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गौमाताकी कृपा

जो कृपाका सागर है, उसके सान्निध्य में तुम्हारी गागरका भर जाना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। गौमाताकी कृपावर्षा तो अविरत हो रही है, बस इस अनुभवकी पात्रता हो। गौमाताका जीवन तो केवल परोपकारार्थ ही है।

मैं पामर भी इस कृपानुभूतिका भागी हूँ। और इसके लिये मेँ गीताप्रेस-गोरखपुरका आभारी हूँ। आपके गोसेवा विशेषांकने मुझे सही मायने में गौमाताकी महिमा समझायी है। जैसे ही मैंने इस अंकको पढ़ा, मैं सजगतासे गोसेवामें लीन हो गया। फिर कृपानुभूतिका कहना ही क्या था। रोज नयी अनुभूति होने लगी।

धीरे-धीरे गौशालामें वृद्धि होने लगी। इस क्षेत्रमें कार्यरत होनेवाले बहुत से लोग तो गाय आनेके पहले ही उसके चारा और पानीके लिये आक्रोश करते हैं, पर मेरी यह धारणा है कि गाय अपना चारा-पानी सब साथमें लाती है, हम केवल निमित्तमात्र हैं।

मेरे पास गिनतीकी गायें थीं, तब भी मैं चारेके लिये परेशान रहता था। लेकिन गौशाला बननेके बाद गौओंकी संख्या तो बहुत बढ़ी, लेकिन मैं चारा और पानीके लिये कभी चिन्तित नहीं हुआ। प्रबन्ध कैसे होता रहा, इसका पतातक नहीं चला।

विधिका विधानतक बदलनेकी क्षमता गौमातामें है। मेरे जीवनके ऐसे कई अरिष्ट विधान गौमाताने बदल दिये हैं। इसका केवल एक ही कारण हैं मेरी गोसेवा अभी बाकी है।

कई बार मैंने मृत्युको बहुत करीबसे देखा है। एक-दो बार तो जीवन और मृत्युका अन्तर नहींके बराबर था। लेकिन गौमाताने ऐसा चमत्कार किया

कि मानो कुछ हुआ ही नहीं। एक बार मैं अपनी गाड़ीसे गौशाला जा रहा था।सबेरेका समय था, सड़कपर यातायात नहींके बराबर था। साथमें मेरा बेटा स्वानन्द बगलमें बैठा था। गाड़ी अपनी रफ्तारसे भाग रही थी। अचानक एक मोटरसाइकिल गाड़ीके सामने आयी और पलक झपकनेसे भी कम समयमें गाड़ीने उसे उड़ा दिया। उसके ऊपर दो व्यक्ति सवार थे, पीछे एक बड़ा बोरा बँधा हुआ था। मैंने बचानेकी भरपूर कोशिश की, लेकिन जो होना था, सो हो गया। गाड़ी एक पेड़से टकरायी, मुझे पैरमें बड़ी चोट आयी और मैं बेहोश हो गया। लेकिन चमत्कार तो आगे होना था। क्षणमात्रमें

पीछे से एक एम्बुलेन्स आयी, मुझे उठाया और अस्पताल ले गयी। मानो पहलेसे ही सब कुछ तय था। बादमें पता चला, गाड़ीके नीचे आये वे दोनों सवार कसाई थे। उनके बोरेमें गोमांस भरा पड़ा था और वे दोनों गायको काटकर भागनेकी कोशिशमें थे। उनके गुनाहकी सजा तय थी। सजा दिलवानेके लिये गौमाताने मुझे चुना था और मेरा रक्षण भी गौमाताने ही किया। इससे बड़ी कृपाकी और क्या अनुभूति हो सकती है ?

बीचमें दो-तीन बार मुझे जानलेवा गम्भीर व्याधियोंने घेरा। लेकिन मैं हर बार सही-सलामत बाहर आया।

समस्या और संकट तो साथ-साथ चलते ही रहे हैं। लेकिन जब भी समस्याओंका बोझ सहा नहीं जाता, तब गौमातासे प्रार्थना करता हूँ। आजतक उसने कभी निराश नहीं किया।

बस, गोमातासे एक ही प्रार्थना है— जीवनके अन्ततक मैं गोसेवामें लगा रहूँ और उसकी कृपाकी नयी-नयी अनुभूतियोंका भागी बनूँ। जय गौमाता!

[ डॉ० श्रीराजेशजी चौधरी ]



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gaumaataakee kripaa

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mere paas ginateekee gaayen theen, tab bhee main chaareke liye pareshaan rahata thaa. lekin gaushaala bananeke baad gauonkee sankhya to bahut badha़ee, lekin main chaara aur paaneeke liye kabhee chintit naheen huaa. prabandh kaise hota raha, isaka pataatak naheen chalaa.

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samasya aur sankat to saatha-saath chalate hee rahe hain. lekin jab bhee samasyaaonka bojh saha naheen jaata, tab gaumaataase praarthana karata hoon. aajatak usane kabhee niraash naheen kiyaa.

bas, gomaataase ek hee praarthana hai— jeevanake antatak main gosevaamen laga rahoon aur usakee kripaakee nayee-nayee anubhootiyonka bhaagee banoon. jay gaumaataa!

[ daॉ0 shreeraajeshajee chaudharee ]

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