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कृपाका आश्रय, आभार और सँभार

श्रीभगवत्कृपाका आश्रय ही सफलताका हेतु साधन, संयम, तप, त्याग, वैराग्यके बलसाँ श्रीभगवत्प्रेम प्राप्ति नहीं होगी। श्रीभगवत्प्रेमप्राप्ति श्रीभगवत्कृपाके बलसों ही होय है तथा सर्वथा विकार नाश हू श्रीभगवत्कृपास ही होय है।

कर्तव्यपालनके साथ कृपाको आश्रय साधकको कर्तव्य पूरी सत्यता एवं तत्परतास इनके लिये लगनी ही है कार्यको पूर्णता तो इनकी कृपासों ही होय है। कृपा इनकी स्वभाव है ये कृपा करेंगे ही अपने 1 कर्तव्यको दृढ़तासों पालन करते भये इनकी कृपापै विश्वास राखै। कबहूँ निराश न हो।

अहमसे बचें अहंकार दूरी ही हाथ जोड़ लें या अपने समीप न आवन दें। अहंकारको त्याग होते ही सबको त्याग है जाय है। मायाके अनुचरनमें यह सबस बड़ौ-बूढ़ी है। यही अनादि कालसाँ जीवकूँ मायाके बन्धनमें जकड़ भगवान् विमुख राखे है। संसूत मूल सूलप्रद नाना। सकल सोक दायक अभिमाना ॥ अतः काढू बातको अभिमान न कर बैठे। श्रीभगवत्कृपाकी आभार मानतौ रहे कृपाके स्मरणसौं दीन भाव सदैव ही बनाये रहे।

भगवत्कृपाका आभार माने- अनुकूल-प्रतिकूल कैसी हू परिस्थिति होय सबमें श्रीभगवत्कृपाको ही दर्शन करै। कृपाको आभार माने यही कह बैठे मेरे जैसे क्षुद्रपै इतनी कृपा प्राणनाथ कहूँ भूल तो नहीं कर बैठे। दूसरेकी कृपा मोपै कर बैठे सौ उदाहरण श्रीदामाजी पन्त एवं श्रीप्रतापजी है। स्वयं मोपै श्रीगुरुदेव तथा श्रीगिरिराजजीकी कितनी कृपा है।

पात्र बने, पात्रता है- प्राप्त कृपाकी सँभार संत अच्छी खेत देखें वहीं बीज बो देय है। अतः पात्र बनना है। संसारमें लाखन लोग ऐसे हैं, जिनकूँ भजनके लिये अवकाश ही नहीं है, किन्तु जिनकूँ श्रीठाकुरजीने पूरी सुविधा भजनके लिये दे रखी है।मनुष्य जन्म, भारतवर्षमें द्विजाति, श्रीसद्गुरुकी प्राप्ति, धामवास, आजीविकाके लिये कोई चिन्ता नहीं। केवल इनके लिये चौबीस घण्टे लगाय सकें। यदि ऐसी स्थितिमें हू इनके लिये न लगे तो फिर कहा होयगौ ? हू भगवान् ही जानें। जब श्रीभगवान्‌की ओरसों पूरी कृपा है तौ अब हमलोगनकौ हू कर्तव्य है इनकी कृपाकी सँभार करें। कृपाकी सँभार करेंगे तो और कृपा होगी। जैसे हम भिक्षाकूँ जहाँ जायँ वे लोग रोटी दाल-साग सब परिश्रम करके बनायें हैं। हम जायकें पायवे बैठ जाय हैं। पत्तल परोस दें, हमें केवल हाथ चलायक पानी है। हम पाते जायँ तौ वे लोग और परोसते जायें। तृप्त है पावैं जबतक परोसे हैं। यदि हम नहीं पावैं तौ वे जो परोसा गया है वाहूकूँ उठाय लेंगे और • आगे नहीं बुलावेंगे। याही प्रकार विश्वास करौ जो कृपा जीवनधनने की है, वाकूँ सँभारें तौ और कृपा प्राप्त होती चली जायगी। इनके यहाँ कृपाकी कमी नहीं है। धैर्यपूर्वक इनके प्रेमकी प्राप्तिके प्रयत्नमें पूरी सच्चाईसौं लगें। घबड़ावै नहीं।

कृपाकी सँभार - श्रीभगवान्‌को अत्यन्त कृपा है। जा कृपाके लिये देवता हू तरसें हैं, संसारमें जो सर्वथा दुर्लभ है, वही कृपा तुमलोगनकूँ आज सहज सुलभ है। प्राणनाथकूँ धन्यवाद दें। मेरे जैसे अधम जीवपै इतनी कृपा कर दई । अब या कृपास लाभ उठाय लें। या कृपाकूँ ऐसे सँभारे जैसे काहू वृक्षकी ऊँची डालीपरसों कोई नीचे गिरै, अचानक कोई दूसरी डाली वाके हाथ आ जाय तो वह कितनी दृढ़तासाँ एवं सतर्कतासौं वाकूँ पकरैगौ डाली छूटी नीचे गिरे और मृत्यु हुई। याही प्रकार श्रीभगवत्कृपाकौ दृढ़ अवलम्बन लेय। यदि कृपाको सदुपयोग नहीं भयौ तौ पतन, चौरासीके चक्कर में गिरनौ परैगौ न जाने कितने कल्पनके पीछे ऐसौ अवसर आवैगौ जैसौ आज है। अतः आगे बढ़े।



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kripaaka aashray, aabhaar aur sanbhaara

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