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भगवत्कृपापर विश्वास

मैं ग्रीष्मकालमें सप्ताहके तीन दिन तीसरे पहरका समय 'दुधसेंटर के पुस्तकालय, जिसमें मेरी रुचि थी, बिताया करती थी। पत्र-पत्रिकाओं तथा पुस्तकोंसे सजे मेज और आराम कुर्सियोंसे अलंकृत पुस्तकालयके ठंडे मनोरम कमरे में सड़ककी चिलचिलाती धूपसे निकलकर प्रवेश करना बहुत आनन्ददायक लगता था।

एक दिन तीसरे पहर मैंने पुस्तकालयमें एक युवती लड़की को देखा। उसे मैंने पहले कभी-कभी रविवारकी प्रार्थनामें भी देखा था। वह खिड़कीके समीप बैठकर 'यूनिटी मैगजिन' पढ़नेका प्रयत्न कर रही थी। सिसकनेकी सी आवाज आयी। एक बार जब मैंने उसकी ओर देखा, तब वह चश्मा उतारकर आँखें पोंछ रही थी। उसने घूमकर देखा कि किसीने उसे ऐसा करते देख तो नहीं लिया है। मैं अपने काममें लग गयी, जैसे कि मैंने उधर देखा ही न हो।

कुछ क्षणोंके बाद मैंने देखा कि लड़की पत्रिकाको अलग रखकर निराशाको मुद्रामें खिड़कीके बाहरकी ओर देख रही है और उसकी आँखोंमें आँसू छलक आये हैं। समय अधिक हो रहा था, अतः वाचनालय में हम दोनोंके सिवा अन्य कोई न था। मैंने उसके समीप जाकर उससे पूछा- 'क्या इस सम्बन्धमें तुम मुझे कुछ बतला सकोगी? या इसे अपनेतक ही सीमित रखोगी ?"

आँसुओंसे भींगा रूमाल हटाकर वह जोर-जोरसे सिसकने लगी। मैंने उसके पास ही खिड़कीके निकट बैठकर उसे समझाया—'बहन! यहाँ न कोई देख रहा है, न सुन रहा है, जो कुछ भी बात हो, कह डाली। इसके बाद ही तुम्हारा बोझा हलका हो जायगा।' थोड़ी ही देरमें उसने एक गहरी सिसकी ली। फिर कहा 'आपकी बड़ी दया है, परंतु मुझे खेद है कि मैं वह बात आपको नहीं बतला सकती।'

उसके फिर कुछ कहनेके पहले ही मैंने कहा 'मुझे मालूम है। कभी-कभी ऐसे उद्गार निकल ही पड़ते हैं, फिर भी अब सोचना यह है कि क्या कियाजाय? मान लिया जाय कि हम इस सम्बन्धमें कुछ न कर पायें, परंतु ऐसी कोई भी बात नहीं है, जिसे ईश्वर न कर सकें। ईश्वर सब कुछ कर सकते हैं और वे हमसे करायेंगे। धैर्य धारण करो और इसका उत्तरदायित्व ईश्वरपर छोड़ दो।'

उसने सम्भवतः वैसा ही किया। उसका भार हलका हो गया। उसकी गम्भीर आँखोंने मुझे यह विश्वास दिलाया।

उसने फिर अपने आप ही कहा-'यदि आप सुनना चाहती हैं तो मैं कुछ इस सम्बन्धमें निवेदन करती हूँ। सम्भवतः आपसे सहायता मिले। क्या आप ध्यान देंगी ?'

'ध्यान! मैं किसीकी सहायता कर सकूँ, इससे बढ़कर और अच्छी बात मेरे लिये हो ही क्या सकती है? मैंने दूसरोंसे बड़ी सहायता ली है, इसीलिये दूसरोंकी सहायता करनेकी मुझे सदा चाह रहती है। किंतु 'ईश्वर ही सब कुछ करते हैं'- अपनी इस बातको ध्यानमें रखते हुए मैंने उससे कहा- 'तुम अपनी सारी बातें मुझे सुनाओ।'

कुर्सी पर आरामसे बैठकर उसने कहा-'मेरा एक बहुत आवश्यक कागज नहीं मिल रहा है। मैंने बहुत ढूँढ़ा, पर उसका कहीं पता न लगा। कल सबेरे ही मुझे उसकी अनिवार्य आवश्यकता है। कागज नहीं मिलेगा तो पता नहीं, मुझपर कितनी वैधानिक विपत्तियाँ आयेंगी! वह कागज सवेरे ही दिखलाना है। बताइये, मैं क्या करूँ ?'

डेस्कके दराजों या भीतरी पॉकटोंमें खोजने की बात न करके मैंने निर्भीकताके साथ उससे कहा- 'कागज मिले या न मिले ! तुम्हें अपने कामसे मतलब है या कागजसे ? तुम कागजके लिये इतनी परेशान क्यों हो?" उसने आश्चर्यसे कहा- क्यों? मेरी वस्तु है, मुझे मिलनी ही चाहिये।'

'ठीक है, थोड़ी देरके लिये कागजकी बात भूल जाओ और सोचो कि वह तुम्हारा कौन सा काम है, जो सरलतासे सफल हो जाय और उससे सम्बन्धित दूसरे सभी लोगोंका हित हो।'"पर यह सब तो कागज मिलनेपर ही होगा। मुझे तो सबसे पहले कागज दिखलाना है।'

'सम्भवत: नहीं', कहकर मैं मुसकरायी। 'कदाचित् बिना कागज दिखाये ही ईश्वर सब कुछ ठीक कर दें। तुम यदि ईश्वरपर विश्वास करके सब बातें उन्हें सही-सही बता दो और उचित रूपसे अपनी स्थिति समझा दो तो तुम उनके निर्णयपर आश्चर्यचकित हो जाओगी। कोई कागज रहे या न रहे। ईश्वर ठीक कर लेंगे, सब कुछ ठीक कर लेंगे।'

एक क्षण सोचनेके बाद उसने कहा-'मैं आपका विश्वास करती हूँ।' वह शिष्ट और दृढ़ संकल्पवाली प्रतीत होती थी। उसने अपने झोलेको सँभालकर हैट (टोप) ठीक किया, साँस ली और लहँगेका किनारा ठीककर (वह अपने शरीरके बलपर) खड़ी हो गयी। "क्या आप कागजके टुकड़ेपर लिख देंगी कि 'ईश्वर सब कुछ ठीक कर देंगे, जिससे मैं उसे अपने साथ ले जा सकूँ।'

मैंने उसके कहनेके अनुसार लिख दिया, तब उसने कहा- 'अब मैं घर जाकर एक बार फिर कागज खोज निकालनेका प्रयत्न करूंगी। यदि मैं न पा सकी तो भी मैं कल उनसे मिलने जाऊँगी। मैं कागजके लिये इतनी किंकर्तव्यविमूढ़ हो गयी थी कि मुझे पता ही न चला कि इस कामके लिये दूसरा रास्ता भी हो सकता है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि सब कुछ ठीक ही होगा। जो कुछ भी होगा, मैं आपको बतला दूँगी।'

मुझे चुपकेसे धन्यवाद देकर वह चली गयी। मैंनेऔर बातोंसे मन हटाकर देखा कि वह निश्चिन्त और स्वस्थचित्त होकर चली जा रही है। अब उसके चेहरेपर किसी प्रकारके भयकी रेखा न थी। उसने स्वीकार किया। था कि सब कुछ ठीक होगा और ऐसा ही हुआ भी। ईश्वरने पहलेसे ही सब बातें ठीक कर रखी थीं। दूसरे सप्ताह वह लौट आयी। वह मेरी डेस्कके सामने धरिसे खड़ी हो गयी और प्रेम तथा कृतज्ञता प्रकटकर मुसकराने लगी।

'सब ठीक है।' उसने कहा- 'कागज तो नहीं मिला। सचमुच खो ही गया, ऐसा समझती हूँ; किंतु दूसरे दिन सबेरे जब मैं उनसे भेंट करने गयी तो उन लोगोंने कागजके सम्बन्धमें पूछातक नहीं। मैंने उनसे कह दिया कि कागज नहीं मिल सका, इसपर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा। मैं मुसकरायी। या तो उन्होंने यह समझा कि मैंने सत्य कहा है या वे भूल गये। पर फिर न मैंने ही वह बात चलायी और न उन्होंने ही प्रसंग छेड़ा। बस, जो कागज मेरे पास थे, उन्हींसे काम चलगया। निर्णय सर्वथा आशातीत और सन्तोषजनक हुआ।' इतना कहकर उसने मुझे धन्यवाद दिया (जो मेरी अपेक्षा ईश्वरके लिये ही अधिक था) और मुसकान बिखेरती हुई कुर्सी पर बैठ गयी।

मैं आजतक नहीं जान सकी कि वह कागज क्या था और उसमें क्या खास बात थी ? हाँ, मैंने उस डेस्कपर एक छोटा-सा चिह्न अवश्य बना दिया था, जिसे कि दिनमें मैं कई बार पढ़ सकूँ कि 'ईश्वर सब कुछ ठीक कर देंगे।'

[ एक अमेरिकन बहन ]



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Real Life Experience प्रभु दर्शन


bhagavatkripaapar vishvaasa

main greeshmakaalamen saptaahake teen din teesare paharaka samay 'dudhasentar ke pustakaalay, jisamen meree ruchi thee, bitaaya karatee thee. patra-patrikaaon tatha pustakonse saje mej aur aaraam kursiyonse alankrit pustakaalayake thande manoram kamare men sada़kakee chilachilaatee dhoopase nikalakar pravesh karana bahut aanandadaayak lagata thaa.

ek din teesare pahar mainne pustakaalayamen ek yuvatee lada़kee ko dekhaa. use mainne pahale kabhee-kabhee ravivaarakee praarthanaamen bhee dekha thaa. vah khida़keeke sameep baithakar 'yoonitee maigajina' paढ़neka prayatn kar rahee thee. sisakanekee see aavaaj aayee. ek baar jab mainne usakee or dekha, tab vah chashma utaarakar aankhen ponchh rahee thee. usane ghoomakar dekha ki kiseene use aisa karate dekh to naheen liya hai. main apane kaamamen lag gayee, jaise ki mainne udhar dekha hee n ho.

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aansuonse bheenga roomaal hataakar vah jora-jorase sisakane lagee. mainne usake paas hee khida़keeke nikat baithakar use samajhaayaa—'bahana! yahaan n koee dekh raha hai, n sun raha hai, jo kuchh bhee baat ho, kah daalee. isake baad hee tumhaara bojha halaka ho jaayagaa.' thoda़ee hee deramen usane ek gaharee sisakee lee. phir kaha 'aapakee bada़ee daya hai, parantu mujhe khed hai ki main vah baat aapako naheen batala sakatee.'

usake phir kuchh kahaneke pahale hee mainne kaha 'mujhe maaloom hai. kabhee-kabhee aise udgaar nikal hee pada़te hain, phir bhee ab sochana yah hai ki kya kiyaajaaya? maan liya jaay ki ham is sambandhamen kuchh n kar paayen, parantu aisee koee bhee baat naheen hai, jise eeshvar n kar saken. eeshvar sab kuchh kar sakate hain aur ve hamase karaayenge. dhairy dhaaran karo aur isaka uttaradaayitv eeshvarapar chhoda़ do.'

usane sambhavatah vaisa hee kiyaa. usaka bhaar halaka ho gayaa. usakee gambheer aankhonne mujhe yah vishvaas dilaayaa.

usane phir apane aap hee kahaa-'yadi aap sunana chaahatee hain to main kuchh is sambandhamen nivedan karatee hoon. sambhavatah aapase sahaayata mile. kya aap dhyaan dengee ?'

'dhyaana! main kiseekee sahaayata kar sakoon, isase badha़kar aur achchhee baat mere liye ho hee kya sakatee hai? mainne doosaronse bada़ee sahaayata lee hai, iseeliye doosaronkee sahaayata karanekee mujhe sada chaah rahatee hai. kintu 'eeshvar hee sab kuchh karate hain'- apanee is baatako dhyaanamen rakhate hue mainne usase kahaa- 'tum apanee saaree baaten mujhe sunaao.'

kursee par aaraamase baithakar usane kahaa-'mera ek bahut aavashyak kaagaj naheen mil raha hai. mainne bahut dhoonढ़a, par usaka kaheen pata n lagaa. kal sabere hee mujhe usakee anivaary aavashyakata hai. kaagaj naheen milega to pata naheen, mujhapar kitanee vaidhaanik vipattiyaan aayengee! vah kaagaj savere hee dikhalaana hai. bataaiye, main kya karoon ?'

deskake daraajon ya bheetaree paॉkatonmen khojane kee baat n karake mainne nirbheekataake saath usase kahaa- 'kaagaj mile ya n mile ! tumhen apane kaamase matalab hai ya kaagajase ? tum kaagajake liye itanee pareshaan kyon ho?" usane aashcharyase kahaa- kyon? meree vastu hai, mujhe milanee hee chaahiye.'

'theek hai, thoda़ee derake liye kaagajakee baat bhool jaao aur socho ki vah tumhaara kaun sa kaam hai, jo saralataase saphal ho jaay aur usase sambandhit doosare sabhee logonka hit ho.'"par yah sab to kaagaj milanepar hee hogaa. mujhe to sabase pahale kaagaj dikhalaana hai.'

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ek kshan sochaneke baad usane kahaa-'main aapaka vishvaas karatee hoon.' vah shisht aur dridha़ sankalpavaalee prateet hotee thee. usane apane jholeko sanbhaalakar hait (topa) theek kiya, saans lee aur lahangeka kinaara theekakar (vah apane shareerake balapara) khada़ee ho gayee. "kya aap kaagajake tukada़epar likh dengee ki 'eeshvar sab kuchh theek kar denge, jisase main use apane saath le ja sakoon.'

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mujhe chupakese dhanyavaad dekar vah chalee gayee. mainneaur baatonse man hataakar dekha ki vah nishchint aur svasthachitt hokar chalee ja rahee hai. ab usake cheharepar kisee prakaarake bhayakee rekha n thee. usane sveekaar kiyaa. tha ki sab kuchh theek hoga aur aisa hee hua bhee. eeshvarane pahalese hee sab baaten theek kar rakhee theen. doosare saptaah vah laut aayee. vah meree deskake saamane dharise khada़ee ho gayee aur prem tatha kritajnata prakatakar musakaraane lagee.

'sab theek hai.' usane kahaa- 'kaagaj to naheen milaa. sachamuch kho hee gaya, aisa samajhatee hoon; kintu doosare din sabere jab main unase bhent karane gayee to un logonne kaagajake sambandhamen poochhaatak naheen. mainne unase kah diya ki kaagaj naheen mil saka, isapar unhonne kuchh bhee naheen kahaa. main musakaraayee. ya to unhonne yah samajha ki mainne saty kaha hai ya ve bhool gaye. par phir n mainne hee vah baat chalaayee aur n unhonne hee prasang chheda़aa. bas, jo kaagaj mere paas the, unheense kaam chalagayaa. nirnay sarvatha aashaateet aur santoshajanak huaa.' itana kahakar usane mujhe dhanyavaad diya (jo meree apeksha eeshvarake liye hee adhik thaa) aur musakaan bikheratee huee kursee par baith gayee.

main aajatak naheen jaan sakee ki vah kaagaj kya tha aur usamen kya khaas baat thee ? haan, mainne us deskapar ek chhotaa-sa chihn avashy bana diya tha, jise ki dinamen main kaee baar padha़ sakoon ki 'eeshvar sab kuchh theek kar denge.'

[ ek amerikan bahan ]

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दीवानी बन जाउंगी मस्तानी बन जाउंगी,
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रसिया को नार बनावो री रसिया को
जीवन खतम हुआ तो जीने का ढंग आया
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ना मैं मीरा ना मैं राधा,
फिर भी श्याम को पाना है ।
ज़रा छलके ज़रा छलके वृदावन देखो
ज़रा हटके ज़रा हटके ज़माने से देखो
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया ।
राम एक देवता, पुजारी सारी दुनिया ॥
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी
तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
हो मेरी लाडो का नाम श्री राधा
श्री राधा श्री राधा, श्री राधा श्री
तू कितनी अच्ची है, तू कितनी भोली है,
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जिंदगी एक किराये का घर है,
एक न एक दिन बदलना पड़ेगा॥
हम राम जी के, राम जी हमारे हैं
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तेरी बंसी पवाडे पाए लख अड़ेया ।
कारे से लाल बनाए गयी रे,
गोरी बरसाने वारी
दुनिया का बन कर देख लिया, श्यामा का बन
राधा नाम में कितनी शक्ति है, इस राह पर
मुझे चाहिए बस सहारा तुम्हारा,
के नैनों में गोविन्द नज़ारा तुम्हार
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श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुमको
याद में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही
यह मेरी अर्जी है,
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मुझे चढ़ गया राधा रंग रंग, मुझे चढ़ गया
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