको परम दुर्लभ भक्तिका वरदान प्राप्त हुआ। | निषादराज भी नौकासे पार आये थे। उन्होंने कुछ दूर | साथ चलनेकी प्रार्थना की। श्रीरामके साथ वे कुछ दूर गये। दो-एक दिन साथ रहकर मयार्दापुरुषोत्तमके आग्रह उन्हें लौट आना पड़ा। भृंगवेरपुर रहते हुए भी बनके कोल-किरातोंसे निषादराज श्रीरामका पूरा संवाद नित्य पाते रहते थे। उन्होंने ऐसी व्यवस्था कर ली थी कि वनमें रहते हुए राम, लक्ष्मण या जानकीजीकी छोटी बड़ी सभी बातें प्रतिदिनके सब कार्य उनको ज्ञात होते रहें। इसीलिये जब भरतजीको लेकर वे चित्रकूट पहुँचे, तब उन्होंने उस स्थानका इस प्रकार वर्णन किया, जैसे ये वहीं रहे हों। चटके नोचेकी वेदिका स्वयं जानकीजीने अपने हाथों बनायी है, तुलसीके वृक्षोंमें किसे लक्ष्मणजीने और किसे श्रीसीताजीने लगाया है, इसे वे जानते थे।

जब श्रीरामको मनानेके लिये भरतजी पूरे समाज के साथ चित्रकूटको चले, तब उनके साथ सेना होनेका समाचार पाकर निषादराजको सन्देह हो गया! उन्हें आशङ्का हुई कि वनमें एकाकी श्रीरामका अनिष्ट करनेके विचारसे तो भारत सेना लेकर वनमें नहीं जा रहे हैं ऐसी शङ्काका | होना स्वाभाविक था। शङ्का होते ही गुहने भरतको रोकनेका निश्चय कर लिया। 'प्राण देकर भी मैं भरतको गङ्गापार नहीं होने दूंगा।' यह दृढ सङ्कल्प कर लिया उन्होंने युद्धके लिये अपने सहायकों, सैनिकोंके साथ वे उद्यत हो गये। अयोध्याकी प्रबल सेनाके साथ संग्रामका क्या फल होगा, यह सब जानते थे; किन्तु वहाँ प्राणोंका मोह था ही नहीं। निषादराजने कहा अपने सैनिकोंसे-

समर मरनु पुनि सुरसरि तीरा राम काजु छनभंगु सरीरा ॥

उनका अविचल निश्चय हो गया-

तज प्रान रघुनाथ निहोरें दुहूँ हाथ मुद मोदक मोरें ॥

सब तैयारी हो गयी, पर एक वृद्धकी सलाहसे पहले भरतसे मिलकर उनका भाव जानना उचित प्रतीत हुआ। बहुत-सी भेंट लेकर निषादराज भरतजीसे मिलने गये। भरतलालको जैसे ही पता लगा कि ये 'रामसखा' हैं, वे | रथ छोड़कर उतर पड़े और उन्हें हृदयसे लगा लिया।निषादराजने भरतजीका पूरे समाजके साथ सत्कार किया। । भरतजी तो पूरी यात्राभर उनको ही साथ लिये रहे ।

अद्भुत पास चित्रकूट पहुँचनेपर निषादराज गुहके श्रीरामप्रेमका परिचय मिलता है। वे भरतजीके साथ श्रीरामके पहुँचे और अपने उन पूज्य सखासे मिले। मिलते ही भूल गये कि वे अभी शृंगवेरपुरसे भरतजीके साथ आये हैं। जैसे वे चित्रकूटमें श्रीरामके ही साथ रहे हैं, श्रीरामके ही साथ हैं, ऐसा ही उन्हें प्रतीत होने लगा। श्रीराधव यह सुनकर कि गुरुदेव तथा माताएँ भी पूरे समाजके साथ आयी हैं, उनके दर्शन करने शीघ्रतासे चल पड़े। लक्ष्मणजीके साथ निषादराज भी आये और जैसे श्रीराम-लक्ष्मणने गुरुदेव, विप्रवर्ग, माताओंको प्रणामकिया, वैसे ही गुह भी पीछे सबको प्रणाम करते गये। उनकी यह प्रेमविह्वल, आत्मविस्मृत दशा देखकर वसिष्ठजीने उन्हें हृदयसे लगा लिया। माताओंने बड़े स्नेहसे उन्हें आशीर्वाद दिया।

चित्रकूटसे भरतजीके साथ ही निषादराजको भी लौटना पड़ा। चौदह वर्ष व्यतीत होनेपर प्रभु लौटे। वे राज्यसिंहासनपर आसीन हुए। निषादराज इस महोत्सवमें प्रारम्भसे अन्ततक सेवा संलग्न रहे। जब प्रभु सब लोगोंको विदा करने लगे, तब उपहारादिसे सत्कृत करके विदा करते समय निषादराजसे उन्होंने कहा-

जाहु भवन मम सुमिरन करेहू ।
मन क्रम बचन धर्म अनुसरेहू ॥
तुम्ह मम सखा भरत सम भ्राता ।
सदा रहेहु पुर आवत जाता ॥



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svapach sabar khas jaman jada़ paavar kol kiraat .

raamu kahat paavan param hot bhuvan bikhyaat ..

gangaatatapar shringaverapuramen nishaadonke raaja guhaka nivaas thaa. ye bachapanase hee shreeraamake sakha the. jab shreeraam aakhet karane vanamen jaate the, tab ye bhee unake saath rahate aur raajakumaarakee suvidhaaka poora prabandh karate the. jab pitaakee aajna sveekaar karake shreeraam lakshmanajee tatha jaanakeejeeke saath rathamen baithakar shrringaverapur pahunche, tab nishaadaraaj samaachaar paate hee phala-moola- kand aadi upahaar lekar milane aaye. unhonne praarthana kee -

dev dharani dhanu dhaamu tumhaaraa. main janu neechu sahit parivaara ..
kripa kari pur dhaari paaoo . thaapiy janu sabu logu sihaaoo .. mahaaraaj dasharathane shreeraamako vanavaas diya hai, yahasunakar aajake svaarthee mitronke samaan sankatamen pada़e mitrase mukh pher lenekee baat sochana hee guhake liye sambhav naheen tha . shreeraam to unake praan the. ek kshanamen unhonne apaneko, apane parivaarako, raajyako shreeraamake charanonmen samarpit kar diyaa. unakee praarthana thee- 'main to neech hoon. mera raajy bhee tuchchh hai; kintu kripa karake aap ise sveekaar kar len. main poore parivaarake saath tuchchh daas banakar aapakee pratyek aajnaaka paalan karoongaa.'

maryaadaapurushottamane sakhaako samajhaayaa. pitaakee aajna bataayee. raatrimen videharaajakumaareeke saath shreeraamako vrikshake neeche kushakee saathareepar sote dekh nishaadaraaj atyant vyaakul ho gaye. us samay lakshmanajeene unhen tattvajnaanaka upadesh kiyaa. doosare din raaghavako ganga paar karanee thee.unhonne ghaatapar aakar nauka maangee. ghaatake bhakt mallaahane | = saralata se kahaa-'dayaamay mainne suna hai ki aapakee charanaraj laganese ek patthar rishi patnee ban gayaa. meree nauka to lakada़eekee hai aur baraabar jalamen rahanese vah lakada़ee bhee sada़kar durbal ho gayee hai. kaheen yah nauka bhee stree ban gayee to mere baala-bachche bhookhon mar jaayenge. pet paalane ka doosara koee upaay mere paas naheen. atah yadi aapako meree naukaase hee paar jaana ho to aajna deejiye, main aapake charan dho loon aur tab aapako naukaapar chadha़a loon.'

nishaadaraaj chaahe jitanee naukaaonka prabandh kar sakate the, parantu ve kevatake premako pahichaanakar chup hee rahe. shreeraamane bhee apane is bhole bhaktase anek prakaarase anurodh kiya kintu vah to apanee hathapar ada़a hee rahaa. vah kah raha tha is ghaatase thoda़ee hee doorapar gangaajee ek sthaanapar uthal hain. vahaan kul katitak jal hai. aap chalen to main vah sthaan dikha doongaa. mujhe apanee nauka naheen khonee hai. main aapakee aur mahaaraaj dasharathakee shapath khaakar kahata hoon ki bhale mujhe ye chhote kumaar lakhanalaal apane baanase maar daalen, par main bina charan dhoye aapako apanee naukaapar naheen chadha़aaoongaa.'

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kevatako param durlabh bhaktika varadaan praapt huaa. | nishaadaraaj bhee naukaase paar aaye the. unhonne kuchh door | saath chalanekee praarthana kee. shreeraamake saath ve kuchh door gaye. do-ek din saath rahakar mayaardaapurushottamake aagrah unhen laut aana pada़aa. bhringaverapur rahate hue bhee banake kola-kiraatonse nishaadaraaj shreeraamaka poora sanvaad nity paate rahate the. unhonne aisee vyavastha kar lee thee ki vanamen rahate hue raam, lakshman ya jaanakeejeekee chhotee bada़ee sabhee baaten pratidinake sab kaary unako jnaat hote rahen. iseeliye jab bharatajeeko lekar ve chitrakoot pahunche, tab unhonne us sthaanaka is prakaar varnan kiya, jaise ye vaheen rahe hon. chatake nochekee vedika svayan jaanakeejeene apane haathon banaayee hai, tulaseeke vrikshonmen kise lakshmanajeene aur kise shreeseetaajeene lagaaya hai, ise ve jaanate the.

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chitrakootase bharatajeeke saath hee nishaadaraajako bhee lautana pada़aa. chaudah varsh vyateet honepar prabhu laute. ve raajyasinhaasanapar aaseen hue. nishaadaraaj is mahotsavamen praarambhase antatak seva sanlagn rahe. jab prabhu sab logonko vida karane lage, tab upahaaraadise satkrit karake vida karate samay nishaadaraajase unhonne kahaa-

jaahu bhavan mam sumiran karehoo .
man kram bachan dharm anusarehoo ..
tumh mam sakha bharat sam bhraata .
sada rahehu pur aavat jaata ..

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