दीन दुखी असहाय की सेवा सार सम्हाल।
को अपनी ज्यों करि सकै, बिना बिहारीलाल ॥
एक छोटेसे गाँवमें एक दरिद्र विधवा ब्राह्मणी रहती थी। एक छः वर्षके बालकके अतिरिक्त उसके और कोई नहीं था। वह दो-चार भले घरोंसे भिक्षा माँगकर अपना तथा बच्चेका पेट भर लेती और भगवान्का भजन करती थी। भीख पूरी न मिलती तो बालकको खिलाकर स्वयं उपवास कर लेती। गाँवमें सम्पन्न लोग भी थे, पर एक दरिद्राकी चिन्ता धनियोंको क्यों होने लगी। अबतक तो यह क्रम चलता रहा; पर अब ब्राह्मणीको लगा कि ब्राह्मणके बालकको दो अक्षर न आयें, यह ठीक नहीं है। गाँवमें पढ़ानेकी व्यवस्था नहीं थी गाँवसे दो कोसपर एक पाठशाला थी। ब्राह्मणी अपने बेटेको लेकर वहाँ गयी। उसकी दरिद्रता तथा रोनेपर दया करके वहाँके अध्यापकने बच्चेको पढ़ाना स्वीकार कर लिया। उस समय पढ़नेवाले छात्र गुरुगृहमें रहते थे; किंतु ब्राह्मणौका पुत्र मोहन अभी बहुत छोटा था और ब्राह्मणीको भी अपने एकमात्र पुत्रको देखे बिना चैन नहीं पड़ सकती थी अतः मोहन नित्य प्रातः पढ़ने जाता और सायंकाल घर लौट आता दो कोस प्रातः और दो कोस शामको पैदल चलना पड़ता छ वर्षके बालक मोहनको विद्या प्राप्त करनेके लिये। मार्गमें कुछ दूर जंगल था। शामको लौटने में अँधेरा होने लगता था। उस जंगलमें मोहनको डर लगता था। एक दिन गुरुजीके यहाँ कोई उत्सव था। मोहनको अधिक देर हो गयी और जब वह घर लौटने लगा, रात्रि हो गयी थी। अँधेरी रात, जंगली जानवरोंके शब्द- जंगलमें बेचारा नन्हा बालक मोहन भयसे थर-थर काँपने लगा। ब्राह्मणी भी देर होनेके कारण बच्चेको ढूँढने निकली थी। किसी प्रकार अपने पुत्रको वह घर ले आयी। मोहनने सरलतासे कहा-'माँ! दूसरे लड़कोंको साथ ले जाने तो उनके नौकर आते हैं। मुझे जंगलमें आज बहुत डर लगा। तू मेरे लिये भी एक नौकर रख दे।'
बेचारी ब्राह्मणी रोने लगी। उसके पास इतना पैसाकहाँ कि नौकर रख सके। माताको रोते देख मोहन भी रोने लगा। उसने कहा-'माँ! तू रो मत! क्या हमारे और कोई नहीं है?" अब ब्राह्मणी क्या उत्तर दे? उसका हृदय व्यथासे
भर गया। उसने कहा—'बेटा! गोपालको छोड़कर और कोई हमारा नहीं है।' बच्चेकी समझमें इतनी ही बात आयी कि कोई गोपाल उसका है। उसने पूछा- 'गोपाल कौन? वे क्या
लगते हैं मेरे? कहाँ रहते हैं वे?"
ब्राह्मणीने सरल भावसे कह दिया- 'वे तुम्हारे भाई लगते हैं। सभी जगह रहते हैं। परंतु सहजमें नहीं दीखते। संसारमें ऐसा कौन-सा स्थान है, जहाँ वे नहीं रहते। लेकिन उनको तो देखा था ध्रुवने, प्रह्लादने, गोकुलके गोपोंने।'
बालककी समझमें आयें, ऐसी बातें ये नहीं थीं। उसे तो अपने गोपालभाईको जानना था। वह पूछने लगा- 'गोपाल मुझसे छोटे हैं या बड़े? अपने घर आते हैं या नहीं?'
माताने उसे बताया- 'तुमसे वे बड़े हैं और घर भी आते हैं, पर हमलोग उन्हें देख नहीं सकते। जो उनको पानेके लिये व्याकुल होता है, उसीके पुकारनेपर वे उसके पास आते हैं।'
मोहनने कहा- 'जंगलमें आते समय मुझे बड़ा डर लगता है। मैं उस समय खूब व्याकुल हो जाता हूँ। वहाँ पुकारूँ तो क्या गोपाल भाई आयेंगे?'
माताने कहा- 'तू विश्वासके साथ पुकारेगा तो अवश्य वे आयेंगे।'
मोहनकी समझमें इतनी बात आयी कि जंगलमें अब डरनेकी आवश्यकता नहीं है। डर लगनेपर मैं व्याकुल होकर पुकारूँगा तो मेरा गोपाल भाई वहाँ आ जायगा दूसरे दिन पाठशालासे लौटते समय जब वह वनमें पहुँचा, उसे डर लगा। उसने पुकारा-'गोपाल भाई ! तुम कहाँ हो? मुझे यहाँ डर लगता है। मैं व्याकुल हो रहा हूँ। गोपाल भाई?'जो दीनबन्धु है, दीनोंके पुकारनेपर वह कैसे नहीं बोलेगा। मोहनको बड़ा ही मधुर स्वर सुनायी पड़ा भैया! तू डर मत। मैं यह आया।' यह स्वर सुनते ही मोहनका भय भाग गया। थोड़ी दूर चलते ही उसने देखा कि एक बहुत ही सुन्दर दूर्वादल-श्याम, पीताम्बरधारी, कमललोचन ग्वालबाल उसके पास आ गया वृक्षोंके बीचमेंसे निकलकर वह हाथ पकड़कर बातचीत करने लगा। साथ-साथ चलने लगा। उसके साथ खेलने लगा। उनकी सीमातक वह पहुँचाकर लौट गया। त्रयतापहारी, भव भय निवारक गोपाल भाईको पाकर मोहनका भय जाता रहा। घर आकर उसने जब माताको सब बातें बतायीं, तब वह ब्राह्मणी हाथ जोड़कर गदद हो अपने प्रभुको प्रणाम करने लगी। उसने समझ लिया कि जो दयामय द्रौपदी और गजेन्द्रकी पुकारपर दौड़ पड़े थे, मेरे भोले पुकारपर भी वही आये थे।
अब मोहन वनमें पहुँचते ही गोपाल भाईको पुकारता और वे झट आ जाते। एक दिन उसके गुरुजीके पिता के श्राद्धका आयोजन पाठशालामें होने लगा। सभी विद्यार्थी कुछ-न-कुछ भेंट देंगे। गुरुजी सबसे कुछ-न-कुछ लानेको कह रहे थे। मोहनने भी सरलतासे पूछा- 'गुरुजी ! मैं क्या ले आऊँ?' गुरुको ब्राह्मणीकी अवस्थाका पता था। उन्होंने कहा 'बेटा! तुमको कुछ नहीं लाना होगा।' लेकिन मोहनको यह बात कैसे अच्छी लगती सब लड़के लायेंगे तो मैं क्यों न लाऊँ? उसके हठको देखकर गुरुजीने कह दिया- 'अच्छा, तुम एक लोटा दूध ले आना' घर जाकर मोहनने मातासे गुरुजीके पिताके श्राद्धकी बात कही और यह भी कहा कि 'मुझे एक लोटा दूध ले जानेकी आज्ञा मिली है।' ब्राह्मणीके घरमें था क्या जो वह दूध ला देती। माँगनेपर भी उसे दूध कौन देता। लेकिन मोहन ठहरा बालक वह रोने लगा। अन्तमें माताने उसे समझाया- 'तू गोपाल भाईसे दूध माँग लेना। वे अवश्य प्रबन्ध कर देंगे।' दूसरे दिन मोहनने जंगलमें गोपाल भाईको जाते ही पुकारा और मिलनेपर कहा-'आज मेरे गुरुजीके पिताका श्राद्ध है। मुझे एक लोटा दूध ले जाना है। माँने कहा है कि गोपाल भाईसे माँग लेना। सो मुझे तुम एक लोटा दूध लाकरदो।' गोपालने कहा- 'मैं तो पहलेसे यह लोटाभर दूध लाया हूँ। तुम इसे ले जाओ।' मोहन बड़ा प्रसन्न हुआ। वह लोटा लेकर ऐसी उमंगमें भरा चला, जैसे उसे राज्य मिल गया हो।
पाठशाला में गुरुजी दूसरे लड़कोंके उपहार देखने और रखवानेमें लगे थे। मोहन हँसता हुआ पहुंचा। कुछ देर तो वह प्रतीक्षा करता रहा कि उसके दूधको भी गुरुजी देखेंगे; पर जब किसीका ध्यान उसकी ओर न गया, तब वह बोला-'गुरुजी! मैं दूध लाया हूँ ढेरों सामग्रियाँ सम्हालने में लगे गुरुजीने कोई उत्तर नहीं दिया। मोहनने कई बार जब उन्हें स्मरण दिलाया, तब झुंझलाकर बोले-'जरा-सा दूध लाकर यह लड़का कान खाये जाता है, जैसे इसने हमें निहाल कर दिया। इसका दूध किसी बर्तनमें डालकर हटाओ इसे यहाँसे।' मोहन अपने इस अपमानसे खिन्न हो गया। उसका उत्साह चला गया। उसके नेत्रोंसे आँसू गिरने लगे।
नौकरने लोटा लेकर दूध कटोरे में डाला तो कटोरा भर गया; फिर गिलासमें डाला तो वह भी भर गया। बाल्टीमें डालने लगा तो वह भी भर गयी। भगवान्के हाथसे दिया वह लोटाभर दूध तो अक्षय था। नौकर घबराकर गुरुजीके पास गया। उसकी बात सुनकर गुरुजी तथा और सब लोग वहाँ आये। अपने सामने एक बड़े पात्रमें दूध डालनेको उन्होंने कहा। पात्र भर गया, पर | लोटा तनिक भी खाली नहीं हुआ। इस प्रकार कई बड़े बड़े बर्तन दूधसे भर गये अब गुरुजीने पूछा- 'बेटा! तू दूध कहाँसे लाया?'
सरलतासे बालकने कहा-'मेरे गोपाल भाईने दिया।' गुरुजी और चकित हुए। उन्होंने पूछा- 'गोपाल भाई कौन? तुम्हारे तो कोई भाई है नहीं।"
मोहनने दृढ़तासे कहा-'है क्यों नहीं गोपाल भाई मेरा बड़ा भाई है। वह मुझे रोज वनमें मिल जाता है। माँ कहती है कि वह सब जगह रहता है, पर दीखता नहीं। कोई उसे खूब व्याकुल होकर पुकारे, तभी वह आ जाता है। उससे जो कुछ माँगा जाय, वह तुरंत दे देता है।' अब गुरुजीको कुछ समझना नहीं था। मोहनको उन्होंने हृदयसे लगा लिया। श्राद्धमें उस दूधसे खीर बनीऔर ब्राह्मण उसका स्वाद वर्णन करते हुए तृप्त नहीं होते थे। गोपाल भाईके दूधका स्वाद स्वर्गके अमृतमें भी नहीं, तब संसारके किसी पदार्थमें कहाँसे होगा। उस दूधका बना श्राद्धान्न पाकर गुरुजीके पितर तृप्त ही नहीं हुए, मायाके दुस्तर पारावारसे पार भी हो गये।
श्राद्ध समाप्त हुआ। सन्ध्याको सब लोग चले गये। मोहनको गुरुजीने रोक लिया था। अब उन्होंने कहा-'बेटा! मैं तेरे साथ चलता हूँ। तू मुझे अपने गोपाल भाईके दर्शन करा देगा न?"
मोहनने कहा—'चलिये, मेरा गोपाल भाई तो पुकारते ही आ जाता है।' वनमें पहुँचकर उसने पुकारा। उत्तरमें उसे सुनायी पड़ा-'अब तुम अकेले तो हो नहीं, तुम्हें डर तो लगता नहीं; फिर मुझे क्यों बुलाते हो?'
मोहनने कहा- 'मेरे गुरुजी तुम्हें देखना चाहते हैं, तुम जल्दी आओ!' गोपाल भाई आ तो गये झटपट, पर आये वे मोहनके लिये। जब मोहनने गुरुजीसे कहा- 'आपने देखा, मेरा गोपाल भाई कितना सुन्दर है?' गुरुजी कहनेलगे-'मुझे तो कुछ दीखता नहीं। मैं तो यह प्रकाशमात्र देख रहा हूँ।'
अब मोहनने कहा- 'गोपाल भाई! तुम यह क्या खेल कर रहे हो? मेरे गुरुजीको दिखायी क्यों नहीं पड़ते ?'
उत्तर मिला- 'तुम्हारी बात दूसरी है। तुम्हारा अन्तःकरण शुद्ध है, तुममें सरल विश्वास है; अतः मैं तुम्हारे पास आता हूँ। तुम्हारे गुरुदेवको जो प्रकाश दीख गया, उनके लिये वही बहुत है। उनका इतनेसे ही कल्याण हो जायगा ।'
उस अमृतभरे स्वरको सुनकर गुरुदेवका हृदय गद्द हो गया। उनको अपने हृदयमें भगवान्के दर्शन हुए। भगवान् की उन्होंने स्तुति की। कुछ देरमें जब भगवान् अन्तर्धान हो गये, तब मोहनको साथ लेकर वे उसके घर आये और वहाँ पहुँचकर उनके नेत्र भी धन्य हो गये। गोपाल भाई उस ब्राह्मणीकी गोदमें बैठे थे और माताके नेत्रोंकी अश्रुधार उनकी काली घुँघराली अलकोंको भिगो रही थी। माताको शरीरकी सुधि बुधि ही नहीं थी ।
deen dukhee asahaay kee seva saar samhaala.
ko apanee jyon kari sakai, bina bihaareelaal ..
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bechaaree braahmanee rone lagee. usake paas itana paisaakahaan ki naukar rakh sake. maataako rote dekh mohan bhee rone lagaa. usane kahaa-'maan! too ro mata! kya hamaare aur koee naheen hai?" ab braahmanee kya uttar de? usaka hriday vyathaase
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maataane kahaa- 'too vishvaasake saath pukaarega to avashy ve aayenge.'
mohanakee samajhamen itanee baat aayee ki jangalamen ab daranekee aavashyakata naheen hai. dar laganepar main vyaakul hokar pukaaroonga to mera gopaal bhaaee vahaan a jaayaga doosare din paathashaalaase lautate samay jab vah vanamen pahuncha, use dar lagaa. usane pukaaraa-'gopaal bhaaee ! tum kahaan ho? mujhe yahaan dar lagata hai. main vyaakul ho raha hoon. gopaal bhaaee?'jo deenabandhu hai, deenonke pukaaranepar vah kaise naheen bolegaa. mohanako bada़a hee madhur svar sunaayee pada़a bhaiyaa! too dar mata. main yah aayaa.' yah svar sunate hee mohanaka bhay bhaag gayaa. thoda़ee door chalate hee usane dekha ki ek bahut hee sundar doorvaadala-shyaam, peetaambaradhaaree, kamalalochan gvaalabaal usake paas a gaya vrikshonke beechamense nikalakar vah haath pakada़kar baatacheet karane lagaa. saatha-saath chalane lagaa. usake saath khelane lagaa. unakee seemaatak vah pahunchaakar laut gayaa. trayataapahaaree, bhav bhay nivaarak gopaal bhaaeeko paakar mohanaka bhay jaata rahaa. ghar aakar usane jab maataako sab baaten bataayeen, tab vah braahmanee haath joda़kar gadad ho apane prabhuko pranaam karane lagee. usane samajh liya ki jo dayaamay draupadee aur gajendrakee pukaarapar dauda़ pada़e the, mere bhole pukaarapar bhee vahee aaye the.
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mohanane kahaa—'chaliye, mera gopaal bhaaee to pukaarate hee a jaata hai.' vanamen pahunchakar usane pukaaraa. uttaramen use sunaayee pada़aa-'ab tum akele to ho naheen, tumhen dar to lagata naheen; phir mujhe kyon bulaate ho?'
mohanane kahaa- 'mere gurujee tumhen dekhana chaahate hain, tum jaldee aao!' gopaal bhaaee a to gaye jhatapat, par aaye ve mohanake liye. jab mohanane gurujeese kahaa- 'aapane dekha, mera gopaal bhaaee kitana sundar hai?' gurujee kahanelage-'mujhe to kuchh deekhata naheen. main to yah prakaashamaatr dekh raha hoon.'
ab mohanane kahaa- 'gopaal bhaaee! tum yah kya khel kar rahe ho? mere gurujeeko dikhaayee kyon naheen pada़te ?'
uttar milaa- 'tumhaaree baat doosaree hai. tumhaara antahkaran shuddh hai, tumamen saral vishvaas hai; atah main tumhaare paas aata hoon. tumhaare gurudevako jo prakaash deekh gaya, unake liye vahee bahut hai. unaka itanese hee kalyaan ho jaayaga .'
us amritabhare svarako sunakar gurudevaka hriday gadd ho gayaa. unako apane hridayamen bhagavaanke darshan hue. bhagavaan kee unhonne stuti kee. kuchh deramen jab bhagavaan antardhaan ho gaye, tab mohanako saath lekar ve usake ghar aaye aur vahaan pahunchakar unake netr bhee dhany ho gaye. gopaal bhaaee us braahmaneekee godamen baithe the aur maataake netronkee ashrudhaar unakee kaalee ghungharaalee alakonko bhigo rahee thee. maataako shareerakee sudhi budhi hee naheen thee .