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भगवान् भक्तके साथ रहते हैं

सन् १९५८ ई० की बात है। नैनीतालमें औद्योगिक प्रदर्शनी लगी थी। जिसमें जिला उद्योग अधिकारीकी आज्ञासे रामपुरकी औद्योगिक वस्तुओंको लेकर मैं भी गया था। उस समय में रामपुरमें मुख्य लिपिकके पदपर काम कर रहा था। वह प्रदर्शनी करीब आठ दिनोंसे अधिक रही। मैं भी वहीं रहा। एक दिन मैं वहाँकी सबसे ऊँची पर्वतीय चोटी-चाइनापीक देखने गया। रास्तेमें मैंने देखा कि सड़क घूमकर गयी थी; पर कुछ पहाड़ी लोग पहाड़ियोंसे उतरकर नजदीकके रास्ते (short cut)- से निकल जाते थे। इस प्रकार वे कई फर्लांगोंकी दूरी बचा लेते थे। मेरे मनमें भी यही विचार हुआ कि लौटते समय मैं भी इसी प्रकार नजदीकके रास्तेसे पहाड़ी उतरकर अपने मार्गको सुगम बनाऊँगा। अतः जब मैं लौटा तो मैंने भी ऐसा करनेका प्रयत्न किया। कई स्थानोंपर सफलता भी मिली, किंतु कुछ दूर जाकर मैं भूलसे एक खड्डमें पहुँच गया और जब कुछ और आगे बढ़ा तो मैंने अपनेको करीब ५०० फुटसे अधिक गहरे खड्डमें पाया; वहाँसे मुझे कोई रास्ता नहीं दिखायी दिया। मैं कुछ पीछेकी तरफ लौटा, किंतु यह समझ न सका कि उस गड्ढे में किधरसे आया था। सूर्यभगवान् अस्ताचलकी ओर जा रहे थे। अब मैंने समझ लिया कि यहाँसे निकलना असम्भव है; क्योंकि दूर-दूरतक सिवा ऊँचे-ऊँचे पहाड़ी वृक्षोंके और कुछ भी नहीं दिखायी दे रहा था। एक नदीका सोता था, जिसमें बड़े-बड़े पत्थर थे। मैंने विचार किया कि इन पत्थरोंके नीचे आज रात गुजारी जाय, जिससे कोई जंगली जानवर मुझे देख न पाये। ऐसी जगहोंपर बाघ बघेरोंका रहना स्वाभाविक होता है, जो छिपे मनुष्योंको भी गन्धसे मालूम कर लेते हैं। इधर रात हो रही थी; सिवा मरनेके और कोई चारा नहीं था। किंतु ऐसी स्थितिमें भी आदमीको कभी निराश नहीं होना चाहिये। मैं अपने-आपको भक्त तो नहीं कह सकता, परंतु इतना जरूर कहूँगा कि जब कभी मैंने भगवान्को याद किया, मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि भगवान् सर्वदा मेरे पास हैं। अतः आज भी मैं उस खड्डसे जरा आगे बढ़ा और दो मिनटतक शंकरभगवान्‌को याद किया। मैंने सहज ही आर्त भावसे कहा-'हे शंकर भगवान्! आप सर्वव्यापी हैं, फिर भी यह कहा जाता है कि कैलासपर्वत आपका निवास स्थान है। यह पर्वतीय प्रदेश भी उसी कैलासका एक भाग है। क्या आप नहीं देख रहे हैं कि मैं इस खड्डमें हूँ और थोड़ी ही देर बाद वन्यपशुओंका आहार बननेवाला हूँ।' इसके बाद मैंने सामने नजर डाली तो क्या देखता हूँ कि एक लम्बा-चौड़ा आदमी सिरपर घासका गट्ठर रखे चला आ रहा है। मैंने उससे कहा — 'भाई! मुझे मल्ली-ताल जाना है।' उसने कहा — 'मेरे साथ चलो।' मैं दो ही मिनट उसके साथ चला और अपने-आपको मैंने बहुत ऊँचाईपर पाया। उसने कहा कि 'तुम इधरसे चले जाओ, मल्ली-ताल पहुँच जाओगे।' इसके अगले ही क्षण मैंने देखा कि मैं अकेला ही एक पहाड़ीपर हूँ।'

मेरा वह मार्गदर्शक न जाने कहाँ ओझल हो गया। अब मुझको विश्वास हो गया कि वह मार्गदर्शक कोई पहाड़ी घसियारा नहीं था, बल्कि सहज कृपालु आशुतोष शंकरभगवान् ही स्वयं मुझे खड्डसे निकालने आये थे; क्योंकि उस खड्डमें कोई घसियारा घास लेने नहीं जा सकता।

मैंने अपना यह अनुभव पाठकोंके सामने केवल इसलिये रखा है, जिससे वे विश्वास करें कि इस कलिकालमें भी, जिसमें चारों ओर पापोंके काले बादल छाये हुए हैं, भगवान् जरा-सा विश्वास रखकर पुकारते ही दीनोंकी-असहायोंकी रक्षा करते हैं।

[ श्रीसरदारसिंहजी सिनहा ]



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bhagavaan bhaktake saath rahate hain

san 1958 ee0 kee baat hai. naineetaalamen audyogik pradarshanee lagee thee. jisamen jila udyog adhikaareekee aajnaase raamapurakee audyogik vastuonko lekar main bhee gaya thaa. us samay men raamapuramen mukhy lipikake padapar kaam kar raha thaa. vah pradarshanee kareeb aath dinonse adhik rahee. main bhee vaheen rahaa. ek din main vahaankee sabase oonchee parvateey chotee-chaainaapeek dekhane gayaa. raastemen mainne dekha ki sada़k ghoomakar gayee thee; par kuchh pahaada़ee log pahaada़iyonse utarakar najadeekake raaste (short cut)- se nikal jaate the. is prakaar ve kaee pharlaangonkee dooree bacha lete the. mere manamen bhee yahee vichaar hua ki lautate samay main bhee isee prakaar najadeekake raastese pahaada़ee utarakar apane maargako sugam banaaoongaa. atah jab main lauta to mainne bhee aisa karaneka prayatn kiyaa. kaee sthaanonpar saphalata bhee milee, kintu kuchh door jaakar main bhoolase ek khaddamen pahunch gaya aur jab kuchh aur aage badha़a to mainne apaneko kareeb 500 phutase adhik gahare khaddamen paayaa; vahaanse mujhe koee raasta naheen dikhaayee diyaa. main kuchh peechhekee taraph lauta, kintu yah samajh n saka ki us gaddhe men kidharase aaya thaa. sooryabhagavaan astaachalakee or ja rahe the. ab mainne samajh liya ki yahaanse nikalana asambhav hai; kyonki doora-dooratak siva oonche-oonche pahaada़ee vrikshonke aur kuchh bhee naheen dikhaayee de raha thaa. ek nadeeka sota tha, jisamen bada़e-bada़e patthar the. mainne vichaar kiya ki in pattharonke neeche aaj raat gujaaree jaay, jisase koee jangalee jaanavar mujhe dekh n paaye. aisee jagahonpar baagh bagheronka rahana svaabhaavik hota hai, jo chhipe manushyonko bhee gandhase maaloom kar lete hain. idhar raat ho rahee thee; siva maraneke aur koee chaara naheen thaa. kintu aisee sthitimen bhee aadameeko kabhee niraash naheen hona chaahiye. main apane-aapako bhakt to naheen kah sakata, parantu itana jaroor kahoonga ki jab kabhee mainne bhagavaanko yaad kiya, mujhe aisa prateet hua ki bhagavaan sarvada mere paas hain. atah aaj bhee main us khaddase jara aage badha़a aur do minatatak shankarabhagavaan‌ko yaad kiyaa. mainne sahaj hee aart bhaavase kahaa-'he shankar bhagavaan! aap sarvavyaapee hain, phir bhee yah kaha jaata hai ki kailaasaparvat aapaka nivaas sthaan hai. yah parvateey pradesh bhee usee kailaasaka ek bhaag hai. kya aap naheen dekh rahe hain ki main is khaddamen hoon aur thoda़ee hee der baad vanyapashuonka aahaar bananevaala hoon.' isake baad mainne saamane najar daalee to kya dekhata hoon ki ek lambaa-chauda़a aadamee sirapar ghaasaka gatthar rakhe chala a raha hai. mainne usase kaha — 'bhaaee! mujhe mallee-taal jaana hai.' usane kaha — 'mere saath chalo.' main do hee minat usake saath chala aur apane-aapako mainne bahut oonchaaeepar paayaa. usane kaha ki 'tum idharase chale jaao, mallee-taal pahunch jaaoge.' isake agale hee kshan mainne dekha ki main akela hee ek pahaada़eepar hoon.'

mera vah maargadarshak n jaane kahaan ojhal ho gayaa. ab mujhako vishvaas ho gaya ki vah maargadarshak koee pahaada़ee ghasiyaara naheen tha, balki sahaj kripaalu aashutosh shankarabhagavaan hee svayan mujhe khaddase nikaalane aaye the; kyonki us khaddamen koee ghasiyaara ghaas lene naheen ja sakataa.

mainne apana yah anubhav paathakonke saamane keval isaliye rakha hai, jisase ve vishvaas karen ki is kalikaalamen bhee, jisamen chaaron or paaponke kaale baadal chhaaye hue hain, bhagavaan jaraa-sa vishvaas rakhakar pukaarate hee deenonkee-asahaayonkee raksha karate hain.

[ shreesaradaarasinhajee sinaha ]

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बहुत दिन बीत गए, बहुत युग बीत गए ॥
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घर घर ज्योत जगी मैया की आये माँ के