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प्रार्थनासे क्या नहीं हो सकता

एक रात्रिको मैं अपने अध्ययन-कक्षमें बैठी थी। परीक्षा समीप थी, अतः पढ़नेमें तल्लीन थी कि अचानक मेरा ध्यान बाहर होनेवाले परस्परके वार्तालापसे टूटा। भैया कह रहे थे कि 'कोई युवक अस्पतालमें आया हुआ है, जिसे डॉक्टरने मार्फियाके इंजेक्शन दिये थे, पर उनको सह न सकनेके कारण उसकी दशा अत्यन्त शोचनीय थी। सभी डॉक्टर उसे जवाब दे चुके थे। युवकका पिता सभीके पैरों पड़कर प्रार्थना कर रहा था कि मेरे पुत्रको बचा लीजिये। उन सज्जनका वह एकमात्र पुत्र था । युवकका विवाह हुए अभी कुछ ही मास हुए थे। पत्नी बार-बार 'इन्हें बचाइये' कहकर चेतनाहीन हो जाती थी। वे सज्जन किसी ग्रामसे आये हुए थे, अतः उस स्थानपर उनकी सहायता करनेवाला भी कोई नहीं था। पूरे शहर में उसकी चर्चा थी ।' यह वार्तालाप सुनकर मेरी आँखोंसे अश्रु बहचले। मुझे रह-रहकर उस युवतीका ध्यान हो जाता था, जिसका सुनहरा संसार उजड़ा जा रहा था, जिसके स्वप्न चूर-चूर हो रहे थे और हो आता था उन सज्जनका ध्यान, जिनकी समस्त आशाओंका केन्द्र और जीनेका सहारा बिछुड़ रहा था। मेरे हृदयपर आघात लगा और मैं फफक-फफककर रो पड़ी। मेरा हृदय चीख उठा—'ऐसा नहीं हो सकता। भगवान् इतने कठोर नहीं हैं।' साथ ही मैंने प्रभुसे कातर प्रार्थना की कि 'नाथ! मेरा जीवन ले लो। मेरे पीछे किसीका संसार तो नहीं नष्ट हो रहा है। माता-पिता, बन्धु-बान्धव हैं, दो क्षण रोयेंगे और भुला देंगे; पर उस युवककी मृत्युसे एकका स्वर्णिम संसार तहस नहस होगा तो दूसरेका अन्धकारमय।' इस प्रकार मन-ही-मन कहते-कहते मेरे चक्षु बन्द हो गये, हाथ जुड़ गये और मस्तक उस महिमामयके चरणोंमें नत हो गया। जाने कबतक मैं रोती रही, उस युवककेजीवनके लिये प्रार्थना करती रही और अन्तमें 'प्रभु । तुम्हें मेरी पुकार सुननी ही पड़ेगी।' कहकर आँसू पोंछकर पढ़ने लगी। यह उस युवककी अन्तिम निशा बतायी गयी थी। सोते समय फिर इस घटनाका स्मरण हो आया और मेरे आँसू उमड़ चले। मैं प्रार्थना करते-करते निद्राभिभूत हो गयी। प्रातःकाल भी मैंने अन्तःकरणसे उस युवकके जीवनकी प्रार्थना की और बड़ी विकलतासे प्रतीक्षा करने लगी कि क्या सूचना मिलती है। कुछ समय पश्चात् भैया लौटकर आये तो उन्होंने बताया कि 'जीवित तो है, किंतु दशा पहले से भी खराब है। न किसीको पहचानता है, न आँख ही खोलता है और अनाप-शनाप बके जा रहा है।' यह सुनकर फिर नयन भर आये। मैं पुनः अपने अध्ययनकक्षमें गयी; क्योंकि यही ऐसा एकान्त स्थानथा, जहाँ मैं कुछ क्षण शान्तिसे बैठ सकती थी। मैंने पुनः प्रार्थना की; मुझे दृढ़ विश्वास हो गया कि मेरी प्रार्थना और मेरे अश्रु निष्फल नहीं जा सकते। संध्याकालमें सूचना मिली कि अब उस युवककी दशा सुधर रही है और जीवनके लक्षण दीखने लगे हैं। मुझे अपार हर्ष हुआ कि उन सज्जनकी उजड़ती दुनियामें बहार लौट आयी। धीरे-धीरे वह युवक पूर्ण स्वस्थ हो गया और अपने निवास स्थानपर लौट गया। वह कहाँसे आया था और कौन था— यह मैं नहीं जानती, पर इतना अवश्य है कि मेरी पुकार प्रभुने सुन ली थी। उस युवककी स्वस्थताकी सूचनाने पुनः मेरे नेत्रोंमें अश्रु ला दिये, वे प्रभुके प्रति कृतज्ञताके आँसू थे और तबसे प्रार्थना ही मेरे जीवनकी पूजा-अर्चना है।

[सुश्री स्नेहप्रभाजी ]



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praarthanaase kya naheen ho sakataa

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[sushree snehaprabhaajee ]

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