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शरणागत भक्त श्रीविभीषणजी की मार्मिक कथा
शरणागत भक्त श्रीविभीषणजी की अधबुत कहानी - Full Story of शरणागत भक्त श्रीविभीषणजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [शरणागत भक्त श्रीविभीषणजी]- भक्तमाल


सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते । अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम ll (वा0 रा0 6 । 18 । 33)

भगवान्ने कहा है-जो एक बार भी शरणागत होकर कहता है 'प्रभो! मैं तुम्हारा हूँ' उसे मैं सम्पूर्ण प्राणियोंसे अभय कर देता हूँ। यह मेरा व्रत है।

ब्रह्माजीके मानसपुत्र महर्षि पुलस्त्य, पुलस्त्यजीके विश्रवा मुनि और विश्रवा मुनिकी एक पत्नीसे कुबेरजी, दूसरीसे रावण, कुम्भकर्ण तथा विभीषण हुए। रावण कुम्भकर्णके साथ विभीषणजी भी कठोर तप करने लगे। जब ब्रह्माजी इन्हें वरदान देने आये, तब इन्होंने कहा- 'नाथ! मुझे तो भगवान्की अविचल भक्ति ही चाहिये।' लोकस्रष्टा 'तथास्तु' कहकर चले गये। रावणने असुरोंकी प्राचीन राजधानी लङ्कापर अधिकार किया और अपने भाइयों तथा अनुचरोंके साथ वह वहीं रहने लगा। रावण देवताओंका शत्रु था और स्वयं उसे भजन-पूजन आदिसे एक प्रकारका द्वेष भी था; किंतु अपने छोटे भाईको इन कामोंसे रोककर उसने कष्ट देना नहीं चाहा। विभीषण लङ्कामें भगवान्‌का भजन-पूजन करते रहते थे और जब रावण दिग्विजयके लिये चला जाता था, तब लङ्काका राज्यकार्य भी वही देखते थे; क्योंकि कुम्भकर्ण तो सोया ही करता था।

रावणकी अनीति, उसका अधर्म विभीषणजीकोसदा ही क्लेश देता था। वे अनेक बार समझाना भी चाहते थे; किंतु रावण अहङ्कारी था। विभीषण बड़े भाईका पूरा आदर भी करते थे। जब दशानन श्रीसीताजीको चुरा लाया, तब उन्होंने बहुत समझाया-'परस्त्रीका सेवन यश, आयु और पुण्यका नाश करनेवाला है। इस पापसे नरक होता है। किसी सतीको इस प्रकार ले आना और पीड़ा देना बहुत ही अनुचित है।' परंतु रावणने उनकी एक भी बातपर ध्यान नहीं दिया।

जब हनुमान्जी लङ्का पहुँचे, तब रात्रिमें श्रीजानकीजीको ढूँढ़ते हुए उन्हें विभीषणका घर दीख पड़ा। उस घरके पास भगवान्का मन्दिर बना था। घरकी दीवालोंपर चारों और भगवान्का मङ्गलमय नाम सुन्दर अक्षरोंमें अङ्कित था। तुलसीके नवीन वृक्ष घरके सामने लगे थे। हनुमानजी आश्चर्यमें पड़ गये कि लङ्कामें यह भगवद्भक्त जैसा घर किसका है। उस समय रात्रिके चौथे प्रहरके प्रारम्भमें ही विभीषणजीकी निद्रा टूटी। वे जगते ही भगवान्का स्मरण-कीर्तन करने लगे। हनुमान्जी 'साधु' समझकर ब्राह्मण वेशमें उनके पास गये। ब्राह्मणको देख विभीषणजीने बड़े आदरसे उनको प्रणाम किया। लङ्कामें | सामान्य ब्राह्मण आ नहीं सकता था। उन्हें सन्देह हुआ कि 'मेरे दयामय प्रभुने अपने किसी भक्तको मुझ अधमपर कृपा करके तो नहीं भेजा है? स्वयं वे भक्तवत्सल श्रीराम ही तो मुझ दीनको कृतार्थ करने नहींपधारे हैं?' हनुमानजीने जब अपना परिचय दिया, तब बड़े ही करुण स्वरमें उन्होंने कहा तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा । करिहहिं कृपा भानुकुलनाथा ॥ तामस तनु कछु साधन नाहीं । प्रीति न पद सरोज मन माहीं।। अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता ॥

हनुमानजीने आश्वासन दिया। प्रभुके परम उदार कोमल स्वभावका वर्णन किया। विभीषणजीसे पता पाकर वे श्रीजानकीजीके समीप गये और उनसे मिलकर बातचीत की। जब मेघनाद नागपाशसे हनुमानजीको बाँधकर राजसभामें ले आया और रावणने उनके वधकी आज्ञा दी, तब विभीषणने नीति विरोध न मारिअ दूता' कहकर उनकी रक्षा की।

हनुमानजी लङ्का जलाकर लौट गये। सभी राक्षस भयसे सशङ्कित रहने लगे। एक दिन समाचार मिला कि श्रीराम बहुत बड़ी वानरी सेना लेकर समुद्रके उस पार आ पहुँचे हैं। रावण अपनी राजसभाएँ आगेके कर्तव्यका निश्चय करने बैठा। चाटुकार मन्त्री उसकी मिथ्या प्रशंसा करने लगे। उस समय विभीषणने प्रणाम करके नम्रतापूर्वक कहा

जो आपन चाहँ कल्याना । सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना ।। सो परनारि लिलार गोसाईं । तजउ चउथि के चंद कि नाई ॥ चौदह भुवन एक पति होई। भूत द्रोह तिष्टइ नहिं सोई ॥गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ । काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।सय परिहरि रघुवीर गहु अहिं जेहि संत ॥

इतनी नीति बताकर भगवान् श्रीरामके स्वरूपकावर्णन करते हुए उन्होंने कहा-

तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर काल कर काला ॥ ब्रह्म अनामय अज भगवंता । व्यापक अजित अनादि अनंता ॥ गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपासिंधु मानुष तनु धारी जन रंजन भंजन खल बाता। बेद धर्म रच्छक सुरत्राता ।। ताहि बयरु तजि नाइअ माथा। प्रनतारति भंजन रघुनाथा ॥ देहु नाथ प्रभु कहें वैदेही । भजहु राम सब भाँति सनेही ॥सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा । बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा ॥ जासु नाम त्रय ताप नसावन । सोइ प्रभु प्रगट समुझे जियँ रावन ॥ परंतु रावणके सिरपर तो काल नाच रहा था। उसे ऐसी कल्याणकारिणी शिक्षा अच्छी न लगी। भरी सभा में विभीषणको लात मारकर उसने लङ्कासे निकल जानेकी आज्ञा दी। इतना अपमान सहकर भी विभीषणजीने उसेप्रणाम किया। संतजन अपना अहित करनेवालेका भी हित ही चाहते हैं। विभीषणने तब भी कहा तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा। राम भजें हित हाइ तुम्हारा ॥

तदनन्तर मन्त्रियोंको साथ लेकर विभीषण आकाशमार्गसे
भगवान् के पास पहुँचनेके लिये चल पड़े। मार्ग में वे सोचते जा रहे थे-

देखिह जाइ चरन जल जाता। अरुन मृदुल सेवक सुखदाता॥जे पद परसि तरी रिधि नारी दंडक कानन पावन कारी ॥जे पद जनकसुता डर लाए । कपट कुरंग संग घर धाए ॥ हर उर सर सरोज पद जेई अहोभाग्य में देखिहउँ तेई ।।जिन पायन्ह के पादुकन्हि भरत रहे मन लाइ ।ते पद आजु विलोकि इन्ह नयनन्हि अब जाइ।।

धन्य है वह हृदय, जिसमें उन 'अरुन मृदुल' चरणोंको देखनेकी तीव्र लालसा जागती है। विभीषण समुद्रपार पहुँचे। प्रभुको सन्देश मिला। सुग्रीवने शङ्का की; किंतु कहीं उन शरणागतवत्सल अशरण-शरणकी शरण लेनेमें कोई बाधा खड़ी होनेका साहस कर सकती है? प्रभुकी आज्ञासे हनुमानजी तथा अंगद बड़े आदरसे विभीषणको ले गये प्रभुके पास राघवेन्द्रकी वह जटामुकुटधारी, दूर्वादल श्याम शरीरकी अनुपम शोभा देखकर नेत्र निहाल हो गये। विभीषणने अपना परिचय दिया और भूमिपर प्रणाम करते वे चरणोंपर गिर पड़े श्रवन सुजस सुनि आयउ प्रभु भंजन भव भीर ।

त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥ श्रीराघवेन्द्र झपटकर उठे और विभीषणको उठाकर उन्होंने हृदयसे लगा लिया। उसी दिन सर्वेश्वर श्रीरामके करोंने सागरके जलसे विभीषणको लङ्काके राज्यपर अभिषिक्त कर दिया। 'लङ्केश' तो वे उसी दिन हो गये। रावणसे युद्ध हुआ और राक्षसराज अपने समस्त परिकरोंके साथ मारा गया। विभीषणको लङ्काके सिंहासनपर बैठाकर तिलक करनेकी विधि भी पूरी हो गयी।

विभीषणका प्रभु बहुत सम्मान करते थे। उनकी सम्मति मानकर लक्ष्मणजीके विरोध करनेपर भी और यह जानकर भी कि इससे कुछ लाभ न होगा, केवल विभीषणकी सम्मतिका मान रखनेके लिये वे तीन दिनोंतक कुश बिछाकर समुद्र के किनारे निर्जल व्रत करते हुए समुद्रसे मार्ग पानेकी प्रार्थना करते रहे थे। रावणके मारे जानेके पश्चात् जब विभीषणजी राजा हो गये, तबउन्होंने वानर- रीछोंका खूब सत्कार किया। पुष्पकविमान | 2 उन्होंने प्रभुकी सेवामें अर्पण कर दिया और उस विमानसे प्रभुके साथ ही वे अयोध्या आये-अयोध्यामें श्रीराघवेन्द्रका राज्याभिषेक हो जानेपर कुछ दिन वहाँ 2 रहकर तब भगवान्‌की आज्ञासे लङ्का लौटे। श्रीरामकी पुनः लङ्कायात्रा और सेतु-भङ्ग
लङ्काविजयके बहुत दिनों बाद एक समय भगवान् श्रीरामको भक्त विभीषणका स्मरण हो आया। उन्होंने सोचा कि 'विभीषण धर्मपूर्वक शासन कर रहा है या नहीं? देवविरोधी व्यवहार ही राजाके विनाशका सूत्र है। मैं विभीषणको लङ्काका राज्य दे आया हूँ, अब जाकर उसे सँभालना भी चाहिये। कहीं राज्यमदमें उससे अधर्माचरण तो नहीं हो रहा है। अतएव मैं स्वयं लङ्का जाकर उसे देखूँगा और हितकर उपदेश दूँगा, जिससे उसका राज्य अनन्त कालतक स्थायी रहेगा।' श्रीराम यों विचार कर ही रहे थे कि भरतजी भी आ पहुँचे। भरतजीने कभी लङ्का देखी नहीं थी, अतएव श्रीरामजीकी आज्ञा लेकर वे भी साथ हो लिये। दोनों भाई पुष्पकविमानपर सवार होकर मुनियोंके आश्रमोंमें होते हुए किष्किन्धापुरीमें जाकर भक्त सुग्रीवसे मिले। सुग्रीवने राजघरानेके सब स्त्री-पुरुषों तथा नगरीके समस्त नर-नारियोंसमेत महाराज श्रीराम और भरतका बड़ा स्वागत किया। फिर सुग्रीवको साथ लेकर विमानपरसे भरतको विभिन्न स्थान दिखलाते और उसकी कथा सुनाते हुए भगवान् लङ्कामें जा पहुँचे। विभीषणको दूतोंने यह शुभ समाचार सुनाया। श्रीरामके लङ्का पधारनेका संवाद सुनकर विभीषणको बड़ी प्रसन्नता हुई। सारा नगर बात की बातमें सजाया गया और अपने मन्त्रियोंको साथ लेकर विभीषण अगवानीके लिये चले। सुमेरुस्थित सूर्यकी भाँति विमानस्थ श्रीरामको देखकर साष्टाङ्ग प्रणामपूर्वक विभीषणने कहा-'प्रभो! आज मेरा जन्म सफल हो गया, आज मेरे सारे मनोरथ सिद्ध हो गये; क्योंकि आज मैं जगद्वन्द्य अनिन्द्य आप दोनों स्वामियोंके दर्शन कर रहा हूँ। आज स्वर्गवासी देवगण भी मेरे भाग्यकी श्लाघा कर रहे हैं। मैं आज अपनेको त्रिदशपति इन्द्रकी अपेक्षा भी श्रेष्ठ समझ रहा हूँ।'

सर्वरत्नसुशोभित उज्ज्वल भवनमें महोत्तम सिंहासनपर श्रीराम विराजे, विभीषण अर्घ्य देकर हाथ जोड़कर भरत और सुग्रीवकी स्तुति करने लगे। लङ्कानिवासी प्रजाकीरामदर्शनार्थ भीड़ लग गयी। प्रजाने विभीषणको कहलाया-'प्रभो। हमको उस अनोखी रूपमाधुरीको देखे बहुत दिन हो गये। युद्धके समय हम सब देख भी नहीं पाये थे। आज हम दोनोंपर दया करके हमारा हित करनेके लिये करुणामय हमारे घर पधारे हैं, अतएव शीघ्र ही हमलोगोंको उनके दर्शन कराइये।' विभीषणने श्रीरामसे पूछा और दयामयकी आज्ञा पाकर प्रजाके लिये द्वार खोल दिये। लङ्काके नर-नारी राम- भरतकी झाँकी देखकर पवित्र और मुग्ध हो गये। यों तीन दिन बीते। चौथे दिन रावणमाता कैकसीने विभीषणको बुलाकर कहा- 'बेटा! मैं भी श्रीरामके दर्शन करूंगी। उनके दर्शनसे महामुनिगण भी महापुण्यके भागी होते हैं। श्रीराम साक्षात् सनातन विष्णु हैं, वे ही यहाँ चार रूपोंमें अवतीर्ण हैं। सीताजी स्वयं लक्ष्मी हैं। तेरे भाई रावणने। यह रहस्य नहीं जाना तेरे पिताने कहा था कि रावणको मारनेके लिये भगवान् रघुवंश दशरथ यहाँ प्रादुर्भूत होंगे।' विभीषणने कहा-'माता! आप नये वस्त्र पहनकर कञ्चन थालमें चन्दन, मधु, अक्षत, दधि, दूर्वाका अर्घ्य सजाकर भगवान् श्रीरामके दर्शन करें। सरमा (विभीषणपत्नी) - को आगे करके और अन्यान्य देवकन्याओंको साथ लेकर आप श्रीराम के समीप जायें में पहले ही वहाँ पहुँच जाता हूँ।"

विभीषणने श्रीरामके पास जाकर वहाँसे सब लोगोंको बिलकुल हटा दिया और श्रीरामसे कहा-'देव की कुम्भकर्णकी और मेरी माता कैकसी आपके चरणकमलोक दर्शनार्थ आ रही हैं, आप कृपापूर्वक उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करें।' श्रीरामने कहा, "भाई तुम्हारी माँ तो मेरी 'माँ' ही हैं। मैं ही उनके पास चलता हूँ, तुम जाकर उनसे कह दो।" इतना कहकर विभु श्रीराम उठकर चले और कैकसीको देखकर मस्तकसे उसे प्रणाम किया तथा बोले- 'आप मेरी धर्ममाता हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। अनेक पुण्य और महान तपके प्रभाव से ही मनुष्यको विभीषणके सदृश भक्तोंकी जननीके चरण-दर्शनका सौभाग्य मिलता है। आज मुझे आपके दर्शनसे बड़ी प्रसन्नता हुई। जैसे श्रीकासल्याजी हैं, वैसे ही मेरे लिये आप हैं।' बदलेमें कैकसीने मातृभावसे आशीर्वाद दिया और भगवान् श्रीरामको विश्वपति जानकर उनकी स्तुति की। इसके बाद 'सरमा ने भगवान्‌की स्तुति की भरतको सरमाका परिचय जाननेकी इच्छा हुई, उनके संकेतको समझकर 'इंगितविद् श्रीरामने भरतसे कहा- यह विभीषणकी साध्वी भार्या हैं, इनका नाम 'सरमा' है। ये महाभागा सीताकी प्रिय सखी हैं और इनकी सखिता बहुत दृढ़ है।' इसके बाद सरमाको समयोचित उपदेश दिया। फिर विभीषणको विविध उपदेश देकर कहा

'निष्पाप देवताओंका प्रिय कार्य करना, उनका अपराध कभी न करना। लङ्कामें कभी मनुष्य आयें तो उनका कोई राक्षस वध न करने पायें।' विभीषणने आज्ञानुसार चलना स्वीकार किया। तदनन्तर वापस लौटनेके लिये सुग्रीव और भरतसहित श्रीराम विमानपर चढ़े। तब विभीषणने कहा- 'प्रभो! यदि लङ्काका पुल ज्यों-का त्यों बना रहेगा तो पृथ्वीके सभी लोग यहाँ आकर हमलोगोंको तंग करेंगे; इसलिये क्या करना चाहिये?' भगवान्ने विभीषणकी बात सुनकर पुलको बीचमें तोड़ डाला और दस योजनके बीचके टुकड़ेके फिर तीन टुकड़े कर दिये। तदनन्तर उस एक-एक टुकड़ेके फिर छोटे-छोटे टुकड़े कर डाले, जिससे पुल टूट गया और यों लङ्काके साथ भारतका मार्ग पुनः विच्छिन्न हो गया।

विभीषण तथा उनके परिवारके प्रति भगवान्का कितना स्नेह था, इस कथासे इसका पता लगता है। इतना ही नहीं, विभीषणके प्रति रामका कितना स्नेह था इसकी एक कथा और पढ़िये

विभीषणके बदले स्वयं दण्ड ग्रहण करनेको तैयार

एक समय श्रीरामको मुनियोंके द्वारा समाचार मिलता है कि लङ्काधिपति विभीषण द्रविड़ देशमें कैद हैं। भगवान् श्रीराम अब नहीं ठहर सके, वे विभीषणका पता लगाने और उन्हें छुड़ाने के लिये निकल पड़े। खोजते खोजते विप्रघोष नामक गाँवमें पहुँचे। विभीषण वहाँ कैद थे वहाँकै लोगोंने श्रीरामको दिखलाया कि विभीषण जमीन के अंदर एक कोठरीमें जंजीरोंसे जकड़े पड़े हैं। श्रीरामके पूछनेपर ब्राह्मणोंने कहा- 'राजन्! विभीषणने ब्रह्महत्या की थी; एक अति धार्मिक वृद्ध ब्राह्मण निर्जन उपवनमें तप कर रहा था, विभीषणने वहाँ जाकर उसे पददलित करके मार डाला। ब्राह्मणकी मृत्यु होते ही विभीषणके पैर वहीं रुक गये, वह एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सका, ब्रह्महत्याके पापसे उसकी चाल बंद होगयी। हमलोगोंने इस दुष्ट राक्षसको बहुत मारा-पीटा, परंतु इस पापीके प्राण किसी प्रकार नहीं निकले। अब हे श्रीराम। आप पधारे हैं; आप चक्रवर्ती राजराजेश्वर हैं, | इस पापात्माका वध करके धर्मकी रक्षा कीजिये। यह | सुनकर श्रीराम असमञ्जसमें पड़ गये। एक और विभीषणका भारी अपराध है और दूसरी ओर विभीषण श्रीरामके ही. एक सेवक हैं। यहाँपर श्रीरामने ब्राह्मणोंसे जो कुछ कहा, वह बहुत ही ध्यान देने योग्य है। शरणागत भक्तके लिये भगवान् कहाँतक करने को तैयार हैं, इस बातका पता भगवान् के शब्दोंसे लग जायगा। भगवान् श्रीराम स्वयं | अपराधी की तरह नम्रतासे कहने लगे

वरं ममैव मरणं मद्भक्तो हन्यते कथम् । भविष्यति ॥ राज्यमायुर्मया दत्तं तथैव स भृत्यापराधे सर्वत्र स्वामिनो दण्ड इष्यते। रामवाक्यं द्विजाः श्रुत्वा विस्मयादिदमब्रुवन् ॥

(पद्मपुराण, पातालखण्ड) 'द्विजवरो! विभीषणको तो मैं अखण्ड राज्य और आयु दे चुका, वह तो मर नहीं सकता। फिर उसके मरनेकी जरूरत ही क्या है। वह तो मेरा भक्त है, भक्तके | लिये मैं स्वयं मर सकता हूँ। सेवकके अपराधकी जिम्मेवारी तो वास्तवमें स्वामीपर ही होती है। नौकरके दोषसे मालिक ही दण्डका पात्र होता है, अतएव विभीषणके बदले आपलोग मुझे दण्ड दीजिये।' श्रीरामके मुखसे ऐसे वचन सुनकर ब्राह्मणमण्डली आश्चर्यमें डूब गयी। जिसको श्रीरामसे दण्ड दिलवाना चाहते थे, वह तो श्रीरामका सेवक है और सेवकके लिये उसके स्वामी स्वयं श्रीराम ही दण्ड ग्रहण करना चाहते हैं। अहा हा! स्वामी हो तो ऐसा हो भ्रान्त मनुष्यो ! ऐसे स्वामीको बिसारकर अन्य किस साधनसे सुखी होना चाहते हो?

ब्राह्मण उसे दण्ड देना भूल गये। श्रीरामके मुखसे ऐसे वचन सुनकर ब्राह्मणोंको यह चिन्ता हो गयी कि विभीषण जल्दी छूट जाय और अपने घर जा सके तो अच्छी बात है। वे विभीषणको छोड़ तो सकते थे, परंतु छोड़नेसे क्या होता। ब्रह्महत्याके पापसे उसकी तो गति रुकी हुई थी। अतएव ब्राह्मणोंने कहा- 'रामभद्र ! इस प्रकार उन्हें बन्धनमें पड़े रखना उचित नहीं है। | आप वसिष्ठ प्रभृति मुनियोंकी रायसे उन्हें छुड़ानेका प्रयत्न कीजिये।' अनन्तर श्रीरामने प्रधान प्रधान मुनियोंसेपूछकर विभीषणके लिये तीन सौ साठ गोदानका प्रायश्चित्त बतलाकर उन्हें छुड़ा लिया। प्रायश्चित्तद्वारा विशुद्ध होकर जब विभीषण भगवान् श्रीरामके सामने आकर सादर प्रणाम करने लगे, तब श्रीरामने उन्हें सभामें ले जाकर हँसते हुए यह शिक्षा दी - 'ऐसा कार्य कभी नहीं करना चाहिये। जिसमें अपना हित हो, वहीकार्य करना चाहिये। हे राक्षसराज ! तुम मेरे सेवक हो, अतएव तुम्हें साधुशील होना चाहिये, सर्वत्र दयालु रहना चाहिये।'

विभीषणजी वस्तुतः भगवान्‌के श्रेष्ठ भक्त हैं और सात चिरजीवियोंमेंसे एक हैं। स्वयं श्रीरामने इन्हें अपना सखा कहकर बार-बार इनकी बड़ी प्रशंसा की है।



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bhagavaan ke paas pahunchaneke liye chal pada़e. maarg men ve sochate ja rahe the-

dekhih jaai charan jal jaataa. arun mridul sevak sukhadaataa..je pad parasi taree ridhi naaree dandak kaanan paavan kaaree ..je pad janakasuta dar laae . kapat kurang sang ghar dhaae .. har ur sar saroj pad jeee ahobhaagy men dekhihaun teee ..jin paayanh ke paadukanhi bharat rahe man laai .te pad aaju viloki inh nayananhi ab jaai..

dhany hai vah hriday, jisamen un 'arun mridula' charanonko dekhanekee teevr laalasa jaagatee hai. vibheeshan samudrapaar pahunche. prabhuko sandesh milaa. sugreevane shanka kee; kintu kaheen un sharanaagatavatsal asharana-sharanakee sharan lenemen koee baadha khada़ee honeka saahas kar sakatee hai? prabhukee aajnaase hanumaanajee tatha angad bada़e aadarase vibheeshanako le gaye prabhuke paas raaghavendrakee vah jataamukutadhaaree, doorvaadal shyaam shareerakee anupam shobha dekhakar netr nihaal ho gaye. vibheeshanane apana parichay diya aur bhoomipar pranaam karate ve charanonpar gir pada़e shravan sujas suni aayau prabhu bhanjan bhav bheer .

traahi traahi aarati haran saran sukhad raghubeer .. shreeraaghavendr jhapatakar uthe aur vibheeshanako uthaakar unhonne hridayase laga liyaa. usee din sarveshvar shreeraamake karonne saagarake jalase vibheeshanako lankaake raajyapar abhishikt kar diyaa. 'lankesha' to ve usee din ho gaye. raavanase yuddh hua aur raakshasaraaj apane samast parikaronke saath maara gayaa. vibheeshanako lankaake sinhaasanapar baithaakar tilak karanekee vidhi bhee pooree ho gayee.

vibheeshanaka prabhu bahut sammaan karate the. unakee sammati maanakar lakshmanajeeke virodh karanepar bhee aur yah jaanakar bhee ki isase kuchh laabh n hoga, keval vibheeshanakee sammatika maan rakhaneke liye ve teen dinontak kush bichhaakar samudr ke kinaare nirjal vrat karate hue samudrase maarg paanekee praarthana karate rahe the. raavanake maare jaaneke pashchaat jab vibheeshanajee raaja ho gaye, tabaunhonne vaanara- reechhonka khoob satkaar kiyaa. pushpakavimaan | 2 unhonne prabhukee sevaamen arpan kar diya aur us vimaanase prabhuke saath hee ve ayodhya aaye-ayodhyaamen shreeraaghavendraka raajyaabhishek ho jaanepar kuchh din vahaan 2 rahakar tab bhagavaan‌kee aajnaase lanka laute. shreeraamakee punah lankaayaatra aur setu-bhanga
lankaavijayake bahut dinon baad ek samay bhagavaan shreeraamako bhakt vibheeshanaka smaran ho aayaa. unhonne socha ki 'vibheeshan dharmapoorvak shaasan kar raha hai ya naheen? devavirodhee vyavahaar hee raajaake vinaashaka sootr hai. main vibheeshanako lankaaka raajy de aaya hoon, ab jaakar use sanbhaalana bhee chaahiye. kaheen raajyamadamen usase adharmaacharan to naheen ho raha hai. ataev main svayan lanka jaakar use dekhoonga aur hitakar upadesh doonga, jisase usaka raajy anant kaalatak sthaayee rahegaa.' shreeraam yon vichaar kar hee rahe the ki bharatajee bhee a pahunche. bharatajeene kabhee lanka dekhee naheen thee, ataev shreeraamajeekee aajna lekar ve bhee saath ho liye. donon bhaaee pushpakavimaanapar savaar hokar muniyonke aashramonmen hote hue kishkindhaapureemen jaakar bhakt sugreevase mile. sugreevane raajagharaaneke sab stree-purushon tatha nagareeke samast nara-naariyonsamet mahaaraaj shreeraam aur bharataka bada़a svaagat kiyaa. phir sugreevako saath lekar vimaanaparase bharatako vibhinn sthaan dikhalaate aur usakee katha sunaate hue bhagavaan lankaamen ja pahunche. vibheeshanako dootonne yah shubh samaachaar sunaayaa. shreeraamake lanka padhaaraneka sanvaad sunakar vibheeshanako bada़ee prasannata huee. saara nagar baat kee baatamen sajaaya gaya aur apane mantriyonko saath lekar vibheeshan agavaaneeke liye chale. sumerusthit sooryakee bhaanti vimaanasth shreeraamako dekhakar saashtaang pranaamapoorvak vibheeshanane kahaa-'prabho! aaj mera janm saphal ho gaya, aaj mere saare manorath siddh ho gaye; kyonki aaj main jagadvandy anindy aap donon svaamiyonke darshan kar raha hoon. aaj svargavaasee devagan bhee mere bhaagyakee shlaagha kar rahe hain. main aaj apaneko tridashapati indrakee apeksha bhee shreshth samajh raha hoon.'

sarvaratnasushobhit ujjval bhavanamen mahottam sinhaasanapar shreeraam viraaje, vibheeshan arghy dekar haath joda़kar bharat aur sugreevakee stuti karane lage. lankaanivaasee prajaakeeraamadarshanaarth bheeda़ lag gayee. prajaane vibheeshanako kahalaayaa-'prabho. hamako us anokhee roopamaadhureeko dekhe bahut din ho gaye. yuddhake samay ham sab dekh bhee naheen paaye the. aaj ham dononpar daya karake hamaara hit karaneke liye karunaamay hamaare ghar padhaare hain, ataev sheeghr hee hamalogonko unake darshan karaaiye.' vibheeshanane shreeraamase poochha aur dayaamayakee aajna paakar prajaake liye dvaar khol diye. lankaake nara-naaree raama- bharatakee jhaankee dekhakar pavitr aur mugdh ho gaye. yon teen din beete. chauthe din raavanamaata kaikaseene vibheeshanako bulaakar kahaa- 'betaa! main bhee shreeraamake darshan karoongee. unake darshanase mahaamunigan bhee mahaapunyake bhaagee hote hain. shreeraam saakshaat sanaatan vishnu hain, ve hee yahaan chaar rooponmen avateern hain. seetaajee svayan lakshmee hain. tere bhaaee raavanane. yah rahasy naheen jaana tere pitaane kaha tha ki raavanako maaraneke liye bhagavaan raghuvansh dasharath yahaan praadurbhoot honge.' vibheeshanane kahaa-'maataa! aap naye vastr pahanakar kanchan thaalamen chandan, madhu, akshat, dadhi, doorvaaka arghy sajaakar bhagavaan shreeraamake darshan karen. sarama (vibheeshanapatnee) - ko aage karake aur anyaany devakanyaaonko saath lekar aap shreeraam ke sameep jaayen men pahale hee vahaan pahunch jaata hoon."

vibheeshanane shreeraamake paas jaakar vahaanse sab logonko bilakul hata diya aur shreeraamase kahaa-'dev kee kumbhakarnakee aur meree maata kaikasee aapake charanakamalok darshanaarth a rahee hain, aap kripaapoorvak unhen darshan dekar kritaarth karen.' shreeraamane kaha, "bhaaee tumhaaree maan to meree 'maan' hee hain. main hee unake paas chalata hoon, tum jaakar unase kah do." itana kahakar vibhu shreeraam uthakar chale aur kaikaseeko dekhakar mastakase use pranaam kiya tatha bole- 'aap meree dharmamaata hain, main aapako pranaam karata hoon. anek puny aur mahaan tapake prabhaav se hee manushyako vibheeshanake sadrish bhaktonkee jananeeke charana-darshanaka saubhaagy milata hai. aaj mujhe aapake darshanase bada़ee prasannata huee. jaise shreekaasalyaajee hain, vaise hee mere liye aap hain.' badalemen kaikaseene maatribhaavase aasheervaad diya aur bhagavaan shreeraamako vishvapati jaanakar unakee stuti kee. isake baad 'sarama ne bhagavaan‌kee stuti kee bharatako saramaaka parichay jaananekee ichchha huee, unake sanketako samajhakar 'ingitavid shreeraamane bharatase kahaa- yah vibheeshanakee saadhvee bhaarya hain, inaka naam 'saramaa' hai. ye mahaabhaaga seetaakee priy sakhee hain aur inakee sakhita bahut dridha़ hai.' isake baad saramaako samayochit upadesh diyaa. phir vibheeshanako vividh upadesh dekar kahaa

'nishpaap devataaonka priy kaary karana, unaka aparaadh kabhee n karanaa. lankaamen kabhee manushy aayen to unaka koee raakshas vadh n karane paayen.' vibheeshanane aajnaanusaar chalana sveekaar kiyaa. tadanantar vaapas lautaneke liye sugreev aur bharatasahit shreeraam vimaanapar chadha़e. tab vibheeshanane kahaa- 'prabho! yadi lankaaka pul jyon-ka tyon bana rahega to prithveeke sabhee log yahaan aakar hamalogonko tang karenge; isaliye kya karana chaahiye?' bhagavaanne vibheeshanakee baat sunakar pulako beechamen toda़ daala aur das yojanake beechake tukaड़eke phir teen tukada़e kar diye. tadanantar us eka-ek tukada़eke phir chhote-chhote tukada़e kar daale, jisase pul toot gaya aur yon lankaake saath bhaarataka maarg punah vichchhinn ho gayaa.

vibheeshan tatha unake parivaarake prati bhagavaanka kitana sneh tha, is kathaase isaka pata lagata hai. itana hee naheen, vibheeshanake prati raamaka kitana sneh tha isakee ek katha aur paढ़iye

vibheeshanake badale svayan dand grahan karaneko taiyaara

ek samay shreeraamako muniyonke dvaara samaachaar milata hai ki lankaadhipati vibheeshan dravida़ deshamen kaid hain. bhagavaan shreeraam ab naheen thahar sake, ve vibheeshanaka pata lagaane aur unhen chhuda़aane ke liye nikal pada़e. khojate khojate vipraghosh naamak gaanvamen pahunche. vibheeshan vahaan kaid the vahaankai logonne shreeraamako dikhalaaya ki vibheeshan jameen ke andar ek kothareemen janjeeronse jakada़e pada़e hain. shreeraamake poochhanepar braahmanonne kahaa- 'raajan! vibheeshanane brahmahatya kee thee; ek ati dhaarmik vriddh braahman nirjan upavanamen tap kar raha tha, vibheeshanane vahaan jaakar use padadalit karake maar daalaa. braahmanakee mrityu hote hee vibheeshanake pair vaheen ruk gaye, vah ek kadam bhee aage naheen badha़ saka, brahmahatyaake paapase usakee chaal band hogayee. hamalogonne is dusht raakshasako bahut maaraa-peeta, parantu is paapeeke praan kisee prakaar naheen nikale. ab he shreeraama. aap padhaare hain; aap chakravartee raajaraajeshvar hain, | is paapaatmaaka vadh karake dharmakee raksha keejiye. yah | sunakar shreeraam asamanjasamen pada़ gaye. ek aur vibheeshanaka bhaaree aparaadh hai aur doosaree or vibheeshan shreeraamake hee. ek sevak hain. yahaanpar shreeraamane braahmanonse jo kuchh kaha, vah bahut hee dhyaan dene yogy hai. sharanaagat bhaktake liye bhagavaan kahaantak karane ko taiyaar hain, is baataka pata bhagavaan ke shabdonse lag jaayagaa. bhagavaan shreeraam svayan | aparaadhee kee tarah namrataase kahane lage

varan mamaiv maranan madbhakto hanyate katham . bhavishyati .. raajyamaayurmaya dattan tathaiv s bhrityaaparaadhe sarvatr svaamino dand ishyate. raamavaakyan dvijaah shrutva vismayaadidamabruvan ..

(padmapuraan, paataalakhanda) 'dvijavaro! vibheeshanako to main akhand raajy aur aayu de chuka, vah to mar naheen sakataa. phir usake maranekee jaroorat hee kya hai. vah to mera bhakt hai, bhaktake | liye main svayan mar sakata hoon. sevakake aparaadhakee jimmevaaree to vaastavamen svaameepar hee hotee hai. naukarake doshase maalik hee dandaka paatr hota hai, ataev vibheeshanake badale aapalog mujhe dand deejiye.' shreeraamake mukhase aise vachan sunakar braahmanamandalee aashcharyamen doob gayee. jisako shreeraamase dand dilavaana chaahate the, vah to shreeraamaka sevak hai aur sevakake liye usake svaamee svayan shreeraam hee dand grahan karana chaahate hain. aha haa! svaamee ho to aisa ho bhraant manushyo ! aise svaameeko bisaarakar any kis saadhanase sukhee hona chaahate ho?

braahman use dand dena bhool gaye. shreeraamake mukhase aise vachan sunakar braahmanonko yah chinta ho gayee ki vibheeshan jaldee chhoot jaay aur apane ghar ja sake to achchhee baat hai. ve vibheeshanako chhoda़ to sakate the, parantu chhoda़nese kya hotaa. brahmahatyaake paapase usakee to gati rukee huee thee. ataev braahmanonne kahaa- 'raamabhadr ! is prakaar unhen bandhanamen pada़e rakhana uchit naheen hai. | aap vasishth prabhriti muniyonkee raayase unhen chhuda़aaneka prayatn keejiye.' anantar shreeraamane pradhaan pradhaan muniyonsepoochhakar vibheeshanake liye teen sau saath godaanaka praayashchitt batalaakar unhen chhuda़a liyaa. praayashchittadvaara vishuddh hokar jab vibheeshan bhagavaan shreeraamake saamane aakar saadar pranaam karane lage, tab shreeraamane unhen sabhaamen le jaakar hansate hue yah shiksha dee - 'aisa kaary kabhee naheen karana chaahiye. jisamen apana hit ho, vaheekaary karana chaahiye. he raakshasaraaj ! tum mere sevak ho, ataev tumhen saadhusheel hona chaahiye, sarvatr dayaalu rahana chaahiye.'

vibheeshanajee vastutah bhagavaan‌ke shreshth bhakt hain aur saat chirajeeviyonmense ek hain. svayan shreeraamane inhen apana sakha kahakar baara-baar inakee bada़ee prashansa kee hai.

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वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
Ye Saare Khel Tumhare Hai Jag
Kahta Khel Naseebo Ka
हम हाथ उठाकर कह देंगे हम हो गये राधा
राधा राधा राधा राधा
ज़रा छलके ज़रा छलके वृदावन देखो
ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
मुझे रास आ गया है,
तेरे दर पे सर झुकाना
हम प्रेम नगर के बंजारिन है
जप ताप और साधन क्या जाने
वास देदो किशोरी जी बरसाना,
छोडो छोडो जी छोडो जी तरसाना ।
श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
याद में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही
फूलों में सज रहे हैं, श्री वृन्दावन
और संग में सज रही है वृषभानु की
नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
जिंदगी एक किराये का घर है,
एक न एक दिन बदलना पड़ेगा॥
सांवरियो है सेठ, म्हारी राधा जी सेठानी
यह तो जाने दुनिया सारी है
जा जा वे ऊधो तुरेया जा
दुखियाँ नू सता के की लैणा
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए।
जुबा पे राधा राधा राधा नाम हो जाए॥
जग में सुन्दर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो
बोलो राम राम राम, बोलो श्याम श्याम
मीठे रस से भरी रे, राधा रानी लागे,
मने कारो कारो जमुनाजी रो पानी लागे
बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि
सादर भारत शीश धरी लीन्ही
वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
मेरा आपकी कृपा से,
सब काम हो रहा है
ਮੇਰੇ ਕਰਮਾਂ ਵੱਲ ਨਾ ਵੇਖਿਓ ਜੀ,
ਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਸ਼ਾਰਮਾਈ ਹੋਈ ਆਂ
सावरे से मिलने का सत्संग ही बहाना है ।
सारे दुःख दूर हुए, दिल बना दीवाना है ।
बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया।
दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
ये सारे खेल तुम्हारे है
जग कहता खेल नसीबों का
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जो आया सो पछताया, जगत में किसने सुख

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कोई दे दो रे ठिकाना, मुझे कावड़ चढ़ाना
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मैं हूँ जनम जनम का भोगी, मुझकों मिला है
राजा राम आइये प्रभू राम आइये,
मेरे भोजन का भोग लगाइये...
रावण ने अत्याचार मचाया,
ऋषियों के खून से घड़ा भराया,
क्यूँ दिन घालो आशा पूरदयोजी,
ओ जी म्हारा खाटू वाला श्याम,