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बाबा वैद्यनाथकी कृपा

करुणावरुणालय भगवान् शंकर अपने शरणापन्न जनका बड़े-से-बड़े संकट, रोगादिसे परित्राण कर देते हैं। यह घटना उन्हींकी वत्सलताका प्रत्यक्ष निदर्शन है।

हमारा पाँच सदस्योंका परिवार था, जिसमें हम पति-पत्नी, दो लड़कियाँ और एक बेटा था परिवार सीमित एवं खुशहाल था सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी सहसा सन् १९९१ ई० में मेरी छोटी बेटीका देहान्त हो गया। मैं जबतक इस शोकसे उबर पाता, तबतक मुझे टी०बी० हो गयी। गाँवके सरकारी अस्पतालमें कुछ दिन इलाज चला, यत्किंचित् लाभ भी हुआ, परंतु भगवान्की इच्छा कुछ और ही थी।

मैं गाँवके अस्पतालको छोड़कर इलाज के लिये जिला अस्पताल चला गया। वहाँ जानेपर बीमारी और भी बढ़ गयी। इससे हताश होकर मैं तमिलनाडुके एक मिशन अस्पतालमें गया। लगभग दो महीने वहाँ भी इलाज होता रहा, किंतु कुछ भी लाभ न हुआ और बीमारी बढ़ती ही रही। इसके बाद मैं कुर्ला मेडिकल कॉलेज गया। वहाँके टी०बी० रोगके विभागीय प्रोफेसरने मेरे केसका अध्ययन किया, कुछ परीक्षण करवाये और सारी रिपोर्ट आदि देखकर बोले-'आश्चर्य है कि आप अभीतक जीवित हैं। आपको दी गयी दवाएँ तो अन्तिम चरणके रोगीको दी जाती हैं।' उन दवाओंके कारण शरीरमें अत्यधिक मात्रामें पस बन गया था। वहाँ मैं छब्बीस दिन भरती रहा। पहले दिनसीरिंजसे १ लीटरके करीब पस निकाला गया। ऐसी ही स्थिति कई दिनोंतक बनी रही। बादमें पन्द्रह-पन्द्रह दिनके अन्तरसे आनेको कहकर मुझे डिस्चार्ज कर दिया गया। जीवन संकटमें था, एकमात्र परमात्माका ही भरोसा रह गया था।

इसी बीच एक दिन तीर्थयात्रा करानेवाले पण्डितजी घर आये। उन्होंने वैद्यनाथधामकी यात्राका प्रस्ताव किया। मैंने अपनी विवशता बतलायी, परंतु मेरी धर्मनिष्ठ पत्नीने उस प्रस्तावको यह कहकर स्वीकार कर लिया कि 'बाबा जो करेंगे, वह अच्छा ही होगा।' मैंने अपने डॉक्टरसे आवश्यक निर्देश तथा ओषधि लेकर सपरिवार यात्रा आरम्भ की १५ दिवसीय उस यात्रामें विभिन्न तीर्थोंमें भ्रमण करते हुए हम लोग सुलतानगंज पहुँचे वहाँसे काँवरमें जल भरकर उस ग्णतामें भी हम 'बोल बम' का नारा लगाते हुए पहले दिन ३५ कि०मी० चले। दूसरे दिन भी हमने उतना ही रास्ता तय किया। तीसरे दिन प्रातः तीन बजे हमने यात्रा आरम्भ की और शामके चार बजे बाबाके दरबार देवपर पहुँच गये। वहाँ बाबा वैद्यनाथको गंगाजल अर्पण किया और अपने रोग-शोकको हरनेकी प्रार्थना की। इतनी बड़ी यात्रा बड़े आनन्द और सुगमतापूर्वक सम्पन्न हो गयी यह मेरे लिये महान् आश्चर्यका विषय था।

यात्रासे लौटकर हम घर आये और फिर पस निकलवानेके लिये कुर्ला गये। डॉक्टरने जाँच की और पस निकालना चाहा तो आधा मि०ली० भी पस नहीं निकला और रोग भी पूरी तरह निर्मूल हो चुका था। डॉक्टरने कहा- 'मृत्युके मुखमें जा रहे आपको बाबा वैद्यनाथने ही बचाया है।'

इस प्रकार उन दीनबन्धु वैद्यनाथकी अनुकम्पाने मेरा उस महाव्याधिसे सर्वथा परित्राण किया, जिससे मेरी रक्षा कर पाना संसारके किसी भी चिकित्सकके लिये सम्भव न था। [ श्रीरवीर सागरजी नायक ]



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baaba vaidyanaathakee kripaa

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hamaara paanch sadasyonka parivaar tha, jisamen ham pati-patnee, do lada़kiyaan aur ek beta tha parivaar seemit evan khushahaal tha sab kuchh theek chal raha tha, tabhee sahasa san 1991 ee0 men meree chhotee beteeka dehaant ho gayaa. main jabatak is shokase ubar paata, tabatak mujhe tee0bee0 ho gayee. gaanvake sarakaaree aspataalamen kuchh din ilaaj chala, yatkinchit laabh bhee hua, parantu bhagavaankee ichchha kuchh aur hee thee.

main gaanvake aspataalako chhoda़kar ilaaj ke liye jila aspataal chala gayaa. vahaan jaanepar beemaaree aur bhee badha़ gayee. isase hataash hokar main tamilanaaduke ek mishan aspataalamen gayaa. lagabhag do maheene vahaan bhee ilaaj hota raha, kintu kuchh bhee laabh n hua aur beemaaree badha़tee hee rahee. isake baad main kurla medikal kaॉlej gayaa. vahaanke tee0bee0 rogake vibhaageey prophesarane mere kesaka adhyayan kiya, kuchh pareekshan karavaaye aur saaree riport aadi dekhakar bole-'aashchary hai ki aap abheetak jeevit hain. aapako dee gayee davaaen to antim charanake rogeeko dee jaatee hain.' un davaaonke kaaran shareeramen atyadhik maatraamen pas ban gaya thaa. vahaan main chhabbees din bharatee rahaa. pahale dinaseerinjase 1 leetarake kareeb pas nikaala gayaa. aisee hee sthiti kaee dinontak banee rahee. baadamen pandraha-pandrah dinake antarase aaneko kahakar mujhe dischaarj kar diya gayaa. jeevan sankatamen tha, ekamaatr paramaatmaaka hee bharosa rah gaya thaa.

isee beech ek din teerthayaatra karaanevaale panditajee ghar aaye. unhonne vaidyanaathadhaamakee yaatraaka prastaav kiyaa. mainne apanee vivashata batalaayee, parantu meree dharmanishth patneene us prastaavako yah kahakar sveekaar kar liya ki 'baaba jo karenge, vah achchha hee hogaa.' mainne apane daॉktarase aavashyak nirdesh tatha oshadhi lekar saparivaar yaatra aarambh kee 15 divaseey us yaatraamen vibhinn teerthonmen bhraman karate hue ham log sulataanaganj pahunche vahaanse kaanvaramen jal bharakar us gnataamen bhee ham 'bol bama' ka naara lagaate hue pahale din 35 ki0mee0 chale. doosare din bhee hamane utana hee raasta tay kiyaa. teesare din praatah teen baje hamane yaatra aarambh kee aur shaamake chaar baje baabaake darabaar devapar pahunch gaye. vahaan baaba vaidyanaathako gangaajal arpan kiya aur apane roga-shokako haranekee praarthana kee. itanee bada़ee yaatra bada़e aanand aur sugamataapoorvak sampann ho gayee yah mere liye mahaan aashcharyaka vishay thaa.

yaatraase lautakar ham ghar aaye aur phir pas nikalavaaneke liye kurla gaye. daॉktarane jaanch kee aur pas nikaalana chaaha to aadha mi0lee0 bhee pas naheen nikala aur rog bhee pooree tarah nirmool ho chuka thaa. daॉktarane kahaa- 'mrityuke mukhamen ja rahe aapako baaba vaidyanaathane hee bachaaya hai.'

is prakaar un deenabandhu vaidyanaathakee anukampaane mera us mahaavyaadhise sarvatha paritraan kiya, jisase meree raksha kar paana sansaarake kisee bhee chikitsakake liye sambhav n thaa. [ shreeraveer saagarajee naayak ]

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